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बुधवार, 23 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो : सआदत हसन 'मंटो' कृत लघुकथा "करामात"

प्रसिद्द साहित्यकार राजेंद्र यादव  जी ने एक बार कहा था कि  "चेखव के बाद मंटो ही थे, जिन्होंने अपनी कहानियों या साहित्य के बल पर अपनी जगह बना ली।"
आइये आज सुनते हैं मंटो की मशहूर लघुकथा "करामात"




courtesy : youtube 


शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार



सआदत हसन मंटो की पुण्‍यतिथि आज
January 18, 2019 | LegendNews

11 मई 1912 को जन्‍मे उर्दू के लेखक सआदत हसन मंटो का इंतकाल 18 जनवरी 1955 को हुआ था. सआदत हसन मंटो अपनी लघुकथाओं - बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए.
Image result for मंटोअपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए.

कहानियों में अश्लीलता के आरोप की वजह से मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्‍तान बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया। इनके कुछ कार्यों का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है.

दक्षिण एशिया में सआदत हसन मंटो और फैज़ अहमद फैज़ सब से ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखक थे.
पिछले सत्तर साल में मंटो की किताबों की मांग लगातार रही है. एक तरह से वह घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया है.

उनके सम्पूर्ण लेखन की किताबों की जिल्दें लगातार छपती रहती हैं, बार-बार छपती हैं और बिक जाती हैं.
यह भी सचाई है कि मंटो और पाबंदियों का चोली-दमन का साथ रहा है. हर बार उन पर अश्लील होने का इल्ज़ाम लगता रहा है और पाबंदियां लगाई जाती हैं.

‘ठंडा ग़ोश्त’, ‘काली सलवार’ और ‘बू’ नाम की कहानियों पर पाबंदिया लगाई गई. उनकी कहानियों को पाबंदियों ने और भी मक़बूल किया. मंटो को बतौर कहानीकार पाबंदियों का फ़ायदा हुआ. मंटो की कहानियों पर पांच बार पाबंदी लगी पर उन्हें कभी दोषी क़रार नहीं दिया गया.

अब एक तरफ नंदिता दास की नई फिल्म ‘मंटो पर पाकिस्तान में पाबंदी लगाई गई है और दूसरी तरफ लाहौर के सांस्कृतिक केंद्र अलहमरा ने ‘मंटो मेला’ पर पाबंदी लगा दी है.

13 जनवरी को लाहौर आर्ट्स कॉउन्सिल-अलहमरा ने अपने फेसबुक पन्ने पर नेशन अख़बार की ख़बर साझा की है जिसके मुताबिक ‘मंटो मेला’ फरवरी के बीच वाले हफ्ते में होने वाला था.

इस पाबंदी का कारण मंटो की कहानियों का ‘बोल्ड नेचर’ सुनने में आया है.

यह भी चर्चा है कि इस पाबंदी का कारण मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर में मजहबी इंतहापसंदों का प्रभाव है. उनका मानना है कि लेखक की कृतियां लचरता फ़ैलाने का कारण है.

लोगों के दवाब के कारण अलहमरा ने इस मेले को पाबन्दी लगाने की बजाए सिर्फ़ आगे बढ़ाने की दलील दी है लेकिन अभी तक किसी तारीख का ऐलान नहीं हुआ.

इस मंटो मेले पर चार नाटक मंडलियों द्वारा नाटक किए जाने थे जिनमें पाकिस्तान का विश्व ख्याति प्राप्त ‘अजोका थिएटर’ है. यह सारी नाटक मंडलियां कई दिनों से मंच अभ्यास कर रही थीं.

नंदिता दास की फ़िल्म पर पाबंदी लगाने के बारे में यही दलील सामने आई है कि बोर्ड को कोई एतराज़ नहीं था पर फ़िल्म में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे का ‘सही चित्रण’ नहीं है. अब फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर मौजूद है और इसे कोई भी देख सकता है.

पाबंदी का विरोध

इस फ़िल्म पर पाबंदी के ख़िलाफ़ लाहौर, पेशावर और मुलतान में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

लाहौर में विरोध प्रदर्शन मंटो मेमोरियल सोसाइटी के प्रधान सईद अहमद और दूसरे बुद्धिजीवियों ने साथ मिलकर किया. उन्होंने बीते सप्ताह में एकअदबी समागम मंटो फ़िल्म के लिए ही किया था.

इस समागम में शिरकत करते हुए इतिहासकार आयशा जलाल ने अहम मुद्दे रखे. आयशा जलाल मशहूर इतिहासकार हैं और उनकी कई किताबें बहुत अहम मानी जाती हैं.

आयशा मंटो की रिश्तेदार भी हैं और उन्होंने मंटो और भारत -पाक बंटवारे के बारे में किताब भी लिखी है. उनसे पूछा गया कि सत्तर साल में क्या बदला है क्योंकि तब भी मंटो पर विवाद था और अब भी है.

फ़िल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने पाकिस्तान में बनाई गई सरमद खूसट की फ़िल्म की भी बात की और कहा कि नंदिता दास की फ़िल्म इतिहास के हिसाब से बेहतर है. उन्होंने कहा कि बेशक फ़िल्म पर पाबंदी लगाई गई है पर यह नेट पर उपलब्ध है तो पाबंदी की कोई तुक नहीं बनती.

आयशा जलाल ने कहा कि बंटवारे की सामाजिक आलोचना इससे अलग मामला है. अगर किसी को आलोचना बर्दाश्त नहीं है तो इसमें मंटो का कोई कसूर नहीं है.

बल्कि यह उनका मामला है या उनकी साहित्य के बारे में समझ का मामला है.

आयशा का कहना है कि अभी का प्रसंग बिलकुल अलग है पर मंटो पर कई बार इल्ज़ाम लगे हैं पर उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा कुछ जुर्माना ही हुआ है.

उस समागम में यह भी बात हुई कि मंटो को नाखुश दिखाया गया है और उसका पाकिस्तान में आने का अनुभव भी अच्छा नहीं था.

आयशा ने कहा कि जो भी हो पर यहां आ जाने के लिए सहमत हो जाने के बावजूद उनको शिकायत थी और उनके वजूद को कभी साफ़ तौर पर माना नहीं गया. एक दिन उनको सब से बढ़िया कहानीकार मान लिया जाता है और अगले दिन उनको कहा जाता है कि फ्लैट खाली करो.

यही सब कुछ नंदिता की फ़िल्म में है पर यह फ़िल्म एक भारतीय फ़िल्मकार ने बनाई है और एतराज़ यह है कि एक भारतीय हमें कैसे बता सकता है कि जो बंदा पाकिस्तान आया वह नाखुश था.

उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया पर पाबंदी लगाने का प्रयास ही हमारी नाकामयाबी की निशानी है. हम जितने नाकामयाब हुए हैं उतने ही फिजुल कानून बनाये जा रहे हैं.

लगता तो यह है कि पिछले सत्तर साल में कुछ नहीं बदला है. अगर अन्याय करने वालों, ज़ुल्म कमाने वालों, कब्ज़े करने वालों और जबर्दस्तियाँ करने वालों, से डर लगता है तो फिर मंटो भी नहीं बदला.

मंटो वैसा ही है और ज़िंदा है. वो बहुत सारी मिट्टी के नीचे दफ़न नहीं है बल्कि हमारे साथ बैठ कर हंस रहा है कि वह बड़ा अफ़सानानिगार है या खुदा.
-एजेंसियां


courtesy:LegendNews
URL:
http://legendnews.in/todays-death-anniversary-of-controversial-urdu-writer-saadat-hasan-manto/

बुधवार, 16 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो

विश्व पुस्तक मेला में यश पब्लिकेशन्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम "लघुकथा पाठ" में 
वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. बलराम अग्रवाल का लघुकथा पाठ एवं उनसे बातचीत




लघुकथा समाचार : मातृभारती.कॉम द्वारा आयोजित लघुकथा संकलन "स्वाभिमान" का लोकार्पण



मातृभारती.कॉम द्वारा आयोजित लघुकथा संकलन "स्वाभिमान" का  लोकार्पण

11 जनवरी 2019 को  मातृभारती.कॉम आयोजित राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में विजयी ५० श्रेष्ठ लघुकथाओं को पुस्तक स्वरूप देकर पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम रखा गया। लघुकथा संकलन का नाम स्वाभिमान दिया गया है और इसे प्रकाशित किया है वनिका पब्लिकेशन्स ने।

इस मौके पर देश के विभिन्न राज्यों से आए लघुकथाकारों ने अपनी अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ कथाकार श्री सुभाष नीरव, वरिष्ठ लघुकथाकार व आलोचक श्री जितेंद्र जीतू और प्रकाशक श्रीमती नीरज सुधांशु। कार्यक्रम का सफल  संचालन किया कवयित्री व लेखिका श्रीमती नीलिमा शर्मा जी ने। कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए मातृभारती.कॉम के फाउंडर श्री महेंद्र शर्मा जी ने उपस्थित महमानों का स्वागत किया और साथ ही लघुकथा लेखकों और लेखिकाओं का उत्साह बढ़ाया। साथ ही इस दिन यानी 11 जनवरी को प्रति वर्ष लघुकथा स्वाभिमान दिवस के तौर पर मनाने का प्रस्ताव भी रखा।

श्री सुभाष नीरव जी ने अपनी लघुकथा यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि इस विषय पर प्रतियोगिताओं का होना एक उत्तम कार्य है, प्रतियोगिताओं के माध्यम से ही श्रेष्ठ लेखकों को पाठकों के समक्ष लाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने लघुकथा लेखकों व नवोदितों के लिए एक वर्कशॉप करने का प्रस्ताव भी रक्खा।

श्री जितेंद्र जीतू जी, जो इस प्रतियोगिता के निर्णायक भी रहे, उन्होंने अपने मन्तव्य प्रेक्षकों के समक्ष रक्खे। श्रेष्ठ लघुकथाओं का समीक्षात्मक मूल्याकन करके कथाएं क्यों सर्वश्रेष्ठ रही यह बताया ।

प्रतियोगिता में 5 सर्वश्रेष्ठ कथाओं को सम्मान दिया गया जिसमें
भगवान वैद्य
डॉ.आर बी भंडारकर
रत्न कुमार सांभरिया
प्रदीप मिश्र
शोभा रस्तोगी शामिल हैं।

श्रीमती नीरज सुधांशु ने अपनी प्रकाशक व निर्णायक की भूमिका के बारे में प्रेक्षकों को अवगत कराया व साथ ही प्रतियोगिता के विषय के अनुरूप लेखन को योग्य बताया। विषय व समय मर्यादा के साथ लिखकर ही लेखक एक उत्कृष्ट रचना का सर्जन कर सकता है।

कार्यक्रम के अंत मे श्री नीलिमा शर्मा जी ने सभी उपस्थित मेहमानों के प्रति आभार व्यक्त किया और महेंदर शर्मा जी ने भविष्य में इस प्रकार के कार्यक्रमों को करने का आश्वासन दिया |


Courtesy: thepurvai.com
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