कालखंड पर काम करते समय लघुकथा की एक शैली पर भी काम किया था, इस लघुकथा पर मैं समझ सकता हूँ कि काफी काम बचा हुआ है, यह सिर्फ शैली का अभ्यास सा है.
यह शैली घड़ी के घंटों पर आधारित है. हर एक घंटे में जो परिवर्तन आए वे लिखे और घड़ी के घंटों के बदलने को एक घटना जैसा दर्शाने की कोशिश की है.
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बारह घंटे में भगवान् / चंद्रेश कुमार छतलानी
12:00 बजे : वक्त का पाबन्द वह, ठीक वक्त पर नहा-धो कर नशा करने के लिए, क्लॉक टावर के नीचे बैठ कर कपडे में भिगोया हुआ केरोसिन सूंघना शुरू हो गया.
13:00 बजे : उसका एक दोस्त आया. अब तक वह नशे में धुत हो चुका है. दोस्त भी उसके साथ केरोसीन सूंघने लगा.
14:00 बजे : दोस्त ने उससे कहा, कोई भी केरोसीन को केवल सूंघ सकता है, पी नहीं सकता. उसे किक सी लगी और उसने कहा कि वह केरोसीन पी भी सकता है. इस बात पर दोनों की पचास हजार रुपये की शर्त लग गई.
15:00 बजे : नशे की हालत में वह काफी सारा केरोसीन पी गया था, केरोसीन उसके कपड़ों पर भी गिरा हुआ दिखाई दे रहा है.
16:00 बजे : शर्त हारते ही उसका दोस्त बेचैन हो गया था और रुपयों का इंतज़ाम करने को सोचते हुए तब से लेकर अब तक वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा है.
17:00 बजे : उधर ज्यादा केरोसीन पीने के कारण उसके शरीर ने जवाब दे दिया और वह मर गया. आसपास कुछ लोग इकट्ठे हो गए. यह देख कर सिगरेट फूंक रहा दोस्त घबरा कर जलती हुई सिगरेट वहीं फैंक कर भागा. सिगरेट उसके मृत शरीर पर पीछे की तरफ जा गिरी है.
जलती सिगरेट से कुछ ही देर में उसके शरीर में आग लग गई. बाहर व अंदर केरोसीन होने के कारण वह अपने-आप जलने लगा,
18:00 बजे : धीरे-धीरे आग उसके पूरे शरीर में फ़ैल चुकी है. वहाँ इकट्ठे लोग यह समझ रहे हैं कि वह अपने-आप जल रहा है. वे उसका विडियो भी बना रहे हैं.
19:00 बजे : वह जल कर राख हो गया है.
20:00 बजे : सोशल मीडिया के जरिए यह बात पूरे देश में वायरल हो गई है.
21:00 बजे : वहाँ शहर के अलग-अलग धर्मों के कुछ धर्मगुरु भी आ गए हैं और आपस में चर्चा कर रहे हैं.
22:00 बजे : धर्मगुरुओं की आपसी बातचीत खत्म हो गई.
23:00 बजे : वहां कुछ पत्रकार बुलाए गए, जो आ चुके हैं और धर्मगुरुओं के मठों व आश्रमों के लोग भी आ गए. कई लोगों की भीड़ भी जमा हो गई है.
00:00 बजे : उसकी राख पर रखा बड़ा दान पात्र उसकी समाधी जैसा दिखाई दे रहा है. दान पात्र पर सभी धर्मों के चिन्ह बने हुए हैं.
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धन्यवाद।
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
बहुत सुंदर प्रयास एवं प्रयोग । प्रभावशाली लघुकथा बहुत सारी वीसंगतियों को साथ लेकर चल रही है। अंत भी सुंदर हुआ है। बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंवाह... !! यह एक अभिनव प्रयोग है प्रशंसनीय 👌
जवाब देंहटाएंघड़ी के घंटों पर आधारित शैली पर बहुत सुन्दर प्रयोग / काम । इस पर अभ्यास किया जाए तो कालखंड दोष से मुक्त अच्छी कथाएँ लिखी जा सकेंगी । नूतन प्रयोग - स्वागत योग्य।
जवाब देंहटाएंनवीन प्रयोग कालदोष से भी मुक्ति रचना भी बेहतरीन ऐसे प्रयोग करते रहें ताकि एक ही तरह की रचनाएं पढ़कर पाठक बोर न हों। हार्दिक बधाई चंद्रेश जी
जवाब देंहटाएंअभिनव प्रयोग। अनुकरणीय।
जवाब देंहटाएंआदाब। यूँ तो तिथियों के बदलते हुए या अन्य तरह से समय दर्शाते हुए लघुकथायें लिखी गई हैं। लेकिन इस नवप्रयोग में जिस तरह से बारह घंटों, बिना नाम के दोस्त पात्रों, केरोसिन, सिगरेट और शर्त के माध्यम से प्रवाहपूर्ण रचना में पाठक को बाँधकर उसकी जिज्ञासा बढ़ाते हुए कथ्य सम्प्रेषण किया गया है, वह ज़बरदस्त है। कालखण्ड से बजाव युक्ति तो है ही। लेकिन हर वर्ग का पाठक शैली में कितनी रुचि लेगा, यह विचारणीय है। मुझे यह शैली आकर्षित नहीं कर पाती। लेकिन विविधता हेतु और कुछ विशेष कथानकों हेतु यह अवश्य कारगर साबित होगी।सादर
जवाब देंहटाएंकृपया 'बजाव' की जगह 'बचाव' पढ़िएगा
हटाएंप्रयोग प्रशंसनीय है ,पर शैलियों के चक्कर में लघुकथा का रस समाप्त हो जाता है ,याने लघुकथा का मूल उद्देश्य
जवाब देंहटाएंलघुकथा में नवीन, अभिनव प्रयोग स्वागत योग्य है,, परिवर्तन दिशाएं दिग्दर्शित करता है,,, बस यह ध्यान में रहना चाहिए कि लघुकथा का सरस सुदृढ़, सरल आकार न बदले,, स्वागत
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयोग
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