यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 17 जुलाई 2024

पुस्तक समीक्षा । मुट्ठी भर धूप । कनक हरलालका

मानवीय दायित्व निर्वाह को प्रस्तुत करती लघुकथाएं

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

अभूतपूर्व चुनौतियों से भरे युग में कुछ समस्याओं के उन्मूलन की तत्काल आवश्यकता हमारी सामूहिक चेतना में केंद्र स्तर पर है। इसी आवश्यकता को ध्यानाकार्षित करता प्रख्यात लघुकथाकारा कनक हरलालका का प्रस्तुत संग्रह ‘मुट्ठी भर धूप’ लघुकथाओं का एक ऐसा संग्रह है जो पाठकों को सुबह जागने से लेकर रात्री सोने के बीच के ऐसे कितने ही क्षेत्रों की यात्रा करा देता है, जिनसे बहुत से जनमानस जुड़े हुए हैं। इनके अतिरिक्त यह संग्रह स्वप्न में विद्यमान कल्पनाशीलता की साहित्यिक प्रतिभा की झलक भी दर्शाता है। यह कहा जा सकता है कि यह संग्रह न केवल गंभीर विषयों को संबोधित करता है, बल्कि कुछ सामान्य समस्याओं के निराकरण के लिए एक रोडमैप भी प्रदान करता है।

संग्रह की शक्तियों में से एक इसकी भाषा और कल्पना का कुशल संयोजन है। प्रथम लघुकथा ‘वैष्णव जन तो तेनेकहि ये…’ हिन्दू मंदिर के प्रसाद के उन मूल्यों को दर्शाती है जो मानवीय हैं, ‘उपज’ एक काल्पनिक उपज को दर्शाते हुए महत्वपूर्ण सन्देश भी दे रही है, ‘अनन्त लिप्सा’ मानवीय जिज्ञासा में छिपे तुष्टिकरण को दर्शा रही है, ‘लोहे के नाखून’ में 'बारह महीने के तेरह त्यौहार' सरीखे मुहावरे का प्रयोग इस रचना को उत्तम बना रहा है इस रचना का अंत भी बहुत बढ़िया है, ‘ईश्वर के दूत’ में स्त्रियाँ मृत्यु पश्चात जीवन को ही उद्धार मानते हुए यहाँ तक कि ईश्वर के दूतों को भी ठुकरा देती हैं। इस रचना का शीर्षक और अच्छा होने की संभावना है। 

लघुकथा विधा में चरित्र चित्रण न करने के कारण पात्रों के साथ पाठकों का भावनात्मक संबंध बनाने के लिए आवश्यक गहराई का अभाव होता है, लेकिन ‘शुरुआत’ और 'ब्रिलिएंट' लघुकथाएँ विधा के साथ पूरी तरह न्याय करते हुए पाठकों को पात्रों से जोड़ रही हैं। हालाँकि इन दोनों में नाम के बाद 'जी' लगाने की आवश्यकता नहीं है। 'क्रमशः' रचना का शीर्षक आकर्षित करता है और उसकी शैली और कथ्य भी उत्तम से कम नहीं हैं। 'सोने सा हाथ..सोने के साथ' दिव्यांग व्यक्तियों के लिए प्रेरणा देती हुई बेहतरीन रचना है।

यद्यपि रचनाएं मानवीय संवेदनाओं और उत्तम शिल्प से सुसज्जित हैं, तथापि गिने-चुने पहलुओं पर आलोचनात्मक मूल्यांकन की आवश्यकता है। 'वर्जित फल' रचना में पूर्णता की ओर बढ़ने में अंत में कुछ अधिक शब्द कह दिए गए हैं। ‘अक्स’ जितना अच्छा अक्स प्रारम्भ में प्रस्तुत करती है, वहीँ अंत तक पहुँच कर क्षीण गति की हो जाती है। यहाँ पाठकों को एक उद्देश्यपूर्ण दिशा दिए जाने की संभावना है।

‘गुलाबी आसमान’ अपने शीर्षक के अनुरूप ही विशिष्ट लघुकथा है। ‘समय यात्रा’ पर्यावरण सरंक्षण जैसे अति संवेदनशील मुद्दे पर उचित प्रयास है। ‘गिद्ध धर्म’ शीर्षक, शिल्प, उद्देश्य और लेखकीय कौशल का एक उत्तम उदाहरण है। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ बढ़िया कथानक की रचना है, हालाँकि इसे और अधिक कसा जा सकता है। 'किस्सागोई' में लेखिका का पाठकों को संबोधित करते हुए कहना रचना को दिलचस्प बनाता है। 'रक्त-सम्बन्ध', 'ताला लगी जुबान' जैसी रचनाएं मानवीय बनने का एक शक्तिशाली अनुस्मारक हैं। 'स्यामी जुड़वां' सरीखी कुछ रचनाओं में शीर्षक में अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी है, जो शीर्षक को रचना का प्राण बनाते हैं। 'वायरस' लघुकथा विज्ञान को धता बता मानवीयता का आँचल पकड़ती है।  'रणनीति' में व्यंग्य की प्रधानता दृष्टिगोचर हो रही है। ‘भूख का मौसम’ रचना के कथ्य और शीर्षक बेहतर होने की गुंजाइश है। 'पहला पत्थर' ईमानादारी की मान्यता का ध्वस्त होना कुशलता से दर्शाती है। यह रचना संग्रह की बेहतरीन रचनाओं में से एक है। ‘मुक्ति’ लघुकथा में धर्म की आड़ में चल रहे अधर्म को बचाने की चिंता-रेखा दिखाई देती है। 'राह की चाह' स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर को परिलक्षित कर रही है।

एक ग़ज़ल का शेर है, "मैं अपने आप को कभी पहचान नहीं पाया / मेरे घर में आईने थे बहोत।", 'पहचान' लघुकथा भी इसी तरह की एक रचना है। ‘अपना दर्द पराया दर्द’ लिंगभेद को कम करने की बात तो कहती है, लेकिन तीसरा बच्चा हुआ भी दिखा रही है, जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या पर ध्यान देना भी आवश्यक है। 'होड़ की दौड़' नई-पुरानी पीढ़ियों के विचारों में और आर्थिक अंतर पर आधारित एक अच्छी रचना है।

आदर्श लघुकथा की धुरी तो हो सकते हैं लेकिन उसके कथ्य का हिस्सा बनने से लघुकथा के भटकने का अंदेशा रहता है। इस संग्रह की अधिकतर रचनाओं में इस बात का ध्यान रख विचारोत्तेजक वर्णन हैं, जो आदर्शों को आधार बनाकर ऐसे ज्वलंत मानसिक परिदृश्य निर्मित करते हैं, जिनसे पाठक विभिन्न दुनियाओं में डूब जाता है। कुछ रचनाओं में क्षेत्रीय भाषा रचना को खूबसूरती दे रही है ।

रचनाओं में प्रेरणाओं, संघर्षों और विकास की भावनात्मक अनुगूंज को बढ़ा सकने की शक्ति निहित है। ‘देना–पावना’ सरीखी कुछ लघुकथाएं नपे-तुले शब्दों और शिल्प की सुघटता के साथ रची गई हैं हैं, जिससे पाठकों को कथा की बारीकियों को समझ पाने का पूरा अवसर मिलता है। कुछ लघुकथाएं अप्रत्याशित अंत के साथ भी हैं जो प्रश्न और कथात्मक जिज्ञासा अपने पीछे छोड़ जाती हैं। अप्रत्याशितता और संतोषजनक समाधान के बीच संतुलन बनाना एक विशिष्ट कला है, और कथानक में निहित सूक्ष्म दृष्टिकोण रचनाओं को अधिक क्षमतावान बनाता है। ये गुण इस संग्रह की लघुकथाओं में विद्यमान हैं। काफी रचनाओं में मुहावरों का प्रयोग प्रभावित करता है जैसे 'समरथ के नहींदोष गुसाईं', ‘मुक्ति मार्ग’ आदि। ‘रंगीली घास’ एक ऐसी लघुकथा है, जो कोई सशक्त हृदय और लेखनी के धनी ही कह सकते हैं, //वादों के प्लास्टिक में लपेटने पर रंग दिखता ही कहाँ है।// इस एक नए मुहावरे का उद्भव भी इस रचना को विशिष्ट बना रहा है। 

चूँकि लेखिका एक बेहतरीन कवयित्री भी हैं, अतः संग्रह की लघुकथाओं में भावनाओं और वातावरण के सामंजस्य से बुनी हुई कशीदाकारी सरीखे शिल्प में काव्यात्मक संवेदनाओं की प्रतिध्वनि भी है। ‘नव साम्राज्यवाद’, ‘सुर्ख फूलों वाली लतर’ जैसी रचनाओं में कविता स्पष्ट विद्यमान है, ‘आह्वान’ में कविता को पात्र बना कवि को शुष्कता से हरियाली की ओर बढ़ने को प्रेरित किया गया है। सुविचारित लेखन संकलन के समग्र प्रभाव को बढ़ा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह संकलन विविध विषयों की व्यापक अवधारणा की आंतरिक पड़ताल भी करता है। जहाँ ‘'प्रश्न चिन्ह', ‘स्वयंसिद्धा’, ‘इन्कलाब’ सरीखी कुछ लघुकथाएं मानवेत्तर हैं, वहीं ‘अछूत रोजगार’, 'तबीयत', ‘गरम शॉल’, ‘शिकार’, ‘स्टार्ट... कट...’ जैसी कुछ रचनाएं यथार्थ कथ्य और पात्रों को सम्मिलित करती भी। कुछ लघुकथाएं प्रतीकात्मक और मानवीय पात्रों का मिश्रण भी हैं जैसे ‘संग–संग’।

इब्न खलदून कहते थे, "जो एक नया रास्ता खोजता है एक पथप्रदर्शक है, भले ही उसे फिर से दूसरों को ढूंढना पड़े, और जो अपने समकालीनों से बहुत आगे चलता है वह एक नेता है, भले ही सदियां बीतने के बाद उसे पहचाना जाए।" इस संग्रह की कुछ रचनाओं में पथ प्रदर्शन और भविष्य दर्शन की क्षमता है। इनमें ‘इस पार... उस पार...’, 'खाली बिस्तर', ‘उपासना’, 'अनन्त लिप्सा' जैसी रचनाएं हैं। ‘प्रतिदान’ में मृत्यु के पश्चात हिन्दू धर्म में आवश्यक स्वर्णदान को सेवा के बदले प्रतिदान कहा गया है, यह रचना संस्कृति परिष्करण पर भी बल देती है।

कुलमिलाकर, सामंजस्यपूर्ण विचारों, गूढ़ सोच, सुसंगत गति और सूक्ष्म दृष्टिकोण लिए रचनाओं का यह संग्रह कुछ आलोचनाओं के बावजूद भी लेखिका की चिन्तनशीलता, रचनात्मक क्षमता और मानवीय संवेदनाओं के प्रति उनके दायित्व निर्वाह को बखूबी प्रस्तुत करता है। विभिन्न शैलियों और दृष्टिकोणों की एक विस्तृत श्रृंखला का यह प्रयास निःसंदेह पठनीय और संग्रहनीय है।

-------
चंद्रेश कुमार छतलानी
9928544749
writerchandresh@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

  1. पुस्तक पर अपने, विचार, प्रतिक्रिया व समीक्षा के साथ मार्ग दर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर ...
    आपके द्वारा सुझाए गए संशोधन को ध्यान में रखते हुए अपनी लघुकथाओं की रचना करते समय अवश्य ही पालन करने की चेष्टा रहेगी ...🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन समीक्षा।आप दोनों को बहुत -बहुत धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं