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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019
गुरुवार, 5 दिसंबर 2019
अनिल शूर आज़ाद की एक लघुकथा 'विद्रोही'
वरिष्ठ लघुकथाकार अनिल शूर आज़ाद जी की लघुकथा 'विद्रोही' की अंतिम पंक्ति मेरे अनुसार गूढ़ अर्थ रखती है। आइये पहले पढ़ते हैं यह रचना:
विद्रोही / अनिल शूर आज़ाद
पार्क की बेंच पर बैठे एक सेठ, अपने पालतू 'टॉमी' को ब्रेड खिला रहे थे। पास ही गली का एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा था।
वह खड़ा दुम हिलाता रहा, हिलाता रहा। पर..लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी जब, कुछ मिलने की संभावना नहीं दिखी तो..एकाएक झपट्टा मारकर वह ब्रेड ले उड़ा। कयांउ-पयांउ करता टॉमी अपने मालिक के पीछे जा छिपा। सेठ अपनी उंगली थामे चिल्लाने लगा।
थोड़ी दूरी पर बैठे उसे, बहुत अच्छा लगा था यह सब देखना!
-0-
- अनिल शूर आज़ाद
एजी-1/33-बी, विकासपुरी
नई दिल्ली -110018
दूरभाष - 9871357136
इस लघुकथा पर मेरे विचार / चन्द्रेश कुमार छतलानी
इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति में "उसे" का अर्थ मैंने एक गरीब / सड़क पर रहने वाले बच्चे से लगाया। "अच्छा लगा" अर्थात उसके दिमाग में बात रह गई कि छीन कर खाया जा सकता है।
यह लघुकथा स्पष्ट तरीके से यह बता रही है कि एक विद्रोही को देखकर दूसरा विद्रोही कैसे बनता है। रचना यह संकेत दे रही है कि अमीर व्यक्ति यदि अपने 'पालतू' के अतिरिक्त अन्य गरीबों की क्षुधा भी किसी तरह शांत करने का यत्न करें तो विद्रोह की प्रवृत्ति शायद उभरे ही नहीं।
विद्रोही / अनिल शूर आज़ाद
पार्क की बेंच पर बैठे एक सेठ, अपने पालतू 'टॉमी' को ब्रेड खिला रहे थे। पास ही गली का एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा था।
वह खड़ा दुम हिलाता रहा, हिलाता रहा। पर..लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी जब, कुछ मिलने की संभावना नहीं दिखी तो..एकाएक झपट्टा मारकर वह ब्रेड ले उड़ा। कयांउ-पयांउ करता टॉमी अपने मालिक के पीछे जा छिपा। सेठ अपनी उंगली थामे चिल्लाने लगा।
थोड़ी दूरी पर बैठे उसे, बहुत अच्छा लगा था यह सब देखना!
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- अनिल शूर आज़ाद
एजी-1/33-बी, विकासपुरी
नई दिल्ली -110018
दूरभाष - 9871357136
इस लघुकथा पर मेरे विचार / चन्द्रेश कुमार छतलानी
इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति में "उसे" का अर्थ मैंने एक गरीब / सड़क पर रहने वाले बच्चे से लगाया। "अच्छा लगा" अर्थात उसके दिमाग में बात रह गई कि छीन कर खाया जा सकता है।
यह लघुकथा स्पष्ट तरीके से यह बता रही है कि एक विद्रोही को देखकर दूसरा विद्रोही कैसे बनता है। रचना यह संकेत दे रही है कि अमीर व्यक्ति यदि अपने 'पालतू' के अतिरिक्त अन्य गरीबों की क्षुधा भी किसी तरह शांत करने का यत्न करें तो विद्रोह की प्रवृत्ति शायद उभरे ही नहीं।
बुधवार, 4 दिसंबर 2019
मंगलवार, 3 दिसंबर 2019
मेरी तीन लघुकथाएं - विचार वीथी में | संपादक सुरेश सर्वेद
तीन संकल्प / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
वो दौड़ते हुए पहुँचता,उससे पहले ही उसके परिवार के एक सदस्य के सामने उसकी वो ही तलवार आ गयी, जिसे हाथ में लेते ही उसने पहला संकल्प तोड़ा था कि वो कभी किसी की भी बुराई नहीं सुनेगा। वो पीछे से चिल्लाया - रुक जाओ, तुम्हें तो दूसरे धर्मों के लोगों को मारना है। लेकिन तलवार के कान कहाँ होते हैं। उसने उसके परिवार के उस सदस्य की गर्दन काट दी।
वो फिर दूसरी तरफ दौड़ा। वहाँ भी उससे पहले उसी की एक बन्दूक पहुँच गयी थी। जिसे हाथ में लेकर उसने दूसरा संकल्प तोड़ा था कि वो कभी भी बुराई की तरफ नहीं देखेगा। बन्दूक के सामने आकर उसने कहा - मेरी बात मानो, देखो मैं तुम्हारा मालिक हूँ ... लेकिन बन्दूक को कुछ कहाँ दिखाई देता है, और उसने उसके परिवार के दूसरे सदस्य के ऊपर गोलियां दाग दीं।
वो फिर तीसरी दिशा में दौड़ा, लेकिन उसी का आग उगलने वाला वही हथियार पहले से पहुँच चुका था, जिसके आने पर उसने अपना तीसरा संकल्प तोड़ा था कि वो कभी किसी को बुरा नहीं कहेगा। वो कुछ कहता उससे पहले ही हथियार चला और उसने उसके परिवार के तीसरे सदस्य को जला दिया।
और वो स्वयं चौथी दिशा में गिर पड़ा। उसने गिरे हुए ही देखा कि एक बूढ़ा आदमी दूर से धीरे - धीरे लाठी के सहारे चलता हुआ आ रहा था। गोल चश्मा पहने, बिना बालों का वो कृशकाय बूढ़ा उसका वही गुरु था, जिसने उसे मुक्ति दिला कर ये तीनों संकल्प दिलाये थे।
उस गुरु के साथ तीन वानर थे, जिन्हें देखते ही सारे हथियार लुप्त हो गये।
और उसने देखा कि उसके गुरु उसे आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं और उनकी लाठी में उसी का चेहरा झाँक रहा है। उसके मुंह से बरबस निकल गया ’हे राम’।
कहते ही वो नींद से जाग गया।
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सोयी हुई सृष्टि / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
उसने स्वप्न में स्वयं को सोये हुए देखा। उसके आसपास और भी कई लोग सो रहे थे। दायरा बढ़ता गया और उसने देखा कि उसके साथ हज़ारों या लाखों नहीं बल्कि करोड़ों से भी ज़्यादा लोग सो रहे हैं।
उन सोये हुओं में से एक व्यक्ति की आँखें खुलीं। उस व्यक्ति ने देखा कि खादी के कपड़े पहने कुछ लोग खड़े हुए हैं और अपने मुंह से आवाज़ और विषैला धुआं निकाल रहे हैं। आवाज़ से सोये हुओं के चेहरों पर विभिन्न मुद्राएँ बन रहीं थीं और धुएँ से सभी को नींद आ रही थी। वह व्यक्ति चिल्लाया - जागो, तुम्हें विषैले धुएं द्वारा सुलाया जा रहा है।
जहाँ तक वह आवाज़ जा सकती थी, वहां तक सभी सोने वालों के कानों में गयी और उनके चेहरों की भाव - भंगिमाएं बदलीं। उनमें से कुछ जाग भी गए और उस व्यक्ति के साथ खड़े हो गए। अपनी आवाज़ की शक्ति देख उस व्यक्ति ने पहले से खड़े व्यक्तियों में से एक के कपड़े छीन कर स्वयं पहन लिए और दूर खड़ा हो गया।
लेकिन पोशाक पहनते ही उसका स्वर बदल गया और उसके मुंह से भी विषैला धुआं निकलने लगा। जिससे उसके साथ जो लोग जागे थे, वे भी सो गए। उस व्यक्ति की पोशाक में कुछ सिक्के रखे थे जो लगातार खनक रहे थे।
और उसी समय उसका स्वप्न टूट गया। उसे जैसे ही महसूस आया कि वह भी जागा हुआ है। वह घबराया और उठकर तेज़ी से एक अलमारी के पास गया। उसमें से अपने परिचय पत्र को निकाला और उसमें अपने पिता का नाम पढ़ कर राहत की सांस ली।
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गुलाम अधिनायक / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
उसके हाथ में एक किताब थी। जिसका शीर्षक ’ संविधान’ था और उसके पहले पन्ने पर लिखा था कि वह इस राज्य का राजा है। यह पढ़ने के बावजूद भी वह सालों से चुपचाप चल रहा था। उस पूरे राज्य में बहुत सारे स्वयं को राजा मानने वाले व्यक्ति भी चुपचाप चल रहे थे। किसी पुराने वीर राजा की तरह। उन सभी की पीठ पर एक - एक बेताल लदा हुआ था। उस बेताल को उस राज्य के सिंहासन पर बैठने वाले सेवकों ने लादा था। ’ आश्वासन’ नाम के उस बेताल के कारण ही वे सभी चुप रहते।
वह बेताल वक्त - बेवक्त सभी से कहता था कि - तुम लोगों को किसी बात की कमी नहीं होगी। तुम धनवान बनोगे। तुम्हें जिसने आज़ाद करवाया है वह कहता था - कभी बुरा मत कहो। इसी बात को याद रखो। यदि तुम कुछ बुरा कहोगे तो मैं, तुम्हारा स्वर्णिम भविष्य, उड़ कर चला जाऊँगा।
बेतालों के इस शोर के बीच जिज्ञासावश उसने पहली बार हाथ में पकड़ी किताब का दूसरा पन्ना पढ़ा। उसमें लिखा था - तुम्हें कहने का अधिकार है। यह पढ़ते ही उसने आँखें तरेर कर पीछे लटके बेताल को देखा। उसकी आँखों को देखते ही आश्वासन का वह बेताल उड़ गया। उसी समय पता नहीं कहाँ से एक खाकी वर्दीधारी बाज आया और चोंच चबाते हुए उससे बोला - ’ साधारण व्यक्ति’ तुम क्या समझते हो कि इस युग में कोई बेताल तुम्हारे बोलने का इंतज़ार करेगा?
और बाज उसके मुंह में घुस कर उसके कंठ को काट कर खा गया। फिर एक डकार ले राष्ट्रसेवकों के राजसिंहासन की तरफ उड़ गया।
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3-46, प्रभात नगर, सेक्टर -5,
हिरण मगरी, उदयपुर ( राजस्थान) 313 002
मोबाईल : 9928544749
ईमेल- chandresh.chhatlani@gmail.com
Source:
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
लघुकथा वीडियो: टाई | लेखक हरि मृदुल | वाचन: लोकेश गुप्ता
जीवन यापन करने के लिए समझौतों के झंझावातों से गुजरते हुए एक व्यक्ति की मानसिकता को बहुत अच्छे तरीके से दर्शाती लघुकथा 'टाई' को श्री लोकेश गुप्ता के गंभीर और गहरे स्वर के वाचन ने जीवंत कर दिया है। आइये सुनते हैं।
शनिवार, 30 नवंबर 2019
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
रिपोर्ट: क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019,इंदौर | सतीश राठी
कोई भी कला संयम और समय के साथ ही विकसित होती है--- सुकेश साहनी
‘क्षितिज’ संस्था,इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवमश्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।
संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।
इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को, लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथा कारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।
अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है।
हिंदी और पंजाबी भाषा में समान रूप से लघुकथा लिख रहे श्री जगदीश कुलारिया सम्मेलन में एक सत्र में अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान रहे।
कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।
सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है।विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।
श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की और ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।
विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक क रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।
लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसे पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है।सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।
विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।
श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।
कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।
श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया।
अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।
तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।
श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।
श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है, भारतीय साहित्य भाषा की मर्यादा के साथ आधुनिक विषय को विस्तार द्वारा सकते हैं।
श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।
वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।
आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।
लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।
समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।
- श्री सतीश राठी
‘क्षितिज’ संस्था,इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवमश्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।
संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानो की चयन प्रक्रिया वहां पर प्रस्तुत की।
इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को, लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथा कारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अंग्रेजी अनुवाद, डॉ अश्विनी कुमार दुबे के गजल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तके रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।
अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। मां सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के वक्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अंजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं।पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राहय है।
हिंदी और पंजाबी भाषा में समान रूप से लघुकथा लिख रहे श्री जगदीश कुलारिया सम्मेलन में एक सत्र में अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान रहे।
कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।
सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है।विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घुमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना जरूरी है।
श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की और ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।
विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अखबार की संपादक क रुखसाना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।
लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलान पो अंग्रेजी में इसे पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है।सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।
विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।
श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।
कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।
श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया।
अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।
तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।
श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।
श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदो से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली है, भारतीय साहित्य भाषा की मर्यादा के साथ आधुनिक विषय को विस्तार द्वारा सकते हैं।
श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।
वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।
आखिरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।
लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अंग्रेजी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधर्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ गरिमा संजय दुबे ने किया।
समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।
- श्री सतीश राठी
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