1)
रावण का चेहरा / डॉ० चंद्रेश कुमार छतलानी
हर साल की तरह इस साल भी वह रावण का
पुतला बना रहा था। विशेष रंगों का प्रयोग कर उसने उस पुतले के चेहरे को जीवंत जैसा
कर दिया था। लगभग पूरा बन चुके पुतले को निहारते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी दर्द
भरी मुस्कान आ गयी और उसने उस पुतले की बांह टटोलते हुए कहा, "इतनी मेहनत से तुझे ज़िन्दा करता हूँ... ताकि दो दिनों बाद तू जल कर
खत्म हो जाये! कुछ ही क्षणों की जिंदगी है तेरी..."
कहकर वह मुड़ने ही वाला था कि उसके कान बजने लगे,
आवाज़ आई,
"कुछ क्षण?"
वह एक भारी स्वर था जो उसके कान में गुंजायमान
हो रहा था, वह जानता था कि यह स्वर उसके अंदर ही
से आ रहा है। वह आँखें मूँद कर यूं ही खड़ा रहा, ताकि
स्वर को ध्यान से सुन सके। फिर वही स्वर गूंजा, "तू
क्या समझता है कि मैं मर जाऊँगा?"
वह भी मन ही मन बोला, "हाँ! मरेगा! समय बदल गया है, अब
तो कोई अपने बच्चों का नाम भी रावण नहीं रखता।"
उसके अंदर स्वर फिर गूंजा, "तो क्या हो गया? रावण नहीं, अब
राम नाम वाले सन्यासी के वेश में आते हैं और सीताओं का हरण करते हैं... नाम राम है
लेकिन हैं मुझसे भी गिरे हुए..."
उसकी बंद आँखें विचलित होने लगीं और हृदय की
गति तेज़ हो गयी उसने गहरी श्वास भरी, उसे कुछ सूझ
नहीं रहा था, स्वर फिर गूंजा, "भूल गया तू, कोई कारण हो लेकिन मैनें सीता को हाथ
भी नहीं लगाया था और किसी राम नाम वाले बहरूपिये साधू ने तेरी ही बेटी..."
"बस...!!" वह कानों पर हाथ रख कर चिल्ला
पड़ा।
और उसने देखा कि जिस पुतले का जीवंत चेहरा वह
बना रहा था, वह चेहरा रावण का नहीं बल्कि किसी
ढोंगी साधू का था।
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2)
दंगे की जड़ / डॉ० चंद्रेश कुमार छतलानी
आखिर उस आतंकवादी
को पकड़ ही लिया गया, जिसने दूसरे धर्म का होकर भी रावण दहन के
दिन रावण को आग लगा दी थी। उस कृत्य के कुछ ही घंटो बाद पूरे शहर में दंगे भड़क उठे
थे।
आतंकवादी के पकड़ा
जाने का पता चलते ही पुलिस स्टेशन में कुछ राजनीतिक दलों के नेता अपने दल-बल सहित
आ गये, एक कह रहा था कि उस आतंकवादी को हमारे
हवाले करो, हम उसे जनता को सौंप कर सज़ा देंगे तो
दूसरा उसे न्यायालय द्वारा कड़ी सजा देने पक्षधर था, वहीँ तीसरा उस आतंकवादी से बात करने को उत्सुक था।
शहर के दंगे ख़त्म
होने की स्थिति में थे, लेकिन राजनीतिक दलों के यह रुख देखकर
पुलिस ने फिर से दंगे फैलने के डर से न्यायालय द्वारा उस आतंकवादी को दूसरे शहर
में भेजने का आदेश करवा दिया और उसके मुंह पर कपड़ा बाँध, छिपा कर बाहर निकालने का प्रयत्न कर ही
रहे थे कि एक राजनीतिक दल के लोगों ने उन्हें पकड़ लिया।
उनका नेता भागता
हुआ आया, और उस आतंकवादी से चिल्ला कर पूछा, "क्यों बे! रावण तूने ही जलाया था?" कहते हुए उसने उसके मुंह से कपड़ा हटा
दिया।
कपड़ा हटते ही उसने
देखा लगभग बारह-तेरह वर्ष का एक लड़का खड़ा था, जो चेहरे से ही मंदबुद्धि लग रहा था।
और वह लड़का आँखें
और मुंह टेड़े कर के चेहरे के सामने हाथ की अंगुलियाँ घुमाते हुए हकलाते हुए बोला,
"हाँ...! मैनें
जलाया है... रावन को, क्यों...क्या मैं... राम नहीं बन सकता?"
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