यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

लघुकथा "भय" और उस पर parentune.com के सम्पादक की टिप्पणी


Leading Parenting Community in India

टिप्पणी / सम्पादक, parentune.com 

इस लघुकथा से हम सब लोगों को सबक लेने की आवश्यकता है। दरअसल हमें अपने बच्चे की मनोदशा के बारे में ध्यान रखना होगा। आए दिन अखबारों और न्यूज चैनलों पर आप इस तरह की खबरों के बारे में सुनते होंगे कि परीक्षा में फेल होने के बाद छात्र ने खुदकुशी कर ली। परीक्षा में फेल होने के बाद भी हमें अपने बच्चों को ये भरोसा दिलाना चाहिए कि कोई बात नहीं, अगली बार तुम जरूर पास हो जाओगे। इस तरह की स्थिति में बच्चे को प्यार से समझाने और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने की आवश्यकता होती है। पैरेंट्स के डर की वजह से कई बार बच्चे गलत कदम उठा लेते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि हम ऐसी स्थिति ही क्यों आने दें। हम क्यों नहीं बच्चे को स्वतंत्रता दें लेकिन मेरे कहने का ये कतई मतलब नहीं कि हम उनकी शिक्षा और पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान ना दें। अनावश्यक दबाव बनाने से परहेज करना चाहिए। ये मानकर चलें कि प्रत्येक बच्चा पढ़ाई के क्षेत्र में ही अच्छा कर ले ये जरूरी नहीं, कुछ बच्चे खेल के क्षेत्र या अन्य गतिविधियों में भी बहुत बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इतना कहना चाहूंगा कि कुदरत ने प्रत्येक इंसान और खासकर के बच्चों के अंदर कोई ना कोई प्रतिभा जरूर दी है। ये हमारा और आपका दायित्व बनता है कि हम अपने बच्चे के अंदर छुपी प्रतिभा को तलाश करें और उसको निखारने का काम करें। भय और दबाव का माहौल परिवार के अंदर नहीं रहना चाहिए। सकारात्मक सोच के साथ अपने बच्चे की परवरिश करें।  

आइये पढ़ते हैं:

लघुकथा: भय / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी


"कल आपका बेटा परीक्षा में नकल करते हुए पकड़ा गया है, यह आखिरी चेतावनी है, अब भी नहीं सुधरा तो स्कूल से निकाल देंगे।" सवेरे-सवेरे विद्यालय में बुलाकर प्राचार्य द्वारा कहे गए शब्द उसके मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज रहे थे। वो क्रोध से लाल हो रहा था, और उसके हाथ स्वतः ही मोटरसाइकिल की गति बढा रहे थे। 
"मेरी मेहनत का यह सिला दिया उसने, कितना कहता हूँ कि पढ़ ले, लेकिन वो है कि... आज तो पराकाष्ठा हो गयी है, रोज़ तो उसे केवल थप्पड़ ही पड़ते हैं, लेकिन आज जूते भी..." यही सोचते हुए वो घर पहुँच गया। तीव्र गति से चलती मोटरसाइकिल ब्रेक लगते ही गिरते-गिरते बची, जिसने उसका क्रोध और बढ़ा दिया।
दरवाज़े के बाहर समाचार-पत्र रखा हुआ था, उसे उठा कर वो बुदबुदाया, "किसी को इसकी भी परवाह नहीं है..."
अंदर जाते ही वो अख़बार को सोफे पर पटक कर चिल्लाया, "अपने प्यारे बेटे को अभी बुलाओ..."
उसकी पत्नी और बेटा लगभग दौड़ कर अंदर के कमरे से आये, तब तक उसने जूता अपने हाथ में उठा लिया था। 
"इधर आओ!" उसने बेटे को बुलाया।
बेटा घबरा गया, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया और काँपते हुए सोफे के पीछे की तरफ चला गया। 
वो गुस्से में चिल्लाया, "क्या बातें सीख कर आया है? एक तो पढता नहीं है और उस पर नकल..." वो बेटे पर लपका, बेटे ने सोफे पर रखे समाचारपत्र से अपना मुँह ढक लिया।
अचानक क्रोध में तमतमाता चेहरा फक पड़ गया, आँखें फ़ैल से गयीं और उसके हाथ से जूता फिसल गया।
अख़बार में एक समाचार था - 'फेल होने पर भय से एक छात्र द्वारा आत्महत्या'
उसने एक झटके से अख़बार अपने बेटे के चेहरे से हटा कर उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया।

2 टिप्‍पणियां: