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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

सुरेन्द्र कुमार जी अरोड़ा की दो लघुकथाएं

जेहाद 

" अमां ठोक इसे ! "
" ट्रिगर दबा और धायं की साईलेंसरी आवाज के साथ एक जवान जिंदगी लाश में बदल  गयी ! वादी  में एक हल्की सी चीख गूंजी और फिर किसी भुतहे सन्नाटे की तरह  सब कुछ शांत हो गया ।
उस चीख ने न जाने कैसा दर्द पैदा किया कि गोली चलने वाला दरिंदा बोल उठा , "अल्लाह की खिदमत में कहीं इसे गलत तो नहीं पेश कर दिया । "
" भाई मियां अब सोचो मत ! गलत या सही , कर दिया तो कर दिया । वैसे यकीन करो इसे ठोककर कोई गलती नहीं हुई है । साला काफिरों की फ़ौज के लिए लड़ता था । इसलिए काफिर ही था । इसे सजा मिलनी जरूरी थी । इसकी मौत की खबर जब पूरी घाटी में फैलेगी तो  इसका खानदान  तो क्या घाटी में रहने वाले हर बाशिंदे की  कई पुश्ते कभी ये सोचेंगी भी नहीं कि अल्लाह की फ़ौज के खिलाफ लड़ने का मतलब है अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी और जब कोई शख्स अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी  करता है तो  उसका सिर्फ एक ही हश्र होता है - जिबह । इस काफिर की रूह शुक्र मनाएगी  कि इसे हमारे खंजर  ने जिबह नहीं किया , राइफल से निकली गोली के एक  झटके  से ही इसके पाप धुल गए और यह खुदा की सल्तनत में फरियादी की तरह जा बैठा  । " झाड़ियों में छिपे  दूसरे दरिंदें  ने भी अपनी ए । के । 47 को संभालते हुए मुस्तैदी से कहा , " ओये ! वो देख जीता - जागता गुलाब । जवान शोरबा । हुस्न का चलता - फिरता टोकरा । इतना करारापन देखा है कहीं ?  "
 " ठोक दूँ  इसे भी । उसी काफिर की बहन लगती है ।" पहला पूरे जुनून में था ।
" पागल हो गया है क्या । ये झटके का माल नहीं है । ऐसा करते हैं पहले इसका जायका लेते हैं । फिर आगे की सोचेंगें । " दूसरे  ने अपने होठों को जबान से तर करते हुए दरिंदगी से सराबोर अपनी  रूह का एक और नमूना पेश किया  ।
" तो क्या इसका लोथड़ा कच्चा चबायेगा ? "  पहला कुछ समझ नहीं पाया ।
" अमां इतने दिन हो गए फातिमा को छोड़े हुए । तुझे  भी तो घर से बेदखल हुए  दो महीने हो गए हैं  ।  हम भी तो इंसान हैं यार । जिस्मानी  भूख हमें भी  लगती है । जवानी  हर तरह का जोर मरती है । आज ये माल दिखा है , पहले मैं इसे फातिमा बनाता हुँ फिर तू इसे कुछ भी समझ लियो । " दूसरा वहशीपन की नई मिसाल कायम करने पर उतर आया ।
" नहीं यार ! ये ठीक नहीं है । तू कहे तो मैं इसे ठोक देता हुँ , पर ये करना ठीक नहीं है ! इसने हमारा क्या बिगाड़ा है ?  " पहले का जमीर शायद  बाकी था पर दूसरे ने उसकी बात पर कोई गौर नहीं किया और आती हुई उस बाला पर भेड़िये की तरह टूट पड़ा । अभी उसने अपनी दरिंदगी को अंजाम देना शुरू ही किया था कि पलक झपकते ही जय माँ काली के उद्घोष के साथ  पांच जवानो की टुकड़ी की राइफलों से निकली गोलियों ने  दोनों दरिंदों की दरिंदगी को   लाशों में तब्दील कर दिया   ।   

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किशोरी मंच
     
" मानसी चल जल्दी से खाना खा ले , मुझे ढेरों काम हैं  ।"
" जल्दी न करो माँ ! पहले मुझे साबुन ला कर दो ।"
" साबुन का क्या करेगी  ,उसके साथ रोटी खाएगी क्या  ? "
"  गुस्सा मत करो माँ , सुबह से घर  से बाहर थी ,  हाथों  ने न जाने कितनी चीजों को छुआ  है , बहुत गंदे हो गए हैं  । हो सकता है बहुत सी खतरनाक  बीमारिओं के  कीटाणु  भी इनसे चिपक गए होंगें , अगर ऐसे ही  खाना खा लिया तो वे सारे कीटाणु  मेरे पेट में जाकर मुझे बीमार कर सकते हैं ।"
" बड़ी समझदार हो गयी है , जा मिटटी से हाथ धो ले , साबुन हो तो दूँ । इतनी महंगाई में बच्चों का पेट पालें या साबुन से उनके चेहरे चमकाएं ।"
" माँ घर में साबुन का होना उतना ही जरूरी है जितना कि रसोई में आटा । मिटटी से हाथ धोने का मतलब है कि बीमारियों के कीटाणुओं में और भी ज्यादाबढ़ोतरी और उसके साथ बिमारिओं को न्योता ।"
" तो बता क्या करूँ ,घर में साबुन नहीं है  ।"
" नहीं है तो मैं खुद जा कर ले आती हूँ ।"
" क्या सचमुच  तू दूकान पर जा कर साबुन की टिकिया लाएगी  ? आज तक तो बगल की दूकान से बिस्कुट  ले कर  आने  में भी आनाकानी करती थी कि गली के गंदे लड़के , आती - जाती  लड़कियों को तंग करते हैं ।।"
" हाँ माँ ।पता भी है आज हमारे स्कूल में एक अनोखा कार्यक्रम रखा गया था  जो अब से पहले कभी नहीं रखा गया  । इस कार्क्रम ने तो हम सब लड़किओं की सोच को ही बदल कर रख दिया ।"
" बेटा ऐसा क्या था उस कार्यक्रम में जो उसके लिए  तू इतना चहक  रही है ।"
" माँ उस कार्यक्रम का नाम था किशोरी मंच ।इसका आयोजन हमारे देश की   केंद्रीय सरकार के अंतर्गत चलने वाले सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारिओं ने करवाया था । इसमें हमारे स्कूल की बड़ी मैडम के साथ - साथ हमारी क्लास की मैडम ने भी बड़ी अच्छी बातें बताईं । हमें ऐसी - ऐसी बातें बताईं और ट्रेनिंग दी कि मन कर रहा था   कि यह कार्यक्रम तो कभी खत्म ही न हो ।"
" स्कूल वालों ने ऐसा क्या सिखाया  कि आज तू वो काम करने की बातें कर रही है जो तू पहले मेरे कहने पर भी नहीं करती थी ।"
" माँ ! पहली बात तो यह कि एक बहुत ही  बुद्धिमान मैडम आयीं थी जिन्होंने बड़े अच्छे ढंग से यह बताया कि हम अपनी रोज मर्रा की  जिंदगी में अगर हम सफाई से रहना सीख लें तो  बहुत सी बिमारिओं से आसानी से  बच सकते हैं । इन छोटी - छोटी बिमारिओं के कारण जहाँ एक तरफ बीमार व्यक्ति के कार्य करने की ताकत में कमीं आती है वहीं दूसरी ओर घर और देश की कमाने की ताकत भी कम हो जाती है । हमारा फ़र्ज़ है की हम स्वयं को स्वस्थ रखें । हर व्यक्ति के स्वस्थ रहने से घर और देश दोनों अपने - अपने काम अपनी पूरी ताकत से करते हैं जिससे दोनों  की माली हालत में सुधार होताहै और खुशहाली आती है । इसलिए अब मैं अपनी और घर की साफ़ - सफाई का पूरा ध्यान रखूंगी ।"
" वाह ! मेरी बेटी तो एक ही दिन में इतनी बड़ी हो गयी । दूसरी बात  क्या बताई किशोरी मंच में ?'
"  माँ वह तो मैं भूल ही गयी । एक और मैडम भी आई थी । उन्होंने हम लड़किओं को बताया कि हमें किसी भी  हाल में खराब नियत वाले लड़कों से डरना नहीं है , अगर कोई खराब नियत से किसी लड़की के साथ बदसलूकी करे तो उसको सही सबक सिखाने में देर नहीं करनी है । इस काम के लिए उन्होंने वो तरीके भी बताये कि कैसे खुद की रक्षा करें और जरूरत पड़ने पर उन पर  वार से पीछे भी न हटें । अब जब भी जरूरत होगी मैं अपनी सुरक्षा बिना किसी से डरकर  खुद ही  करूंगी ।"
" चलो मेरी सिरदर्दी खत्म हुई । अब तू खुद ही  अपनी हर तरह की सफाई का भी ध्यान तो रखेगी  ही साथ ही मजबूत भी बनेगी ।"
" हाँ माँ अब हम लड़कियों को दिल्ली की  निर्भया की तरह बदमाशों से लड़ते हुए असमय काल  का ग्रास नहीं बनना है बल्कि रोहतक की आरती और पूजा की तरह बदमाशों की पिटाई करके उन्हें जेल के सीखचों के पीछे भेजना है ।"
" वाह ! आज तो मेरी बेटी का  रूप ही बदला हुआ है ।"
" इतना ही नहीं माँ , सर ने सरकार की तरफ से हमें उपहार स्वरूप यह सौ रूपये भी दिलवाये  । यह रूपये मैं कभी खर्च नहीं करूंगी । हमेशा संभालकर रखूंगी । यह मुझे हमेशा याद दिलवाते रहेंगें कि हमेशा सफाई का ध्यान रखना है और शरीर से ही नहीं दिमाग से भी  मजबूत बनना  है ।"
“  ठीक   है मेरी शेर  बच्ची अब साबुन की टिकिया तो ले आ । “
“ अभी लाई माँ ।” 
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सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन  साहिबाबाद  - 201005 ( ऊ । प्र । ) 
मोबाईल : 9911127277 

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार: अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और बिहार आर्ट थियेटर की ओर से लघुकथा कलश के तृतीय महाविशेषांक का लोकार्पण


Patna News - deepa is working on small stories in bihar

Dainik Bhaskar| Jan 28, 2019 | Patna News

अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच और बिहार आर्ट थियेटर की ओर से लघुकथा कलश के तृतीय महाविशेषांक का लोकार्पण रविवार को कालिदास रंगालय में किया गया। इस अवसर पर विचार गोष्ठी भी हुई। वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. सतीश राज पुष्करणा, लघु कथा मंच के महासचिव डॉ. ध्रुव कुमार, बिहार आर्ट थियेटर के सचिव कुमार अनुपम, समीक्षक डॉ. अनिता राकेश व विभा रानी श्रीवास्तव ने लोकार्पण किया।

कार्यक्रम में डॉ. सतीश राज ने कहा कि लघुकथा एक लंबा सफर तय कर बहस के चौराहे से उठकर चर्चा के चौपाल तक आ पहुंची है, लेकिन इस विद्या के लिए अभी बहुत काम बाकी है। ऐसे में लघुकथा कलश का प्रकाशन एक सार्थक प्रयास है। डॉ. ध्रुव कुमार ने लघुकथा कलश के संपादक योगराज प्रभाकर और संपादकीय टीम को बधाई देते हुए कहा कि बिहार में लघुकथा को लेकर गहराई से काम हो रहा है। कुमार अनुपम ने लघुकथा को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विद्या बताया।

कार्यक्रम में डॉ. अनीता राकेश, डॉ. मेहता नागेंद्र, विभा रानी, अनिल रश्मि, प्रभात, सिद्धेश्वर, विदेश्वरी प्रसाद, आलोक चोपड़ा, घनश्याम, पुष्पा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

News Source:
https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/deepa-is-working-on-small-stories-in-bihar-043131-3760435.html


'कलम की कसौटी' लघुकथा प्रतियोगिता

यश पब्लिकेशन्स की फेसबुक वॉल से...
हमें यकीन है कि आप पिछली सूचना के बाद से ही 'कलम की कसौटी' प्रतियोगिता के विस्तृत विवरण की प्रतीक्षा कर रहे होंगे. लीजिये पूरा विवरण हाजिर है. खुद जानिये और अपने लिखने पढ़ने के शौक़ीन दोस्तों तक भी पहुंचाइये.

प्रतियोगिता का नियम/विवरण
1- दिए गए विषय व विधा पर आधारित अपनी रचना निम्न प्रारूप के अनुसार यश पब्लिकेशन को मेंशन करते हुए अपनी वाल पर पोस्ट करें तथा हमारे पेज के इनबॉक्स में भी भेज दें.

प्रारूप उदाहरण 
यश पब्लिकेशन 'कलम की कसौटी' प्रतियोगिता-1
विषय - प्रेम
विधा - लघुकथा
आपकी रचना......

2 - चूंकि, इसबार की विधा लघुकथा है, इसलिए शब्द-सीमा पांच सौ निर्धारित की गयी है. इससे अधिक शब्दों की रचनाओं को प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाएगा.
3 - एक व्यक्ति एक ही रचना भेज सकता है.
4- तीन विजेता चुने जाएंगे. प्रथम विजेता को इस वर्ष यश पब्लिकेशन्स की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक 'लाल अंधेरा' पुरस्कारस्वरूप दी जाएगी. जीत का डिजिटल प्रशस्ति-पत्र सभी विजेताओं को प्रदान किया जाएगा. पेज पर उनका प्रचार भी होगा.
5- प्रतिभागिता करने वाले नए लेखकों को एक अप्रत्यक्ष लाभ यह भी होगा कि जिनकी रचना में दम होगा, वे हमारी नजर में रहेंगे. किताब आदि को लेकर भी उनके लिए संभावनाएं पैदा होंगी.
6- हमारा निर्णायक मंडल आपके सामने है (चित्र में), जिनका निर्णय अंतिम होगा.
7- परिस्थिति अनुसार नियमों में परिवर्तन के लिए यश पब्लिकेशन्स स्वतंत्र होगा, जिसकी सूचना आपको दी जाएगी.
8- फरवरी प्रेम का महीना है, इसलिए हमने प्रतियोगिता का विषय प्रेम रखा है. तो जमाइए कीबोर्ड और प्रेम के सागर को लघुकथा के गागर में भर दीजिये.
एक अंतिम बात और कि हमारी योजना इस प्रतियोगिता को प्रत्येक महीने करने की है, लेकिन ये आपके द्वारा मिले प्रतिसाद पर ही निर्भर करता है. अब आपकी यह प्रतियोगिता आपके हाथ समर्पित. आप जितना उत्साह दिखाएंगे, हम उससे दुगुने उत्साह से इसे आगे बढ़ाएंगे. धन्यवाद.

Source:

सोमवार, 28 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार: 25वीं अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019 (जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित)


जैमिनी अकादमी
द्वारा आयोजित
25 वीं
अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019


प्रथम पुरस्कार : 1100/- रु नगद
द्वितीय पुरस्कार : 551/- रु नगद
तृतीय पुरस्कार : 251 /- रु नगद
तीन सांत्वना पुरस्कार : प्रत्येक को 51/- रु नगद

नियम :-

1.       प्रत्येक लघुकथाकार को अपनी मौलिक कम से कम दो लघुकथा भेजना आवश्यक है ।
2.       प्रतियोगिता में प्रवेश नि:शुल्क है ।
3.       लघुकथा के साथ एक जवाबी लिफाफा डांक टिकट सहित भेजना आवश्यक है ।
4.       अपना पासपोर्ट साईज का फोटों भी भेजें ।
5.       जैमिनी अकादमी का निर्णय अन्तिम व सर्वमान्य होगा ।
6.       उपरोक्त साम्रग्री रजिस्टर डांक या कोरियर से ही भेजें अथवा प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाऐगा।
7.       अन्तिम तिथि : 31 मार्च 2019

रजिस्टर्ड  डाक / कोरियर भेजने का पता

प्रतियोगिता सम्पादक
अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019
हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6
हाऊसिंग बोर्ड कालोनी
पानीपत - 132103
हरियाणा

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

लहराता खिलौना - लघुकथा


देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए कहा,
"हमें पब्लिक के पास बार-बार जाना चाहिये, यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे..."

"ओके डैडी और उसमें झंडे का क्या काम होता है?" बेटे ने बन्दूक तानी हुई ही थी।

नेता ने उत्तर दिया, "जैसे आपने यह गन उठा रखी है, वैसे ही हमें झंडा उठाना पड़ता है।"

"डैडी, मुझे भी झंडा खरीद कर दो... नहीं तो मैं आपको गोली से मार दूंगा" बेटे का स्वर पहले की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण था।

नेता चौंका और बेटे को डाँटते हुए कहा, "ये कौन सिखाता है आपको? बन्दूक अच्छी नहीं लगती मेरे बेटे के हाथ में।"
और उसने वहीँ खड़े ड्राईवर को कुछ लाने का इशारा कर अपने बेटे के हाथ से बन्दूक छीनते हुए आगे कहा,
“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”

कहते हुए नेता बिना पीछे देखे सधे हुए क़दमों से अंदर चला गया।


-  डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी 

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो : डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"


मित्रों, लघुकथा वीडियो में आज देखिये-सुनिए वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा रंग।
आम व्यक्ति को लगता है ख़ास बन जाऊं लेकिन ख़ास बनकर कहीं न कहीं फिर से सामान्य व्यक्ति बनने इच्छा रहती ही है। यह छोटी सी रचना कितने ही लोगों के जीवन से जुडी हुई है।
देखिये किस तरह होली पर किसी ने रंग ना लगाया तो, ख़ास होने के अहंकार से भरपूर एक व्यक्ति अपने पर गर्वित होते समय, अचानक स्वयं को आम दुनिया से अलग-थलग पाता है और फिर......



डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"
courtesy: YouTube