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शुक्रवार, 8 मार्च 2019

शोध पत्र: आधुनिक साहित्य का नया आयाम - लघुकथा के संदर्भ में | श्रीमती निधि सैनी

प्रवक्ता - श्रीमती निधि सैनी, हिन्दू गर्ल्स कॉलेज, जगाधरी
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी एवं सामाजिक विज्ञान शोध पत्रिका [ISSN:2348-2605] Volume 4, ISSUE 2, (April-June, 2016) Impact Factor:3.849 PP 16-21












Source:
http://gejournal.net/Hindi/download.php?filename=Jjx0GIeDs2Rrr0Q.pdf&new=Paper%204.pdf


गुरुवार, 7 मार्च 2019

लघुकथा: पर्दा | राजकुमार कांदु

"अरे-अरे... रुको! कहाँ जा रहे हो? जानते नहीं अब घर में नइकी बहुरिया आ गई है।"
सुशीला ने घर के अंदर के कमरे में जा रहे रामखेलावन को आगे बढ़ने से रोका।

"अरे वही बहुरिया है न गोपाल की अम्मा जो ब्याह के पहले स्टेज पर गोपाल के बगल वाली कुर्सी पर बैठी रही...? अब उसमें का बदल गया है कि हम उसको देख नहीं सकते और उ हमरे सामने नहीं आ सकती?" रामखेलावन ने कहा।


राजकुमार कांदु
मुम्बई

शोध पत्र: श्री सत्यप्रकाश भारद्वाज कृत 'लुटेरे छोटे छोटे’ लघुकथा संग्रह में व्यक्त परिवार एवं राजनीति | सुमन बाला

International Journal of Advanced Research and Development | ISSN: 2455-4030 | VOL. 1, ISSUE 11| PP 61-63 | 



















































Source:
http://www.advancedjournal.com/download/396/2-4-92-897.pdf

बुधवार, 6 मार्च 2019

शोध पत्र: हिन्दी लघुकथा: राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिकता के सन्दर्भ में | खेमकरण

International Journal of Advanced Research and Development ISSN: 2455-4030 Vol. 3, Issue 3 (2018) PP: 100-105  


Abstract: समाजिक और साँस्कृतिक बहुलता, भारत की बड़ी उपलब्धि है। इन्हीं उपलब्धियों के कारण जीवन जीवन्त और राष्ट्रीय एकता मजबूत है। यह भारत की मूलभूत पहचान है जो सदा ही गौरवान्वित करती रही है परन्तु, चिन्ताजनक बिन्दु यह भी है कि साम्प्रदायिक ताकतें, विभिन्न धर्मों के बीच धार्मिक, जातिगत खाईयाँ पैदाकर, जन-मानस को छिन्न-भिन्न, और दंगे करवाकर अपने नापाक उद्देश्य में सफल होती रही हैं। इनका कार्य है अपने धर्म, जाति को सर्वोपरि मानकर, दूसरे धर्म की आलोचना करना और धार्मिक विवाद को बढ़ावा देकर, मानव-मानवता का खून बहाना। इस प्रकार साम्प्रदायिक सोच देश की एकता, अखण्डता को खतरे में डालती है। इन खतरों को हिन्दी कथाकारों ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से रेखांकित किया है। साँझा विरासत के कथाकार मंटो के अतिरिक्त समकालीन हिन्दी लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर असगर वजाहत, मधुदीप, डाॅ0 सतीश दुबे, पारस दासोत, सुकेश साहनी, भगीरथ, महेन्द्र सिंह महलान, हबीब कैफी, बलराम अग्रवाल, कमलेश भारतीय, डाॅ श्याम सुन्दर दीप्ति, श्यामबिहारी श्यामल, डाॅ0 दामोदर खड़से, डाॅ0 कमल चोपड़ा, बलराम, माधव नागदा, कस्तूरीलाल तागरा और संतोष सुपेकर आदि कथाकारों की लघुकथाओं में राष्ट्रीय एकता के तत्व प्रमुखता से मिलते हैं। वहीं, इन कथाकारों की लघुकथाएँ, यह भेद भी खोलती है कि साम्प्रदायिक दंगों के पीछे निम्न स्तर की राजनीति, राजनीतिक पार्टियाँ और कट्टरपंथी नेता हैं, जिनके शिकार प्रायः आमजन ही होते हैं। सैकड़ों दंगे-फसाद, हिंसक-शर्मनाक घटनाएँ इनसान होने पर प्रश्न चिह्न हैं। हिन्दी लघुकथा इन सबकी प्रत्यक्षदर्शी रही है। प्रस्तुत शोध-पत्र इन्हीं विषयों पर केन्द्रित है।









Source:
http://www.advancedjournal.com/download/1555/3-3-97-803.pdf

मंगलवार, 5 मार्च 2019

शोध पत्र: संस्कृत लघु कथाओं में आधुनिक विषय - डॉ. सुरचना त्रिवेदी

(मानवीय सम्बन्धों के विशेष संदर्भ में)
National Journal of Hindi & Sanskrit Research; ISSN: 2454-9177;  2017; 1(13): 68-71



Source:

http://www.sanskritarticle.com/admin/upload/22(13)Dr.Surachna-Trivedi.pdf