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गुरुवार, 22 नवंबर 2018

लघुकथा समाचार

सामाजिक विसंगतियों को उखाड़ फेंकने का काम करती हैं लघुकथाएं: आचार्य
 दैनिक भास्कर  Nov 22, 2018

आज के आपाधापी के दौर में लघुकथाओं का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि आज के समय में लोगों के पास समय का अभाव है। लघुकथा आज की विधा नहीं है, 1901 में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने "झलमला' नाम से एक लघुकथा लिखी थी। तभी से लघुकथा लिखने का क्रम शुरू हुआ। यह कहना है साहित्यकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य का। वे बुधवार को मानस भवन में आयोजित लघुकथा गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि आज के वातावरण में यह इसलिए ज्यादा लोकप्रिय है, क्योंकि इसमें सामाजिक विसंगतियां, आर्थिक विषमता, राजनैतिक क्षद्म और सामाजिक विरूपताओं को उखाड़कर एक संदेश देने का काम लघुकथा करती है। इस कार्यक्रम का आयोजन लघुकथा शोध केंद्र की ओर से किया गया। इस अवसर पर महिमा वर्मा ने अंतिम अस्त्र, इल्ज़ाम और अखण्ड ज्योति, विनोद कुमार जैन ने गद्दी, जागा हुआ और शैतान, कथाकार वर्षा ढोबले ने टिफिन, मंजिल और जन्मकुंडली जैसे विषयों पर आधारित लघुकथाओं का पाठ किया।


Laghukatha News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/short-stories-acharya-works-to-overthrow-social-anomalies-052111-3250690.html

लघुकथा संग्रह 'चयन' - लेखिका डॉ. मजु लता तिवारी

आज इंटरनेट पर सर्फ करते हुए डॉ. मजु लता तिवारी जी का संस्कृती निलयम, लखनऊ द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'चयन' (संस्करण 2001) प्राप्त हुआ।
संग्रह में कुछ स्थानों पर लघुकथा की बजाय लघु कहानियां, लघु कथा जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। 'कलियुग का कृष्ण', 'पशु','चयन', 'दाग' सहित कई रचनाएँ पठनीय हैं। लेखकीय वक्तव्य में उस समय का लघुकथा परिदृश्य भी बखूबी दर्शाया गया है। वेबसाइट पर कॉपीराइट जानकारी तो प्राप्त नहीं हुई, लेकिन संग्रह की पीडीऍफ़ फाइल निम्न लिंक पर उपलब्ध है:

(उपरोक्त केवल जानकारी हेतु,कॉपीराइट की जिम्मेदारी इस ब्लॉग की नहीं)

सोमवार, 12 नवंबर 2018

लघुकथा समाचार

देखत तौ छोटे लगें घाव करें गंभीर' जैसे दोहे से लघुकथा को आंका
Dainik Bhaskar: Nov 12, 2018, New Delhi 


विश्व मैत्री मंच द्वारा प्रकाशित लघुकथा संकलन 'सीप में समुद्र' किताब का लोकार्पण हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी के निदेशक उमेश कुमार सिंह थे। राष्ट्र भाषा प्रचार प्रसार समिति के संयोजक कैलाश चन्द्र पंत की अध्यक्षता में वरिष्ठ समीक्षक युगेश शर्मा और घनश्याम मैथिल ने पुस्तक पर विमर्श किया। इस अवसर पर संस्था की अध्यक्ष और संग्रह के संपादक संतोष श्रीवास्तव ने संपादन के अनुभव साझा किए।

दूसरे सत्र में हुआ गीत, गजल 

डॉ. उमेश कुमार सिंह ने लघुकथा पर अपना दृष्टिकोण रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कैलाशचंद पंत ने लघुकथा की विसंगतियों और साहित्यिक परिदृश्य में प्राचीन साहित्य और संस्कृति की चर्चा करते हुए सतसैया के दोहरे, अरु नावुक के तीरु, देखत तौ छोटे लगें घाव करें गंभीर जैसे लोकप्रिय दोहे से लघुकथा को आंका। दूसरे सत्र में गीत गजल संध्या का आयोजन हुआ, जिसमें शहर के नामचीन शायरों ने शिरकत की।

News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/quotwatching-tau-tau-chong-chahta-chahra-chakte-sache-srilquot-such-as-judging-the-short-story-043059-3173314.html


रविवार, 11 नवंबर 2018

11 नवंबर 2018 दैनिक भास्कर के 'रसरंग' में एक लघुकथा

दैनिक भास्कर के 'रसरंग' में 11 नवंबर  2018 को मेरी एक लघुकथा का प्रकाशन। सुझावों का हार्दिक स्वागत। 
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 



मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी


बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत रेडियो प्ले बैक इंडिया हमें कई कहानियाँ/लघुकथाएं  सुनवाते रहे हैं । लघुकथा "एक गिलास पानी" भी यहाँ  सुन सकते हैं। स्वर दिया है सुश्री पूजा अनिल ने। इसका कुल प्रसारण समय  3 मिनट 44 सेकण्ड है। यह निम्न लिंक पर उपलब्ध है। क्लिक करें और सुनें।

http://radioplaybackindia.blogspot.com/2018/10/Laghukatha-Chandresh-Kumar-Chhatlani.html

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

अमृतसर रेल दुर्घटना विभीषिका पर 5 लघुकथाएं

(1). मेरा जिस्म

एक बड़ी रेल दुर्घटना में वह भी मारा गया था। पटरियों से उठा कर उसकी लाश को एक चादर में समेट दिया गया। पास ही रखे हाथ-पैरों के जोड़े को भी उसी चादर में डाल दिया गया। दो मिनट बाद लाश बोली, "ये मेरे हाथ-पैर नहीं हैं। पैर किसी और के - हाथ किसी और के हैं।
"तो क्या हुआ, तेरे साथ जल जाएंगे। लाश को क्या फर्क पड़ता है?" एक संवेदनहीन आवाज़ आई।
"वो तो ठीक हैलेकिन ये ज़रूर देख लेना कि मेरे हाथ-पैर किसी ऐसे के पास नहीं चले जाएँ, जिसे मेरी जाति से घिन आये और वे जले बगैर रह जाएँ।"
"मुंह चुप कर वरना..." उसके आगे उस आवाज़ को भी पता नहीं था कि क्या कहना है।


(2). ज़रूरत

उस रेल दुर्घटना में बहुत सारे लोग मर चुके थे, लेकिन उसमें ज़रा सी जान अभी भी बची थी। वह पटरियों पर तड़प रहा था कि एक आदमी दिखा। उसे देखकर वह पूरी ताकत लगा कर चिल्लाया, "बचाओ.... बsचाओ...."
आदमी उसके पास आया और पूछा, "तुम ज़िंदा हो?"
वह गहरी-गहरी साँसे लेने लगा।
"अरे! तो फिर मेरे किस काम के?"
कहकर उस आदमी ने अपने साथ आये कैमरामैन को इशारा किया और उसने कैमरा दूसरी तरफ घुमा दिया।

(3), मौका

एक समाज सेवा संस्था के मुखिया ने अपने मातहत को फ़ोन किया, "अभी तैयार हो जाओ, एक रेल दुर्घटना में बहुत लोग मारे गए हैं। वहां जाना है, एक घंटे में हम निकल जाएंगे।"
"लेकिन वह तो बहुत दूर है।" मातहत को भी दुर्घटना की जानकारी थी।
"फ्लाइट बुक करा दी है, अपना बैनर और विजिटिंग कार्ड्स साथ ले लेना।"
"लेकिन इतनी जल्दी और वो भी सिर्फ हम दोनों!" स्वर में आश्चर्य था।
"उफ्फ! कोई छोटा कांड हुआ है क्या? बैनर से हमें पब्लिसिटी मिलेगी और मेला चल रहा था। हमसे पहले जेवरात वगैरह दूसरे अनधिकृत लोग ले गये तो! समय कहाँ है हमारे पास?"

(4). संवेदनशील

मरने के बाद उसे वहां चार रूहें और मिलीं। उसने पूछा, "क्या तुम भी मेरे साथ रेल दुर्घटना में मारे गए थे?"
चारों ने ना कह दिया।
उसने पूछा "फिर कैसे मरे?"
एक ने कहा, "मैनें भीड़ से इसी दुर्घटना के बारे में पूछा कि ईश्वर के कार्यक्रम में लोग मरे हैं। तुम्हारे ईश्वर ने उन्हें क्यूँ नहीं बचाया, तो भीड़ ने जवाब में मुझे ही मार दिया।"
वह चुप रह गया।
दूसरे ने कहा, "मैंने पूछा रेल तो केंद्र सरकार के अंतर्गत है, उन्होंने कुछ क्यूँ नहीं किया? तो लोगों ने मेरी हत्या कर दी।"
वह आश्चर्यचकित था।
तीसरे ने कहा, "मैनें पूछा था राज्य सरकार तो दूसरे राजनीतिक दल की है, उसने ध्यान क्यूँ नहीं रखा? तब पता नहीं किसने मुझे मार दिया?"
उसने चौथे की तरफ देखा। वह चुपचाप सिर झुकाये खड़ा था।
उसने उसे झिंझोड़ कर लगभग चीखते हुए पूछा, “क्या तुम भी मेरे बारे में सोचे बिना ही मर गए?"
वह बिलखते हुए बोला, "नहीं-नहीं! लेकिन इनके झगड़ों के शोर से मेरा दिल बम सा फट गया।"

(5). और कितने

दुर्घटना के कुछ दिनों बाद देर रात वहां पटरियों पर एक आदमी अकेला बैठा सिसक रहा था।
वहीँ से रात का चौकीदार गुजर रहा था, उसे सिसकते देख चौकीदार ने अपनी साइकिल उसकी तरफ घुमाई और उसके पास जाकर सहानुभूतिपूर्वक पूछा, "क्यूँ भाई! कोई अपना था?"
उसने पहले ना में सिर हिलाया और फिर हाँ में।
चौकीदार ने अचंभित नज़रों से उसे देखा और हैरत भरी आवाज़ में पूछा, " भाई, कहना क्या चाह रहे हो?"
वह सिसकते हुए बोला, "थे तो सब मेरे अपने ही... लेकिन मुझे जलता देखने आते थे। मैं भी हर साल जल कर उन्हें ख़ुशी देता था।"
चौकीदार फिर हैरत में पड़ गया, उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "तुम रावण हो? लेकिन तुम्हारे तो एक ही सिर है!"
"कितने ही पुराने कलियुगी रावण इन मौतों का फायदा उठा रहे हैं और इस काण्ड के बाद कितने ही नए कलियुगी रावण पैदा भी हो गए। मेरे बाकी नौ सिर उनके आसपास कहीं रो रहे होंगे।"


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी