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रविवार, 10 अक्टूबर 2021

कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता परिणाम । फेसबुक समूह साहित्य संवेद

श्री मृणाल आशुतोष की फेसबुक वॉल से

 नमस्कार साथियो!

कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता परिणाम के साथ आप सबके समक्ष उपस्थित हूँ।

सर्वप्रथम परिणाम हुए अतिशय विलम्ब के लिये क्षमायाचित हूँ। दूबे सर आज होते तो मेरी डाँट लगाते हुए कहते कि 'सब काम मे तोरा लेटे भ जाय छ(सब काम में आपको देर ही हो जाती है।)। कारण जो भी रहे हों, जिम्मेदारी केवल और केवल मेरी है। प्रतियोगिता में सहभागी आप सभी लघुकथाकारों एवं मुख्य निर्णायक लघुकथा मर्मज्ञ श्री भगीरथ का हम आयोजन समिति के सदस्य हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। निर्णय में आयोजन समिति के सदस्यों(कुमार गौरव, दिव्या राकेश शर्मा, पूजा अग्निहोत्री और मृणाल आशुतोष।) ने भी अपना अंशदान दिया है।

जिन लघुकथाकारों की रचना विजेता हुई हैं, उन्हें हार्दिक बधाई। आपकी लेखनी यूँ ही निरन्तर बेहतर करती रहे।

जिन लघुकथाकारों की रचना प्रथम दस में स्थान नहीं बना सकीं, वह भी अच्छी थीं। आप सभी और बेहतर करने का प्रयास करें। हार्दिक शुभकामनाएं।

विजेता इस प्रकार हैं:

प्रथम पुरस्कार:छटपटाहट-संगीता चौरसिया [1100₹+कुसुमाकर दुबे रचित 'मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य से तत्व तक'(सम्पादक:शोभना श्याम एवं मृणाल आशुतोष)+ कमल कपूर रचित लघुकथा संग्रह 'आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'अस्मि']

द्वितीय पुरस्कार-कायजा -उपमा शर्मा[500₹+'मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य_से_तत्व_तक+कमल कपूर रचित 'आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'आखिरी साँस तक']

तृतीय पुरस्कार:'कान्हा एक यशोदा अनेक' -प्रतिभा द्विवेदी['मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य_से_तत्व_तक+आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'आखिरी साँस तक']

प्रोत्साहन पुरस्कार(आप सभी को मृगतृष्णा' प्रदान की जाएगी।)

'मूक हुई वाचाल'-लक्ष्मी मित्तल

'मैं हूं ना'-तेजवीर सिंह

'मुहब्बत कभी नहीं मरती' -पदम गोधा

 'पुश्तैनी पेशा'-निर्मल कुमार दे 

'पीर' -अंजू खरबंदा

'अक्स' - कनक हरलालका

'अंधेर नगरी'- मनन सिंह।

एक बार पुनः आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

निर्णायक श्री परिहार ने विजेता रचनाओं(प्रथम सात) पर टिप्पणी भी दी है जिससे हम सभी सीख सकते हैं।

अंतिम तीन रचनाओं पर हमने भी टिप्पणी देने का प्रयास किया है।

◆1 छटपटाहट- संगीता चौरसिया कोरोना पीरियड के दर्द को बयां करती अनुभवजन्य भावनात्मक कथा जो पाठक को विचलित करने की सामर्थ्य रखती है. सुमन का कोरोना पीड़ित पति गोविन्द अस्पताल में वेंटीलेटर पर था  वह पति से मिलना चाहती थी  लेकिन अस्पताल और घरवालों ने मना कर दिया. दर्द,भय और अकेलेपन ने  गोविन्द को तोड़ दिया. सुमन को मिलाने गाड़ी अस्पताल न जाकर सीधे श्मशान ले गई.  

◆2 कायजा –उपमा शर्मा   सरकार विकास देती है और लोग रोटी मांग रहे है इस अंतर्द्वंद्व को दर्शाया गया है. स्थितियों का विरोधाभास ही व्यंग्य करता है. कथा का आरम्भ उत्कर्ष और अंत अच्छा बन पड़ा है. वार्तालाप कथा को आगे बढ़ाते-बढ़ाते अंत तक ले जाते हैं संवाद शैली की कथा के अंत के संवाद व्यंग्य को उभारने में सक्षम है. 

◆3.कान्हा एक यशोदा अनेक -प्रतिभा द्विवेदी. नया विषय कथा का आरम्भ और उत्कर्ष अंत अच्छा है. सिस्टर के रोकते रोकते दादाजी प्रसूति कक्ष में चले गए और अपने पोते के लिए आधे चम्मच दूध की भीख मांगने लगे. पहले गाँव की चंदो ने फिर बहुत सी नव प्रसूता ने दूध देने की हामी भरी.   

◆मूक हुई वाचाल- लक्ष्मी मित्तल  सामान्य विषय [बस में पुरुष का स्त्री से चिपकना] का ट्रीटमेंट अच्छा है. दृश्यात्मक विश्लेष्णात्मक विवरण ध्यान खींचता है और कथा का अंत भी सटीक है स्त्री प्रतिकार कर उसे सबक सिखा देती है. 

◆मैं हूँ ना- – तेजवीर सिंह    

  दादा पोते के संवाद से बुनी प्रेरणादायक कथा. पोते के पिता की कोरोना से मृत्यु जैसी विषम और चुनौती पूर्ण परिस्थितियां एक दस वर्ष के बालक को भी स्ट्रोंग बना देती है. पोता दादा को हिम्मत देता है ‘आप दुकान खोलो मैं आपके साथ हूँ आपके मार्गदर्शन में मैं सब कर लूँगा.’ 

◆मुहब्बत कभी नहीं मरती- पदम गोधा. 

इंसानियत और मुहब्बत का जज्बा दंगों के बाद भी बना रहता है तभी तो थोड़े दिनों बाद जीवन सामान्य होने लगता है. जीवन मूल्यों को रेखांकित करतीलघुकथा. कुछ पञ्च वाक्य भी ध्यान देने योग्य है.   नाम लेते ही व्यक्ति जाति धर्म में बदल जाता है फिर वह इन्सान नहीं रहता.  ‘साहब इंसानियत को कौन मार सका है  इसी दंगाग्रस्त बस्ती में फिर से मंदिर में घंटे बजेगे और  मस्जिद में अजान ! गुरुद्वारे में गुरुवाणी सुनाई देगी ! नफ़रत ही हारती है साहब मुहब्बत कभी भी नहीं मरती !"  


◆पुश्तैनी पेशा- निर्मल कुमार दे  एक तार्किक कथा जो जातिवादी व्यक्ति की मानसिकता को उजागर करती है. जाति न बताने पर पुश्तैनी धंधा पूछता है लेकिन उसके जबाब भी इतने सटीक की वह आखिर चुप हो जाता है. लेकिन जाति का कीड़ा उसके मस्तिष्क में फिर भी कुलबलाता है।

◆पीर: कथ्य का चयन शानदार है। पहाड़ पर हम सभी आनंद उठाने जाते हैं पर पहाड़ के दर्द को नहीं महसूस कर पाते। हमारी मस्ती उसके दुख का कारण बन रही है। लापरवाही मस्ती से अधिक उपयुक्त होगा।

अब हम हमारे आने से खुश नहीं होते।प्रकृति के प्रति सजगता को आकृष्ट करती अच्छी रचना है।

◆अक्स: कथ्य का चयन अच्छा है। शिल्प भी प्रभावित करती है। अंतिम पंक्ति काफी कुछ कह कर रही है।

◆अंधेर नगरी-शीर्षक शानदार है और उसी अनुरूप कथा  का निर्वहन भी हुआ है। वर्तमान स्थिति पर करारा कटाक्ष करने में लेखक ने सफलता प्राप्त की है।

आप सभी विजेताओं से निवेदन है कि अपना पूरा पता पिन कोड के साथ और मोबाईल नम्बर मुझे मैसेंजर पर भेज दें।

संगीता चौरसिया जी और उपमा शर्मा जी

अपना बैंक डिटेल भी मुझे भेजें ताकि पुरस्कृत राशि भेजी जा सके।

■■प्रतियोगिता के अंतराल में ही कमल कपूर जी का कॉल आया कि मृणाल ' कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता' जो आप सब कर रहे हो, उसके लिए मेरी पुस्तक भी आप रख सकते हैं। स्तरीय पुस्तक हों तो भला कौन आयोजक मना करेगा। हमने अपने साथियों से विचार कर इसे पुरस्कार में शामिल कर लिया। इससे पुरस्कार की महत्ता और बढ़ गयी। आप का हार्दिक आभार।

सधन्यवाद,

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