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सोमवार, 6 मई 2024
रविवार, 21 अप्रैल 2024
लघुकथा और उज्जैन / सन्तोष सुपेकर
उज्जैन के पिछले 43 वर्षों का लघुकथा का इतिहास
भगवान महाकाल, कवि कालिदास और गुरु गोरखनाथ का नगर है उज्जैन। यहाँ प्रतिवर्ष भव्य 'कालिदास समारोह' का आयोजन होता है और प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ (कुंभ ) मेला लगता है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। मध्यप्रदेश के गठन के बाद सबसे पहले विश्वविद्यालय की स्थापना उज्जैन में ही हुई थी।
साहित्य की हर विधा की तरह लघुकथा क्षेत्र में भी उज्जैन में काफी सृजन कार्य हुए हैं। 1981 में डॉ राजेन्द्र सक्सेना (अब स्वर्गीय) का संग्रह 'महंगाई अदालत में हाजिर हो' प्रकाशित हुआ था। कुछ वर्षों के बाद 1990 में श्रीराम दवे के सम्पादन में लघुकथा फोल्डर 'भूख के डर से' प्रकाशित हुआ था। 1996 में डाक्टर शैलेन्द्र पाराशर के सम्पादन में साहित्य मंथन संस्था से लघुकथा संकलन 'सरोकार' का प्रकाशन हुआ था जिसमें 20 रचनाकार शामिल थे। सन् 2000 में स्व. श्री अरविंद नीमा 'जय' की लघुकथाओं का संग्रह 'गागर में सागर' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे उनके परिवार ने उनके देहावसान के बाद प्रकाशित करवाया था। इसमें उनकी 32 हिंदी और 22 मालवी बोली की लघुकथाएँ शामिल थीं। वर्ष 2002 में डाक्टर प्रभाकर शर्मा और सरस निर्मोही के सम्पादन में 'सागर के मोती' लघुकथा संकलन प्रकाशित हुआ जिसमें उस समय आयोजित एक लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं की भी रचनाऐं शामिल थीं। 2003 में श्रीराम दवे के सम्पादन में "त्रिवेणी"लघुकथा संकलन प्रकाशित हुआ जिसमें योगेन्द्रनाथ शुक्ल,सुरेश शर्मा(अब स्वर्गीय) और प्रतापसिंह सोढ़ी की लघुकथाएं शामिल थीं। बैंककर्मियों की साहित्यिक संस्था 'प्राची' ने सन् 2001-2002 के दरम्यान उज्जैन में लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। इसी प्रकार श्री जगदीश तोमर के निर्देशन में प्रेमचंद सृजन पीठ, उज्जैन ने भी लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। बाद के वर्षों में विभिन्न लघुकथाकारों के संग्रह/संकलन प्रकाशित हुए जिनका वर्णन निम्नानुसार है--
1. श्रीमती मीरा जैन का"मीरा जैन की सौ लघुकथाएं" वर्ष 2003 में,
2. सतीश राठी के सम्पादन में सन्तोष सुपेकर और राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का संयुक्त लघुकथा संकलन 'साथ चलते हुए' वर्ष 2004 में, इसी वर्ष मृदुल कश्यप का मात्र 11 लघुकथाओं का संग्रह " माँ के लिए " प्रकाशित हुआ।
3. सन्तोष सुपेकर का 'हाशिये का आदमी' वर्ष 2007 में,
4. राधेश्याम पाठक 'उत्तम' ( अब स्वर्गीय) का लघुकथा संग्रह 'पहचान' वर्ष 2008 में,
5. इसी वर्ष श्री पाठक का मालवी बोली में लघुकथा संग्रह 'नी तीन में, नी तेरा में',
6. 2009 में मोहम्मद आरिफ का 'अर्थ के आँसू' प्रकाशित हुआ।
7. सन 2009 में ही राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह 'बात करना बेकार है'
8. सन्तोष सुपेकर का' बन्द आँखों का समाज' वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ।
9. 2010 में ही मीरा जैन का '101 लघुकथाएं',
10. मोहम्मद आरिफ का ' 'गांधीगिरी' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ।
11. 2011 में शब्दप्रवाह' साहित्यिक संस्था द्वारा 198 लघुकथाकारों की रचनाओं से युक्त लघुकथा विशेषांक संदीप 'सृजन' और कमलेश व्यास 'कमल' के सम्पादन में निकला।
12. वर्ष 2011 में ही राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का 'खूंटी पर लटका सच' प्रकाशित हुआ ।
13. वर्ष 2012 में प्रेमचंद सृजनपीठ, उज्जैन द्वारा प्रोफेसर बी. एल. आच्छा के सम्पादन में देशभर के 229 लघुकथाकारों का विशाल 242 पृष्ठों का लघुकथा संकलन 'संवाद सृजन' प्रकाशित हुआ। 14. सन् 2012 में ही डाक्टर संदीप नाड़कर्णी के संकलन 'नौ दो ग्यारह' में 11 लघुकथाएं संकलित थी।
15. इसी वर्ष राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह "पहचान"प्रकाशित हुआ।
16. वर्ष 2013 में सन्तोष सुपेकर का लघुकथा संग्रह "भ्रम के बाज़ार में" प्रकाशित हुआ जिसमे 153 लघुकथाएं थी।
17. वर्ष 2013 में ही सन्तोष सुपेकर के सम्पादन में राजेंद्र देवधरे 'दर्पण' और राधेश्याम पाठक 'उत्तम' की लघुकथाओं का फोल्डर 'शब्द सफर के साथी' प्रकाशित हुआ।
18. इसी वर्ष (2013 में) कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का संग्रह 'नयन नीर' प्रकाशित हुआ जिसमे उनकी 100 लघुकथाएं शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि 'प्रेरणा' जी दृष्टिबाधित रचनाकार हैं।
19. 'बंद आँखों का समाज' (संतोष सुपेकर) का मराठी संस्करण 'डोलस पण अन्ध समाज' (अनुवादक श्रीमती आरती कुलकर्णी) भी 2013 में निकला।
20. 2015 मे कोमल वाधवानी 'प्रेरणाजी' का 104 लघुकथाओं का दूसरा लघुकथा संग्रह 'कदम कदम पर' प्रकाशित हुआ।
21-23. वर्ष 2016 में वाणी दवे का 'अस्थायी चारदीवारी', कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का 'यादों का दस्तावेज', (124 लघुकथाएँ)मीरा जैन का 'सम्यक लघुकथाएं' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए।
24. वर्ष 2017 में सन्तोष सुपेकर का चौथा लघुकथा संग्रह 'हँसी की चीखें' प्रकाशित हुआ जिसमें 101 लघुकथाएँ संगृहीत हैं।
25. 2018 में डाक्टर वन्दना गुप्ता के संकलन 'बर्फ में दबी आग' में कुछ लघुकथाएँ सकलित थीं। इसी वर्ष माया बदेका का लघुकथा संग्रह ' माया ' प्रकाशित हुआ।
26. 2019 में मीरा जैन का 'मानव मीत लघुकथाएं" प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष हिन्दी -
मालवी की प्रख्यात लेखिका माया मालवेंद्र बधेका का लघुकथा संग्रह ' माया' ई बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष डॉ.क्षमा सिसोदिया का ' कथा सीपिका' प्रकाशित हुआ जिसमें 76 लघुकथाएँ थीं l
27- 2020 में सन्तोष सुपेकर का पाँचवा लघुकथा संग्रह "सांतवें पन्ने की खबर"प्रकाशित हुआ जिसमे 112 लघुकथाएं संकलित हैं।
28- 2021 में उज्जैन के सन्तोष सुपेकर और इंदौर के राममूरत 'राही' के सम्पादन में, देश का पहला, अनाथ जीवन पर आधारित लघुकथा संकलन "अनाथ जीवन का दर्द"अपना प्रकाशन भोपाल के सहयोग से प्रकाशित हुआ। डॉ क्षमा सिसोदिया का ' भीतर कोई बन्द है' लघुकथा संग्रह भी इस वर्ष प्रकाशित हुआ जिसमें 67 लघुकथाएँ शामिल थींl इसी वर्ष माया बदेका का 'सांवली' भी प्रकाशित हुआ।
29. 2021 में ही उज्जैन के सन्तोष सुपेकर के सम्पादन ,संयोजन में लघुकथा साक्षात्कार का संकलन "उत्कण्ठा के चलते" एच आई पब्लिकेशन ,उज्जैन से प्रकाशित हुआ जिसमें लघुकथा से जुड़े मध्यप्रदेश के सात लघुकथाकारों /समीक्षकों सर्वश्री सूर्यकान्त नागर,सतीश राठी,डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा,डॉ पुरुषोत्तम दुबे ,कान्ता रॉय,वसुधा गाडगीळ और अंतरा करवड़े के साथ ही तीन अन्य विधाओं से जुड़ी हस्तियों डॉक्टर पिलकेन्द्र अरोरा (व्यंग्य) सन्दीप राशिनकर (चित्रकला)अमेरिका निवासी श्रीमती वर्षा हलबे (शास्त्रीय गायन ,कविता )और लघुकथा के एक सामान्य पाठक श्री संजय जौहरी से भी लघुकथा को लेकर प्रश्न पूछे गए थे।
2021 में डॉक्टर सन्दीप नाडकर्णी का लघुकथा संग्रह "हम हिंदुस्तानी"प्रकाशित हुआ जिसमें 51 लघुकथाएं हैं। इसी वर्ष श्रीमती कोमल वाधवानी 'प्रेरणा'का चौथा लघुकथा संग्रह 'रास्ते और भी हैं'प्रकाशित हुआ।उज्जैन के शिक्षाविद श्री रामचन्द्र धर्मदासानी का पहला लघुकथा संग्रह ' रैतीली प्रतिध्वनि' भी 2021 में प्रकाशित हुआ जिसमे 122 लघुकथाएँ संकलित हैं।
32. 2022 में सन्तोष सुपेकर का छठवाँ लघुकथा संग्रह 'अपकेन्द्रीय बल' एच आई पब्लिकेशन ,उज्जैन से प्रकाशित हुआ जिसमे 154 लघुकथाएँ शामिल हैं।2022 में ही नवोदित लेखिका हर्षिता रीना राजेन्द्र का संकलन "सदा सखी रहो "का उज्जैन में विमोचन हुआ जिसमे कुछ लघुकथाएँ भी सम्मिलित हैं। 2022 में माया मालवेंद्र
बदेका का 'साँवली' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें 25 लघुकथाएँ 'साँवली' शीर्षक से प्रकाशित हैं। इसी वर्ष मीरा जैन का लघुकथा संग्रह' भोर में भास्कर' प्रकाशित हुआ जिसमें 101 लघुकथाएँ हैं l
2022 में ही सन्तोष सुपेकर की दो लघुकथाओं 'तकनीकी ड्रॉ बेक'और 'अंतिम इच्छा'पर बिहार के अभिनेता श्री अनिल पतंग ने शार्ट फिल्म्स बनाईं।इसी वर्ष श्रीमती कल्पना भट्ट(भोपाल) ने उज्जैन के सन्तोष सुपेकर के चार लघुकथा संग्रहों (बन्द आँखों का समाज,भ्रम के बाज़ार में ,हँसी की चीखें और सातवें पन्ने की खबर )में से 14-14 ,कुल 56 लघुकथाएं चयन कर उन्हें अंग्रेजी में अनूदित किया जिसे ख्यात लघुकथाकार उदयपुर के डॉक्टर चंद्रेश छतलानी ने संकलित कर 'Selected Laghukathas of Santosh Supekar' शीर्षक से प्रकाशित करवाया। 2022 के जुलाई माह से उज्जैन के दैनिक जन टाइम्स में सन्तोष सुपेकर के संपादन में साहित्यिक स्तम्भ ' जन साहित्य ' का प्रकाशन आरम्भ हुआ जिसमें प्रति सोमवार, गुरुवार और शनिवार को देश - विदेश के लेखकों की सिर्फ लघुकथा , सम्पादक की विशेष टिप्पणी के साथ प्रकाशित की जा रही है। जन टाइम्स प्रबंधन द्वारा इस स्तम्भ में प्रकाशित राजेंद्र वामन काटधरे( ठाणे, महाराष्ट्र) की लघुकथा ' अंधेरे के खिलाफ' को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ लघुकथा का प्रमाण पत्र और नकद राशि भी प्रदान की गई l
2023 में श्री निराला साहित्य मण्डल, उज्जैन द्वारा डॉ प्रभाकर शर्मा और पंडित
आनंद चतुर्वेदी के संपादन में लघुकथा संकलन 'अपने लोग' प्रकाशित हुआ जिसमें 56 से अधिक लघुकथाकारों की रचनाएँ सम्मिलित थीं, इसी वर्ष डॉक्टर क्षमा सिसोदिया का ' बटुआ ' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें 130 लघुकथाएँ हैं l2023 में ही कोमल वाधवानी ' प्रेरणा' का बाल लघुकथा संग्रह ' हिप- हिप - हुर्रे' प्रकाशित हुआ जिसमें 102 लघुकथाएँ हैं । 2023 में ही केरल के तिरुअनंतपुरम से ' हिन्दी की चुनिंदा लघुकथाएँ' मलयालम भाषा में प्रकाशित हुई जिसमें उज्जैन के सन्तोष सुपेकर सलाहकार सम्पादक थे।
2024 में सन्तोष सुपेकर का आठवां लघुकथा संग्रह ' प्रस्वेद का स्वर ' प्रकाशित हुआ। श्रमिक के चित्र वाले मुखपृष्ठ से सज्जित इस संग्रह में कुल 101 लघुकथाएँ हैं जिनमें बारह लघुकथाओं के केन्द्र में श्रमिक हैं।
इनके अलावा संस्था 'सरल काव्यांजलि, उज्जैन' द्वारा वर्ष 2018 एवम् 2019 में समय-समय पर लघुकथा कार्यशालाएँ आयोजित की गईं जिसमें डाक्टर उमेश महादोषी, श्यामसुंदर अग्रवाल, डाक्टर बलराम अग्रवाल, जगदीश राय कुलारियाँ, माधव नागदा, सतीश राठी, बी. एल. आच्छा, रामयतन यादव ,कान्ता रॉय जैसी लघुकथा जगत की ख्यात हस्तियों ने शिरकत की। सरल काव्यांजलि संस्था ने 2020 के हिन्दी दिवस ,14 सितंबर से देश की लघुकथा से जुड़ी हस्तियों को सम्मानित करने का निश्चय किया। 2020 में सूर्यकान्त नागर,सतीश राठी, कान्ता रॉय , 2021 में योगराज प्रभाकर,डॉक्टर उमेश महादोषी ,राममूरत 'राही'और मृणाल आशुतोष ( रवि प्रभाकर स्मृति)को 2022 में श्री बिनोय कुमार दास, डॉ चन्द्रेश छतलानी, अनिल पतंग, कल्पना भट्ट(रवि प्रभाकर स्मृति) और 2023 में श्री मधुकांत, जगदीश राय कुलारियाँ, अंतरा करवडे और वीरेंदर वीर मेहता ( रवि प्रभाकर स्मृति)डिजिटल सम्मान प्रदान किये गए।शहर के साहित्यकार सन्तोष सुपेकर ने अनेक रचनाकारों की लघुकथाओं का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा है।उन्होंने लघुकथा और सम्बन्धित आलेखों को पाठ्यक्रमों में शामिल करने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों को लगातार पत्र भी लिखे हैं।वर्ष 2022 से इस विषय पर प्रति माह एक पत्र केंद्रीय शिक्षा मंत्री को लिख रहे हैं। सर्वश्री सतीश राठी, राजेन्द्र नागर 'निरन्तर' और सन्तोष सुपेकर की 20-20 लघुकथाओं का अनुवाद बांग्ला भाषा में श्री हीरालाल मिश्र ने किया है ।सन्तोष सुपेकर के लघुकथा अवदान पर लघुकथा कलश ,पटियाला ,पंजाब में आलेख भी प्रकाशित हुआ है।श्री सुपेकर की लघुकथाओं पर कनाडा के कुसुम ज्ञवाली और नेपाल की रचना शर्मा ने नेपाली भाषा मे अभिनयात्मक वाचन किया है।दिसम्बर 2021 में सरल काव्यांजलि संस्था उज्जैन ने नए लघुकथाकारों के लिए कार्यशाला आयोजित की जिसमें डॉक्टर शेलेन्द्रकुमार शर्मा और सन्तोष सुपेकर ने नए लेखकों की समस्याओं ,उत्सुकताओं के उत्तर दिए।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में डाक्टर शैलेन्द्र कुमार शर्मा के निदेशन में कुमारी भारती ललवानी द्वारा 2003 में 'लघुकथा परम्परा में सतीश राठी का योगदान' विषय पर एम. फिल. स्तर का शोधकार्य हुआ। इसी प्रकार 'मीरा जैन की लघुकथाओं का अनुशीलन' विषय पर प्रशांत कुशवाहा ने डाक्टर गीता नायक के निदेशन में विक्रम विश्वविद्यालय में शोध प्रस्तुत किया। यहीं पर डॉक्टर धर्मेंद्र वर्मा ने लघुकथाकार स्व. चन्द्रशेखर दुबे के साहित्य पर शोध किया ।डॉ . सतीश दुबे (अब स्मृति शेष)पर आगर के डॉक्टर पी.एन. फागना ने 2009 में 'मध्यप्रदेश की लघुकथा परम्परा में डॉक्टर सतीश दुबे का योगदान 'विषय पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में शोध कार्य किया है। वर्ष 2022 से श्रीमती अनीता मेवाडा ने डॉ निलिमा वर्मा और डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा के निदेशन में " मालवांचल की लघुकथा परम्परा और सन्तोष सुपेकर का प्रदेय " पर श्रीमती अनीता मेवाड़ा द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय में शोध कार्य जारी है। , 2023 के अक्टूबर में सरल काव्यांजलि की एक लघुकथा गोष्ठी डॉक्टर वन्दना गुप्ता के निवास पर हुई जिसमे वरिष्ठ लघुकथाकारों डॉ बलराम अग्रवाल( नई दिल्ली), मृणाल आशुतोष, ( समस्तीपुर, बिहार) और हनुमान प्रसाद मिश्रा ( अयोध्या) ने लघुकथाएँ सुनाइं l डॉक्टर क्षमा सिसोदिया ने उज्जैन के रेडियो दस्तक पर डॉ.बलराम अग्रवाल का लघुकथा विषयक साक्षात्कार लिया है l रेडियो दस्तक, उज्जैन पर राजेंद्र नागर ' निरंतर' , सन्तोष सुपेकर और आकाशवाणी इंदौर पर सन्तोष सुपेकर ,गिरीश पंड्या ने अपनी लघुकथाओं का पाठ भी किया है।
लघुकथा जगत के प्रमुख हस्ताक्षर श्री विक्रम सोनी (अब स्वर्गीय) भी उज्जैन से सम्बद्ध रहे हैं। संस्था 'सरल काव्यांजलि' ने वर्ष 2013 में उनके निवास पर जाकर श्री सोनी का सम्मान किया था। उज्जैन के ही डॉक्टर प्रभाकर शर्मा,सरस निर्मोही, ओम व्यास 'ओम' (दोनो अब स्मृति शेष) मुकेश जोशी,स्वामीनाथ पांडेय, शेलेंद्र पाराशर, भगीरथ बडोले,सन्दीप सृजन,श्रीराम दवे,डॉक्टर क्षमा सिसोदिया, प्रवीण देवलेकर, रमेश करनावट ,समर कबीर,दिलीप जैन,आशीष 'अश्क,के.एन शर्मा,रमेशचन्द्र शर्मा,पिलकेन्द्र अरोरा, आशीषसिंह जौहरी,आशागंगा शिरढोणकर, गोपालकृष्ण निगम, गिरीश पंड्या,बृजेन्द्रसिंह तोमर,डाक्टर घनश्यामसिंह,गड़बड़ नागर ,डॉ रामसिंह यादव,रमेश मेहता 'प्रतीक',गफूर स्नेही,डॉक्टर हरिशकुमार सिंह,योगेंद्र माथुर,श्रद्धा गुप्ता , चित्रा जैन, मानसिंह शरद , राजेंद्र देवधरे, डॉ राजेश रावल, दिलीप जैन और झलक निगम ( अब स्वर्गीय) ने भी अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। गिरीश पंड्या की लघुकथाएँ आकाशवाणी पर प्रसारित हुई हैं।इसी प्रकार सतीश राठी और श्याम गोविंद ने भी उज्जैन में रहकर लघुकथा क्षेत्र में काफी सृजन किया है।उज्जैन जिले की तराना तहसील से डाक्टर इसाक 'अश्क' और श्री सुरेश शर्मा (अब दोनों स्वर्गीय) के संयुक्त सम्पादन में 'समांतर' पत्रिका का लघुकथा विशेषांक 2001 में निकला था जिसमे 9 आलेख और प्रतिनिधि लघुकथाकारों की रचनाएँ शामिल थी।
कनकश्रृंगा नगरी में अभी भी लघुकथा को लेकर अनेक सम्भावनाएं हैं।
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संपर्क : सन्तोष सुपेकर, 31, सुदामा नगर,उज्जैन
शुक्रवार, 29 मार्च 2024
पुस्तक समीक्षा । मन का फेर । समीक्षक: मनोरमा पंत
प्रकाशन-श्वेत वर्णा प्रकाशन नोयडा
संपादक-सुरेश सौरभ
मूल्य- 260 /
अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों के संपादक-लेखक सुरेश सौरभ, नवीन लघुकथा का साझा संग्रह ‘मन का फेर‘ लेकर पाठकों के बीच उपस्थित हुए हैं, अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित यह साझा लघुकथा संग्रह अपने आप में बेहद अनूठा है। जिसमें उनकी संपादन कला निखर कर आई है। बलराम अग्रवाल, योगराज प्रभाकर जैसे प्रमुख लघुकथाकारों ने एक स्वर में कहा है कि लघुकथा का मुख्य उद्देश्य समाज की विसंगतियों को सामने लाना है। इस उद्देश्य में सुरेश सौरभ का नवीनतम लघुकथा-संग्रह ‘मन का फेर’ खरा उतरा है। यह एक विडम्बना ही है कि विकसित देशों के समूह में शामिल होने में अग्रसर भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी धर्म और परम्परा के नाम पर ढोंगी महात्माओं और कथित मौलवियों के जाल में फँसा हुआ है। अभी भी स्त्री को डायन करार देकर प्रताड़ित किया जाता है, पिछड़े इलाकों में बीमार व्यक्ति को, चाहे वह दो महीने का बच्चा ही क्यों न हो, नीम हकीम के द्वारा लोहे के छल्लों से दागा जाता है। ऐसे समाज को जागरुक करने का बीड़ा उठाने में यह लघुकथा-संग्रह सक्षम है।
सुकेश साहनी, मीरा जैन, डॉ.पूरन सिंह, कल्पना भट्ट, डॉ. अंजू दुआ जैमिनी, गुलजार हुसैन, चित्तरंजन गोप 'लुकाठी', डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, रमाकान्त चौधरी, अखिलेश कुमार ‘अरूण’, डॉ. राजेंद्र साहिल, डॉ. मिथिलेश दीक्षित, रश्मि लहर, विनोद शर्मा, सहित 60 लघुकथाकारों की लघुकथाओं से सुसज्जित, 144 पृष्ठीय संग्रह में, आडम्बरों को, रूढ़ियों को बेधती मार्मिक लघुकथाएँ सहज, सरल, भाषा शैली में, पाठकों को आकर्षित करने में सफल हैं। हाल ही में इस संग्रह का विमोचन स्वच्छकार समाज और समाज सेवियों ने किया। सौरभ जी का प्रयास है कि समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक साहित्य पहुँचे। संग्रह की भूमिका प्रसिद्ध पत्रकार लेखक अजय बोकिल ने लिखी है। संग्रह की लघुकथाएँ शोधपरक एवं पठनीय हैं। सुरेश सौरभ को इस लघुकथा-संग्रह के लिए बधाई।
शनिवार, 16 मार्च 2024
पुस्तक: उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श । विचार: मिन्नी मिश्रा
"उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श"
(संपादक - दीपक गिरकर)
शिवना प्रकाशन, सीहोर (म. प्र.)
मूल्य - 400 रूपए
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आ. दीपक गिरकर के द्वारा संपादित पुस्तक "उत्कृष्ट लघुकथा विमर्श" कुछ दिन पहले मुझे मिली | लघुकथा विधा के लिए यह पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण है | पुस्तक को दो खंडों में बांटा गया है | पहला खंड लघुकथा विमर्श का है तो दूसरा खंड लघुकथाओं का है | पहले खंड में विमर्श के अंतर्गत कुल 26 आलेख हैं । दूसरे खंड में 28 उत्कृष्ट लघुकथाओं को प्रकाशित किया गया है |सभी गुणीजनों के आलेखों को मैंने पढ़ा ।उन आलेखों की जो पंक्तियां मुझे बेहद अच्छी लगीं, उन्हें मैंने कोट किया है।
"इस तरह की कृतियां नव लेखकों के लिए थ्योरी और प्रैक्टिकल का एक साथ अभ्यास करवाने में सक्षम होगी।"- डाॅ.विकास दवे
"एक सफल लघुकथा वह होती है जिसमें क्लिष्ट संकेत -मात्र न होकर सहजग्राह्य कथानक समाहित हो।"- बलराम अग्रवाल
" लेखन स्वांत सुखाय नहीं होता बल्कि समाज की बेहतरी के लिए होता है। "- भगीरथ परिहार
"केवल बहुत सारी लघुकथाएंँ पढ़ने या लिखते छपते रहने से काम नहीं चलने वाला, सभी विधाओं की रचनाओं से उसे गुजरना होगा। खूब पढ़ना होगा।"- ब्रजेश कानूनगो
"कथानक/कथ्य का समसामयिक होना अधिक प्रभाव छोड़ता है। घटना प्रस्तुति का प्रयोजन जनहित में होना चाहिए।"-डाॅ. चंद्रा सायता
" कालखंड कितने समय का होगा यह निश्चित नहीं है।यह एक क्षण से लेकर सदियों और उससे भी अधिक का हो सकता है।"- डाॅ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
" लघुकथा की शब्द संख्या निश्चित नहीं की जा सकती है। रचना का कथ्य ही उसके आकार को तय करता है।"- दीपक गिरकर
"जीवन के यथार्थ को कम से कम शब्दों में विषय की सटीक अभिव्यक्ति हेतु जो कथात्मक विधा बिना किसी लाग लपेट के सरस,सहज, सरल स्वाभाविक बोलचाल की भाषा में रंजनात्मकता लिए सीधा अपने गंतव्य तक पहुंचती है, लघुकथा कहलाती है।"- डाॅ. धर्मेन्द्र कुमार एच. राठवा
" लघुकथा के स्वरूप को समझकर स्वसमीक्षक बनें। एक बार लिखने पर रचना मुकम्मल नहीं हो पाती है। लिखने के बाद उसे कई बार पढ़ा जाना चाहिए। एवं अनावश्यक विवरण को छांटते जाना चाहिए।"- पवन जैन
"आपके पास लघुकथा लिखने के लिए लघुकथा का बीज ही हो, जिस पर सिर्फ लघुकथा ही लिखी जा सके।"- प्रबोध कुमार गोबिल
"एक अच्छी लघुकथा की पंच लाइन तीक्ष्ण हो तो लघुकथा सौ टके की सफल कृति बनती है।"- संध्या तिवारी
"अपने अंदर के आलोचक को बाहर निकाला जाए, उससे रचना जंचवाई जाए, फिर कहीं भेजी जाए।"- सन्तोष सुपेकर
"प्रोफेसर बी.एल.आच्छा ने लिखा है कि, लघुकथा ऐसी लगती है, जैसे खौलते तेल में पानी की बूंद, जैसे आलपिन की चुभन, जैसे आवेग का चरम क्षण ....या फिर गीत का पहला छंद।"- सतीश राठी
"लघुकथा एक कलात्मक अभिव्यक्ति है जो रचनाकार से अतिरिक्त कौशल की अपेक्षा रखती है।"- डाॅ.शील कौशिक
"लेखक की रचना- शैली ऐसी हो कि पाठक उसे सहज आत्मसात कर सके। शब्दों के प्रयोग में स्पष्टता रहनी भी अति आवश्यक है।"- डाॅ. सुरेश वशिष्ठ
"यहाँ शब्द सीमित पर चिंतन असीमित हो।"- सूर्यकांत नागर
"लेखक के भीतर किसी रचना के लिए आवश्यक कच्चे माल के पकने की प्रक्रिया ही लेखक की रचना-प्रक्रिया है।"- सुकेश साहनी।
इस पुस्तक में मेरा भी एक आलेख प्रकाशित हुआ है | इस हेतु दीपक सर का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार | यह पुस्तक हम सभी लघुकथाकारों के लिए बहुत ही उपयोगी, संग्रहणीय एवं महत्त्वपूर्ण
है।
🙏💐💐
मिन्नी मिश्र, पटना
मंगलवार, 12 मार्च 2024
लघुकथा:रीलें । सुरेश सौरभ
अपना बैग पटक, वह शान्त बैठ गयी।
"क्या बात है बेटी! इतना फूली क्यों बैठी है? कालेज में कुछ हुआ क्या? जल्दी हाथ-मुँह धो ले, नाश्ता लगा रही हूँ।"
"नहीं करना नाश्ता-वास्ता"-गुस्से से उसके नथुने फूलने-पिचकने लगे।
माँ ने जैसे कुरेद दिया हो।
"अरे! क्या हुआ बेटी।"
"जरा एक मिनट के लिए अपना मोबाइल देना मम्मी, अभी बताती हूँ क्या हुआ।"
मम्मी ने उसे मोबाइल दे दिया।
"ये देखो! ये देखो! आप की हैं ये रीलें।"
"हाँ हाँ आँ ऽऽऽऽ.."-झेंपते हुए माँ बोली।
"आज महिला दिवस पर भाषण प्रतियोगिता में मुझे फर्स्ट प्राइज़ मिला। सबने तालियाँ बजा कर मेरा हौसला बढ़ाया। बड़ी प्रशंसा मिली। लोगाें ने मंच के नीचे आते ही पूछा-इतना अच्छा कैसे बोला बेटी। मैंने गर्व से जवाब दिया-यह सब मेरी माँ के दिये संस्कारों का प्रतिफल है। पर.."
"पर पर क्या बेटी..."
"रास्ते में मेरी सहेलियाँ फूहड़ गानों पर बनी आप की रीलें, दिखा-दिखा कर फिकरें कस रहीं थीं-भाई बड़ी संस्कारवान हैं माँ-बेटी।"
"फिर..."
"फिर क्या.....आप ही बताएँ मेरी जगह आप होतीं तो क्या करतीं ?"
माँ बुत सी मौन थी। सिर पर जैसे घड़ों पानी पड़ चुका हो। पास में पड़ा मोबाइल मानो कहना चाह रहा था-मैं बिलकुल निर्दोष हूँ। मैंने किसी का दिल नहीं दुखाया।
-०-
-सुरेश सौरभ
पता-निर्मल नगर लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7860600355
रविवार, 25 फ़रवरी 2024
'अविरामवाणी’ पर ‘मुहावरों से सज्जित लघुकथाएँ’ की बीसवीं प्रस्तुति
डॉ. उमेश महादोषी जी की फेसबुक वॉल से
मित्रो,
‘मुहावरों से सज्जित लघुकथाएँ’ कार्यक्रम में आज की रविवारीय प्रस्तुति में शामिल है- डा. चंद्रेश कुमार छतलानी जी की लघुकथा- 'भेड़िया आया था'। लघुकथा का पाठ उमेश महादोषी द्वारा किया गया है।
'अविरामवाणी' का सामान्य लिंक यह है- https://youtube.com/@user-qr4yx4lz6x
अविरामवाणी पर आज के वीडियो का लिंक यह रहा-
शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024
'इरा मासिक ई पत्रिका' में दो लघुकथाएं
'इरा' में दो लघुकथाएं।
एक लघुकथा टीवी चैनल रिपोर्टिंग शैली में है और दूसरी में एक नए मुहावरे की कोशिश है।
आप सभी की राय अपेक्षित है।
1)
ज़रूरी प्रश्न
“दोस्तों टीवी चैनल ‘सबसे पहले’ से, मैं हूँ आपका मित्र रिपोर्टर और मेरे साथ हैं हमारे कैमरामैन. यह देखिए देश के इतने बड़े मंत्री के घर के बाहर कुछ महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं. पुलिस का जाप्ता भी आ गया है लेकिन पुलिस से भी पहले आ चुका है चैनल - ‘सबसे पहले’.”
...चैनल का विज्ञापन.
“फिर से स्वागत है. अब देखिए प्रदर्शनकारी महिलाओं में से कईयों ने हाथ में तख्ती पकड़ी हुई हैं, इन पर लिखा है ‘सेव लाइव्स‘, ‘नो रेप - नो मर्डर‘, ‘स्टॉप वोईलेंस‘...
आइये इनसे कुछ प्रश्न करते हैं.
आप सब यहाँ प्रदर्शन क्यों कर रही हैं?"
“हमारे शहर में रोज़ महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है. हर रोज़ कोई न कोई बलात्कार होता है, सप्ताह में एक या दो हत्याएं भी हो रही हैं. हमारी जिंदगी की सुरक्षा के लिए हम लड़ रही हैं.”
“अच्छा! लेकिन यहीं पर क्यों?”
“पिछले चुनाव से पहले मंत्री जी आकर कह गए थे कि एक महीने में वे सब ठीक कर देंगे, लेकिन जीतने के बाद दो साल हो गए हैं... अभी भी... हर रोज़ हम मर रही हैं... प्लीज़-प्लीज़ सेव अवर लाइव्ज़...”
“धन्यवाद, आपके उत्तर के लिए. अब यह बताइये कि, यह मंत्री जी का घर है... यहाँ प्रदर्शन से पहले आपने अनुमति ली थी?”
“जी!... जी क्या?”
...विज्ञापन.
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2)
जलेबियाँ गिरेंगी तो कुत्ते लड़ेंगे ही
रोज़ की तरह ही वह बूढ़ा आदमी आज भी कुत्तों के लिए जलेबियाँ लाया. कुत्ते उसके पीछे-पीछे चलने लगे. रोज़ तो वह एक कोने में जाकर हर एक कुत्ते को दो-दो जलेबियाँ बांट देता था, आज एक कुत्ता थोड़ा तेज़ भौंका तो वह घबरा गया और जलेबियों का पैकेट उसके हाथ से छूट कर बीच सड़क में ही गिर गया.
पैकेट के गिरते ही सारे के सारे कुत्ते उस पैकेट पर झपट पड़े और जलेबियों के लिए एक-दूसरे पर भौंकने और लड़ने लगे. उस लड़ाई में किसी को जलेबी मिली तो किसी को नहीं. उस बूढ़े आदमी ने देखा जो ताकतवर कुत्ते थे वे सारी जलेबियाँ चट कर गए और कमज़ोर कुत्ते गुर्राते ही रह गए.
वह कुछ देर उन्हें देख कर सोचता रहा, फिर उसने अपना सेलफोन निकाला और सड़क के एक कोने पर जाकर एक नम्बर मिला कर बोला, "एडवोकेट जी, आज मिल सकते हैं क्या? मुझे वसीयत करवा कर मेरे बाद अपने बच्चों में सब कुछ बराबर-बराबर बांटना है."
...
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- चंद्रेश कुमार छतलानी
लिंक
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