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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019
लघुकथा: शक : डॉ.सरला सिंह
नेहा कॉलेज से घर आकर अपना बैग रखकर जैसे ही घूमती है, उसे ऐसा लगा उसके पिता की क्रोध से धधकती आँखें मानों उसे खा ही जायेंगी। वह कुछ समझ पाती कि चटाक-चटाक दो चाँटे उसके गाल पर पड़ गये। वह बदहवास सी खड़ी रह गयी।
शोर सुनकर माँ दौड़ी हुई वहाँ आयी,"अरे क्या हुआ,पागल तो नहीं हो गये हो! लड़की पढ़कर आ रही है और तुम उसे मारने लगे।"
"इसका दुपट्टा देखो, नया है, इसको कहाँ से मिला? जरूर किसी ने इसे ...।" पिता अपने शक की आग में झुलसे जा रहे थे।
"चुप रहो! मेरी लड़की ऐसी नहीं है, ना ही कभी होगी। मेरे खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ है।" नेहा की माँ उसके पिता को झिड़कते हुए बोली।
"माँ मुझे ये दुपट्टा मेरी सहेली ने दिया है। चाहे तो उससे पूछ लो, उसके पास यह फालतू था और उसने मुझे दे दिया।" नेहा ने सारी बात माँ को बता दी।
लेकिन फिर भी घर में पूरे दिन कलह जारी रहा। दूसरे दिन नेहा ने वह दुपट्टा अपनी सहेली को वापस कर दिया और वही पुराना सिला हुआ दुपट्टा ओढ़कर जाने लगी।
डॉ.सरला सिंह
दिल्ली
रविवार, 24 फ़रवरी 2019
शोध पत्र: हिन्दी लघुकथा: स्वरूप, परिभाषा और तत्व | डॉ॰ हेमलता शर्मा
Source:
Journal of Advances and Scholarly Research in Allied education Vol-I, Issue-III ISSN: 2230-7540 April 2011 - PP 1-8
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2019
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