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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

*"पुरुष उत्पीड़न" विषय पर कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता

श्री विजय विभोर की फेसबुक वॉल से


"Write Now"
आपके लिए एक अनूठी कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता*
अब तक आपने (पुरूष/महिला रचनाकारों ने) महिला उत्पीड़न पर बहुत क़लम चलाई है। अब आपके लिए
*"पुरुष उत्पीड़न"
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पर क़लम चलाने का चैलेन्ज है।
महिलाएं बातों को बेहतर तरीके से देख और समझ पाती हैं और अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकती हैं। पुरुष भी महिलाओं के लिए बहुत मार्मिक व शानदार लिखते आ रहे हैं। अब देखे कितनी महिला/पुरूष रचनाकार "पुरुषों के उत्पीड़न" पर अपनी कलम का जादू बिखेरते हैं?
आपका अपना यूट्यूब चैनल "Vibhorविभोर" लेखकों के लिए यह अनूठी लेखन प्रतियोगिता ला रहा है। यह पुरुषों/महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार और उनके ख्याल का उत्सव है।
इस कहानी और लघुकथा लेखन प्रतियोगिता के लिए देखें आप अपनी कितनी उर्जा, रचनात्मकता और उत्साह को दिखाते हैं।
इस प्रतियोगिता का उद्देश्य महिलाओं व पुरुषों को समान रूप से सम्मान और सहयोग के लिए प्रेरित करना है। तो आइए अपनी रचनात्मकता का उपयोग करते हुए प्रेरक कहानी / लघुकथा लिखें।
नियम
1. चैनल के सब्स्क्राइब सदस्य (प्रमाण के लिए स्क्रीन शॉट भेजें) ही भाग ले सकते हैं।
2. शैली पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बस विवादास्पद को शामिल नहीं किया जाएगा।
3. विजेताओं का फैसला वीडियो पर लाइक स्कोर, उनकी कहानी/लघुकथा को कितना शेयर किया गया व उसको कितने समय तक देखा गया (व्यूज ड्यूरेशन) के आधार पर किया जायेगा।
4. सभी प्रतिभागियों के लिए चैनल "Vibhorविभोर" का निर्णय अंतिम और मान्य होगा।
5. प्रतिभागियों को अपनी स्वरचित कहानी / लघुकथा ही भेजनी हैं। प्रतिभागी अधिकतम दो कहानी / चार लघुकथा ही भेज सकते हैं। अपने अनुसार उत्कृष्टता क्रम से (कहानी और लघुकथा अलग-अलग) भेजें।
6. आपकी रचना पहले से किसी भी सोशल मीडिया पर पोस्ट / प्रकाशित नहीं होनी चाहिए।
7. हम ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। आपसे भी यही अपेक्षा रखते हैं।
8. आपकी रचना पर आपका पूर्ण अधिकार है। बस प्रतियोगिता के बाद आप कहीं भी इस्तेमाल करें।
पुरस्कार
श्रेष्ठ 10 रचनाकारों को "Vibhor विभोर" यूट्यूब चैनल से उत्कृष्टता के प्रमाण-पत्र प्राप्त होंगे।
योग्यता
सबमिट करने की अवधि - 14 फरवरी 2019 से 15 मार्च 2019 तक
भाषाएँ - हिन्दी
कन्टेन्ट - कहानी और लघुकथा
प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए, आप नीचे दी हुई e-mail : vibhorvijayji@gmail.com पर अपनी रचनाओं को सबमिट करें। साथ में अपना फोटो व शहर का नाम व "पुरुष उत्पीड़न" प्रतियोगिता जरूर लिखें। व्हाट्सएप/मैसेंजर पर भेजी रचनाएँ शामिल नहीं कर सकेंगे। इसलिए ईमेल पर ही प्रसारण स्वीकृति के साथ भेजें।
आपकी रचनाओं का हृदय से स्वागत है, धन्यवाद !🙏🏻
नोट :- 24 फरवरी 2019 से आपकी आयी हुई रचनाओं की वीडियो अपलोड होना शुरू हो जाएंगी। एक दिन में एक ही वीडियो अपलोड होगी। जितनी भी रचनाएँ आएंगीं उनमें से प्रतियोगिता में चुनी गई रचनाओं के ही वीडियो अपलोड किया जाएगा। आपकी वीडियो की अपलोडिंग के बाद का दस दिन तक का समय नोट किया जाएगा।
सब्स्क्राइब करने के लिए चैनल "Vibhorविभोर" का लिंक -----
मित्रों!
अपने फ़ोटो और संक्षिप्त परिचय के साथ अपनी रचनाएँ (कहानी, लघुकथा) ईमेल vibhorvijayji@gmail.com पर ही भेजें।
- विजय 'विभोर'

लघुकथा वीडियो: दो संस्कृत लघुकथाएं


लघुकथा(१) शृगालस्य चतुरता


लघुकथा (२)अम्लानि द्राक्षाफलानि




लघुकथा(१) शृगालस्य चतुरता

एकदा एकः वायसः पिष्टकं चोरितवान्।
पिष्टकं चोरयित्वा सः एकस्यां वृक्षशाखायाम् उपविशती स्म।
वृक्षतले शृगालः एकः उपारतः आसीत्।
वायसमुखे पृष्टकं दृष्ट्वा तं लालसा अभवत्
तदा चतुरः सः शृगालः वायसं प्रति उद्देश्यं कृत्वा गायनासीत्...
अहो! अद्भुतसुंदरः विहगः एषः।
कण्ठस्वरः अपि मधुरः भवेत्...
न जाने कथं मधुरं नु गायति अयम्।
वायसः स्वीय प्रशंसा श्रुत्वा गदगद नंदित पुलकितः अभवत्।
अतः सः गीतं गायनाय यदा हि चंचु विस्फारितम अकरोत्
पिष्टकम अधः पतितवान्।
अतः किम्!
शृगालः पिष्टकं प्राप्य झटिति धावितवान्।

लघुकथा (२)अम्लानि द्राक्षाफलानि

एकदा एकः शृगालः अतीव क्षुधार्तः भवन् आसीत्।
समग्र वनम् अनुसन्धित्वा अपि सः।
तदा सः भोजनस्य अनुसन्धनाय एकस्मिन् ग्रामे उपस्थितम् अभवत्।
तत्र एकं वेदिम् उपरि गुच्छानि गुच्छानि द्राक्षाफलानि उलम्बितानि।
द्राक्षाफलं दृष्ट्वा शृगालः अतीव मोदितः अभवत्।
"अहो! क्षुधाकाले पक्व-पक्व द्राक्षाफलस्य भोजनस्य आनंदं हि अतुलनीयम्" सः अचिंतयत्
द्राक्षाफलानि तु अतीव उच्चे आसन्।
बहव लम्फ़झम्पात् अपि तानि तस्य हस्तगतः न अभवन्।
"द्राक्षाफलानि अम्लानि। अहम् अम्लफलं न द्राक्षाफलानि खादामि।"
एतद् उक्त्वा शृगालः स्थानात् गतवान्।

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: विसर्जन (लघुकथा) - लघुकथाकार: अखिलेश द्विवेदी 'अकेला' | स्वर: महेश शर्मा

"लघुकथा तो मर्मस्पर्शी है ही किन्तु प्रस्तुति ने इसमें जान डाल दी है. लघुकथाकार: अखिलेश द्विवेदी 'अकेला' जी व लघुकथा को स्वर देने वाले महेश शर्मा जी को हार्दिक बधाई. इस प्रभावशाली रचना से साक्षात करवाने हेतु वर्जिन स्टूडियो का भी हार्दिक आभार."
- वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर द्वारा इस लघुकथा पर टिप्पणी।
लघुकथा पर महेश शर्मा जी की प्रस्तुति बहुत ही रोचक है। ज़रूर सुनिए इसे।



लघुकथा संग्रह "सहोदरी लघुकथा 2" की समीक्षा अंकु श्री जी द्वारा

मोटे-मोटे उपन्यास और लंबी-लंबी कहानियां पढ़ने के लिये समय निकाल पाना सबके लिये संभव नहीं है। बेषक इसमें समय अधिक लगता है। कुछ ऐसे ही दौर से गुजरते हुए पाठकों के लिये लघुकथा विधा का विकास और विस्तार हुआ। वस्तुतः लघुकथा-लेखन कोई सोची-समझी व्यवस्था नहीं, एक स्वतःस्फूर्त प्रक्रिया थी। वैसे तो यह बहुत पुरानी विधा है, मगर उन्नीस सौ अस्सी के दषक में लघुकथा-लेखन में बहुत तेजी आयी। इस विधा की दर्जनों स्वतंत्र पत्रिकाओं का प्रकाषन शुरू हुआ. लघुकथा के सैकड़ों संकलन छप चुके हैं। यही नहीं, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी लघुकथा को स्थान मिलने लगा और आज भी मिल रहा है। वर्ष 2018 में एक बहुंत ही उम्दा लघुंकथा संकलन हाथ में आया है, जिसका नाम है ‘सहोदरी लघुकथा-2’।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ द्वारा प्रकाषित इस पुस्तक में उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुकथाएं संकलित हैं, जो विभिन्न विषयों को समेटे हुए हैं। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि लघुकथा संकलनों में कई-कई आलेख छपे होते हैं। मगर प्रस्तुत संकलन में सिर्फ लघुकथाएं छपी हैं, जो इसकी विषिष्टता लगी, क्योंकि आलेखों से संकलन भर जाने के कारण अच्छे लघुकथाकारों को भी समेटना कठिन हो जाता है। 304 पृष्ठों के इस संकलन का गेटअप बहुत आकर्षक और बाइन्डिंग काफी मजबूत है।
उन्हत्तर लघुकथाकारों की करीब तीन सौ लघुंकथाओं को एक साथ पढ़ना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इसमें लघुकथाकारों ने अनेक विषयों पर अपनी कलम चलायी है। लघुकथा की विषेषता है कम शब्दों में किसी बात को रोचकपूर्वक कह देना। यह सभी जानते हैं कि अपने ही हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर नहीं होतीं। संकलन की तीन सौ लघुकथाओं में भिन्नता तो रहेंगी ही। इनमें से कुछ लघुकथाएं जुबान पर चढ़ कर बोलती-सी लगती हैं।
‘भाषा सहोदरी-हिंदी’ का छठा अंतर्राष्ट्रीय महाधिवेषन के यादगार अवसर पर 24 और 25 अक्तूबर, 2018 को ‘हंसराज काॅलेज’, दिल्ली में पधारे सैकड़ों साहित्यकार और साहित्य-प्रेमी इस संकलन के लोकार्पण समारोह के साक्षी बने।
प्रस्तुत संकलन की अनेक लघुकथाएं बहुत अच्छी हैं, जबकि कुछ बेशक नव-लेखन के प्रमाण हैं। इस संकलन को पढ़ने से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात स्पष्ट होती है कि पुराने लेखकों की भी सभी रचनाएं अच्छी नहीं होतीं। एक-दो लघुकथाएं ऐसी भी हैं, जिनके लेखक को विष्वास नहीं है कि पाठक उसे समझ पायेंगे और इसलिये उन्होंने लघुकथा के अंत में ‘नोट’ लिख दिया है। एक लेखिका द्वारा अपनी लघुकथाओं के अंत में ‘सीख’ दी गयी है, जैसे वह पुरानी बालकथा लिख रही हों। कुछ लेखकों द्वारा अपनी लघुकथा के शीर्षक इन्भर्टेड काॅमा में दिये गये हैं और कुछ ने शीर्षक के बाद - - (डैश-डैश) लगा दिया है। एक लेखक ने अपनी हर लघुकथा के अंत में - - (डैश-डैश) लगा दिया है, जिससे लगता है कि लेखक और कुछ कहना चाहता है और कह नहीं पाया है, जिसे पाठक स्वयं संमझ ले। आमूद-पठन में थोड़ी कमी झलकती है। ऐसा लगता है कि इन बातों की ओर संपादकीय दृष्टि नहीं पड़ पायी है। बेषक संकलन की लघुकथाएं हर साहित्यकार का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। संकलन की कुछ अच्छी लघुकथाओं और उसके लेखक का वर्णन आवष्यक लगता है, जो निम्नवत है,
‘अपना-अपना हिन्दुस्तान’ और ‘गांव की धूल’ (अंकुश्री), ‘आहट’ (अनु पाण्डेय), शेरनी (अपर्णा गुप्ता), ‘स्त्रीत्व’ और ‘बदलते दृष्टिकोण’ (डा0 उपमा शर्मा), ‘श्रेय’ (ऋचा वर्मा), ‘खामोषी बोलती है’ (कामिनी गोलवलकर), ‘आग’ (गुंजन खण्डेलवाल), ‘बरसात’ और ‘षिकायत का स्पर्ष’ (पंकज जोषी), ‘छोटू’ (पम्पी सडाना), ‘फैसला’ (पूनम आनंद), ‘जुर्माना’ (मनमोहन भाटिया), ‘जिन्दगी’ और ‘एक संघर्ष नया’ (मनीषा जोबन देसाई), ‘निर्णय’, ‘इंसानियत’ और ‘पावन बंधन’ (मणिबेन द्विवेदी), ‘चिट्ठी-पत्तरी’, ‘पत्थर पर दूब’ और ‘होड़’ (मिनी मिश्रा), ‘टंगटुट्टा’ और ‘हेल्मेट’ (मृणाल आषुतोष), ‘अहसास’, ‘पहचान’, ‘बहराना साहिब‘, ‘आवष्यकता’ और ‘मोतियाबिन्द’ (लीला कृपलानी), ‘श्रवण कुमार’ (डा0 लीला मोरे), ‘भरोसा’ (वन्दना पुणतांबेकर), ‘दोहरा मापदंड’ (संजय कुमार ‘संज’), ‘आश्रम’ और ‘बस’ (सौरभ वाचस्पति ‘रेणु’), ‘बदलती नजरें’, ‘अच्छा हुआ’ और ‘स्पष्टीकरण’ (संतोष सुपेकर), ‘रिमोट वाली गुड़िया’, ‘डिलीट एकाउन्ट्स’ और ‘अनोखी चमक’ (सुरेष बाबू मिश्रा), ‘जख्म’ (सतीेष खनगवाल), ‘निपुणता’, ‘योग्यता’, ‘तीर्थाटन’ और ‘अस्थि के फूल’ (संजय पठाडे ‘षेष’), ‘वृद्धा आश्रम’ और ‘विदुषी’ (सुधा मोदी), ‘भलाई का जमाना’, ‘चोरी’ और ‘एहसास’ (सदानंद कविष्वर), ‘परीक्षा की चिंता’ और ‘हिम्मत’ (सीमा भाटिया), ‘पापा’ और ‘उत्साहवर्द्धन’ (संजीव आहूजा), ‘मुस्कान’ और ‘अनदेखा’ (सागरिका राय), ‘जाल’ और ‘नुस्खा’ (सविता इन्द्र गुप्ता)। यह एक संक्षिप्त सूची है, जिसे अंतिम नहीं माना जा सकता।
लेखक को आसपास की घटनाओं, अध्ययन और विचारों से बहुत सारे कथ्य मिल जाते हैं। उसके आधार पर कथानक का ताना-बाना बुन कर लेखक द्वारा कथा या लघुकथा लिखी जाती है। कथानक और षिल्प के अनुसार कथा अच्छी या साधारण बन जाती है। कुछ रचनाएं साधारण से भी निम्न बन कर रह जाती हैं। इस संकलन में भी कुछ लघुकथाओं के कथ्य अच्छा होते हुए भी कमजोर कथानक और षिल्प के कारण वे अच्छे ढ़ंग से पल्लवित-पुष्पित नहीं हो पायी हैं। शब्दों की मितव्ययिता लघुकथा की महत्वपूर्ण शर्त है। संकलन से गुजरते हुए कहीं-कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि मन में आने वाले हर शब्द को कागज पर उतारने के लिये कलम को स्वतंत्र छोड़ देने से लघुकथा खराब हो जाती है।
कुछ लघुकथाओं में भूमिका देकर उसे समझाने का प्रयास किया गया है। कुछ लघुकथाओं के अंत में उपसंहार के तौर पर लेखक द्वारा अपना मत अंकित कर दिया गया है, जो उपदेषात्मक लग रहा है। कहीं-कहीं चलती हुई लघुकथा के बीच में अचानक लेखक ‘‘मैं’’ के रूप में प्रकट हो गया है। कुछ लघुकथाएं घटना प्रधान होती हैं, जिनमें कथात्मकता के अभाव के कारण वे साहित्य नहीं रह कर समाचार लगने लगती हैं। लघुकथाओं के ऐसे उदाहरण भी इस संकलन में हैं। इस संकलन की मुख्य विषेषता इसकी विविधता है।
कथाकार जब सीधी नज़र से देखता है तो उसे गहरी और विस्तृत बातें दिखाई देती हैं, जिससे कहानी का सृजन होता है। मगर उसी बात को तिरछी नज़र से देखने पर उसमें गहराई तो रहती है लेकिन विस्तार का अभाव हो जाता है, जिससे लघुकथा का सृजन होता है। किसी कृति के वास्तविक समीक्षक पाठक होते हैं। इसलिये संकलन मंगा कर पढ़ने पर ही इसमें प्रकाषित तीन सौ लघुकथाओं का एक साथ मजा मिल पायेगा और आज लिखी जा रही लघुकथाओं की भी सही जानकारी मिल सकेगी।
- अंकु श्री

प्रेस काॅलोनी, सिदरौल
नामकुम,रांची-834010
मो0 8809972549

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

लघुकथा कलश (तृतीय महाविशेषांक) की समीक्षा श्री सतीश राठी द्वारा

श्री योगराज प्रभाकर के संपादन में 'लघुकथा कलश' का तीसरा महाविशेषांक प्रकाशित हो चुका है और तकरीबन सभी लघुकथा पाठकों को प्राप्त भी हो चुका है। मुझे भी पिछले दिनों यह विशेषांक प्राप्त हो गया और इसे पूरा पढ़ने के बाद मुझे यह जरूरी लगा कि इस विशेषांक पर चर्चा जरूरी है।

इस विशेषांक के पहले भाग में डॉ अशोक भाटिया, प्रोफेसर बीएल आच्छा और रवि प्रभाकर ने श्री महेंद्र कुमार, श्री मुकेश शर्मा एवं डॉ कमल चोपड़ा की लघुकथाओं के बहाने समकालीन लघुकथा लेखन पर बातचीत की है। यह इसलिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि इसमें एक नया लघुकथाकार दो वरिष्ठ लघुकथाकारों के साथ अपनी लघुकथाओं को लेकर प्रस्तुत हुआ है और यह लघुकथाएं विधा की नई संभावनाओं की और दिशा देने वाली लघुकथाएं हैं जिसके बारे में डॉ अशोक भाटिया ने भी इंगित किया है। लघुकथाओं को देखने के बाद लघुकथाओं को लेकर कोई चिंता नहीं रखना चाहिए। बहुत सारी अच्छी लघुकथाएं विशेषांक में समाहित है। नौ आलेख इसे समृद्ध करते हैं। कल्पना भट्ट का पिता पात्रों को लेकर लिखा गया आलेख, डॉ ध्रुव कुमार का लघुकथा के शीर्षक पर आलेख, लघुकथा की परंपरा और आधुनिकता पर डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ,लघुकथा के द्वितीय काल परिदृश्य पर डॉ रामकुमार घोटड, लघुकथा के भाषिक प्रयोगों पर श्री रामेश्वर कांबोज, खलील जिब्रान की लघुकथाओं पर डॉक्टर वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, लघुकथा के अतीत पर डॉक्टर सतीशराज पुष्करणा और राजेंद्र यादव की लघुकथा पर सुकेश साहनी, इनके साथ में तीन साक्षात्कार जो मुझसे,  डॉ कमल चोपड़ा एवं डॉ श्याम सुंदर दीप्ति से लिए गए हैं, कुछ पुस्तकों की समीक्षा, कुछ गतिविधियों की जानकारी, दिवंगत लघुकथाकारों को श्रद्धांजलि, कुछ गतिविधियों का जिक्र और 177 हिंदी लघुकथाओं के साथ नेपाली, पंजाबी, सिंधी भाषा के विभिन्न लघुकथाकारों की लघुकथाएं इतना सब एकत्र कर प्रस्तुत करने के पीछे भाई योगराज प्रभाकर की कड़ी मेहनत हमारे सामने आती है। ऐसे काम जुनून से ही पूरे होते हैं और वह जुनून इस विशेषांक में दृष्टिगत होता है। पाठक यदि इस विधा को लेकर कोई प्रश्न खड़े करते हैं तो उसका जवाब भी उन्हें इस तरह के विशेषांक में प्राप्त हो जाता है। मैं श्री योगराज प्रभाकर जी की पूरी टीम को विशिष्ट उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। पिछले दोनों अंको से और आगे जाकर यह तीसरा अंक सामने आया है और यह आश्वस्ति देता है कि चौथा अंक और अधिक समृद्ध साहित्य के साथ में हम सबके सामने प्रस्तुत होगा। पुनः बधाई।

- सतीश राठी

लघुकथा वीडियो: बिखरने से पहले - शोभना श्याम

"बिखरने से पहले कुछ दिन और एक-दूसरे की पंखुड़ियों को संभाल लिया जाये।" - इस वीडियो से 

बिखरने से पहले फूल एक-दूसरे की पंखुड़ियाँ संभाल नहीं सकते, लेकिन ईश्वर ने हम इन्सानों को तो उन अहसासों से समृद्ध किया है जहां हम दूसरों को अपने साथ से ही बिखरने से रोक सकते हैं। उम्र की लंबाई नापती हुई जिंदगी के हाथों से स्केल छीन कर पेंसिल ही पकड़ा दी जाये तो कितनी ही बार दिल को टटोलता हुआ स्टेस्थेस्कोप गले के लय से लय मिलाकर गाना भी शुरू कर सकता है

कुछ ऐसे ही भावों के साथ रची यह लघु फिल्म शोभना श्याम जी की लघुकथा "बिखरने से पहले" पर आधारित है। इसे एक बार ज़रूर देखिये और समझिए भी। इस रचना का विस्तार केवल बुजुर्गों तक या उनके अकेलेपन तक ही नहीं बल्कि हम मे से अधिकतर के अंदर कहीं न कहीं छिपे खालीपन तक भी है।

- चंद्रेश कुमार छतलानी