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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

विश्व हिन्दी लघुकथाकार निर्देशिका में शामिल लघुकथाकार

श्री मधुदीप गुप्ता की फेसबुक पोस्ट से 

अंकिता कुलश्रेष्ठ, अंजना अनिल, अंजली सिफर, अंजु दुआ जैमिनी, अंजु निगम, अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’, अखिलेन्द्र पाल सिंह, अखिलेश पालरिया, अनघा जोगलेकर, अनन्त श्रीमाली, अनीता रश्मि, अनिता ललित, अनिल रश्मि, अनिल शूर ‘आजाद’, अनीता मिश्रा सिद्धि, अनीता राकेश, अनुराग, अनुराग शर्मा, अनूप हरबोला, अन्तरा करवड़े, अपराजिता अनामिका श्रीवास्तव, अमरीक सिंह दीप, अमृतलाल मदान, अमृत राज, अमृता सिन्हा, अरविन्द सिंह नैकित सिंह, अरुण कुमार, अरुण कुमार गुप्ता, अर्चना तिवारी, अर्चना त्रिपाठी, अर्चना राय, अर्विना गहलोत, अलका अग्रवाल, अलका धनपत, अलका प्रमोद, अल्पना हर्ष, अविनाश अग्निहोत्री, अशोक ओझा, अशोक गुजराती, अशोक चतुर्वेदी, अशोक जैन, अशोक दर्द, अशोक भाटिया, अशोक मिश्र, अशोक यादव, अशोक लव, अशोक वर्मा, अशोक शर्मा भारती, अहमद रज़ा हाशमी, आद्या शुक्ला तिवारी, आनन्द किशोर शास्त्री, आभा चन्द्रा, आभा सक्सेना, आभा सिंह, आरती बंसल, आरती शर्मा, आरती स्मित, अशोक चोपड़ा, आशा पुष्प, आशा लता खत्री, आशागंगा प्रमोद शिरढोणकर, आशा शर्मा, आशा शैली, आशीष दलाल, इन्दिरा खुराना, इन्दु गुप्ता, इन्दु भारद्वाज, इन्दु वर्मा, इंद्रा बंसल, इन्द्रा ‘स्वप्न’, ई गणेश जी बागी, ईशानी सरकार, ईश्वर चन्द्र, उदय श्री श्री ताम्हने, उपमा शर्मा, उपेन्द्र प्रसाद राय, उमा शंकर सिंह, उमेश महादोषी, उर्मि कृष्ण, उषा अग्रवाल पारस, उषा वर्मा, उषा भदौरिया, एकता कुमारी, एन एच देवा, एल आर राघव ‘तरुण’, ओमप्रकाश काद्यान, ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश, कंचन अपराजिता, कनक हरलालका, कपिल शास्त्री, कमल कपूर, कमल चोपड़ा, कमला अग्रवाल, कमलेश चौरसिया, कमलेश भारतीय, कल्पना भट्ट, कल्पना मिश्र, कल्याणी कुसुम सिंह, कविता मालवीय, कविता वर्मा, कान्ता रॉय, कालीचरण प्रेमी, क़ासिम खुर्शीद , किशनलाल शर्मा, किशोर श्रीवास्तव, कुंकुम गुप्ता, कुँवर प्रेमिल, कुणाल शर्मा, कुमार गौरव, कुमार नरेन्द्र, कुमारसम्भव जोशी, कुमारी ज्योत्सना, कुलदीप जैन, कुसुम जोशी, कुसुम पारीक, कृष्ण कमलेश, कृष्ण चन्द्र महादेविया, कृष्ण मनु, कृष्णलता यादव, कृष्णानन्द कृष्ण, कोमल वाढवानी ‘प्रेरणा’, क्षमा सिसोदिया, ख़ुदेजा ख़ान, खेमकरण 'सोमन', गीता कैथल, गुरनाम सिंह, गुलशन मदान, गोविन्द भारद्वाज, गोविन्द शर्मा, ज्ञानदेव मुकेश, घनश्याम अग्रवाल, घनश्याम मैथिल 'अमृत', घमण्डीलाल अग्रवाल, चन्द्रभूषण सिंह चन्द्र, चन्द्रा सायता, चन्द्रेश कुमार छतलानी, चाँद मुंगेरीं, चाँदनी सेठी कोचर, चित्त रंजन गोप, चित्रा मुद्गल, चित्रा राणा राघव, चेतना भाटी, चैतन्य त्रिवेदी, जगदीश पन्त ‘कुमुद’, जगदीश राय कुलरियाँ, जनकजा कान्त शरण, जमाल अहमद ‘बस्तवी’, जयति जैन ‘नूतन’, जयेन्द्र कुमार वर्मा, जवाहर चौधरी, जसबीर चावला, जानकी बिष्ट वाही, जितेन्द्र ‘जीतू’, जितेन्द्र सूद, ज्योति जैन, ज्योति स्पर्श , ज्योत्सना कपिल, ज्योत्सना शर्मा, डिम्पल गौड़, तनु श्रीवास्तव, तिन्नी श्रीवास्तव, तेज नारायण सिंह ‘तपन’, तेजवीर सिंह तेज, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, दामोदर खड़से, दिनेश नन्दन तिवारी, दिलीप भाटिया, दिव्या राकेश शर्मा, दीपक गिरकर, दीपक मशाल, देवराज डडवाल ‘संजु’, देवेन्द्र गो होल्कर, ध्रुव कुमार, नज़्म सुभाष, नन्दकिशोर बर्वे, नंदल हितैषी, नन्दलाल भारती, नयना (आरती) कानिटकर, नरेन्द्रकुमार गौड़, नरेन्द्र प्रसाद नवीन, नरेन्द्र श्रीवास्तव, नवल सिंह, निशान्तर, निशि शर्मा ‘जिज्ञाशु, नीता सैनी, नीता श्रीवास्तव, नीना छिब्बर, नीरज जैन ‘सरस’, नीरज सुधांशु, नीलिमा शर्मा निविया, नेहा अग्रवाल नेह, नेहा नाहटा, पंकज जोशी, पंकज भारद्वाज, पंकज शर्मा, पदम गोधा, पम्मी सिंह ‘तृप्ति’, पवन जैन, पवन शर्मा, पवित्रा अग्रवाल, पारस कुंज, पारस दासोत, प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’, पुरुषोत्तम दुबे, पुष्पलता कश्यप, पुष्पा जमुआर, पूजा अग्निहोत्री, पूनम आनन्द, पूनम झा, पूनम डोगरा, पूरन सिंह, पूर्णिमा शर्मा, पृथ्वीराज अरोड़ा, प्रगीत कुँवर, प्रतापसिंह सोढ़ी, प्रतिभा पाण्डे, प्रतिभा मिश्रा, प्रतिभा सिन्हा, प्रत्युष गुलेरी, प्रदीपकुमार शर्मा, प्रदीप शर्मा स्नेही, प्रद्युमन भल्ला, प्रबोधकुमार गोविल, प्रभा रानी, प्रभात कुमार धवन, प्रभात दुबे, प्रमिला वर्मा, प्रवीण कुमार, प्रेम विज, प्रेमलता सिंह, प्रेरणा गुप्ता, बद्रीप्रसाद पुरोहित, बलराम, बलराम अग्रवाल, बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, बीजेन्द्र जैमिनी, बीना राघव, बी एल आच्छा, भगवती प्रसाद द्विवेदी, भगवान देव चैतन्य, भगवान प्रियभाषी, भगवान वैद्य ‘प्रखर’, भगीरथ, भरत कुमार शर्म्मा, भरतचन्द्र शर्मा, भारती वर्मा बौड़ाई, भावना सक्सेना, मंगला रामचन्द्रन, मंजु गुप्ता, मंजुला भूतड़ा, मंजु शर्मा, मधु जैन, मधुकान्त, मधुदीप, मधुरेश नारायण, मनोज कर्ण, मनोज सेवलकर, महावीर उत्तरांचली, महाबीर रंवाल्टा, महिमा भटनागर, महिमाश्री, महिमा श्रीवास्तव वर्मा, महेन्द्र नेह, महेन्द्र सिंह महलान, महेश दर्पण, महेश शर्मा, माणक तुलसीराम गौड़, माधव नागदा, मार्टिन जॉन, मालती बसन्त, माला वर्मा, मिथिलेश अवस्थी, मिथिलेश कुमारी मिश्र, मिथिलेश दीक्षित, मिनाक्षी सिंह, मिन्नी मिश्रा, मीना पाण्डेय, मीरा जैन, मीरा प्रकाश, मुकेश शर्मा, मुक्ता, मुखर कविता, मुनटुन राज, मुन्नू लाल, मुरलीधर वैष्णव, मुहम्मद तारिक असलम (तस्नीम), मृणाल आशुतोष, मेहता नागेन्द्र सिंह, मोहन राजेश, मो0 नसीम अख्तर, योगराज प्रभाकर, योगेन्द्रनाथ शुक्ल, रंजना फतेपुरकर, रंजना सिंह, रक्षा शर्मा 'कमल', रघुविन्द्र यादव, रचना अग्रवाल गुप्ता, रजनीश दीक्षित, रणजीत सिंह टाडा, रत्नकुमार सांभरिया, रमेश कटारिया 'पारस', रमेश कपूर, रमेश चन्द्र, रमेश मनोहरा, रवि प्रभाकर, रविभूषण श्रीवास्तव, राकेश भारती, राज हीरामन, राजकुमार गौतम, राजकुमार निजात, रायतन यादव, राहिला आसिफ़, राजेन्द्र कुमार गौड़, राजेन्द्र नागर 'निरन्तर', राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु', राजेन्द्र राकेश, राजेन्द्र वामन काटदरे, राजेश उत्साही, राजेश शॉ, राज्यवर्धन सिंह 'सोच', राधेलाल 'नवचक्र', राधेश्याम भारतीय, रानी कुमारी, रामकुमार आत्रेय, रामकुमार घोटड़, रामदेव धुरंधर, रामनिवास बाँयला, रामनिवास मानव, राममूरत राही, रामेशवर काम्बोज 'हिमांशु', रावेन्द्रकुमार रवि, राहुल कुमार, रिद्मा निशादिनी लंसकार, रीता गुप्ता, रीनू पुरोहित, रुखसाना सिद्दीक़ी, रूपल उपाध्याय, रूप देवगुण, रूपसिंह चन्देल, रूपेन्द्र राज, ऋचा वर्मा, ऋता शेखर 'मधु' (रीता प्रसाद), रेखा मोहन, रेणु चन्द्रा माथुर, रेणु झा, रेणुका बड्थ्वाल, रोहित यादव, रोहित शर्मा, लकी राजीव, लक्ष्मण शिवहरे, लज्जाराम राघव 'तरुण', लता अग्रवाल, लवलेश दत्त, लाजपतराय गर्ग, लाडो कटारिया, लीला (मोरे) धुलधोये), वन्दना गुप्ता, वन्दना सहाय, वशिष्ठकुमार झमन, वसन्त निगुणे, वाणी दवे, विकेश निझावन, विक्रम सोनी, विजय अग्रवाल, विनय कुमार चंचरिक, विजय जोशी शीतांशु, विजयानन्द विजय, विजेता रानी, विद्यालाल, विनय गुदारी, विनीता राहुरीकर, विनोद खनगवाल, विभा रश्मि, विभारानी श्रीवास्तव, विमल भारतीय शुक्ल, विरेन्द्र 'वीर' मेहता, विवेक रंजन श्रीवास्तव, विष्णु कुमार, विष्णु सक्सेना, वीरेन्द्रकुमार भारद्वाज, शंकर प्रसाद, शकुंतला किरण, शक्तिराज कौशिक, शमीम शर्मा, शराफ़त अली ख़ान, शशी बंसल, शारदा गुप्ता, शालिनी खरे, शिखर चन्द जैन, शिखा कौशिक 'नूतन', शिखा तिवारी, शिव नारायण, शील कौशिक, शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शैलेश दत्त मिश्र, शोभना श्याम, शोभा रस्तोगी, श्यामबिहारी श्यामल, श्याम शखा श्याम, श्याम सुन्दर अग्रवाल, श्याम सुन्दर दीप्ति, श्वेता सिंह, श्रीराम साहू 'अकेला', श्रुत कीर्ति अग्रवाल, संगीता कुमारी, संगीता गोविल, संजय कुमार 'संज', संजय कु0 सिंह, संजीव आहूजा, संजु शरण, संयोगिता शर्मा, सच्चिदानन्द सिंह 'साथी', सतविन्द्रकुमार राणा, सतीश दुबे, सतीश राठी, सतीशराज पुष्करणा, सत्यप्रकाश भारद्वाज, सत्यवीर मानव, सत्या शर्मा 'कीर्ति', सनतकुमार जैन, सन्तोष सुपेकर, सन्तोष श्रीवास्तव, संदीप आनन्द, संदीप तोमर, संध्या तिवारी, सम्राट समीर, सरिता रानी, सरोज गुप्ता, सविता इन्द्र गुप्ता, सविता मिश्रा 'अक्षजा', सविता सिंह नेपाली, सारिका भूषण, सिद्धेश्वर, सिमर सदोष, सीमा जैन, सीमा भाटिया, सीमा रानी, सीमा सिंह, सुकेश साहनी, सुखचैन सिंह भण्डारी, सुदर्शन रत्नाकर, सुदर्शन वशिष्ठ, सुधांशु कुमार, सुधा भार्गव, सुधाकर शर्मा (आशावादी), सुधीर कुमार, सुधीर द्विवेदी, सुनीता त्यागी, सुनीता पाटिल, सुनील गज्जाणी, सुनील वर्मा, सुबोध कुमार सिन्हा, सुभाष नीरव, सुभाष रस्तोगी, सुमन, सुरिंदर कौर 'नीलम', सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा, सुरेन्द्र गुप्त, सुरेन्द्र गोयल, सुरेन्द्र वर्मा, सुरेश कुशवाहा तन्मय, सुरेश बाबू मिश्रा, सुरेश शर्मा, सुरेश सौरभ (सुरेश कुमार), सुषमा सिन्हा, सूर्यकान्त नागर, सेवासदन प्रसाद, सैली बलजीत, स्नेह गोस्वामी, स्वाति तिवारी, हरदान हर्ष, हरनाम शर्मा, हरभगवान चावला, हरिनारायणसिंह 'हरि', हीरालाल नागर, हेमंत यादव 'शशि', हेमा चंदानी (अंजुली), हरीश कुमार 'अमित', हरीश सेठी 'झिलमिल', हर्ष राज, हारुन रशीद 'अश्क', हूंदराज बलवाणी.

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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

ज्योत्सना सिंह की एक लघुकथा


उसकी रचना / ज्योत्सना सिंह 


सभा ने उसका स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट से किया और फिर  पूरे सभागार में नीम सन्नाटा पसर गया सिर्फ़ उसे सुनने के लिए।
वह जब भी मंच पर होती तो श्रोता गण बड़ी बेताबी से उसकी बारी आने की प्रतीक्षा करते क्यूँ कि जब वह अपनी रचना लोगों के समक्ष रखती तब संपूर्ण उपस्थिति में भी सन्नाटा अपने पाँव जमा लेता।

उसकी रचना समाज के हर उस पहलू को बे-नक़ाब करती जो त्रासदी,व्यभिचार लालच और नफ़रत से भरी हुई होती।

और लोग उसे साँस रोक कर सुनते शायद वह श्रोता के अंदर छुपे उस इंसान को खरोंच देती जिसे सबने ख़ुद से भी बहुत दूर कर रखा है।
लोग उसे सुनते दाद देते तालियों फूलों से उसका सम्मान बढ़ाते हुए आगे बढ़ जाते और फिर समाज ही उसे एक और तड़पता मौक़ा दे देता ऐसी ही किसी नंगी सच्चाई रचने के लिए और हम बन जाते हैं ऐसे आहत भावों का हिस्सा कभी सहते हुए तो कभी करते हुए।

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मंगलवार, 24 सितंबर 2019

फेसबुक समूह "सार्थक साहित्य मंच" प्रतियोगिता में मेरी विजेता लघुकथा


तीन संकल्प

वो दौड़ते हुए पहुँचता उससे पहले ही उसके परिवार के एक सदस्य के सामने उसकी वो ही तलवार आ गयी, जिसे हाथ में लेते ही उसने पहला संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी की भी बुराई नहीं सुनेगा'। वो पीछे से चिल्लाया, "रुक जाओ तुम्हें तो दूसरे धर्मों के लोगों को मारना है।" लेकिन तलवार के कान कहाँ होते हैं, उसने उसके परिवार के उस सदस्य की गर्दन काट दी।

वो फिर दूसरी तरफ दौड़ा, वहाँ भी उससे पहले उसी की एक बन्दूक पहुँच गयी थी, जिसे हाथ में लेकर उसने दूसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी भी बुराई की तरफ नहीं देखेगा'। बन्दूक के सामने आकर उसने कहा, "मेरी बात मानो, देखो मैं तुम्हारा मालिक हूँ..." लेकिन बन्दूक को कुछ कहाँ दिखाई देता है, और उसने उसके परिवार के दूसरे सदस्य के ऊपर गोलियां दाग दीं।

वो फिर तीसरी दिशा में दौड़ा, लेकिन उसी का आग उगलने वाला वही हथियार पहले से पहुँच चुका था, जिसके आने पर उसने अपना तीसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी को बुरा नहीं कहेगा'। वो कुछ कहता उससे पहले ही हथियार चला और उसने उसके परिवार के तीसरे सदस्य को जला दिया।

और वो स्वयं चौथी दिशा में गिर पड़ा। उसने गिरे हुए ही देखा कि एक बूढ़ा आदमी दूर से धीरे-धीरे लाठी के सहारे चलता हुआ आ रहा था, गोल चश्मा पहने, बिना बालों का वो कृशकाय बूढ़ा उसका वही गुरु था जिसने उसे मुक्ति दिला कर ये तीनों संकल्प दिलाये थे।

उस गुरु के साथ तीन वानर थे, जिन्हें देखते ही सारे हथियार लुप्त हो गये।
और उसने देखा कि उसके गुरु उसे आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं और उनकी लाठी में उसी का चेहरा झाँक रहा है, उसके मुंह से बरबस निकल गया 'हे राम!'।

कहते ही वो नींद से जाग गया।
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Source: https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1750296521770814&set=gm.913175072376522&type=3&theater

रविवार, 22 सितंबर 2019

लघुकथा कलश रचना प्रक्रिया महाविशेषांक | वीरेंद्र वीर मेहता

. . . और आख़िर 24 दिन के लंबे 'संघर्ष' के बाद पोस्ट आफिस के मक्कड़जाल से निकलकर 28 अगस्त को रजिस्टर्ड पोस्ट की गई 'लघुकथा कलश' की प्रति मेरे हाथों में पहुंच ही गई।

'थैंक्स टू इंडिया पोस्ट'. . .

लघुकथा कलश का यह चतुर्थ अंक (जुलाई - दिसंबर 2019) 'रचना-प्रक्रिया, महाविशेषांक' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अपने पूर्व अंकों की तरह आकर्षक साज-सज्जा और बढ़िया क्वालिटी के पेपर पर छपा होने के साथ, अपने प्राकृतिक हरे रंग के खूबसूरत कवर पृष्ठ में पत्रिका सहज ही मन को आकर्षित कर रही है।

अपनी पहली नजर में पत्रिका को देखने में यही अनुभव हो रहा है कि 'रचना-प्रक्रिया' पर आधारित यह अंक अपने अंदर बहुत से गुणीजन लेखकों के लघुकथा से जुड़े अनुभवों को समेटे हुए है। पत्रिका में 360+2 कवर पृष्ठों में 126 नवोदित एवं स्थापित प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की करीब 250 लघुकथाओं के साथ उनकी रचना प्रक्रिया एवं चार विशिष्ट लघुकथाकारों की लघुकथाओं सहित उनकी रचना प्रक्रिया को स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त छः पुस्तक समीक्षाएं और लघुकथा कलश के पूर्व अंकों से जुड़ी बेहतरीन समीक्षाएं भी इस अंक में शामिल की गई हैं। नेपाली लघुकथाओं की विशेष प्रस्तुति में आठ लघुकथाकारों की लघुकथाएं रचना प्रक्रिया सहित शामिल की गई हैं। अंत में कवर पृष्ठ पर अशोक भाटिया जी के बाल लघुकथा 'बालकांड' की योगराज प्रभाकर जी द्वारा काव्यात्मक समीक्षा भी इस अंक का एक आकर्षण बन गई है। निःसन्देह इतनी विस्तृत सामग्री के पीछे 'कलश परिवार' सहित सभी गुणीजन रचनाकारों की मेहनत का भी बहुत बड़ा योगदान है।

किसी भी पत्र-पत्रिका का संपादकीय उस कृति में सम्मलित किए गए अंशों की बानगी के संदर्भ में उसका सत्य प्रतिबिम्ब ही होता है। पत्रिका का सम्पादकीय "दिल दिआँ गल्लाँ" सहज ही रचना प्रक्रिया अंक की प्रेरणा के साथ उसके अस्तित्व में आने की कथा सामने रखता है। सम्पादकीय न केवल लघुकथाकारों को उनके लेखन के प्रति आश्वस्त करने की कोशिश करता है वरन उन्हें उनकी कमियों के प्रति ध्यानाकर्षित करने के साथ लघुकथा विधा पर और अधिक मंथन करने का आग्रह भी करता है।

"साहित्य सृजन अभिव्यंजना से अभिव्यक्ति तक का सफर है, जब अभिव्यक्ति का कद अभिव्यंजना के कद की बराबरी कर ले तब जाकर कोई कृति एक कलाकृति का रूप धारण करती है।" सम्पादकीय में इन शब्दों में दिए गए मंत्र से अधिक साहित्य साधना की और क्या परिभाषा हो सकती है, जिसे एक साधक को अंगीकार कर लेना चाहिए।

लघुकथा के ढांचे और आकार-प्रकार पर आए दिन होने वाले विवादों पर भी सम्पादकीय दृष्टि अपने चिर-परिचित अंदाज में अपना दृष्टिकोण रखने का प्रयास करती है।

बरहाल पत्रिका के विषय में और अधिक विचार तो संपूर्ण पत्रिका पढ़ने के बाद ही लिखे जा सकते हैं, फिलहाल तो इस अंक में शामिल मेरी दो लघुकथाओं श्राद्ध और जवाब को रचना प्रक्रिया सहित मान देने के लिए 'कलश टीम' को हार्दिक धन्यवाद। साथ ही आद: योगराज प्रभाकर सहित, कलश टीम के सभी वरिष्ठ परामर्शदाताओं और अन्य सभी सहयोगियों के साथ-साथ इसमें शामिल सभी गुणीजन रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई सहित इस अंक के लिए सादर शुभकामनाएँ।

//वीर//

पत्रिका प्राप्ति के लिये सम्पर्क सूत्र।
MR. YOGRAJ PRABHAKAR :
+91 98725 68228

MR. RAVI PRABHAKAR
+91 98769 30229

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

लघुकथा समाचार: डॉ. लता की कृति का विमोचन


Bhaskar News NetworkSep 19, 2019, 06:51 AM IST

शहर की वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. लता अग्रवाल की पुस्तक लघुकथा का अंतरंग का विमोचन हाल ही में हुआ। डॉ. लता ने बताया कि इस संग्रह में 23 लघु कथाकारों से पूछे गए 589 प्रश्नों के जवाब संग्रहित हैं। संग्रह में डॉ. शकुंतला, अजातशत्रु, पत्रकार बलराम, कमल किशोर गोयनका, बलराम अग्रवाल, चित्रा मुद्गल के दुर्लभ साक्षात्कार हैं। 

Source:
https://www.bhaskar.com/news/mp-news-dr-lata39s-work-released-065126-5517011.html?utm_expid=.YYfY3_SZRPiFZGHcA1W9Bw.0&utm_referrer=https%3A%2F%2Fwww.google.com%2F

लघुकथा वीडियो: मेहनत का पैसा | लेखक : गोविन्द भारद्वाज | स्वर : मीना खत्री


गुरुवार, 19 सितंबर 2019

पूनम सिंह की दो लघुकथाएं

1)

सोन चिरैया / पूनम सिंह

"मास्टर जी आज से सोन चिरैया हमारे साथ ही पढ़ेगी" मीरा ने सोन चिरैया का हाथ पकड़े कक्षा में प्रवेश करते  ही मास्टर जी को कहा..। मास्टर जी ने आश्चर्य भरी नजरों से अपने चश्मे के भीतर से झाकते हुए  बोले..  "अरे.. ये यहाँ नहीं पढ़ सकती और तुम इसका हाथ  काहे  पकड़ी हो.. छोड़ो..।"  मास्टर जी ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा ..। "यह तो भिखुआ की बेटी है ना इसका बाप तुम्हारे यहाँ मजूरी करता है।" "हाँ मास्टर जी वही है और आज से ये भी यही पढ़ेगी, वो इसलिए कि अगर भीखुआ के हाथ की मजदूरी का अन्न आप और मै खा सकते हैं, तो ये यहाँ पढ़ काहे नहीं सकती ??।"  मीरा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा..।  मास्टर जी सोच में पड़ गए कि "आखिर इस मुसीबत से छुटकारा कैसे पाएँ ..। ..अगर हमने इस निम्न जाति की कन्या को स्थान दे दिया तो ऊपर में क्या जवाब देंगे ।"  तभी आगामी चुनाव के नेताओं का दल आ पहुँचा । मास्टर जी के पास बैठ  गुफ्तगू शुरू हो गई । उनके प्रस्थान के पश्चात दूसरा दल आया उसी तरह घंटों न जाने क्या  क्या बाते हुई !। ..बस इतना ही पता चला कि सोन चिरैया को स्कूल में दाखिला मिल गया ।

15 अगस्त का दिन था। स्कूल में सभी नेता अपने-अपने दल के साथ पहुँचे ।तभी उनमें से एक दल के नेता ने उठकर कहा.., "झँडा फहराने का समय हो गया है.. अब हम सबको स्टेज पर चलकर इस यादगार पल का हिस्सा बनना चाहिए ।" एक-एक करके सभी दल के मुख्य नेता ऊपर स्टेज पर पहुँचे । तभी उनमें से एक नेता ने सोन चिरैया को ऊपर स्टेज पर बुलाया और कहा.., "हमारे भावी देश के भविष्य सोन चिरैया झँडा फहराएगी .., " और बाकी दूसरे नेता की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना ही उन्होंने उसे  झँडा फहराने का आदेश दे दिया। बाकी सब के सब आवाक होकर देखते ही रह गए।

मीरा ने भागकर सोन चिरैया का हाथ पकड़कर ऊपर हवा में लहराया और कहा "तुम्हारी जीत हुई सोन चिरैया ..।"
उधर नेताओं के बीच में काना फूसी शुरू हो गई । तभी मास्टर जी ने आकर एक नेता को बधाई देते हुए  कहा.. "बधाई हो नेता जी इस बार तो आपने चुनाव में जीत की मोहर लगा दी ।"
तभी दूसरे दल के कुछ नेता एक दूसरों को यही कहते हुए पाए गए कि.. " हमने तो पहले ही कहा था समझदारी से काम लीजिए,  हर बार पैसे से ही बात नहीं बनती..। देखिए इस बार भी फिर से उसी चरवाहा छाप ने चुनाव जीतने का ठप्पा लगा लिया। ऊपर से महिला आयोग से भी सजग रहने की आवश्यकता थी आपने देखा नहीं उस सोन चिरैया को ...?।"  "तो अब क्या करें.. कोई उपाय बताओ ..!" "अब क्या बताना..जब चिड़िया चुग गई खेत...!"


2)

मैं जुलाहा / पूनम सिंह

ठक... ठक... ठक.... ठक "अरे कौन है" इतनी सुबह सुबह झल्लाते हुए रामदास ने किवाड़ खोला । 
"मैं जुलाहा" अपने सामने एक मध्यम कद वाला व्यक्ति सफेद कुर्ता पायजामा पहने लंबी सफेद दाढ़ी, तथा एक कंधे पर एक बड़ा सा थैला और दूसरे हाथ मैं एक बड़ा सा चरखा लटकाए हुए शांत भाव ओढ़े खड़ा था।

"क्या बात है बाबा किस चीज की आवश्यकता है।"  सेठ रामदास ने पूछा "मैं जुलाहा हूं और अपने चरखे पर लोगों के पसंद के मुताबिक कपड़े बुनता हूं, आप भी बनवा लीजिए।" रामदास प्रत्युत्तर में कुछ कहने ही वाला था कि तभी रामदास की पत्नी शोभा वहां आ गई उसने बीच में ही टोकते हुए विनम्रता से पूछा "क्या चाहिए बाबा?" "बिटिया मैं जुलाहा हूं और लोगो के पसंद मुताबिक कपड़े बुनता हूं। आप भी बनवा लीजिए।" शोभा ने थोड़ा अचंभित शांत मुद्रा में पूछा,  "पर बाबा हम आपसे कपड़े क्यों बनवाएंगे?! ऐसी क्या खासियत है आपकी बुनाई में?!" जुलाहा बोला "मेरे बनाए हुए कपड़ों की सूत और रंगत की दूर दूर तक चर्चा है। एक बार अपने सेवा का मौका दीजिए, आपको निराश नहीं करूंगा।" जुलाहे ने विनम्रता से निवेदन किया शोभा मन ही मन में सोचने लगी आजकल के आधुनिक तकनीकी युग मे जब सुंदर अच्छे रंगत वाले परिधान कम दाम में मिल जाते हैं फिर भ..ला..।! जुलाहा शोभा के मन की बात समझ गया और उसने तुरंत ही कहा..! "चिंता ना करो बिटिया मैं बहुत सुंदर वस्त्र बनाउँगा कोई मोल भी ना लूंगा,. यह हमारा पुश्तैनी काम है और इस कला को सहेज कर रखना चाहता हूं। इसलिए घर घर घूमकर वस्त्र बनाता हूं। ज्यादा वक्त भी ना लगेगा अल्प समय में ही पूरा कर लूंगा।" शोभा कुछ बोल पाती की रामदास पीछे से बोला "अच्छा ठीक है शोभा.. बाबा के लिए दलान पर रहने की व्यवस्था करवा दो।" जुलाहे के मन को तसल्ली मिली शोभा ने तुरंत ही कुछ कारीगरों को बुलवाकर दलान पर एक छोटी सी छावनी बनवा दी और जुलाहे को विनय पूर्वक कार्य जल्दी समाप्त करने के लिए भी कह दिया। जुलाहा भी बहुत खुशी खुशी अदब से बोला "हाँ हाँ बिटिया तुम तनिक भी चिंता ना करो मैं जल्दी निपटा लूंगा।" 
जुलाहा अपने काम मे लग गया शोभा कुछ अंतराल में आकर बाबा से कुछ खाने पीने का भी आग्रह कर जाती। पर जुलाहा विनम्रता से मुस्कुराते हुए कहता "मेरे पास खाने का पूरा प्रबंध है बिटिया जब जरूरत होगी मैं स्वयं कह दूंगा।" जुलाहा शोभा के सरल आत्मीय व्यवहार को देखकर बड़ी प्रसन्नता होती और मन ही मन उसे ढेरों आशीर्वाद से नवाजता। शोभा का ४साल का बालक था जो दलान पर खेलने आता और  और जुलाहे के पास आकर पॉकेट से चॉकलेट निकाल अपने नन्हे हाथ आगे बढ़ा तोतली आवाज में पूछता "बाबा ताओगे..।" उसकी तोतली आवाज सुनकर जुलाहे का मन पुलकित हो उठता और उसकी ठोड़ी को पकड़ ठिठोली करते हुए कहता "नहीं राम लला आप खाओ हमे अभी भूख नहीं।, इतना पूछ कर राम लला खेलने में मस्त हो जाता। 
इसी तरह दो-तीन दिन बीत गए एक सुबह रामलला जुलाहे के पास आकर पूछता "बाबा मेले तपले बन गए तया..?! " " हां राम लला बन गए।" "दिथाओ..!" बालक बोला "हां हांअभी लो दिखाते हैं।" जुलाहे ने अपने थैले में से एक बड़ा ही सुंदर छोटा सा अचकन निकालकर बालक के हाथ में थमा दिया "यह देखो तुम्हारे लिए हमने सात रंगों वाली अचकन तैयार की है।" बालक अचकन देखते ही खुशी से उछल पड़ा और जुलाहे के सामने अपने नन्हे हाथ आगे बढ़ाते हुए कहता है "बाबा यह लो तौपी ताओ..!"  "नहीं राम लला आप खाओ हमें इसकी आवश्यकता नहीं जुलाहे ने कहा!" नहीं माँ तहती है.. कोई भी चीज उदाली नई लेनी तहिये..!। बालक के मुख से ऐसी दैविक शब्दों को सुन जुलाहे का मन प्रफुल्लित हो गया और सहजता पूर्वक बालक के हाथ से मीठा ले लिया और कहा "ठीक है रामलला लाओ दे दो।" तभी वहां शोभा भी आ गई उसने शालीनता से पूछा "बाबा क्या बाकी के परिधान भी तैयार हो गए?!.. "हाँ बिटिया आपका भी तैयार हो गया है। जुलाहे ने थैले में से एक सुंदर लाल और सफेद रंगों वाली साड़ी शोभा को पकड़ा दी।... थी तो दो रंगों वाली ही पर उस पर की गई कलाकारी रंगो का भराव देख शोभा हतप्रभ रह गई मन ही मन सोचने लगे उसने ऐसी रंगो वाली अनगिनत साड़ियां पहनी होगी पर इतनी आकर्षक सुंदर कलाकारी वाली कभी नहीं,.. उसने मन ही मन जुलाहे को नमन किया और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहने लगी:-  "बाबा मैंने अपने अभी तक के जीवन काल में ऐसी रंगो वाली साड़ी बहुत पहनी पर इतनी सुंदर आकर्षक कलाकारी, वह भी सिर्फ दो रंगो में बनी कभी नही..।" मैं इसे सहेज कर रखूँगी।" "अरे नहीं बिटिया!" जुलाहे ने तुरंत ही बीच में टोकते हुए कहा-: "यह मेरे हाथों से बनी सूत एवं रंग से बनी साड़ी है।  "तुम इसे हर रोज भी धारण करोगी तभी इसका सूत और रंग ज्यों का त्यों रहेगा। यह सुन शोभा को और आश्चर्य हुआ और वह निशब्द हो गई। शोभा ने विनम्र भाव से कहा.. मैं यह साड़ी बिना मोल नहीं लूंगी आप कुछ भी अपनी स्वेच्छा से इसका मोल ले लीजिए।" पहले तो जुलाहे ने मना किया पर शोभा के आग्रह करने पर उसने कहा-: "ठीक है अगर तुम्हारी इतनी इच्छा है तो तुम अपने मंदिर में जो फूल चढ़ाती हो उसी में से दो फूल लाकर दे देना।" ऐसी अनूठी इच्छा सुन शोभा कुछ बोल पाती कि जुलाहे ने कहा-: "इससे ज्यादा की कोई इच्छा नहीं है बिटिया बस वही दे दो...!" शोभा दौड़कर मंदिर गई माँ के चरणों से दो फूल उठा लाई और बाबा को दे दिया। 
बाबा क्या मेरे पति के परिधान भी तैयार हो गए?!.. "नहीं बिटिया बस वह भी एक-दो दिन में तैयार हो जाएगा तैयार होते ही मैं तुम्हें स्वयं खबर कर दूंगा।"  ,"ठीक है बाबा" इतना कह कर शोभा घर के भीतर चली गई।
  तीन-चार दिन बीत गए पर जुलाहे की ओर से कोई खबर ना आई फिर वह स्वयं ही कौतूहल वश जानकारी के लिए जुलाहे के पास गई और पूछा "बाबा क्या अभी तक बने नहीं?!"
“नहीं बिटिया” इस बार जुलाहे के शब्दों में थोड़ी निराशा थी उसने पास रखा एक कुर्ता उठाया और शोभा को दिखाते हुए कहने लगा “बिटिया मैंने अपनी पूरी लगन से कुर्ता बनाने का पूर्ण प्रयास किया किंतु बुनाई में अच्छी पकड़ नहीं आ रही..!  शोभा ने वह कुर्ता अपने हाथों में लेते हुए एक नजर डाली तो उसने पाया उसमें कुछ सुंदर रंगों का भराव था और आकर्षक भी उतना ही था, पर बुनाई उतनी अच्छी ना होने के कारण थोड़ा अटपटा लग रहा था।अच्छा, उसने जिज्ञासा भरे लहजे में पूछा “अब और कितना वक्त लगेगा बाबा पूर्णतया निखरने में.."। “बिटिया लगता नहीं यह और अब मुझसे बन पाएगा तुम इसे मेरा तोहफा समझ कबूल कर लो।"
शोभा समझ गई तोहफा कहकर बाबा इसका मोल नहीं लेना चाहते और उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
"बिटिया अब मैं चलता हूं अभी मुझे आगे की यात्रा तय करनी है।".....

रामदास का नन्हा बालक - - अबोध मन सांसारिक मोह माया से अनभिज्ञ पूर्ण शुद्ध था। इसलिए जुलाहे ने उसे प्रकृति के सात रंगों वाले वस्त्र तैयार करके दिए।

शोभा - -  निश्छल, समर्पित आत्मीय भाव से अपने संसार के कर्म धर्म में लगी रहती थी। यही कारण था कि जुलाहे ने उसे शुद्ध पवित्र एवं प्रेम को परिभाषित करने वाली लाल और सफेद रंग का वस्त्र दिया।

रामदास - - प्रचुर धन का मालिक था। साथ ही धार्मिक एवं दानी भी था। किंतु धन संग्रह के मोह ने उसे आंशिक रूप से घेर रखा था। यही कारण था कि जुलाहे ने उसके लिए सुंदर रंगत वाला वस्त्र तैयार किया तो पर सांसारिक लिप्सा के कारण बुनाई उतनी सही ना हो पाई।

जुलाहा रूपी ईश्वर हमारे भीतर बैठा हमारे एक एक प्रक्रिया पर उसकी नजर है और वह हमारे कर्मों के अनुरूप हमारी आत्मा को वस्त्र पहना रहा है।
मुक्ति और भुक्ती दोनों इसी संसार में निहित है।

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पूनम सिंह
एक कहानीकार, लघुकथाकार, कवित्रियी, समीक्षक हैं एवं साहित्य की सेवा में सतत संलग्न रहती हैं।
Email: ppoonam63kh@gmail.com