'इरा' में दो लघुकथाएं।एक लघुकथा टीवी चैनल रिपोर्टिंग शैली में है और दूसरी में एक नए मुहावरे की कोशिश है।
आप सभी की राय अपेक्षित है।
1)
ज़रूरी प्रश्न
“दोस्तों टीवी चैनल ‘सबसे पहले’ से, मैं हूँ आपका मित्र रिपोर्टर और मेरे साथ हैं हमारे कैमरामैन. यह देखिए देश के इतने बड़े मंत्री के घर के बाहर कुछ महिलाएं प्रदर्शन कर रही हैं. पुलिस का जाप्ता भी आ गया है लेकिन पुलिस से भी पहले आ चुका है चैनल - ‘सबसे पहले’.”
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“फिर से स्वागत है. अब देखिए प्रदर्शनकारी महिलाओं में से कईयों ने हाथ में तख्ती पकड़ी हुई हैं, इन पर लिखा है ‘सेव लाइव्स‘, ‘नो रेप - नो मर्डर‘, ‘स्टॉप वोईलेंस‘...
आइये इनसे कुछ प्रश्न करते हैं.
आप सब यहाँ प्रदर्शन क्यों कर रही हैं?"
“हमारे शहर में रोज़ महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है. हर रोज़ कोई न कोई बलात्कार होता है, सप्ताह में एक या दो हत्याएं भी हो रही हैं. हमारी जिंदगी की सुरक्षा के लिए हम लड़ रही हैं.”
“अच्छा! लेकिन यहीं पर क्यों?”
“पिछले चुनाव से पहले मंत्री जी आकर कह गए थे कि एक महीने में वे सब ठीक कर देंगे, लेकिन जीतने के बाद दो साल हो गए हैं... अभी भी... हर रोज़ हम मर रही हैं... प्लीज़-प्लीज़ सेव अवर लाइव्ज़...”
“धन्यवाद, आपके उत्तर के लिए. अब यह बताइये कि, यह मंत्री जी का घर है... यहाँ प्रदर्शन से पहले आपने अनुमति ली थी?”
“जी!... जी क्या?”
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2)
जलेबियाँ गिरेंगी तो कुत्ते लड़ेंगे ही
रोज़ की तरह ही वह बूढ़ा आदमी आज भी कुत्तों के लिए जलेबियाँ लाया. कुत्ते उसके पीछे-पीछे चलने लगे. रोज़ तो वह एक कोने में जाकर हर एक कुत्ते को दो-दो जलेबियाँ बांट देता था, आज एक कुत्ता थोड़ा तेज़ भौंका तो वह घबरा गया और जलेबियों का पैकेट उसके हाथ से छूट कर बीच सड़क में ही गिर गया.
पैकेट के गिरते ही सारे के सारे कुत्ते उस पैकेट पर झपट पड़े और जलेबियों के लिए एक-दूसरे पर भौंकने और लड़ने लगे. उस लड़ाई में किसी को जलेबी मिली तो किसी को नहीं. उस बूढ़े आदमी ने देखा जो ताकतवर कुत्ते थे वे सारी जलेबियाँ चट कर गए और कमज़ोर कुत्ते गुर्राते ही रह गए.
वह कुछ देर उन्हें देख कर सोचता रहा, फिर उसने अपना सेलफोन निकाला और सड़क के एक कोने पर जाकर एक नम्बर मिला कर बोला, "एडवोकेट जी, आज मिल सकते हैं क्या? मुझे वसीयत करवा कर मेरे बाद अपने बच्चों में सब कुछ बराबर-बराबर बांटना है."
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- चंद्रेश कुमार छतलानी
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