अपेक्षानुसार परदादा की अलमारी से भी कुछ नहीं मिला तो अलादीन ने निराश होकर जोर से उसका दरवाज़ा बंद किया, अंदर से मिट्टी सना एक चिराग बाहर गिरा। चिराग बेच कर कुछ रुपयों की उम्मीद से वह उस पर लगी मिट्टी साफ़ करने लगा ही था कि उसमें से धुँआ निकला और देखते-ही-देखते धुँआ एक जिन्न में बदल गया।
जिन्न ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं इस चिराग का जिन्न हूँ, मेरे आका, जो चाहे मांग लो।"
अलादीन ने पूछा, "क्या तुम मेरी गरीबी हटा सकते हो?"
“क्यों नहीं!” जिन्न के कहते ही अगले ही क्षण रूपये-हीरे-जवाहरात आ गए, अलादीन ने ख़ुशी से पूछा, “यह लाते कहाँ से हो?”
“ये सब देश के एक बड़े उद्योगपति के हैं।”
“क्या..? टैक्स चोरी, एक रूपये की चीज़ सौ रूपये में बेच कर कमाए हुए रूपये मैं नहीं लूँगा” अलादीन ने इनकार कर दिया।
जिन्न उन्हें गायब कर रुपयों का एक बक्सा ले आया।
अलादीन को पहले ही संदेह हो चुका था, उसने पूछा, “यह कहाँ से आया?”
“एक नेता ने घर में छिपा रखा था।”
“नहीं, यह काली कमाई भी मैं नहीं लूँगा।”
जिन्न उसे हटा कर, एक संदूक भर रुपया ले आया, और बताया, “यह अनाज, सब्जी और फल बेचकर कमाया गया है, जो इसके मालिक ने किसानों से खरीदा था।”
“और किसान भूखे मर रहे हैं..., यह मैं हरगिज़ नहीं लूँगा।”
अब जिन्न बहुत सारे रूपये लाया और बताया, “ये रूपये एक साधू के हैं, जो हस्पताल और समाजसेवी संस्थायें चलाते हैं”
“ये तो सबसे बड़े चोर हैं, समाजसेवा की आड़ में नकली दवाएं और गलत धंधे चलाते हैं, ये मैं नहीं ले सकता, मुझे केवल शराफत से कमाए रूपये चाहिए”
जिन्न सोचते हुए कुछ क्षण खड़ा रहा, और अलादीन को एक पर्ची थमा कर गायब हो गया। अलादीन ने पर्ची खोली, उसमें लिखा था,
“रूपये पेड़ों पर नहीं उगते हैं।”
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चित्रः साभार गूगल
वाह. बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीय.
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