अ. भा. महिला साहित्य समागम, इंदौर में डॉ. लता अग्रवाल का वक्तव्य
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सोमवार, 15 अप्रैल 2019
रविवार, 14 अप्रैल 2019
कथासृजन प्रकाशन की 2019 अखिल भारतीय लघुकथा एवं कहानी प्रतियोगिता - विस्तृत जानकारी:
1. रचनाएँ
आप प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए लघुकथा एवं कहानी भेज सकते हैं। शब्द सीमा इस प्रकार है:-
लघुकथा: अधिकतम 500 शब्द
छोटी कहानी: 500 से 2,000 शब्द
कहानी: 2,000 से 10,000 शब्द
विषय कोई भी हो सकता है।
2. प्रेषण विधि
कथासृजन प्रकाशन को अपनी रचनाएँ ईमेल के द्वारा प्रेषित करें। ईमेल पता है: kathasrijan@outlook.com
रचना ईमेल में ही लिखें अथवा ईमेल के साथ Docx/PDF फ़ाइल संलग्न करें। ईमेल में अपना नाम व सम्पर्क सूचना दें।
3. चयन प्रक्रिया एवं महत्वपूर्ण तिथियाँ
31 मई 2019: रचनाएँ प्रेषित करने की अंतिम तिथि।
आपकी रचनाएँ प्राप्त होने के पश्चात हमारे संपादक उनकी समीक्षा करेंगे। मूल्यांकन के आयाम हैं:- मौलिकता, अभिव्यक्ति, एवं विषय की नवीनता। (अपेक्षित स्तर: उचित भाषा, व्याकरण एवं वर्तनी)
कथासृजन प्रकाशन का चयन निर्णय ही अंतिम व मान्य है। चयन प्रक्रिया के विषय में किसी भी रचयिता अथवा उनके प्रतिनिधि से कथासृजन प्रकाशन कोई भी चर्चा व विचार-विमर्श नहीं करेगा।
30 जून 2019: चयनित लेखकों को ईमेल के द्वारा सूचित किया जाएगा। तत्पश्चात हमारे साथ अपनी रचना प्रकाशित करने का निर्णय लेखक का ही होगा। लेखक/लेखिका परिचय पत्र का अनुरोध चयनित लेखकों से ही किया जाएगा।
जिन रचनाओं का चयन नहीं हुआ, उनके लेखकों को भी ईमेल के द्वारा सूचित किया जाएगा। कथासृजन प्रकाशन के चयनकर्ताओं के द्वारा किसी भी रचना के मूल्यांकन के विषय में विस्तृत जानकारी देना संभव नहीं है।
31 जुलाई 2019: "सौंधी" संकलन निर्णित
14 सितम्बर 2019: प्रकाशन एवं ऑनलाइन लोकार्पण. प्रकाशनोपरान्त "सौंधी" पुस्तक ऑनलाइन पुस्तक विक्रेताओं के द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी।
4. प्रवेश शुल्क
इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कोई शुल्क नहीं है।
5 . प्रविष्ट की गई रचना प्रतियोगी की स्वयं लिखित एवं मौलिक हो। कथासृजन प्रकाशन मौलिकता की पूर्ण एवं स्वतंत्र जाँच करने में सक्षम है और "काॅपीराईट" नियमों के प्रति सजग व गम्भीर है।
6. प्रविष्ट की गई रचना पूर्व अप्रकाशित होनी चाहिये।
7. प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आपकी आयु 31 मई 2019 को 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
8. प्रविष्टियों की संख्या के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
9. प्रकाशित रचनाओं के लेखकों को सौंधी संकलन की एक प्रति प्रकाशनोपरान्त निःशुल्क दी जाएगी।
10. प्रतियोगिता के संदर्भ में डाक पत्रव्यवहार अथवा फ़ोन के द्वारा संचार संभव नहीं है। आप अपने प्रश्न ईमेल के द्वारा प्रेषित कर सकते हैं।
11. कृपया प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अपनी रचना प्रेषित करने के समय हमें इन नियमों के प्रति अपनी स्वीकृति भी दें।
आभार,
- कथासृजन प्रकाशन
- कथासृजन प्रकाशन
लघुकथा | खलील जिब्रान की तीन लघुकथाओं का नेपाली अनुवाद | अनुवादकर्ताः एकदेव अधिकारी जी
1)
आलोचना – खलील जिब्रान
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘Critics’ को नेपाली अनुवाद
एक रात समुद्रीयात्रामा निक्लेको एक घोडसवार सडक किनारको एक विश्रामगृहमा पुग्यो। उ घोडाबाट ओर्लियो र अरू सबै यात्रुहरू जस्तै मानिसहरू तथा रात प्रति निश्चिन्त हुँदै घोडा विश्रामगृहको द्वार नजिकैको एउटा रूखमा बाँध्यो र विश्रामगृहभित्र पस्यो।
बिहान यात्रु बिउँझेपछि आफ्नो घोडा चोरीएको थाहा पायो। उसलाई आफ्नो घोडा हराएकोमा र चोरीको विचार कुनै मानिसको मनमा आएकोमा दुःख लाग्यो।
त्यसपछि त्यस विश्रामगृहमा बस्ने उसका सहयात्रीहरू उसको नजिक आए र कुरा गर्न थाले।
पहिलो व्यक्तिले भन्यो, “कति बेवकुफ तपाईँ त, घोडालाई तबेलाबाहिर बाँध्नु हुन्छ त?”
अनि दोश्रोले भन्यो, “अझ घोडाको खुट्टा नबाँधी छोड्ने।”
अनि तेश्रोले भन्यो, “पाटे अल्छी र सुस्तहरूले मात्र घोडा राख्छन्।”
यो सबै सुनेपछि त्यो यात्रुलाई आश्चर्य लाग्यो। उसले मुख फोऱ्यो, “मित्रवर, मेरो घोडा चोरी भएको छ त्यसैले तपाईँहरू सबै यहाँ जम्मा भएर मेरै दोष तथा कमजोरीहरू देखाउन हतार गरिरहनु भएको छ। आश्चर्य, यहाँहरूबाट एकै शब्दको गुनासो पनि त्यो चोरको बारेमा निस्केको छैन जसले मेरो घोडा चोऱ्यो।”
2)
खोजी – खलील जिब्रान
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘The Quest’ को नेपाली अनुवाद
एक हजार वर्ष पहिले दुई दार्शनिकहरू लेबनानको एक पर्वतमा भेट भएछ
अनि एक दार्शनिकले अर्कोलाई सोध्यो – “कहाँ जाँदै हुनुहुन्छ?”
अनि अर्को दार्शनिकले उत्तर दियो – “म यौवनको झरनाको खोजीमा हिँडीरहेछु जुन मलाइ थाहा छ – यीनै पर्वत, पखेरोहरूमा कतै हुनु पर्छ। मैले पढेको छु कि त्यो झरना सूर्यको दिशातिर बगिरहेको हुनेछ। अनि तपाईँ के खोज्दै हुनुहुन्छ?”
पहिलो दार्शनिकले उत्तर दियो – “म मृत्युको रहस्यको खोजीमा हिँडीरहेछु।”
अनि ती दुवै दार्शनिकलाई लाग्यो कि अर्को चाहिँ ज्ञानमा त्यति पोख्त छैन, अनि उनीहरू एक अर्कासँग वाद-विवाद, घोच-पेच गर्न थाले र अर्कोलाई आध्यात्मिकतामा अन्धो भएको दोषारोपण गर्न थाले।
त्यति बेला जब ती दुवै दार्शनिकहरू एक-अर्कासँग चर्को रूपमा विवाद गर्दै थिए, एक अपरिचित, जसलाई मानिसहरू मूर्ख मान्ने गर्थे, नजिकै आयो र उनीहरूको चर्का-चर्की ध्यान दिएर सुन्न थाल्यो।
त्यसपछि ऊ ती दुवै दार्शनिकहरू भए छेउ आयो र भन्यो – “महाशय, मलाई यस्तो लाग्दैछ कि यहाँहरू दुवै दर्शनशास्त्रको एकै भागको बारेमा कुरा गरिरहनुभएको छ, तर फरक शब्दहरूमा त्यहि कुराहरू अर्कोलाई मनाउन खोज्दै हुनुहुन्छ। तपाईँहरू एकजना यौवनको झरना खोज्दै हुनुहुन्छ भने अर्को मृत्युको रहस्य जान्न चाहनुहुन्छ। तर दुवै एकै कुरा त हो, अनि ती दुवैको वासस्थान तपाईँहरूमै छ।”
अनि त्यो अपरिचित फर्कँदै भन्न थाल्यो – “अलविदा सन्तहरू।” अनि जब ऊ फर्कँदै थियो ऊ सन्तुष्ट मुद्रामा हाँस्दै थियो।
अनि ती दुई दार्शनिकहरूले एकअर्कालाई केहिबेर मौनतापुर्वक नियाले, अनि उनिहरू पनि हाँस्न थाले। अनि एउटाले अर्कोसँग भन्यो – “हिँडनुस, सँगै खोज्न जाउँ।”
3)
उचाइ – खलील जिब्रान
खलील जिब्रानको लघुकथा ‘Poets’ को नेपाली अनुवाद
चार कविहरू एउटा टेबलमा राखिएको सोमरसको वरिपरि उभीइरहेका थिए।
पहिलो कविले भन्यो – “मेरो तेश्रो आँखाबाट मैले देखिरहेछु यस मदिराको मधुर बासना यहाँ वरपर यसरी घुमिरहेछ मानौँ चराको एक हुल कुनै तिलस्मी जङ्गलमाथि बादलसरी विचरण गरिरहेछ।”
दोश्रो कविले मुख खोल्यो – “मेरो भित्री श्रवण शक्तिबाट मैले गोधुली साँझमा सुनिने चराहरूको मधुर चिरबिर सुनिरहेछु। त्यस सङ्गीतको माधुर्यले मेरो हृदय यसरी कैद गरेको छ जसरी कमलको पत्रभित्र मौरी कैद हुन्छ।”
तेश्रो कविले आफ्ना आँखा बन्द गरेर आफ्ना दुबै हात माथि फैलाउँदै भन्यो – “म तिनीहरूलाइ आफ्ना यी हातहरूले स्पर्श गरिरहेछु। म ती पँखेटाहरू अनुभव गरिरहेछु मानौँ सुतिरहेकी परीहरूको मन्द श्वास मेरा औँलाहरूलाइ स्पर्श गरिरहेछन।”
चौथो कवि नजिकै गयो र कप आफ्नो हातमा लिँदै भन्यो – “दुःखको कुरा मित्रवर! म यहाँहरूले भन्नुभए जस्तो दृष्टि, स्पर्श र श्रवणमा निकै कमजोर छु। म न त यस मदिराको बासना देख्न सक्छु, न यसको मधुर सङ्गीत सुन्न सक्छु, न यसका पँखेटाहरूको स्पर्श गर्न सक्छु। म त यहाँ मात्र मदिरा देख्छु जसलाइ म पिउन चाहन्छु ता कि म मा पनि यहाँहरू जस्तै इन्द्रीय ज्ञानको अङ्कुर फुटोस र यहाँहरूको उचाईमा पुग्न सकुँ।”
अनि उसले त्यो कप उठायो र अन्तिम थोपासमेत नराखेर घट-घट पियो।
ती तीन कविहरू, आश्चर्यचकित हुँदै उसलाई हेरेको हेऱ्यै भए, अनि उनीहरूको आँखामा अतृप्त साथै नरमाइलो किसिमको घृणाको भाव प्रष्ट देख्न सकिन्थ्यो।
Source:
http://nepalpati.com/news/khalil-gibran-three-short-stories/
शनिवार, 13 अप्रैल 2019
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019
साक्षात्कार: सतीश राज पुष्करणा: लघुकथा के लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार
स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त जी द्वारा August 20, 2018 को लिया गया डॉ. सतीश राज पुष्करणा जी का महत्वपूर्ण साक्षात्कार
लाहौर से पटना आकर बसे सतीश राज पुष्करणा पिछले 45 साल से लघुकथा लिख रहे हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से लघुकथा सम्मान से सम्मानित पुष्करणा लघुकथा विधा की पहली समीक्षात्मक किताब “लघुकथा: बहस के चौराहे पर” लिख चुके हैं। स्वत्व समाचार डॉट कॉम के लिए अभिलाष दत्त ने उनसे बातचीत की।
1. आपका जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में हुआ, वर्तमान में आप पटना में रह रहे हैं। इस सफ़र के बारे में बताइए।
उत्तर:- मेरे दादा परदादा लाहौर में मॉडर्न टाउन में 51 नंबर की कोठी में रहते थे। मेरे दादा जमींदार थे। उस समय भारत पाकिस्तान एक ही था। पिताजी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में रेलवे इंजीनियर थे। उसके बाद सन 47 में देश आजाद होते ही देश का बंटवारा हो गया। हमारा पूरा परिवार बग्घी पर बैठ कर मामा के साथ अमृतसर चले आए। उसके बाद हम लोग पिताजी के पास सहारनपुर चले गए। वहीं से मैंने मैट्रिक किया। इलाहाबाद के के.पी.इंटर कॉलेज से इंटर पास किया। आगे बी.एस.सी के पढ़ाई के लिए देहरादून के डी.बी.एस कॉलेज में दाखिला लिया। 1964 के जनवरी मेंशादी हो गयी। उसी साल नवंबर में पिता बनने का सुख प्राप्त हुआ।
श्रीमती जी के कहने पर नौकरी की तलाश शुरू की। मामा ने कहा उनके बिज़नेस में हाथ बताऊं। मेरा मन रिश्तेदारी में काम करने का बिल्कुल भी नहीं था। नौकरी की तलाश में पटना चला आया। पटना में यूनाइटेड स्पोर्ट्स वर्क में काम मिला 125 रुपये वेतन पर। छः महीने के बाद वह काम छूट गया। उसके बाद मखनिया में पटना जूनियर स्कूल में गया काम मांगने के लिए , वहाँ से उन्होंने मुझे सेंट्रल इंग्लिश स्कूल भेज दिया। इस स्कूल में केवल महिला शिक्षक को ही नौकरी पर रखा जाता था। मेरी श्रीमती जी को वहाँ नौकरी मिल गयी। स्कूल के बच्चे हमारे यहाँ ट्यूशन पढ़ने आने लगे। मैं खुद गणित और अंग्रेजी पढ़ाया करता था। उसके बाद अपना स्कूल खोला विवेकानंद बाल बालिका विद्यालय। 76 में अपना खुद का प्रेस , ‘बिहार सेवक प्रेस’ शुरू किया। 2001 में आधुनिकरण के अभाव के कारण प्रेस बन्द हो गया। प्रेस बन्द होने के बाद भी काम चलता रहा।
2. हिंदी साहित्य में रुचि कैसे जगी?
उत्तर:- विज्ञान का विद्यार्थी था और भाषा मेरी पंजाबी थी। इलाहाबाद के एक मित्र थे राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी बंधु। उन्होंने मुझे हिंदी भाषा का ज्ञान दिया। मेरा लगाव हिंदी के तरफ होने लगा। उसके बाद मैंने लिखना शुरू कर दिया। मेरी पहली कहानी कॉलेज की पत्रिका में छपी। उसके बाद आगरा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका निहारिका में मेरी तीन कहानियों को लगतार प्रकाशित किया।
वर्तमान में हर पत्रिका में मेरी रचना छप चुकी है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका आज-कल में 1990 में सम्पादक भी बना।
3. हिंदी साहित्य के लघुकथा विधा में आपको भीष्म पितामह कहा जाता है। इस विधा में कैसे आना हुआ?
उत्तर:- सन 1977 में हरिमोहन झा (मैथिली साहित्यकार) मेरे अभिभावक के तौर पर मुझे हमेशा स्नेह किया करते थे। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा , तुम हो क्या?
मैं उनकी बातों को समझ नहीं सका। उसके बाद उन्होंने कहा तुम्हारे काम से तुमको संतुष्टि मिल सकती है , लेकिन इससे साहित्य का भला नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा अगर 100 कहानीकार का नाम लिखूं तो उसमें मेरा नाम नहीं आएगा।
उसके बाद वह चले गए। दूसरी बार आए तो उन्होंने दुबारा पूछा, कुछ सोचा? मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि छोटी छोटी कथा लघुकथा लिखा करो।
एक हफ़्ते के बाद मैंने पाँच लघुकथा उनको लिखा कर दिखाया। वह पांचों लघुकथा देख कर वह बहुत खुश हुए। बस लघुकथा लिखने का सिलसिला वहाँ से चल पड़ा।
4. हिंदी साहित्य में लघुकथा क्या है?
उत्तर:- आज के व्यस्त जीवन में लोग छोटी-छोटी कथाएं पढ़ना अधिक पसंद करते हैं। कम शब्दों में सारी बातें लघुकथा में कही जाती है। अधिक से अधिक दो पेज तक की लघुकथा होनी चाहिए।
आपातकाल के समय पेपर की भारी किल्लत हुई। साहित्य वाला पेज घट कर एक – दो कॉलम तक सीमित हो गयी। इस कमी के कारण कम शब्दों की कथा चाहिए थी। इसी कारण लघुकथा प्रसिद्ध हो गयी। आज के समय लघुकथा पर अनेक प्रकार के शोध हो रहे हैं। बिहार में पिछ्ले 29 सालों से लघुकथा सम्मेलन आयोजित हो रही है।
आजकल फेसबुक पर अनगिनत नए लेख़क सब लघुकथा लिख रहे हैं। लेकिन फेसबुक पर लिखी जा रही लघुकथा उच्चस्तरीय नहीं होती है। उसका मुख्य कारण होता है वहाँ कोई संपादक नहीं होता है।
प्रायः हर दशक में लघुकथा में बदलाव देखने को मिली है। सामाज का रूप प्रस्तुत करने के कारण इसमें बदलाव आते रहते हैं।
5. नए लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर:- आपकी रचनाओं में दम है तो लोग आपको एक दिन जरूर पहचानने लगेंगे। सवाल यह है आप कैसा लिख रहे हैं। पाठक जिसको अच्छा कहें वही अच्छा माना जाएगा। साहित्य के लिए लिखिए। आत्ममुग्धा से बचिए।
सूरज कभी किसी को नहीं कहने जाता है कि मुझे प्रणाम करो। हम सुबह उठते है और खुद ही उसे प्रणाम करते हैं।
यह बात हमेशा याद रखिए लेखक से बड़ा पाठक होता है।
Source:
https://swatvasamachar.com/sanskriti/satish-raj-pushkarna-laghukatha/
गुरुवार, 11 अप्रैल 2019
पुस्तक समीक्षा | श्रापित योद्धा की कष्ट कथा | सतीश राठी
महाभारत हमारे प्राचीन इतिहास की एक ऐसी कथा है, जिसमें धर्म भी है धर्मराज भी है और अधर्म भी है, कृपा भी है पीड़ा भी है, स्वार्थ भी है सेवा भी है, वैमनस्य भी है प्रेम भी है, राजनीति भी है त्याग भी है ,प्रतिशोध भी है दया भी है, कपट भी है निश्चलता भी है, छल भी है और ईमानदारी भी । यह कथा जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसमें सारे सुख भी हैं ,सारे दुख भी और इसी कथा का एक पात्र ऐसा भी है जिसके क्रोध ने उसके जीवन को ऐसा नष्ट किया कि वह अपनी यातना, अपनी पीड़ा को सहते हुए आज तक भटक रहा है। ऐतिहासिक किंवदंती को उपन्यास का मुख्य विषय बना कर अश्वत्थामा जैसे खलनायक पात्र को नायक बनाकर श्रीमती अनघा जोगलेकर ने अपना उपन्यास रचा है, 'अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व'।
जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता । यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है। उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य ,इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहां पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाकई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं।लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएं वर्णित है, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को विभिन्न अध्यायों के पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा ,दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है। इसकी पूर्व पीठिका के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहां पर प्रस्तुत किया है ।क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहां पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी । यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की जरूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।
उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियां दी गई हैं वह सारी टिप्पणियां अपने आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं ,क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हकदार भी।
यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है। इसे लेखिका से सीधे प्राप्त करने हेतु नीचे दिये ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं
anaghajoglekar@yahoo.co.in
- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर ,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204
-------------
जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता । यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है। उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य ,इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहां पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाकई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं।लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएं वर्णित है, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को विभिन्न अध्यायों के पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा ,दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है। इसकी पूर्व पीठिका के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहां पर प्रस्तुत किया है ।क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहां पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी । यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की जरूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।
उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियां दी गई हैं वह सारी टिप्पणियां अपने आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं ,क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हकदार भी।
यह पुस्तक अमेज़ॉन पर उपलब्ध है। इसे लेखिका से सीधे प्राप्त करने हेतु नीचे दिये ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं
anaghajoglekar@yahoo.co.in
- सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर ,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204
-------------
Note:
हालांकि अश्वत्थामा: यातना का अमरत्व एक उपन्यास है लेकिन लेखिका ने उपसंहार में एक लघुकथा को उद्धरित किया है। एक उपन्यास और लघुकथा में सहसंबंध स्थापित करना स्वागत योग्य है।
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