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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019
सोमवार, 29 अप्रैल 2019
लघुकथा समाचार: लघुकथा एक विधा है, शैली नहीं : राजेंद्र शर्मा
Bhaskar News Network Apr 28, 2019
सिटी रिपोर्टर | मानस भवन में शनिवार को लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्यकार राजेंद्र शर्मा ने कहा कि लघुकथा एक विधा है, शैली नहीं। इसकी भेदन क्षमता ऐसी है जो दिल के आर-पार हो जाती है। इस दौरान अशोक जैन द्वारा संपादित दृष्टि साहित्यिक लघुकथा पत्रिका पर प्रकाश डालते हुए कांता रॉय ने कहा कि यह किताब के रूप में एक पत्रिका है, जो समकालीन लघुकथाकारों का स्वाभावात्मक आलेख प्रस्तुत करती है। मालती बसंत की रचनाएं 45 वर्ष पूर्व इसमें प्रकाशित हो चुकी हैं। तब यह समग्र अंक के रूप में जानी जाती थीं।
Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/mp-news-short-story-is-a-genre-not-style-rajendra-sharma-062058-4440222.html
सिटी रिपोर्टर | मानस भवन में शनिवार को लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साहित्यकार राजेंद्र शर्मा ने कहा कि लघुकथा एक विधा है, शैली नहीं। इसकी भेदन क्षमता ऐसी है जो दिल के आर-पार हो जाती है। इस दौरान अशोक जैन द्वारा संपादित दृष्टि साहित्यिक लघुकथा पत्रिका पर प्रकाश डालते हुए कांता रॉय ने कहा कि यह किताब के रूप में एक पत्रिका है, जो समकालीन लघुकथाकारों का स्वाभावात्मक आलेख प्रस्तुत करती है। मालती बसंत की रचनाएं 45 वर्ष पूर्व इसमें प्रकाशित हो चुकी हैं। तब यह समग्र अंक के रूप में जानी जाती थीं।
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https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/mp-news-short-story-is-a-genre-not-style-rajendra-sharma-062058-4440222.html
रविवार, 28 अप्रैल 2019
लघुकथा समाचार: आत्म मु्ग्ध होना छोड़कर आलोचकों का आश्रय लें साहित्यकार...
Patrika Hindi News: 27 April 2019
ताज नगरी में हुआ विश्व मैत्री मंच व साहित्य साधिका समिति का सातवां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन
आगरा। विश्व मैत्री मंच, भारत एवं साहित्य साधिका समिति, आगरा के संयुक्त बैनर तले शनिवार को मदिया कटरा स्थित होटल वैभव पैलेस में 7 वां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन आयोजित किया गया। देश भर से 75 महिला-पुरुष कवि- साहित्यकारों ने सहभागिता की। इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि साहित्यिक विधाएं बदलते दौर में महत्तम से लघुत्तम हो रही हैं। अब साहित्यकार बिंदु में ही सिंधु के दर्शन करना चाहता है। बिना साहित्यिक प्रतिभा के लोग ठेल ठाल के आगे बढ़ रहे हैं। गंभीर साहित्य साधकों को स्थान नहीं मिल पा रहा। ऐसे में जरूरी है कि साहित्यकार आत्म मुग्ध होना छोड़कर आलोचकों का आश्रय लें, ताकि सृजन का श्रेष्ठ तत्व सामने आ सके।
इस तरह बनते बेहतर साहित्यकार
अध्यक्षीय उद्बोधन में रविंद्र प्रभात ने कहा कि बोलना, सुनना, स्पर्श करना, महसूस करना, रोना, हंसना और प्यार करना जीवन के सात आश्चर्य हैं, इन सातों को आत्मसात कर के ही बेहतर साहित्यकार बनता है। स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने साहित्य के उत्सवों के यूं ही गतिमान बने रहने का आशीर्वाद दिया। अनुपमा यादव ने एकल नाट्य मीराबाई का मंचन कर दिल जीता। विश्व मैत्री मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन दिया। साहित्य साधिका समिति की संस्थापक डॉ सुषमा सिंह ने शारदे वंदना की व दोनों आयोजक संस्थाओं का परिचय दिया। साहित्य साधिका समिति की अध्यक्ष माला गुप्ता ने आभार व्यक्त किया। कवि रमेश पंडित ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया। विशिष्ट अतिथि डॉ राजेश श्रीवास्तव ने रामायण के विभिन्न पहलुओं का शोध परक विवेचन किया। इन्हें मिला सम्मानइलाहाबाद की सरस दरबारी को राधा अवधेश स्मृति पांडुलिपि सम्मान, लखनऊ की डॉ मिथिलेश दीक्षित को हेमंत स्मृति विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान व आगरा की पूजा आहूजा कालरा को द्वारिका प्रसाद सक्सेना स्मृति साहित्य गरिमा सम्मान प्रदान किया गया। मंचस्थ महानुभावों को मनीषी सम्मान व शेष सभी साहित्यकारों को सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया।
इनका हुआ लोकार्पण
समारोह में कई कृतियों का लोकार्पण किया गया। इनमें अलका अग्रवाल की बोलते चित्र, क्षमा सिसोदिया की कथा सीपिका, निवेदिता श्रीवास्तव की कथांजली, महिमा श्रीवास्तव वर्मा की आदम बोनसाई, डॉ मिथिलेश दीक्षित की हिंदी लघु कथा पुस्तक और डॉ प्रभा गुप्ता की सन्नाटे को चीरती आवाज शामिल है।
सम्मेलन के द्वितीय सत्र में लघु कथा की संवेदना और शिल्प विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ मिथिलेश दीक्षित ने कहा कि लघुकथा के सृजन में अब कोरी कल्पना का अंधेरा छंट चुका है। लघु कथाकार समय गत परिवेश को अपने भीतर जीता है और महसूस करता है। सरस दरबारी ने कहा कि लघु कथा में उसकी भाषा, शब्द संयोजन, प्रतीक और बिंब का विशेष महत्व होता है। सविता चड्ढा ने कहा कि लघुकथा प्राचीन विधा है जो विश्व का कल्याण करने में सक्षम रही है। विषय प्रवर्तन करते हुए निवेदिता श्रीवास्तव लखनऊ ने कहा कि लघुकथा क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति है. यह जीवन की विसंगतियों से उपजे तीखे तेवर वाली सुई की नोक जैसी विधा है। जया केतकी, नितिन सेठी व यशोधरा यादव यशो ने भी विचार रखे. अलका अग्रवाल ने इस सत्र का संचालन किया। तृतीय सत्र में महिमा वर्मा की अध्यक्षता में रचनाकारों ने लघु कथाओं व ग़ज़ल कार अशोक रावत की अध्यक्षता में कविताओं की प्रस्तुति कर सबको भाव विभोर कर दिया. तृतीय सत्र का संचालन रमा वर्मा व नूतन अग्रवाल ज्योति ने किया।
प्रदर्शनी ने मन मोहा
सम्मेलन में डॉ. रेखा कक्कड़ व पूनम भार्गव जाकिर द्वारा बनाए गए आकर्षक चित्रों की प्रदर्शनी ने सबका मन मोह लिया। प्रदर्शनी का उद्घाटन रानी सरोज गौरिहार ने किया। सम्मेलन में झांसी से निहाल चंद शिवहरे, साकेत सुमन चतुर्वेदी, दिल्ली से उर्मिला माधव, ग्वालियर से सीमा जैन, नासिक से डॉक्टर आराधना भास्कर, गाजियाबाद से सीमा सिंह, अलीगढ़ से अनीता पोरवाल, लखनऊ से सत्या सिंह, दिल्ली से डॉ श्याम सिंह शशि, आगरा आकाशवाणी की निदेशक डॉक्टर राज्यश्री बनर्जी, माया अशोक, आभा चतुर्वेदी, सर्वज्ञ शेखर गुप्ता, विद्या तिवारी, प्रेमलता मिश्रा, रमा रश्मि, अंकिता कुलश्रेष्ठ, रश्मि शर्मा, रीता शर्मा, पूनम तिवारी, कमला सैनी और कुमार ललित भी शामिल रहे।
Source:
https://www.patrika.com/agra-news/7th-national-hindi-sahitya-sammelan-in-agra-4488923/
ताज नगरी में हुआ विश्व मैत्री मंच व साहित्य साधिका समिति का सातवां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन
आगरा। विश्व मैत्री मंच, भारत एवं साहित्य साधिका समिति, आगरा के संयुक्त बैनर तले शनिवार को मदिया कटरा स्थित होटल वैभव पैलेस में 7 वां राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन आयोजित किया गया। देश भर से 75 महिला-पुरुष कवि- साहित्यकारों ने सहभागिता की। इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि साहित्यिक विधाएं बदलते दौर में महत्तम से लघुत्तम हो रही हैं। अब साहित्यकार बिंदु में ही सिंधु के दर्शन करना चाहता है। बिना साहित्यिक प्रतिभा के लोग ठेल ठाल के आगे बढ़ रहे हैं। गंभीर साहित्य साधकों को स्थान नहीं मिल पा रहा। ऐसे में जरूरी है कि साहित्यकार आत्म मुग्ध होना छोड़कर आलोचकों का आश्रय लें, ताकि सृजन का श्रेष्ठ तत्व सामने आ सके।
इस तरह बनते बेहतर साहित्यकार
अध्यक्षीय उद्बोधन में रविंद्र प्रभात ने कहा कि बोलना, सुनना, स्पर्श करना, महसूस करना, रोना, हंसना और प्यार करना जीवन के सात आश्चर्य हैं, इन सातों को आत्मसात कर के ही बेहतर साहित्यकार बनता है। स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार ने साहित्य के उत्सवों के यूं ही गतिमान बने रहने का आशीर्वाद दिया। अनुपमा यादव ने एकल नाट्य मीराबाई का मंचन कर दिल जीता। विश्व मैत्री मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन दिया। साहित्य साधिका समिति की संस्थापक डॉ सुषमा सिंह ने शारदे वंदना की व दोनों आयोजक संस्थाओं का परिचय दिया। साहित्य साधिका समिति की अध्यक्ष माला गुप्ता ने आभार व्यक्त किया। कवि रमेश पंडित ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया। विशिष्ट अतिथि डॉ राजेश श्रीवास्तव ने रामायण के विभिन्न पहलुओं का शोध परक विवेचन किया। इन्हें मिला सम्मानइलाहाबाद की सरस दरबारी को राधा अवधेश स्मृति पांडुलिपि सम्मान, लखनऊ की डॉ मिथिलेश दीक्षित को हेमंत स्मृति विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान व आगरा की पूजा आहूजा कालरा को द्वारिका प्रसाद सक्सेना स्मृति साहित्य गरिमा सम्मान प्रदान किया गया। मंचस्थ महानुभावों को मनीषी सम्मान व शेष सभी साहित्यकारों को सारस्वत सम्मान प्रदान किया गया।
इनका हुआ लोकार्पण
समारोह में कई कृतियों का लोकार्पण किया गया। इनमें अलका अग्रवाल की बोलते चित्र, क्षमा सिसोदिया की कथा सीपिका, निवेदिता श्रीवास्तव की कथांजली, महिमा श्रीवास्तव वर्मा की आदम बोनसाई, डॉ मिथिलेश दीक्षित की हिंदी लघु कथा पुस्तक और डॉ प्रभा गुप्ता की सन्नाटे को चीरती आवाज शामिल है।
विमर्श में छाई लघु कथा
सम्मेलन के द्वितीय सत्र में लघु कथा की संवेदना और शिल्प विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ मिथिलेश दीक्षित ने कहा कि लघुकथा के सृजन में अब कोरी कल्पना का अंधेरा छंट चुका है। लघु कथाकार समय गत परिवेश को अपने भीतर जीता है और महसूस करता है। सरस दरबारी ने कहा कि लघु कथा में उसकी भाषा, शब्द संयोजन, प्रतीक और बिंब का विशेष महत्व होता है। सविता चड्ढा ने कहा कि लघुकथा प्राचीन विधा है जो विश्व का कल्याण करने में सक्षम रही है। विषय प्रवर्तन करते हुए निवेदिता श्रीवास्तव लखनऊ ने कहा कि लघुकथा क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति है. यह जीवन की विसंगतियों से उपजे तीखे तेवर वाली सुई की नोक जैसी विधा है। जया केतकी, नितिन सेठी व यशोधरा यादव यशो ने भी विचार रखे. अलका अग्रवाल ने इस सत्र का संचालन किया। तृतीय सत्र में महिमा वर्मा की अध्यक्षता में रचनाकारों ने लघु कथाओं व ग़ज़ल कार अशोक रावत की अध्यक्षता में कविताओं की प्रस्तुति कर सबको भाव विभोर कर दिया. तृतीय सत्र का संचालन रमा वर्मा व नूतन अग्रवाल ज्योति ने किया।
प्रदर्शनी ने मन मोहा
सम्मेलन में डॉ. रेखा कक्कड़ व पूनम भार्गव जाकिर द्वारा बनाए गए आकर्षक चित्रों की प्रदर्शनी ने सबका मन मोह लिया। प्रदर्शनी का उद्घाटन रानी सरोज गौरिहार ने किया। सम्मेलन में झांसी से निहाल चंद शिवहरे, साकेत सुमन चतुर्वेदी, दिल्ली से उर्मिला माधव, ग्वालियर से सीमा जैन, नासिक से डॉक्टर आराधना भास्कर, गाजियाबाद से सीमा सिंह, अलीगढ़ से अनीता पोरवाल, लखनऊ से सत्या सिंह, दिल्ली से डॉ श्याम सिंह शशि, आगरा आकाशवाणी की निदेशक डॉक्टर राज्यश्री बनर्जी, माया अशोक, आभा चतुर्वेदी, सर्वज्ञ शेखर गुप्ता, विद्या तिवारी, प्रेमलता मिश्रा, रमा रश्मि, अंकिता कुलश्रेष्ठ, रश्मि शर्मा, रीता शर्मा, पूनम तिवारी, कमला सैनी और कुमार ललित भी शामिल रहे।
Source:
https://www.patrika.com/agra-news/7th-national-hindi-sahitya-sammelan-in-agra-4488923/
पुस्तक समीक्षा | पिघलती बर्फ (सविता इंद्र गुप्ता) | कमलेश भारतीय
पुस्तक : पिघलती बर्फ
लेखिका : सविता इंद्र गुप्ता
प्रकाशक : अक्षर प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ संख्या : 128
मूल्य : रु. 300.
सविता इंद्र गुप्ता का लघुकथा संग्रह ‘पिघलती बर्फ’ में कुल 88 रचनाओं में ज्यादातर लघुकथाएं नारी जीवन की समस्याओं को उजागर करती हैं ।
पुस्तक की कहानी ‘भेडि़या’ में सुरसती को गांव में स्कूल चलाने से न रोक पाने पर प्रधान उसका यौन शोषण करना चाहते हैं तो बच्चे अपने अविभावकों को बुला लाते हैं और सभी प्रधान जैसे भेडि़ये का शिकार कर डालते हैं। ‘वापसी’ में पति-पत्नी प्यार से चलकर कोर्ट के गलियारों तक पहुंच गये लेकिन कोर्ट के बाहर बातचीत में ही वापसी हो जाती है। उसके बिना लघुकथा अच्छी है कि पति बीस साल बाद पत्नी को अपनी सुंदर सेक्रेटरी के लिए तलाक देना चाहता है और पत्नी कहती है कि मेरे बीस वर्ष लौटा दो। इस पर समरसेट माॅम की लघुकथा सहज ही ध्यान में आ जाती है।
शीर्षक लघुकथा ‘पिघलती बर्फ’ में कठोरता पिघल जाती है जब सर्दी में कम्बल देने में देरी होने पर भिखारी बालक मर जाता है। तब पति-पत्नी फैसला करते हैं कि कुछ कम्बल खरीद कर गरीब बच्चों को बांट कर आएंगे। कामवालियां क्या दीपावली की सफाई में किसी कूड़ेदान की तरह होती हैं? यह सवाल उठाती है ‘कूड़ेदान’ लघुकथा।
इस तरह सविता इंद्र की लघुकथाएं इस विधा की कसौटी पर सही उतरती हैं। उनका पहला लघुकथा संग्रह ही काफी परिपक्व रचनाएं लिए हुए है। दो लघुकथाओं का क्रम गड़बड़ है। एक शीर्षक वाली लघुकथा क्रम में है लेकिन संग्रह में नहीं। एक है तो उसका उल्लेख नहीं। इन छोटी बातों की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था।
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