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रविवार, 22 अगस्त 2021

डॉ. अशोक भाटिया की लघुकथा का राजस्थानी भाषा में अनुवाद


लेखक-डॉ. अशोक भाटिया

अनुवादकः-सुश्री रीना मेनारिया, महासचिव (राजस्थान शाखा, विभाअ)


  लघुकथा: कांई मथूरा, कांई द्वारका


अेक जिला अधिकारी री लुगाई अेक सरकारी स्कूल री प्रिंसीपल बणगी ही। अेक दिन स्कूल री समस्यावां पै स्टाफ मिटिंग चाले ही।

अेक मास्टर कह्यौ-"मैडम ऊपर रा तीनूं कमरां रौ निर्माण रूक्यौ पड़्यौ है ,पण पी. डब्लयू .डी वाळां बात ई कोनी सुणै। म्है काले भी जे. ई. रै दफ्तर जाव्यौ हौ।"

सन्नाटौ पसरग्यौ... पिरींसिपल आदेस दियौ -"रामनिवास नै फोन लगावौ।"

रामनिवास उणरै घरवाळा रौ पी.ऐ. है। दबंग आवाज रै साथे प्रिंसिपल उणनै तुरन्त काम चालू करण रौ कह्यौ।

दूसरे मास्टर ई उत्साहित व्हैता कह्यौ -"मैडम ! तीन दिनां सूं टंकी में पाणी कोनी आवै ,घणी परेसानी व्है री है म्है अबार ई पब्लिक हेल्थ सूं आयर्यौ हूँ। उठै किणी नै परवाह ईज कोनी।"

अेक-आध मास्टर ओजूं  उणरी हाँ में हाँ मिलावी।

पिरींसिपल  तुरन्त ई कह्यौ-"रामनिवास है कै.....फोन घुमावो।"

अेक ओजू मास्टरनी बताव्यौ कै टाबरां रौ टूर मथुरा-द्वारका जाणौ तै व्हियौ। रोड़वेज सूं सटिफिकेट लेवणौ है।

"रामनिवास नै फोन घुमावो।"

दूजी मास्टरनी -"पचास थैला सरकारी सीमेंट आवणी ही।"

"रामनिवास ने फोन घूमावो।"

इतराक में चाय आयगी, चुस्की लेवतौ अेक बोल्यौ-"भाई ! काले टी.वी. पै देख्यौ व्हैला कै आज अमेरिका महामसीन सूं अेक प्रयोग करे है। उणसूं आक्खी दुनिया रौ खात्मौ व्है सकै। संभळ अर रैहिजो।"

अेक-आध मास्टर गंभीर व्हैगा-"कांई आपां खतम व्है जावाला।"

कोई होळै सीक बोलयौ-"रामनिवास है न।"

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मूल कथा

क्या मथुरा, क्या द्वारका? / डॉ. अशोक भाटिया

एक जिलाधिकारी की पत्नी एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल बन गई थी। एक दिन स्कूल की समस्याओं पर स्टाफ-मीटिंग में चर्चा चल रही थी।

एक अध्यापक ने कहा- ‘‘मैडम, ऊपर के तीनों कमरों का निर्माण रूका हुआ है, लेकिन पी. डब्लयू. डी वाले बात ही नहीं सुनते। मैं कल भी जे.ई के दफ्तर गया था!‘‘

सन्नाटा छा गया... प्रिंसिपल ने निर्देश दिया – “रामनिवास को फोन लगाओ..‘‘ रामनिवास उनके पति का पी.ए. है। दबंग आवाज़ में प्रिंसिपल ने उसे तत्काल काम शुरू करने को कहा।

दूसरे अध्यापक ने भी उत्साहित होकर कहा- “मैडम, तीन दिन से टंकी में पानी नहीं आ रहा, बड़ी परेशानी है, मैं अभी पब्लिक हैल्थ से आ रहा हूँ। वहाँ किसी को परवाह ही नहीं है।”   

कुछ और अध्यापकों ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

प्रिंसिपल ने तुरन्त कहा...‘‘रामनिवास है न...फोन लगाओ...।‘‘

एक और अध्यापिका ने बताया कि बच्चों का टूर मथुरा-द्वारका जाना तय हुआ है। रोडवेज़ से सर्टिफिकेट लेना है।

‘‘रामनिवास को फोन लगाओ।‘‘

दूसरी अध्यापिका- ‘‘पचास बैग सरकारी सीमेंट आना था।‘‘

‘‘रामनिवास को फोन लगाओ।‘‘

इतने में चाय आ गई, चुस्की लेता, एक बोला- ‘‘भई, कल टी.वी. पर देखा होगा, आज अमेरिका महा-मशीन से एक प्रयोग कर रहा है। उससे सारी दुनिया ही नष्ट हो सकती है, सँभलकर रहना।‘‘

कुछ अध्यापक गंभीर हो गये- ‘‘क्या हम खत्म हो जायेंगे।‘‘

कोई धीरे से बोला- ‘‘रामनिवास है न ‘‘

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गुरुवार, 12 अगस्त 2021

लघुकथाएँ : आमन्त्रित

 

देश के विभिन्न प्रान्तों से हिन्दी में लिखी लघुकथाएँ दिनांक 30 अक्टूम्बर 2021 तक आमंत्रित की जाती है। निम्नलिखित विषय पर प्रत्येक लघुकथाकार से 'चार' लघुकथाएँ आमन्त्रित की जाती है। लघुकथा का विषय तथा अन्य आवश्यक बातें यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं -

1) लघुकथा का विषय 'एकल परिवार में बच्चों की समस्याएँ'।

2)लघुकथा भेजने वाले की उम्र 31 दिसम्बर 2021 तक 45 वर्ष से अधिक न हो । 

3)उम्र का प्रमाण पत्र हेतु आधार कार्ड की फोटोप्रति अवश्य प्रेषित करें। 

4) लघुकथाएँ भेजते समय 

लघुकथाओं की मौलिकता, स्वरचित तथा अप्रकाशित होने का स्वहस्ताक्षरित प्रमाण पत्र संलग्न कर देना होगा |

5) लघुकथाओं के प्रकाशन बाबत कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

6) अतिरिक्त संग्रह उपलब्धता पर मूल्य चुकाकर खरीद सकेंगे। 

7) लघुकथाएँ रजिस्टर्ड अथवा स्पीड पोस्ट से ही भेजें। ई-मेल, वाट्स एप पर नहीं।

8) लघुकथाएँ भेजने वाला अपना नाम / पता / मोबाईल और इमेल एड्रेस (यदि हो तो) लिखकर भेजें।

9) प्रेषित करने के बाद लघुकथाओं के प्रकाशन के सन्दर्भ में कोई सम्पर्क न करें। चयनित लघुकथाकारों के नामों की सूचना यथासमय 'फेसबुक' पर प्रेषित कर दी जाएगी। 

10) लघुकथाएँ प्रकाशित करने बाबत अन्तिम निर्णय सम्पादक मण्डल का रहेगा ।

11) लघुकथाएँ टाइप की गई होनी चाहिए।

लघुकथाएँ निम्न में से किसी एक पते पर भेज सकते हैं ।


प्रताप सिंह सोढ़ी,

5 सुख शान्ति नगर, बिचौली हप्सी इन्दौर-452016

मोबाईल नम्बर : 8930235285


#डॉ.पुरुषोत्तम दुबे,

शशीपुष्प, 74 जे/ए स्कीम नं. 71 इन्दौर-452099

मोबाईल नम्बर : 9329581414/9407186540