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सोमवार, 30 सितंबर 2019

लघुकथा दुनिया ब्लॉग हेतु प्राप्त "ब्लॉगर ऑफ़ द ईयर 2019" का सम्मान मिलने पर मेरा साक्षात्कार


डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी 2015 से ब्लॉगिंग कर रहे है। पाठकों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर आपको विजेता घोषित किया गया था। पिछले दिनों डॉ. छतलानी जी से साक्षात्कार किया गया था। पेश है साक्षात्कार के प्रमुख अंश-
iBlogger : Blogger of the year 2019 का विजेता का ताज आपको मिला है, जब आपको यह जानकारी मिली तो कैसा लगा?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : ब्लॉगर ऑफ द ईयर 2019 मेरे लिए केवल एक पुरस्कार ही नहीं है वरन सूचना मिलते ही मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि एक स्वप्न साकार सा हुआ। चूँकि यहाँ केवल मैं ही पुरस्कृत नहीं हुआ बल्कि मेरे ब्लॉग को और ब्लॉग से भी बढ़कर उसमें निहित सामग्री उसके विषय ‘लघुकथा’ को यह सम्मान मिला है, इसलिए कुछ संतुष्टि सी भी प्रतीत हुई।
iBlogger : Blogger of the year अवार्ड के लिए सबसे पहले किसे शुक्रिया कहना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : सबसे पहले ‘लघुकथा’ विधा को ही धन्यवाद कहूंगा, तत्पश्चात लाइक और कमेंट करने वाले पाठक मित्रों, निर्णायक गणों और iBlogger की पूरी टीम का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहूंगा।
iBlogger : क्या आपने नामांकन से पूर्व Blogger of the year 2019 का Winner बनने की कल्पना की थी।
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : जी। नामांकन भरते समय यह कल्पना मस्तिष्क में थी, हालाँकि पहली बार ही भाग लिया था, इसलिए सफल हो भी पाऊँगा, यह संदेह भी कहीं न कहीं था।
iBlogger : आपकी नज़र में सफल ब्लॉगर की क्या खूबियां होनी चाहिए। क्या आप स्वयं को भी सफल ब्लॉगर मानते हैं?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : हालाँकि इसमें विभिन्न मत हो सकते हैं, लेकिन इस पर एक मत होना चाहिए कि किसी भी ब्लॉगर को सर्वप्रथम स्वयं के कार्य से संतुष्टि हो। ब्लॉगर की पहली सफलता, मेरे अनुसार उनके द्वारा लिखे गए ब्लॉग की विषय-वस्तु को सही व्यक्तियों तक पहुंचा पाने में है। ब्लॉग लिखने के पश्चात् उसके कंटेंट्स ब्लॉगर के नहीं बल्कि सामान्य जन के स्वामित्व में हो जाते हैं। तब सही व्यक्तियों तक पहुँचने पर ही न सिर्फ ब्लॉग का बल्कि ब्लॉगर की आत्मा (विचारों) का भी मूल्यांकन होता है और उन विचारों की तीक्ष्णता और मस्तिष्क भेदन क्षमता का भी अनुभव हो पाता है। ब्लॉग के वो कंटेंट्स जो उचित व्यक्तियों के मस्तिष्क में स्थायी निवास करने में सक्षम हैं, निःसंदेह ही पूरी तरह सफल भी हैं।
iBlogger :आपके शुभचिन्तकों और पाठकों नेआपका लघुकथा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान बताया है, आप कितने सहमत है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : इन दिनों लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है। अन्य सभी के साथ मैं भी प्रयास कर रहा हूँ। यह प्रयास किसी को ठीक लगा तो उनकी भावना मेरे सिर-आँखों पर है। हालाँकि, मेरे अनुसार अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
iBlogger : लघुकथा के अलावा आप किन विद्याओं में ज्यादा लिखते है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मैंने कविताओं, कहानियां, हाइकु, पत्र आदि पर भी हाथ आजमाएं हैं। हालाँकि सबसे प्रिय विधा लघुकथा ही है।
iBlogger : आप ब्लॉगिंग के क्षेत्र मे कैसे आये?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : होश संभालने के साथ ही पढ़ने का शौक रहा था, तब किताबें पढ़ता था। कम्प्यूटर में रुचि होने के कारण मैंने कम्प्यूटर सम्बंधित कार्यों को प्रारम्भ किया। उन्हीं दिनों ब्लॉग के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। तब से लेकर आज तक ब्लॉग्स का मैं नियमित पाठक हूँ। विभिन्न प्रकार के विषयों में रुचि होने के कारण मुझे अपनी पसंद की हर पुस्तक प्राप्त होना मुश्किल था। ब्लॉग ने मेरे पढ़ने के शौक में बहुत सहायता की। मेरी ब्लॉगिंग की यात्रा ब्लॉग्स पढ़ने से प्रारम्भ हुई।
पढ़ने के साथ-साथ लिखने में भी मेरी रुचि बचपन ही से थी, लेकिन इस रुचि को अपनी शैक्षणिक/ सह-शैक्षणिक गतिविधियों, खेलों और तत्पश्चात नौकरी आदि कार्यों में व्यस्तता के कारण उचित मूर्त रूप नहीं दे पाया। हालांकि फिर समय के साथ पुरानी रुचि पुनः जागृत हुई। लघुकथा विधा का अध्ययन करते हुए मुझे यह प्रतीत हुआ कि इस विधा के लेखकों की कमी नहीं, लेकिन जितने लेखक हैं उतने भी पाठक नहीं, जबकि इस विधा के जरिये अपने विचारों को सीधे पाठकों के मस्तिष्क पर चोट करते हुए दिल में प्रवेश करवाया जा सकता है। साहित्य की इस विधा को इसके उचित पाठको तक पहुंचाने हेतु एक ब्लॉग बनाने का विचार आया और उसे तुरंत ही मूर्त रूप दे दिया। यह ब्लॉग लघुकथा से समाज को जोड़ने हेतु एक प्रयास है।
iBlogger :अब तक के ब्लॉगिंग सफर में किसी परेशानी का सामना करना पड़ा? यदि हां तो वह क्या रही?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मेरे कार्यालयिक कार्यों के कारण ब्लॉग लेखन में कभी-कभी समयाभाव ज़रूर अवरोध की तरह खड़ा हो जाता है। हालाँकि तब गुरुजनों के समर्पण का स्मरण कर स्वयं को प्रोत्साहित कर ब्लॉग के लिए समय निकाल लेता हूँ।
iBlogger : आपकी अब तक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। क्या उनके बारे में कुछ बतायेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : अभी तक मेरी कम्प्यूटर विज्ञान की तीन पुस्तकें (मोनोग्राफ) प्रकाशित हुई हैं। इनके अतिरिक्त कुछ साँझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।
iBlogger : आप वर्तमान में ब्लॉगिंग के अलावा क्या कर रहे है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मैं एक विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर विज्ञान का शिक्षक हूँ। सॉफ्टवेयर और वेबसाइट निर्माण का कार्य भी करता हूँ, शोध में भी रूचि है। इनके अतिरिक्त कम्पयूटर नेटवर्क, कम्पयूटर सिक्योरिटी, सूचना तकनीक, शोध परियोजना प्रस्ताव बनाने, शोध परियोजना के कार्यान्वयन, सेमिनार/संगोष्ठी आदि के समन्वयन एवं विभिन्न सरकारी परिषदों, समितियों से संबन्धित कार्यों की साथ-साथ कुछ शोध पत्रिकाओं में संपादक के दायित्व का निर्वहन कर रहा हूँ।
iBlogger : क्या आपकी ब्लॉगिंग या लेखन को लेकर भविष्य की कोई योजना है?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : लघुकथा के रचनाकारों के अनुसार लघुकथा 2020 की विधा है, इस सोच के पश्चात भी लघुकथा को साहित्य में उच्च दर्जे पर लाना आवश्यक है। इस ब्लॉग के एक भाग को मैं इतना उन्नत करना चाहता हूँ कि कोई भी शोधार्थी इस ब्लॉग पर आकर लघुकथा संबन्धित बेहतरीन सामग्री पा सके। इसके लिए न केवल शोध पत्र बल्कि शोध ग्रंथ, लेख और शोध आधारित चर्चाओं पर भी काम करना चाहता हूँ। लघुकथा में अभी बहुत अधिक शोध नहीं हुआ है, और नए-नए प्रयोगों की आवश्यकता है। पाठक और लघुकथा से इतर रचनाकार भी किस तरह अधिक से अधिक लघुकथा का पठन कर इसे सम्मान के साथ देखते हुए प्रतिष्ठित मंचों पर शोभायमान करें इस पर भी विचार करते हुए कार्य करना है।
iBlogger : नये ब्लॉगरों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : कभी भी निरुत्साहित न हों। कई व्यक्ति हतोत्साहित भी करेंगे, आपके उत्कृष्ट कार्य को नज़रअंदाज़ भी करेंगे, लेकिन जो कुछ भी आप कर रहे हैं, उसे पूरे मन से अपनी संतुष्टि के स्तर तक और बेहतरीन तरीके से करें। यकीन मानिये आप सफल हैं।
एक और बात कहना चाहूंगा कि अपने कार्य का उद्देश्य और किस तरह उसे मूर्त रूप देना है, इसकी एक रूपरेखा ज़रूर तैयार करें। इस रूपरेखा को तैयार करने में पूरा समय दें। तत्पश्चात उसी का अनुसरण करें।
iBlogger :iBlogger और अपने ब्लॉग के सम्मानितपाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : मेरे लिखे ब्लॉग मेरे विचार हैं, जिन व्यक्तियों के कार्यों को मैंने उद्धृत किया है उनके विचार हैं, लेकिन जो पाठक हैं वे ही ब्लॉग के प्राण हैं। अपनी इस आत्मा तक पहुँचने के लिए मैं स्वाध्याय का प्रयास कर रहा हूँ, मेरी तरह सभी ब्लॉगर करते हैं। पाठकों से निवेदन है कि इस स्वाध्याय में कुछ कमी रह जाए तो किसी भी प्रकार से उसका उल्लेख ज़रूर करें, ताकि वांछित सुधार की तरफ अग्रसर हुआ जा सके।
iBlogger : हमारे लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : iBlogger के प्रयास अद्वितीय और अनुकरणीय हैं। इन प्रयासों से मुझे भी काफी कुछ नया सीखने को मिला है। इसके जरिये यदि ब्लॉगर्स के लिए ब्लॉग लेखन और पठन सम्बंधित टिप्स भी नियमित रूप से मिलती रहे तो भारतीय ब्लॉग भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
iBlogger : अगले वर्ष के लिए होने वाले Blogger of the year 2020 के लिए कोई सुझाव देना चाहेंगे?
डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी : Blogger of the year 2020 के नामांकन प्राप्त करते समय, ब्लॉगर के बारे में जानकारी के साथ यदि ब्लॉग का उद्देश्य, ब्लॉग द्वारा व्यक्ति-समाज को कैसे लाभ प्राप्त हो रहा है इसकी जानकारी भी ली जाए तो मेरे अनुसार बेहतर होना चाहिए।


डॉ. छतलानी जी आपकी सलाह पर जरूर विचार किया जायेगा। आपने iBlogger को अपना कीमती समय दिया, इसके लिए हम आपके तहेदिल से आभारी है।

रविवार, 29 सितंबर 2019

शेख़ शहज़ाद उस्मानी की चंद्रमा और चंद्रयान-2 पर आधारित चार लघुकथाएं

ह़मले और जुमले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चन्द्रमा के एक विशेष क्षेत्र में आकस्मिक सभा जैसा कुछ गोपनीय आयोजन हो रहा था। चंद्रवासियों की किसी सांकेतिक भाषा में लूनर स्ट्राइक या स्ट्रेटजीज़ जैसा विमर्श चल रहा था।

"हम उनको क़ामयाब नहीं होने देंगे! जिनको हमारी बदौलत मुहब्बत के अलंकार मिले, ले-देकर जिनकी रातें हमारे चाँद ने  रौशन कीं चांदनी से, वे ही हमारी ज़मीन पर ही सेंधमारी कर रहे हैं !" चंद्रवासी एलियन नंबर एक ने सभा में अपनी बात रखी।

"वे अब हम में मुहब्बत नहीं, नफ़रत भर रहे हैं.. नफ़रत! क्यों भाई गृहप्रवेश दक्षिण दिशा से करना चाहिए या किसी और से? .. क्या कहता है पृथ्वीवासियों का वास्तुशास्त्र? ... ख़ुद तो अपने धर्मों, धर्मग्रंथों और संस्कृति-संस्कारों को भूलकर अपनी तथाकथित विज्ञान से भरे हुए हैं और अब हम पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं!" दूसरे एलियन ने अपना व्यंग्यपूर्ण रोष ज़ाहिर किया।

तभी वरिष्ठ एलियन ने वहाँ की सतह पर ऊपर-नीचे झूलते हुए कहा, "हमारी आध्यात्मिक ताक़त के आगे उनकी वैज्ञानिक ताक़त नहीं चलेगी भाई!  हमने उन मानवों की तरह न तो सर्वशक्तिमान ईश्वर की कोई अवज्ञा की है और न ही उसका उपहास कर उसे कोई चुनौती दी है!"

"इसी वज़ह से तो जन्नत सा सुख भोग रहे हैं! उस पालनहार माफ़िक़ हम भी अदृश्य हैं! न भूख-प्यास की झंझट और न तथाकथित ऑक्सीजन और जल की!" तीसरे एलियन ने चंद्रमा के बदलते गुरुत्व में हल्के-हल्के गोतों का लुत्फ़ उठाते हुए कहा।

"अहंकारी पृथ्वीवासियों के ढेरों यंत्र हमारे संरक्षक ज़ोन में चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं! प्यार-मुहब्बत, दया-करुणा और स्वच्छता की बातें करने वाले हमारे यहां घृणा तुल्य प्रदूषण फैला रहे हैं। उनकी हमारी ज़मीन पर नीयत ख़राब है!" एक और एलियन बोला।

"ये लोग अपनी मेहनत, खोज और आविष्कारों की दलीलें देकर हमारी ज़मीन पर अतिक्रमण करेंगे और फ़िर मालिकाना हक़ के मसलों पर यहाँ भी आपस में लड़ेंगे!"

"सही कहते हो भाई! पता नहीं क्या होगा? अपना हाल पृथ्वी के जम्मू-कश्मीर जैसा होगा, सीरिया-फिलिस्तीन-इज़राइल जैसा या हिरोशिमा-नागासाकी जैसा!" दो एलियन विमर्श में एक-दूसरे से मुख़ातिब हुए।

 वरिष्ठ एलियन ने कहा,  "वे कितनी भी कोशिशें कर लें हमारा पालनहार  हमारे साथ है, ब्रह्मांड के साथी ग्रह-उपग्रह और सौर-मण्डल सब हमारे साथ हैं! बस, सब्र से सब देखते जाओ! उनकी तथाकथित लाँचिंग-वाँचिंग, नेविगेशन और यान-वान सब धरे के धरे रह जायेंगे!"

" ... तो सर, आपका संकेत धरती पर भेजे जाने वाले एस्ट्रोयेड-स्ट्राइक मिशन की ओर है! .. कब तक बचेंगे पृथ्वी वाले। उनको नहीं मालूम कि उनसे भी  बुद्धिमान व शक्तिशाली और भी हैं ब्रह्मांड में! पृथ्वी के साथ मानवों का भी  वजूद जल्द ही समाप्त होगा!" एक अन्य वरिष्ठ एलियन ने भरोसा दिलाया।

" ... लेकिन सर... मैं कुछ और ही चाह रहा हूँ!" एक युवा एलियन उन सब के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ बोला, "पृथ्वीवासियों ने हमारे चंद्रमा को बहुत मान दिया है उनके धर्मों और साहित्य-विधाओं में! हमें भी उनकी मुसीबतों को समझ कर उनकी जिज्ञासाओं का आदर करना चाहिए। नफ़रत से काम नहीं चलेगा! .. आने दीजिए उनको हमारी ज़मीन पर! उनकी मंगलकामनाएं पूरी होने दीजिए। यहाँ से मंगल तक जाने दीजिए।"


"सही बात है! यही वक़्त का तक़ाज़ा भी है कि जितने भी सौर-मण्डल, ग्रह-उपग्रह हैं उन सबके रहवासियों के बीच सामंजस्य, प्रेम, दया-करुणा व गुरुत्व आदि ईश्वर की मर्ज़ी मुताबिक़ बना रहे, तो ही बेहतर होगा!" उसके दूसरे युवा साथी ने कहा।

'तथास्तु! ..आमीन!" कुछ ऐसा उन्होंने आपस में सांकेतिक भाषा में कहा और सभा विसर्जित हो गई।

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मेरा सूर्ययान/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मम्मी-पापा, दादा-दादी और नाना-नानी सब मुझे अपना चाँद कहते हैं!... और स्कूल में टीचर कहतीं हैं कि एक दिन सूरज की तरह चमकोगे!" नूर का बाल-मन स्वयं के द्वारा दीवार पर चॉक से बनाये गए अपने सूरज की ओर देखकर सोच रहा था। सूरज के गोले के चारों ओर आठ किरणें खींच कर वह रुक गया और  चाँद  और चंद्रयान-2 के समाचारों पर मम्मी-पापा और टीचर जी  से सुनी हुई  बातें सोचने लगा।

"विज्ञान वाली मैडम कह रहीं थीं कि चन्द्रमा पर पानी और जीवन की तलाश की जा रही है! ... सूरज की रौशनी से ही चाँद रात को चमकता दिखता है!" वह फ़िर जानकारियों के जाल में उलझ गया, "चंद्रमा पर गड्ढे हैं! फ़िर मुझे चन्दा क्यों कहते हैं सब के सब? ... मेरा सूरज कौन है? ... लोग सूर्ययान क्यों नहीं भेजते आसमान में?"

उसने चॉक उठाई और स्टूल पर चढ़कर सूर्य के निचले हिस्से में हवाई जहाज़ का आकार बनाने लगा और फ़िर मम्मी को बुलाकर उनसे बोला, "ये है मेरा सूर्ययान! सूरज से सारी रौशनी हमें भेजेगा! ... अंधेरा कभी नहीं रहेगा! ... मैं सूरज सा चमक जाऊंगा न!"

माँ अपने नन्हें जिज्ञासु बेटे के सवालिया व जोशीले चेहरे को देखकर बोली, "हाँ बेटू! तुम अच्छे इंसान बनोगे; अच्छी पढ़ाई-लिखाई करोगे, तो ख़ुदा तुम पर नूर ही नूर बरसायेगा न! सूर्ययान मतलब ज्ञान-विज्ञान!"
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लघुकथा-युग्म ( दो दृश्य : दो लघुकथाएं) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी
पहला दृश्य  : संज्ञान

वह नन्हा बच्चा चॉक से दीवार पर सूरज का रेखाचित्र बना कर स्टूल पर बैठा उसे निहार कर सोच रहा था, "मैं नहीं बदलवाऊंगा अपना नाम। 'सूरज' ही बढ़िया है। सबको रौशनी देता है; टीचर बता रही थीं कि चाँद को भी!"

फ़िर उसने दूसरी तरफ़ चंदा मामा बनाने की सोची; लेकिन अख़बार में छपी चंद्रयान की तस्वीर याद आ गई। ठीक तभी उसे मम्मी-पापा की बातें याद आ गईं।

"नहीं! मैं अपना नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' नहीं रखवाऊंगा। वे तो मशीनों के नाम हैं! 'सूरज' ही बढ़िया है! नहीं बदलवाऊंगा! टीचर अपनी फ़्रैंड को बता रहीं थीं कि ये दोनों भटक गये या अटक गए कहीं!"

फ़िर उसने स्टूल पर खड़े होकर सूरज के बगल में भारत का नक्शा बनाने की कोशिश की; जैसा भी बन पाया, उसके ऊपर छोटा सा तिरंगा झंडा उसने बना दिया।

"टीचर कह रहीं थीं कि हमारा देश दुनिया में चमक रहा है! ... सूरज ही चमका रहा होगा न इसे! मेरा नाम कितना अच्छा है! सूरज हूँ मैं!" अपने बनाये दोनों रेखाचित्रों को देखता मुस्कराता हुआ वह स्टूल पर बैठ गया।
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दूसरा दृश्य : सार्थक नाम

"सुनो जी, अब मैंने अपना इरादा बदल लिया है। सूरज का नाम बदलवाने अब उसके स्कूल नहीं जायेंगे!"

"क्यों? इतने दिनों से तो पीछे पड़ीं थीं अपने बेटे का नाम नये ज़माने के नये ट्रेंडी नाम 'विक्रम' या 'प्रज्ञान' रखवाने वास्ते!"

"सुना तो है न तुमने भी चंद्रयान के हिस्सों के बारे में  कि दोनों भटक गए चाँद पर उतरने से पहले ही! 'लैंडर' और 'रोवर' दोनों को पता नहीं कौन से  'रोबर्स' कहीं हाँक ले गये या फ़िर भटक गए या अटक गए कहीं!"

"तुम औरतों को तो बस ऐसी ही बातें सूझती हैं! चंद्रयान मिशन अपनी जगह है! अपनी संतान के लिए अपना मिशन अपनी जगह! सूरज अपने नाम को सार्थक क्यों नहीं कर सकता?"
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शेख़ शहज़ाद उस्मानी
(शिक्षक, रेडियो अनाउंसर, लेखक)
पुत्र: श्री शेख़ रहमतुल्लाह उस्मानी
संतुष्टि अपार्टमेंट्स,
विंग - बी-2 (टॉप फ़्लोर पेंटहाउस)
ग्वालियर बाइपास ए.बी. रोड,
शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
473551
भारत
[ लैंडमार्क्स:  1- हैपिडेज़ स्कूल, 2- गणेशा ब्लेश्ड पब्लिक स्कूल]
[वाट्सएप नंबर - 9406589589, 07987465975
ई-मेल पता: shahzad.usmani.writes@gmail.com

शनिवार, 28 सितंबर 2019

अब लघुकथा संकलन भी विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रमों में शामिल | अनघा जोगलेकर



साहित्य से नई पीढ़ी को परिचित करवाने के लिए साहित्य की विभिन्न विधाएँ विद्यार्थियों को पाठ्क्रम के अंतर्गत पढ़ाई जाती हैं। इसी उपक्रम में अब साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा लघुकथा को भी मान्य विधा के रूप में स्वीकृत करते हुए विश्वविद्यालयों में लघुकथा को लघुकथा की पूर्ण पुस्तक के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अभी तक छुटपुट लघुकथाओं का उपयोग पाठ्यक्रम में होता आया है, लेकिन यह पहली बार ही हुआ है कि, लघुकथा की पूरी पुस्तकों को उसी तरह पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है जिस तरह से कविता और कहानी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल होती आई हैं।
इस वर्ष के बी.बी.ए. एवम बी.ए. के प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में दो लघुकथा संकलन पढ़ाये जा रहे हैं। कथाकार बलराम द्वारा संपादित इन दोनों ही संकलनों, 'लघुकथा लहरी' व 'छोटी बड़ी कथाएँ', का रशियन कल्चरल अकादमी में भव्य लोकार्पण किया गया ।
यह बहुत ही हर्ष का विषय है कि अब लघुकथा भी अपनी सशक्तता के कारण एक विधा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल हो गई है और आशा है कि आने वाले समय में अन्य विश्वविद्यालयों में भी लघुकथा की और पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की जायेंगी। कथाकार बलराम द्वारा संपादित लघुकथा की इन पुस्तकों को राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित किया गया है।
इन पुस्तकों में लघुकथाओं के पुरोधा भारतेंदु हरिश्चन्द्र, प्रेमचंद, विष्णु प्रभाकर, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, हरिशंकर परसाई आदि के साथ वर्तमान लघुकथाकार चित्रा मुद्गल, सुकेश साहनी, रामेश्वर कम्बोज हिमांशु, बलराम, मधुदीप गुप्ता, अशोक भाटिया, अशोक जैन, सुभाष नीरव, सूर्यकांत नागर, सतीश राठी, राकेश शर्मा, चैतन्य त्रिवेदी, चेतना भाटी, अंतरा करवड़े, अनघा जोगलेकर आदि की लघुकथाएँ शामिल हैं।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के काल से ही लघुकथा लेखन आरंभ हो चुका था परन्तु पिछले 40-45 वर्षों से लघुकथा पर गहन शोध कार्य एवम निरंतर लेखन शुरू हो चुका है। वर्तमान में मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश आदि में लघुकथा पर विशेष कार्य किया जा रहा है। गत वर्ष इंदौर में 'क्षितिज' संस्था द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। क्षितिज संस्था पिछले 36 वर्षों से लघुकथा विधा के विकास के लिए सतत कार्यरत रही है। गत वर्ष सिरसा में भी लघुकथा सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। कान्ता राय के नेतृत्व में भोपाल लघुकथा शोधकेंद्र भी सक्रियता से लघुकथा के विकास में कार्यरत है।
इसी कड़ी में श्याम सुंदर अग्रवाल के सम्पादन में पंजाब से प्रकाशित पत्रिका 'मिन्नी', सतीश राठी के सम्पादन में 'क्षितिज', अशोक जैन के सम्पादन में 'दृष्टि', योगराज प्रभाकर के सम्पादन में 'लघुकथा कलश', मधुदीप गुप्ता की लघुकथा पुस्तक श्रृंखला 'पड़ाव और पड़ताल' व स्वयं कथाकार बलराम का लघुकथा को एक विधा के रूप में प्रतिष्ठित कराने में विशेष योगदान रहा है। श्री बलराम के संपादन में अभी तक लघुकथा कोश, लघुकथा विश्वकोश और लघुकथा के लिए ढेर सारी पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। उन्हीं के सतत प्रयासों ने आज लघुकथा को इस स्थान पर लाकर विराजित कर दिया है।
अनघा जोगलेकर

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

विश्व हिन्दी लघुकथाकार निर्देशिका में शामिल लघुकथाकार

श्री मधुदीप गुप्ता की फेसबुक पोस्ट से 

अंकिता कुलश्रेष्ठ, अंजना अनिल, अंजली सिफर, अंजु दुआ जैमिनी, अंजु निगम, अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’, अखिलेन्द्र पाल सिंह, अखिलेश पालरिया, अनघा जोगलेकर, अनन्त श्रीमाली, अनीता रश्मि, अनिता ललित, अनिल रश्मि, अनिल शूर ‘आजाद’, अनीता मिश्रा सिद्धि, अनीता राकेश, अनुराग, अनुराग शर्मा, अनूप हरबोला, अन्तरा करवड़े, अपराजिता अनामिका श्रीवास्तव, अमरीक सिंह दीप, अमृतलाल मदान, अमृत राज, अमृता सिन्हा, अरविन्द सिंह नैकित सिंह, अरुण कुमार, अरुण कुमार गुप्ता, अर्चना तिवारी, अर्चना त्रिपाठी, अर्चना राय, अर्विना गहलोत, अलका अग्रवाल, अलका धनपत, अलका प्रमोद, अल्पना हर्ष, अविनाश अग्निहोत्री, अशोक ओझा, अशोक गुजराती, अशोक चतुर्वेदी, अशोक जैन, अशोक दर्द, अशोक भाटिया, अशोक मिश्र, अशोक यादव, अशोक लव, अशोक वर्मा, अशोक शर्मा भारती, अहमद रज़ा हाशमी, आद्या शुक्ला तिवारी, आनन्द किशोर शास्त्री, आभा चन्द्रा, आभा सक्सेना, आभा सिंह, आरती बंसल, आरती शर्मा, आरती स्मित, अशोक चोपड़ा, आशा पुष्प, आशा लता खत्री, आशागंगा प्रमोद शिरढोणकर, आशा शर्मा, आशा शैली, आशीष दलाल, इन्दिरा खुराना, इन्दु गुप्ता, इन्दु भारद्वाज, इन्दु वर्मा, इंद्रा बंसल, इन्द्रा ‘स्वप्न’, ई गणेश जी बागी, ईशानी सरकार, ईश्वर चन्द्र, उदय श्री श्री ताम्हने, उपमा शर्मा, उपेन्द्र प्रसाद राय, उमा शंकर सिंह, उमेश महादोषी, उर्मि कृष्ण, उषा अग्रवाल पारस, उषा वर्मा, उषा भदौरिया, एकता कुमारी, एन एच देवा, एल आर राघव ‘तरुण’, ओमप्रकाश काद्यान, ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश, कंचन अपराजिता, कनक हरलालका, कपिल शास्त्री, कमल कपूर, कमल चोपड़ा, कमला अग्रवाल, कमलेश चौरसिया, कमलेश भारतीय, कल्पना भट्ट, कल्पना मिश्र, कल्याणी कुसुम सिंह, कविता मालवीय, कविता वर्मा, कान्ता रॉय, कालीचरण प्रेमी, क़ासिम खुर्शीद , किशनलाल शर्मा, किशोर श्रीवास्तव, कुंकुम गुप्ता, कुँवर प्रेमिल, कुणाल शर्मा, कुमार गौरव, कुमार नरेन्द्र, कुमारसम्भव जोशी, कुमारी ज्योत्सना, कुलदीप जैन, कुसुम जोशी, कुसुम पारीक, कृष्ण कमलेश, कृष्ण चन्द्र महादेविया, कृष्ण मनु, कृष्णलता यादव, कृष्णानन्द कृष्ण, कोमल वाढवानी ‘प्रेरणा’, क्षमा सिसोदिया, ख़ुदेजा ख़ान, खेमकरण 'सोमन', गीता कैथल, गुरनाम सिंह, गुलशन मदान, गोविन्द भारद्वाज, गोविन्द शर्मा, ज्ञानदेव मुकेश, घनश्याम अग्रवाल, घनश्याम मैथिल 'अमृत', घमण्डीलाल अग्रवाल, चन्द्रभूषण सिंह चन्द्र, चन्द्रा सायता, चन्द्रेश कुमार छतलानी, चाँद मुंगेरीं, चाँदनी सेठी कोचर, चित्त रंजन गोप, चित्रा मुद्गल, चित्रा राणा राघव, चेतना भाटी, चैतन्य त्रिवेदी, जगदीश पन्त ‘कुमुद’, जगदीश राय कुलरियाँ, जनकजा कान्त शरण, जमाल अहमद ‘बस्तवी’, जयति जैन ‘नूतन’, जयेन्द्र कुमार वर्मा, जवाहर चौधरी, जसबीर चावला, जानकी बिष्ट वाही, जितेन्द्र ‘जीतू’, जितेन्द्र सूद, ज्योति जैन, ज्योति स्पर्श , ज्योत्सना कपिल, ज्योत्सना शर्मा, डिम्पल गौड़, तनु श्रीवास्तव, तिन्नी श्रीवास्तव, तेज नारायण सिंह ‘तपन’, तेजवीर सिंह तेज, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, दामोदर खड़से, दिनेश नन्दन तिवारी, दिलीप भाटिया, दिव्या राकेश शर्मा, दीपक गिरकर, दीपक मशाल, देवराज डडवाल ‘संजु’, देवेन्द्र गो होल्कर, ध्रुव कुमार, नज़्म सुभाष, नन्दकिशोर बर्वे, नंदल हितैषी, नन्दलाल भारती, नयना (आरती) कानिटकर, नरेन्द्रकुमार गौड़, नरेन्द्र प्रसाद नवीन, नरेन्द्र श्रीवास्तव, नवल सिंह, निशान्तर, निशि शर्मा ‘जिज्ञाशु, नीता सैनी, नीता श्रीवास्तव, नीना छिब्बर, नीरज जैन ‘सरस’, नीरज सुधांशु, नीलिमा शर्मा निविया, नेहा अग्रवाल नेह, नेहा नाहटा, पंकज जोशी, पंकज भारद्वाज, पंकज शर्मा, पदम गोधा, पम्मी सिंह ‘तृप्ति’, पवन जैन, पवन शर्मा, पवित्रा अग्रवाल, पारस कुंज, पारस दासोत, प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’, पुरुषोत्तम दुबे, पुष्पलता कश्यप, पुष्पा जमुआर, पूजा अग्निहोत्री, पूनम आनन्द, पूनम झा, पूनम डोगरा, पूरन सिंह, पूर्णिमा शर्मा, पृथ्वीराज अरोड़ा, प्रगीत कुँवर, प्रतापसिंह सोढ़ी, प्रतिभा पाण्डे, प्रतिभा मिश्रा, प्रतिभा सिन्हा, प्रत्युष गुलेरी, प्रदीपकुमार शर्मा, प्रदीप शर्मा स्नेही, प्रद्युमन भल्ला, प्रबोधकुमार गोविल, प्रभा रानी, प्रभात कुमार धवन, प्रभात दुबे, प्रमिला वर्मा, प्रवीण कुमार, प्रेम विज, प्रेमलता सिंह, प्रेरणा गुप्ता, बद्रीप्रसाद पुरोहित, बलराम, बलराम अग्रवाल, बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, बीजेन्द्र जैमिनी, बीना राघव, बी एल आच्छा, भगवती प्रसाद द्विवेदी, भगवान देव चैतन्य, भगवान प्रियभाषी, भगवान वैद्य ‘प्रखर’, भगीरथ, भरत कुमार शर्म्मा, भरतचन्द्र शर्मा, भारती वर्मा बौड़ाई, भावना सक्सेना, मंगला रामचन्द्रन, मंजु गुप्ता, मंजुला भूतड़ा, मंजु शर्मा, मधु जैन, मधुकान्त, मधुदीप, मधुरेश नारायण, मनोज कर्ण, मनोज सेवलकर, महावीर उत्तरांचली, महाबीर रंवाल्टा, महिमा भटनागर, महिमाश्री, महिमा श्रीवास्तव वर्मा, महेन्द्र नेह, महेन्द्र सिंह महलान, महेश दर्पण, महेश शर्मा, माणक तुलसीराम गौड़, माधव नागदा, मार्टिन जॉन, मालती बसन्त, माला वर्मा, मिथिलेश अवस्थी, मिथिलेश कुमारी मिश्र, मिथिलेश दीक्षित, मिनाक्षी सिंह, मिन्नी मिश्रा, मीना पाण्डेय, मीरा जैन, मीरा प्रकाश, मुकेश शर्मा, मुक्ता, मुखर कविता, मुनटुन राज, मुन्नू लाल, मुरलीधर वैष्णव, मुहम्मद तारिक असलम (तस्नीम), मृणाल आशुतोष, मेहता नागेन्द्र सिंह, मोहन राजेश, मो0 नसीम अख्तर, योगराज प्रभाकर, योगेन्द्रनाथ शुक्ल, रंजना फतेपुरकर, रंजना सिंह, रक्षा शर्मा 'कमल', रघुविन्द्र यादव, रचना अग्रवाल गुप्ता, रजनीश दीक्षित, रणजीत सिंह टाडा, रत्नकुमार सांभरिया, रमेश कटारिया 'पारस', रमेश कपूर, रमेश चन्द्र, रमेश मनोहरा, रवि प्रभाकर, रविभूषण श्रीवास्तव, राकेश भारती, राज हीरामन, राजकुमार गौतम, राजकुमार निजात, रायतन यादव, राहिला आसिफ़, राजेन्द्र कुमार गौड़, राजेन्द्र नागर 'निरन्तर', राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु', राजेन्द्र राकेश, राजेन्द्र वामन काटदरे, राजेश उत्साही, राजेश शॉ, राज्यवर्धन सिंह 'सोच', राधेलाल 'नवचक्र', राधेश्याम भारतीय, रानी कुमारी, रामकुमार आत्रेय, रामकुमार घोटड़, रामदेव धुरंधर, रामनिवास बाँयला, रामनिवास मानव, राममूरत राही, रामेशवर काम्बोज 'हिमांशु', रावेन्द्रकुमार रवि, राहुल कुमार, रिद्मा निशादिनी लंसकार, रीता गुप्ता, रीनू पुरोहित, रुखसाना सिद्दीक़ी, रूपल उपाध्याय, रूप देवगुण, रूपसिंह चन्देल, रूपेन्द्र राज, ऋचा वर्मा, ऋता शेखर 'मधु' (रीता प्रसाद), रेखा मोहन, रेणु चन्द्रा माथुर, रेणु झा, रेणुका बड्थ्वाल, रोहित यादव, रोहित शर्मा, लकी राजीव, लक्ष्मण शिवहरे, लज्जाराम राघव 'तरुण', लता अग्रवाल, लवलेश दत्त, लाजपतराय गर्ग, लाडो कटारिया, लीला (मोरे) धुलधोये), वन्दना गुप्ता, वन्दना सहाय, वशिष्ठकुमार झमन, वसन्त निगुणे, वाणी दवे, विकेश निझावन, विक्रम सोनी, विजय अग्रवाल, विनय कुमार चंचरिक, विजय जोशी शीतांशु, विजयानन्द विजय, विजेता रानी, विद्यालाल, विनय गुदारी, विनीता राहुरीकर, विनोद खनगवाल, विभा रश्मि, विभारानी श्रीवास्तव, विमल भारतीय शुक्ल, विरेन्द्र 'वीर' मेहता, विवेक रंजन श्रीवास्तव, विष्णु कुमार, विष्णु सक्सेना, वीरेन्द्रकुमार भारद्वाज, शंकर प्रसाद, शकुंतला किरण, शक्तिराज कौशिक, शमीम शर्मा, शराफ़त अली ख़ान, शशी बंसल, शारदा गुप्ता, शालिनी खरे, शिखर चन्द जैन, शिखा कौशिक 'नूतन', शिखा तिवारी, शिव नारायण, शील कौशिक, शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शैलेश दत्त मिश्र, शोभना श्याम, शोभा रस्तोगी, श्यामबिहारी श्यामल, श्याम शखा श्याम, श्याम सुन्दर अग्रवाल, श्याम सुन्दर दीप्ति, श्वेता सिंह, श्रीराम साहू 'अकेला', श्रुत कीर्ति अग्रवाल, संगीता कुमारी, संगीता गोविल, संजय कुमार 'संज', संजय कु0 सिंह, संजीव आहूजा, संजु शरण, संयोगिता शर्मा, सच्चिदानन्द सिंह 'साथी', सतविन्द्रकुमार राणा, सतीश दुबे, सतीश राठी, सतीशराज पुष्करणा, सत्यप्रकाश भारद्वाज, सत्यवीर मानव, सत्या शर्मा 'कीर्ति', सनतकुमार जैन, सन्तोष सुपेकर, सन्तोष श्रीवास्तव, संदीप आनन्द, संदीप तोमर, संध्या तिवारी, सम्राट समीर, सरिता रानी, सरोज गुप्ता, सविता इन्द्र गुप्ता, सविता मिश्रा 'अक्षजा', सविता सिंह नेपाली, सारिका भूषण, सिद्धेश्वर, सिमर सदोष, सीमा जैन, सीमा भाटिया, सीमा रानी, सीमा सिंह, सुकेश साहनी, सुखचैन सिंह भण्डारी, सुदर्शन रत्नाकर, सुदर्शन वशिष्ठ, सुधांशु कुमार, सुधा भार्गव, सुधाकर शर्मा (आशावादी), सुधीर कुमार, सुधीर द्विवेदी, सुनीता त्यागी, सुनीता पाटिल, सुनील गज्जाणी, सुनील वर्मा, सुबोध कुमार सिन्हा, सुभाष नीरव, सुभाष रस्तोगी, सुमन, सुरिंदर कौर 'नीलम', सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा, सुरेन्द्र गुप्त, सुरेन्द्र गोयल, सुरेन्द्र वर्मा, सुरेश कुशवाहा तन्मय, सुरेश बाबू मिश्रा, सुरेश शर्मा, सुरेश सौरभ (सुरेश कुमार), सुषमा सिन्हा, सूर्यकान्त नागर, सेवासदन प्रसाद, सैली बलजीत, स्नेह गोस्वामी, स्वाति तिवारी, हरदान हर्ष, हरनाम शर्मा, हरभगवान चावला, हरिनारायणसिंह 'हरि', हीरालाल नागर, हेमंत यादव 'शशि', हेमा चंदानी (अंजुली), हरीश कुमार 'अमित', हरीश सेठी 'झिलमिल', हर्ष राज, हारुन रशीद 'अश्क', हूंदराज बलवाणी.

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गुरुवार, 26 सितंबर 2019

ज्योत्सना सिंह की एक लघुकथा


उसकी रचना / ज्योत्सना सिंह 


सभा ने उसका स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट से किया और फिर  पूरे सभागार में नीम सन्नाटा पसर गया सिर्फ़ उसे सुनने के लिए।
वह जब भी मंच पर होती तो श्रोता गण बड़ी बेताबी से उसकी बारी आने की प्रतीक्षा करते क्यूँ कि जब वह अपनी रचना लोगों के समक्ष रखती तब संपूर्ण उपस्थिति में भी सन्नाटा अपने पाँव जमा लेता।

उसकी रचना समाज के हर उस पहलू को बे-नक़ाब करती जो त्रासदी,व्यभिचार लालच और नफ़रत से भरी हुई होती।

और लोग उसे साँस रोक कर सुनते शायद वह श्रोता के अंदर छुपे उस इंसान को खरोंच देती जिसे सबने ख़ुद से भी बहुत दूर कर रखा है।
लोग उसे सुनते दाद देते तालियों फूलों से उसका सम्मान बढ़ाते हुए आगे बढ़ जाते और फिर समाज ही उसे एक और तड़पता मौक़ा दे देता ऐसी ही किसी नंगी सच्चाई रचने के लिए और हम बन जाते हैं ऐसे आहत भावों का हिस्सा कभी सहते हुए तो कभी करते हुए।

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मंगलवार, 24 सितंबर 2019

फेसबुक समूह "सार्थक साहित्य मंच" प्रतियोगिता में मेरी विजेता लघुकथा


तीन संकल्प

वो दौड़ते हुए पहुँचता उससे पहले ही उसके परिवार के एक सदस्य के सामने उसकी वो ही तलवार आ गयी, जिसे हाथ में लेते ही उसने पहला संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी की भी बुराई नहीं सुनेगा'। वो पीछे से चिल्लाया, "रुक जाओ तुम्हें तो दूसरे धर्मों के लोगों को मारना है।" लेकिन तलवार के कान कहाँ होते हैं, उसने उसके परिवार के उस सदस्य की गर्दन काट दी।

वो फिर दूसरी तरफ दौड़ा, वहाँ भी उससे पहले उसी की एक बन्दूक पहुँच गयी थी, जिसे हाथ में लेकर उसने दूसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी भी बुराई की तरफ नहीं देखेगा'। बन्दूक के सामने आकर उसने कहा, "मेरी बात मानो, देखो मैं तुम्हारा मालिक हूँ..." लेकिन बन्दूक को कुछ कहाँ दिखाई देता है, और उसने उसके परिवार के दूसरे सदस्य के ऊपर गोलियां दाग दीं।

वो फिर तीसरी दिशा में दौड़ा, लेकिन उसी का आग उगलने वाला वही हथियार पहले से पहुँच चुका था, जिसके आने पर उसने अपना तीसरा संकल्प तोड़ा था कि 'वो कभी किसी को बुरा नहीं कहेगा'। वो कुछ कहता उससे पहले ही हथियार चला और उसने उसके परिवार के तीसरे सदस्य को जला दिया।

और वो स्वयं चौथी दिशा में गिर पड़ा। उसने गिरे हुए ही देखा कि एक बूढ़ा आदमी दूर से धीरे-धीरे लाठी के सहारे चलता हुआ आ रहा था, गोल चश्मा पहने, बिना बालों का वो कृशकाय बूढ़ा उसका वही गुरु था जिसने उसे मुक्ति दिला कर ये तीनों संकल्प दिलाये थे।

उस गुरु के साथ तीन वानर थे, जिन्हें देखते ही सारे हथियार लुप्त हो गये।
और उसने देखा कि उसके गुरु उसे आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं और उनकी लाठी में उसी का चेहरा झाँक रहा है, उसके मुंह से बरबस निकल गया 'हे राम!'।

कहते ही वो नींद से जाग गया।
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रविवार, 22 सितंबर 2019

लघुकथा कलश रचना प्रक्रिया महाविशेषांक | वीरेंद्र वीर मेहता

. . . और आख़िर 24 दिन के लंबे 'संघर्ष' के बाद पोस्ट आफिस के मक्कड़जाल से निकलकर 28 अगस्त को रजिस्टर्ड पोस्ट की गई 'लघुकथा कलश' की प्रति मेरे हाथों में पहुंच ही गई।

'थैंक्स टू इंडिया पोस्ट'. . .

लघुकथा कलश का यह चतुर्थ अंक (जुलाई - दिसंबर 2019) 'रचना-प्रक्रिया, महाविशेषांक' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अपने पूर्व अंकों की तरह आकर्षक साज-सज्जा और बढ़िया क्वालिटी के पेपर पर छपा होने के साथ, अपने प्राकृतिक हरे रंग के खूबसूरत कवर पृष्ठ में पत्रिका सहज ही मन को आकर्षित कर रही है।

अपनी पहली नजर में पत्रिका को देखने में यही अनुभव हो रहा है कि 'रचना-प्रक्रिया' पर आधारित यह अंक अपने अंदर बहुत से गुणीजन लेखकों के लघुकथा से जुड़े अनुभवों को समेटे हुए है। पत्रिका में 360+2 कवर पृष्ठों में 126 नवोदित एवं स्थापित प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की करीब 250 लघुकथाओं के साथ उनकी रचना प्रक्रिया एवं चार विशिष्ट लघुकथाकारों की लघुकथाओं सहित उनकी रचना प्रक्रिया को स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त छः पुस्तक समीक्षाएं और लघुकथा कलश के पूर्व अंकों से जुड़ी बेहतरीन समीक्षाएं भी इस अंक में शामिल की गई हैं। नेपाली लघुकथाओं की विशेष प्रस्तुति में आठ लघुकथाकारों की लघुकथाएं रचना प्रक्रिया सहित शामिल की गई हैं। अंत में कवर पृष्ठ पर अशोक भाटिया जी के बाल लघुकथा 'बालकांड' की योगराज प्रभाकर जी द्वारा काव्यात्मक समीक्षा भी इस अंक का एक आकर्षण बन गई है। निःसन्देह इतनी विस्तृत सामग्री के पीछे 'कलश परिवार' सहित सभी गुणीजन रचनाकारों की मेहनत का भी बहुत बड़ा योगदान है।

किसी भी पत्र-पत्रिका का संपादकीय उस कृति में सम्मलित किए गए अंशों की बानगी के संदर्भ में उसका सत्य प्रतिबिम्ब ही होता है। पत्रिका का सम्पादकीय "दिल दिआँ गल्लाँ" सहज ही रचना प्रक्रिया अंक की प्रेरणा के साथ उसके अस्तित्व में आने की कथा सामने रखता है। सम्पादकीय न केवल लघुकथाकारों को उनके लेखन के प्रति आश्वस्त करने की कोशिश करता है वरन उन्हें उनकी कमियों के प्रति ध्यानाकर्षित करने के साथ लघुकथा विधा पर और अधिक मंथन करने का आग्रह भी करता है।

"साहित्य सृजन अभिव्यंजना से अभिव्यक्ति तक का सफर है, जब अभिव्यक्ति का कद अभिव्यंजना के कद की बराबरी कर ले तब जाकर कोई कृति एक कलाकृति का रूप धारण करती है।" सम्पादकीय में इन शब्दों में दिए गए मंत्र से अधिक साहित्य साधना की और क्या परिभाषा हो सकती है, जिसे एक साधक को अंगीकार कर लेना चाहिए।

लघुकथा के ढांचे और आकार-प्रकार पर आए दिन होने वाले विवादों पर भी सम्पादकीय दृष्टि अपने चिर-परिचित अंदाज में अपना दृष्टिकोण रखने का प्रयास करती है।

बरहाल पत्रिका के विषय में और अधिक विचार तो संपूर्ण पत्रिका पढ़ने के बाद ही लिखे जा सकते हैं, फिलहाल तो इस अंक में शामिल मेरी दो लघुकथाओं श्राद्ध और जवाब को रचना प्रक्रिया सहित मान देने के लिए 'कलश टीम' को हार्दिक धन्यवाद। साथ ही आद: योगराज प्रभाकर सहित, कलश टीम के सभी वरिष्ठ परामर्शदाताओं और अन्य सभी सहयोगियों के साथ-साथ इसमें शामिल सभी गुणीजन रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई सहित इस अंक के लिए सादर शुभकामनाएँ।

//वीर//

पत्रिका प्राप्ति के लिये सम्पर्क सूत्र।
MR. YOGRAJ PRABHAKAR :
+91 98725 68228

MR. RAVI PRABHAKAR
+91 98769 30229

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

लघुकथा समाचार: डॉ. लता की कृति का विमोचन


Bhaskar News NetworkSep 19, 2019, 06:51 AM IST

शहर की वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. लता अग्रवाल की पुस्तक लघुकथा का अंतरंग का विमोचन हाल ही में हुआ। डॉ. लता ने बताया कि इस संग्रह में 23 लघु कथाकारों से पूछे गए 589 प्रश्नों के जवाब संग्रहित हैं। संग्रह में डॉ. शकुंतला, अजातशत्रु, पत्रकार बलराम, कमल किशोर गोयनका, बलराम अग्रवाल, चित्रा मुद्गल के दुर्लभ साक्षात्कार हैं। 

Source:
https://www.bhaskar.com/news/mp-news-dr-lata39s-work-released-065126-5517011.html?utm_expid=.YYfY3_SZRPiFZGHcA1W9Bw.0&utm_referrer=https%3A%2F%2Fwww.google.com%2F

लघुकथा वीडियो: मेहनत का पैसा | लेखक : गोविन्द भारद्वाज | स्वर : मीना खत्री


गुरुवार, 19 सितंबर 2019

पूनम सिंह की दो लघुकथाएं

1)

सोन चिरैया / पूनम सिंह

"मास्टर जी आज से सोन चिरैया हमारे साथ ही पढ़ेगी" मीरा ने सोन चिरैया का हाथ पकड़े कक्षा में प्रवेश करते  ही मास्टर जी को कहा..। मास्टर जी ने आश्चर्य भरी नजरों से अपने चश्मे के भीतर से झाकते हुए  बोले..  "अरे.. ये यहाँ नहीं पढ़ सकती और तुम इसका हाथ  काहे  पकड़ी हो.. छोड़ो..।"  मास्टर जी ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा ..। "यह तो भिखुआ की बेटी है ना इसका बाप तुम्हारे यहाँ मजूरी करता है।" "हाँ मास्टर जी वही है और आज से ये भी यही पढ़ेगी, वो इसलिए कि अगर भीखुआ के हाथ की मजदूरी का अन्न आप और मै खा सकते हैं, तो ये यहाँ पढ़ काहे नहीं सकती ??।"  मीरा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा..।  मास्टर जी सोच में पड़ गए कि "आखिर इस मुसीबत से छुटकारा कैसे पाएँ ..। ..अगर हमने इस निम्न जाति की कन्या को स्थान दे दिया तो ऊपर में क्या जवाब देंगे ।"  तभी आगामी चुनाव के नेताओं का दल आ पहुँचा । मास्टर जी के पास बैठ  गुफ्तगू शुरू हो गई । उनके प्रस्थान के पश्चात दूसरा दल आया उसी तरह घंटों न जाने क्या  क्या बाते हुई !। ..बस इतना ही पता चला कि सोन चिरैया को स्कूल में दाखिला मिल गया ।

15 अगस्त का दिन था। स्कूल में सभी नेता अपने-अपने दल के साथ पहुँचे ।तभी उनमें से एक दल के नेता ने उठकर कहा.., "झँडा फहराने का समय हो गया है.. अब हम सबको स्टेज पर चलकर इस यादगार पल का हिस्सा बनना चाहिए ।" एक-एक करके सभी दल के मुख्य नेता ऊपर स्टेज पर पहुँचे । तभी उनमें से एक नेता ने सोन चिरैया को ऊपर स्टेज पर बुलाया और कहा.., "हमारे भावी देश के भविष्य सोन चिरैया झँडा फहराएगी .., " और बाकी दूसरे नेता की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना ही उन्होंने उसे  झँडा फहराने का आदेश दे दिया। बाकी सब के सब आवाक होकर देखते ही रह गए।

मीरा ने भागकर सोन चिरैया का हाथ पकड़कर ऊपर हवा में लहराया और कहा "तुम्हारी जीत हुई सोन चिरैया ..।"
उधर नेताओं के बीच में काना फूसी शुरू हो गई । तभी मास्टर जी ने आकर एक नेता को बधाई देते हुए  कहा.. "बधाई हो नेता जी इस बार तो आपने चुनाव में जीत की मोहर लगा दी ।"
तभी दूसरे दल के कुछ नेता एक दूसरों को यही कहते हुए पाए गए कि.. " हमने तो पहले ही कहा था समझदारी से काम लीजिए,  हर बार पैसे से ही बात नहीं बनती..। देखिए इस बार भी फिर से उसी चरवाहा छाप ने चुनाव जीतने का ठप्पा लगा लिया। ऊपर से महिला आयोग से भी सजग रहने की आवश्यकता थी आपने देखा नहीं उस सोन चिरैया को ...?।"  "तो अब क्या करें.. कोई उपाय बताओ ..!" "अब क्या बताना..जब चिड़िया चुग गई खेत...!"


2)

मैं जुलाहा / पूनम सिंह

ठक... ठक... ठक.... ठक "अरे कौन है" इतनी सुबह सुबह झल्लाते हुए रामदास ने किवाड़ खोला । 
"मैं जुलाहा" अपने सामने एक मध्यम कद वाला व्यक्ति सफेद कुर्ता पायजामा पहने लंबी सफेद दाढ़ी, तथा एक कंधे पर एक बड़ा सा थैला और दूसरे हाथ मैं एक बड़ा सा चरखा लटकाए हुए शांत भाव ओढ़े खड़ा था।

"क्या बात है बाबा किस चीज की आवश्यकता है।"  सेठ रामदास ने पूछा "मैं जुलाहा हूं और अपने चरखे पर लोगों के पसंद के मुताबिक कपड़े बुनता हूं, आप भी बनवा लीजिए।" रामदास प्रत्युत्तर में कुछ कहने ही वाला था कि तभी रामदास की पत्नी शोभा वहां आ गई उसने बीच में ही टोकते हुए विनम्रता से पूछा "क्या चाहिए बाबा?" "बिटिया मैं जुलाहा हूं और लोगो के पसंद मुताबिक कपड़े बुनता हूं। आप भी बनवा लीजिए।" शोभा ने थोड़ा अचंभित शांत मुद्रा में पूछा,  "पर बाबा हम आपसे कपड़े क्यों बनवाएंगे?! ऐसी क्या खासियत है आपकी बुनाई में?!" जुलाहा बोला "मेरे बनाए हुए कपड़ों की सूत और रंगत की दूर दूर तक चर्चा है। एक बार अपने सेवा का मौका दीजिए, आपको निराश नहीं करूंगा।" जुलाहे ने विनम्रता से निवेदन किया शोभा मन ही मन में सोचने लगी आजकल के आधुनिक तकनीकी युग मे जब सुंदर अच्छे रंगत वाले परिधान कम दाम में मिल जाते हैं फिर भ..ला..।! जुलाहा शोभा के मन की बात समझ गया और उसने तुरंत ही कहा..! "चिंता ना करो बिटिया मैं बहुत सुंदर वस्त्र बनाउँगा कोई मोल भी ना लूंगा,. यह हमारा पुश्तैनी काम है और इस कला को सहेज कर रखना चाहता हूं। इसलिए घर घर घूमकर वस्त्र बनाता हूं। ज्यादा वक्त भी ना लगेगा अल्प समय में ही पूरा कर लूंगा।" शोभा कुछ बोल पाती की रामदास पीछे से बोला "अच्छा ठीक है शोभा.. बाबा के लिए दलान पर रहने की व्यवस्था करवा दो।" जुलाहे के मन को तसल्ली मिली शोभा ने तुरंत ही कुछ कारीगरों को बुलवाकर दलान पर एक छोटी सी छावनी बनवा दी और जुलाहे को विनय पूर्वक कार्य जल्दी समाप्त करने के लिए भी कह दिया। जुलाहा भी बहुत खुशी खुशी अदब से बोला "हाँ हाँ बिटिया तुम तनिक भी चिंता ना करो मैं जल्दी निपटा लूंगा।" 
जुलाहा अपने काम मे लग गया शोभा कुछ अंतराल में आकर बाबा से कुछ खाने पीने का भी आग्रह कर जाती। पर जुलाहा विनम्रता से मुस्कुराते हुए कहता "मेरे पास खाने का पूरा प्रबंध है बिटिया जब जरूरत होगी मैं स्वयं कह दूंगा।" जुलाहा शोभा के सरल आत्मीय व्यवहार को देखकर बड़ी प्रसन्नता होती और मन ही मन उसे ढेरों आशीर्वाद से नवाजता। शोभा का ४साल का बालक था जो दलान पर खेलने आता और  और जुलाहे के पास आकर पॉकेट से चॉकलेट निकाल अपने नन्हे हाथ आगे बढ़ा तोतली आवाज में पूछता "बाबा ताओगे..।" उसकी तोतली आवाज सुनकर जुलाहे का मन पुलकित हो उठता और उसकी ठोड़ी को पकड़ ठिठोली करते हुए कहता "नहीं राम लला आप खाओ हमे अभी भूख नहीं।, इतना पूछ कर राम लला खेलने में मस्त हो जाता। 
इसी तरह दो-तीन दिन बीत गए एक सुबह रामलला जुलाहे के पास आकर पूछता "बाबा मेले तपले बन गए तया..?! " " हां राम लला बन गए।" "दिथाओ..!" बालक बोला "हां हांअभी लो दिखाते हैं।" जुलाहे ने अपने थैले में से एक बड़ा ही सुंदर छोटा सा अचकन निकालकर बालक के हाथ में थमा दिया "यह देखो तुम्हारे लिए हमने सात रंगों वाली अचकन तैयार की है।" बालक अचकन देखते ही खुशी से उछल पड़ा और जुलाहे के सामने अपने नन्हे हाथ आगे बढ़ाते हुए कहता है "बाबा यह लो तौपी ताओ..!"  "नहीं राम लला आप खाओ हमें इसकी आवश्यकता नहीं जुलाहे ने कहा!" नहीं माँ तहती है.. कोई भी चीज उदाली नई लेनी तहिये..!। बालक के मुख से ऐसी दैविक शब्दों को सुन जुलाहे का मन प्रफुल्लित हो गया और सहजता पूर्वक बालक के हाथ से मीठा ले लिया और कहा "ठीक है रामलला लाओ दे दो।" तभी वहां शोभा भी आ गई उसने शालीनता से पूछा "बाबा क्या बाकी के परिधान भी तैयार हो गए?!.. "हाँ बिटिया आपका भी तैयार हो गया है। जुलाहे ने थैले में से एक सुंदर लाल और सफेद रंगों वाली साड़ी शोभा को पकड़ा दी।... थी तो दो रंगों वाली ही पर उस पर की गई कलाकारी रंगो का भराव देख शोभा हतप्रभ रह गई मन ही मन सोचने लगे उसने ऐसी रंगो वाली अनगिनत साड़ियां पहनी होगी पर इतनी आकर्षक सुंदर कलाकारी वाली कभी नहीं,.. उसने मन ही मन जुलाहे को नमन किया और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहने लगी:-  "बाबा मैंने अपने अभी तक के जीवन काल में ऐसी रंगो वाली साड़ी बहुत पहनी पर इतनी सुंदर आकर्षक कलाकारी, वह भी सिर्फ दो रंगो में बनी कभी नही..।" मैं इसे सहेज कर रखूँगी।" "अरे नहीं बिटिया!" जुलाहे ने तुरंत ही बीच में टोकते हुए कहा-: "यह मेरे हाथों से बनी सूत एवं रंग से बनी साड़ी है।  "तुम इसे हर रोज भी धारण करोगी तभी इसका सूत और रंग ज्यों का त्यों रहेगा। यह सुन शोभा को और आश्चर्य हुआ और वह निशब्द हो गई। शोभा ने विनम्र भाव से कहा.. मैं यह साड़ी बिना मोल नहीं लूंगी आप कुछ भी अपनी स्वेच्छा से इसका मोल ले लीजिए।" पहले तो जुलाहे ने मना किया पर शोभा के आग्रह करने पर उसने कहा-: "ठीक है अगर तुम्हारी इतनी इच्छा है तो तुम अपने मंदिर में जो फूल चढ़ाती हो उसी में से दो फूल लाकर दे देना।" ऐसी अनूठी इच्छा सुन शोभा कुछ बोल पाती कि जुलाहे ने कहा-: "इससे ज्यादा की कोई इच्छा नहीं है बिटिया बस वही दे दो...!" शोभा दौड़कर मंदिर गई माँ के चरणों से दो फूल उठा लाई और बाबा को दे दिया। 
बाबा क्या मेरे पति के परिधान भी तैयार हो गए?!.. "नहीं बिटिया बस वह भी एक-दो दिन में तैयार हो जाएगा तैयार होते ही मैं तुम्हें स्वयं खबर कर दूंगा।"  ,"ठीक है बाबा" इतना कह कर शोभा घर के भीतर चली गई।
  तीन-चार दिन बीत गए पर जुलाहे की ओर से कोई खबर ना आई फिर वह स्वयं ही कौतूहल वश जानकारी के लिए जुलाहे के पास गई और पूछा "बाबा क्या अभी तक बने नहीं?!"
“नहीं बिटिया” इस बार जुलाहे के शब्दों में थोड़ी निराशा थी उसने पास रखा एक कुर्ता उठाया और शोभा को दिखाते हुए कहने लगा “बिटिया मैंने अपनी पूरी लगन से कुर्ता बनाने का पूर्ण प्रयास किया किंतु बुनाई में अच्छी पकड़ नहीं आ रही..!  शोभा ने वह कुर्ता अपने हाथों में लेते हुए एक नजर डाली तो उसने पाया उसमें कुछ सुंदर रंगों का भराव था और आकर्षक भी उतना ही था, पर बुनाई उतनी अच्छी ना होने के कारण थोड़ा अटपटा लग रहा था।अच्छा, उसने जिज्ञासा भरे लहजे में पूछा “अब और कितना वक्त लगेगा बाबा पूर्णतया निखरने में.."। “बिटिया लगता नहीं यह और अब मुझसे बन पाएगा तुम इसे मेरा तोहफा समझ कबूल कर लो।"
शोभा समझ गई तोहफा कहकर बाबा इसका मोल नहीं लेना चाहते और उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
"बिटिया अब मैं चलता हूं अभी मुझे आगे की यात्रा तय करनी है।".....

रामदास का नन्हा बालक - - अबोध मन सांसारिक मोह माया से अनभिज्ञ पूर्ण शुद्ध था। इसलिए जुलाहे ने उसे प्रकृति के सात रंगों वाले वस्त्र तैयार करके दिए।

शोभा - -  निश्छल, समर्पित आत्मीय भाव से अपने संसार के कर्म धर्म में लगी रहती थी। यही कारण था कि जुलाहे ने उसे शुद्ध पवित्र एवं प्रेम को परिभाषित करने वाली लाल और सफेद रंग का वस्त्र दिया।

रामदास - - प्रचुर धन का मालिक था। साथ ही धार्मिक एवं दानी भी था। किंतु धन संग्रह के मोह ने उसे आंशिक रूप से घेर रखा था। यही कारण था कि जुलाहे ने उसके लिए सुंदर रंगत वाला वस्त्र तैयार किया तो पर सांसारिक लिप्सा के कारण बुनाई उतनी सही ना हो पाई।

जुलाहा रूपी ईश्वर हमारे भीतर बैठा हमारे एक एक प्रक्रिया पर उसकी नजर है और वह हमारे कर्मों के अनुरूप हमारी आत्मा को वस्त्र पहना रहा है।
मुक्ति और भुक्ती दोनों इसी संसार में निहित है।

-
पूनम सिंह
एक कहानीकार, लघुकथाकार, कवित्रियी, समीक्षक हैं एवं साहित्य की सेवा में सतत संलग्न रहती हैं।
Email: ppoonam63kh@gmail.com

बुधवार, 18 सितंबर 2019

वेबदुनिया डॉट कॉम पर मेरी एक लघुकथा : मौकापरस्त मोहरे


मौकापरस्त मोहरे / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी


वह तो रोज की तरह ही नींद से जागा था, लेकिन देखा कि उसके द्वारा रात में बिछाए गए शतरंज के सारे मोहरे सवेरे उजाला होते ही अपने आप चल रहे हैं। उन सभी की चालें भी बदल गई थीं। घोड़ा तिरछा चल रहा था, हाथी और ऊंट आपस में स्थान बदल रहे थे, वजीर रेंग रहा था, बादशाह ने प्यादे का मुखौटा लगा लिया था और प्यादे अलग-अलग वर्गों में बिखर रहे थे।

वह चिल्लाया, 'तुम सब मेरे मोहरे हो, ये बिसात मैंने बिछाई है, तुम मेरे अनुसार ही चलोगे।' लेकिन सारे के सारों मोहरों ने उसकी आवाज को अनसुना कर दिया। उसने शतरंज को समेटने के लिए हाथ बढ़ाया तो छू भी नहीं पाया।

वह हैरान था और इतने में शतरंज हवा में उड़ने लगा और उसके सिर के ऊपर चला गया। उसने ऊपर देखा तो शतरंज के पीछे की तरफ लिखा था- 'चुनाव के परिणाम'।

Source:
https://hindi.webdunia.com/hindi-stories/short-story-118122000044_1.html

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

समीक्षा | लघुकथा कलश रचना प्रक्रिया महाविशेषांक | ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'



14 सितंबर हिंदी दिवस के यादगार अवसर पर प्रो. रूप देवगुण के द्वारा लघुकथा कलश का 'रचना-प्रक्रिया महाविशेषांक प्राप्त हुआ। दो दिन तक श्री युवक साहित्य सदन, सिरसा में हिंदी दिवस व पुस्तक लोकार्पण समारोह की बड़ी धूमधाम रही।
आज लघुकथा कलश का रचना -प्रक्रिया महाविशेषांक पढ़ने का सुअवसर मिला। सम्पादकीय और कतिपय लघुकथाएँ पढ़ने के उपरांत निरापद रूप से कहा जा सकता है कि प्रस्तुत अंक बहुत उत्कृष्ट,आकर्षक एवं सुन्दर है। विविध विषय-वस्तुओं व शिल्पादि से सुसज्जित यह अंक पूर्व अंकों से बेहतर है। सुन्दर छपाई , आकर्षक मुख्य आवरण पृष्ठ, वर्तनी की परिशुद्धता,उत्कृष्ट कागज़, वरिष्ठ एवं नवोदित लघुकथाकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को बिना भेद-भाव के नाम के वर्णक्रमानुसार अंक में स्थान मिलना आदि विशिष्टताएँ लोकतांत्रिक मूल्यों की जीवंतता की परिचायक हैं और प्रस्तुत अंक की खूबसूरती भी।
श्री योगराज प्रभाकर की श्रमनिष्ठा एवं लग्न का जादू सिर पर चढ़ कर बोल रहा है तथा दूरदृष्टि ,पक्का इरादा और साहित्य-सेवा का विशाल जज़्बा सर्वत्र परिलक्षित हो रहा है।

सम्पादकीय पढ़ने से ही इसकी गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है।नवोदित लघुकथाकारों के लिए यह संजीवनी के समान है। श्री योगराज प्रभाकर जी 'दिल दियाँ गल्लाँ... में रचना-प्रक्रिया महाविशेषांक के मूल अभिप्रेत पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं, "साहित्य- सृजन अभिव्यंजना से अभिव्यक्ति तक का सफ़र है। जब अभिव्यक्ति का कद अभिव्यंजना के कद की बराबरी कर ले तब जाकर कोई कृति एक कलाकृति का रूप धारण करती है । कृति से कलाकृति बनने का मार्ग अनेक पड़ावों से होकर गुजरता है। वे पड़ाव कौन-कौन से हैं, यही जानने के लिए इस अंक की परिकल्पना की गई थी।"

उक्त मन्तव्य के आधार पर निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि वे अपने मूल अभिप्रेत में पूर्णतया सफल हुए हैं। जिज्ञासा व कौतूहल-वश सम्पादकीय के तुरन्त पश्चात सर्व प्रथम मैंने उनकी 'फक्कड़ उवाच' व 'तापमान' लघुकथाएं पढ़ीं।
अधिकांशतः इनकी लघुकथाएं पात्रानुकूल एवं मनोवैज्ञानिक संवादों से सृजित,संवेदना के रस से अभिसिंचित पाठकों के मन के तारों को झंकृत करती हुई , जिज्ञासा एवं कौतूहल का सृजन करती हैं तथा वांछित प्रभाव डाल कर अपने अभिप्रायः व अभिप्रेत को क्षिप्रता से अभिव्यंजित कर डालती हैं। पढ़ कर बड़ा सुकून मिलता है।
अंक में 126 लघुकथाकारों की रचनाएं , नेपाली- लघुकथाएं ,समीक्षाएं आदि समाविष्ट हैं जिन्हें पढ़ने के लिए मन बड़ा व्यग्र एवं उत्सुक है।
इनमें मेरी भी एक लघुकथा एवं रचना- प्रक्रिया सम्मलित की गई है ,इसके लिए मैं 'प्रभाकर' जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ तथा समस्त रचनाकारों को हार्दिक बधाई अर्पित करता हूँ,जिनकी रचनाएँ इस अंक में प्रकाशित हुई हैं।
आशा करता हूँ भविष्य में इससे भी बेहरत महाविशेषांक पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होगा।
श्री योगराज प्रभाकर जी की दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन की मंगलमय शुभकामनाएं।

ज्ञानप्रकाश 'पीयूष'
17.09.19.

लघुकथा: अंदाज | सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

अंदाज

"मैं अगर तेरी जगह होती तो उसे थप्पड़ मारते देर न लगाती । "
"यार ! एकबारगी इच्छा तो मेरी भी हुई थी । "
"एक कहानी क्या छप गयी , खुद को कमलेश्वर मान बैठा है । "
"फिर तूने मारा क्यों नहीं , बद्द्त्मीजी की हद है  कि  सबके सामने इतनी बेशर्मी से उसने तेरे गालों को छू लिया। छी,कितनी  गन्दी सोच ।"
"बस रोक लिया खुद को कि भरी सभा में हंगामा न हो जाये । "
"तेरे पतिदेव भी तो थे वहां  । उनको भी तो गुस्सा ही आया होगा । "
"उस वक्त वो शायद वॉशरूम में गये थे । "
"वो वहां होते तो बात बढ़ जाती । "
"हाँ ! तब अस्मित  के जन्मदिन का सारा मजा स्वाहा हो जाता , इस घटना  की वजह से । " 
"पर यार मैंने जब उसे तेरा गाल सहलाते हुए देखा तो मुझे बुरा तो लगा ही शर्म भी  महसूस हुई । "
"अब जाने दे न यार ।  उसे ,बता तो दिया था कि ये बात गलत है और उन्होंने अपनी गलती मान भी ली  थी। " 
"पर ये क्या बात हुई , पहले गलत काम करो और बात न बने तो गलती मान लो ।'
"क्या कहूँ यार कभी - कभी फोन पर उसके साथ साहित्य से इतर बिंदास वार्तालाप भी  हो जाता था ।  हमने  अपनी - अपनी जिंदगी के कुछ अनसुलझे पन्ने आपस में शेयर भी किए थे । हो सकता है इसलिए गलतफहमी में पड़ गया हो  बेचारा  "
"अरे ये वो लोग हैं जो  मौका मिलते ही शुरू हो जाते हैं । "
"क्या कर सकते हैं यार । इसके लिए जान लेना या जान देना जरूरी है क्या ? मुझे विश्वास है अब कभी नहीं होगा ऐसा ।" 
"वो देख , सरप्राइज  आइटम ,अनुज जी आ रहे हैं । एक्सपर्ट हैं अपनी फील्ड के और ऊपर तक पहुंच में भी कमी  नहीं है । "
"वाऊ । अनुज जी और यहां । रूक जरा । "
 इससे पहले कि अकादमी  के सर्वे-सर्वा अनुज जी , किसी और से मुखातिब होते , वे तपाक से उनके सामने जा खड़ी हुई ,  
"अनुज जी ! मी , आयुषी !  नावल 'अल्पज्ञ ' की उपन्यासकार  , आपने इस उपन्यास को नोटिस में भी लिया है। स्वागत है एक पारखी का इस पार्टी में।"
अनुज जी ने मुस्कुरा कर अपना  हाथ आगे कर  दिया ।
इसके पहले कि अनुज जी कुछ कहते , उन्हीने उन हाथों को मजबूती से अपने हाथों की कटोरिओं में जकड़  लिया और तब तक जकड़े  रहीं जब तक अनुज जी ने आग्रह नहीं किया , " चलिए अब कार्क्रम की ओर चलें ।  बाकी बातें कभी घर आइये ,वहां आराम से बैठकर करेंगें । "
उन्होंने मुस्कुराकर सहमति की मुद्रा में  सिर हिलाया और उनके साथ मंच की ओर चल पड़ीं ।
तालियां , पूरे हाल मेंअपने - अपने अंदाज में  बज रहीं थीं  ।

-0-

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - श्याम पार्क एक्सटेंशन,  
साहिबाबाद -   ( उत्तर प्रदेश )
मो 9911127277

सोमवार, 16 सितंबर 2019

मिन्नी मिश्रा की चार लघुकथाएँ


1)


कीचड़ में कमल

साड़ी का खूँट पकड़कर मेरा बेटा मुझसे हठ करने लगा, “अम्मा कीचड़ में क्या खिलता है...बताओ न?”  

“अरे...हट, तंग मत कर। देख, कितने घने बादल हैं... जोर से बारिश आने वाली है, जल्दी-जल्दी बिचड़ा लगाकर घर जाना है मुझे। कल से घर में चूल्हा नहीं जला है। पता नहीं...इंद्र देव क्यों कुपित हो गये हैं? आज भी ओले बन कहर बरपायेंगे तो घर में खाना-पीना..रहना सब दूभर हो जाएगा! जलावन सूखी बची रहेगी या...फिर.. कल की तरह, सत्तू खाकर ही दिन काटना पड़ेगा और इधर... बिचड़ों के लिए अलग ही ध्यान टँगा रहेगा।”

“अम्मा...पहले मुझे बताओ...न?”

“तू भी..सच में...बड़ा जिद्दी है। बिना बताये कभी मानता कहाँ। कीचड़ में बिचड़ों का मुस्कुराना,  मुझे बहुत ही सुकून देता है। रे...तू क्या समझेगा...अभी इसी तरह अबोध जो है।”   
धान के बिचड़ों को कीचड़ सने हाथों से सहलाते हुए मैं बोली। 

“पर, अम्मा... किताबों में तो यही लिखा है कि कीचड़ में कमल खिलता है।”

“पढ़ा होगा तू !  जिस किताब की बात तू कर रहा है..न..वो भाषा मुझे नहीं सुहाती ! भूखे पेट...कीचड़ में कमल नहीं...मुझे,  धान की बालियाँ ही लुभाती है।”
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2)

रील बनाम रीयल


तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हॉल की सारी बत्तियां एक साथ जल उठी।

“कमाल का रोमांस,  बिल्कुल अमिताभ और रेखा की जोड़ी ।”  एक साथ कई आवाजें दर्शक-दीर्घा से आयी ।


“अरे...चल रहा होगा दोनों में रोमांस । थियेटर-सिनेमा में काम करने वाले लोगों के लिए प्यार की परिभाषाएं कुछ अलग होती है ! जहाँ-जिससे मिले,  दोस्ती..प्यार में बदल गई । पति-पत्नी कहने भर के लिए होते हैं। यूज़ एंड थ्रो वाला हिसाब-किताब, हा..हा..हा... ।”   
फिर से कुछ तेज आवाजें ...मेरे कानों में गर्म सलाखों की तरह चुभने लगी।

लोग अपना टेंशन दूर करने रंगमंच का खूब रसास्वादन करते हैं।  पर, जैसे ही पटाक्षेप होता है.. इनकी रंग बदलते देर नहीं लगती। भिड़ जाते हैं, नायक-नायिका की बखिया उधेड़ने में।  जैसे खुद कितने दूध के धुले हों!

मैं, साथी कलाकार (रोहित) के साथ, खचाखच भीड़ से बचते हुए हॉल से बाहर निकल आयी । सीधे पार्किंग में लगी गाड़ी की तरफ आगे बढ ही रही थी,  कि रोहित ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा ,  ”रुको.., मुझे अभी तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी है ।”

“अभी नहीं रोहित ,  जल्दी घर पहुंचना है।”  अपना हाथ खींचते हुए मैं बोली।

“प्लीज, मेरे लिए दो मिनट रुक जाओ।”

“अच्छा...जल्दी से बताओ।“

“ मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।”

“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है। रोहित, रील लाइफ और रीयल लाइफ में बहुत का अंतर होता है। पता है न..शादी में दोनों परिवारों को भी जुड़ना पड़ता है?”

“हाँ....सब पता है। मेरे परिवार में सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ। माँ से तुम पहले ही फंक्शन में मिल चुकी हो।”  रोहित एक ही सांस में सारी बातें कह गया ।

“ और,मेरे परिवार में?  मैंने तो तुम्हें...विधवा हूँ...सिर्फ  इतना ही बताया था? और कुछ भी नहीं!"

“अरे...मैडम जी ,  मुझे सब पता है । तुम्हारे ड्राईवर से तुम्हारे बारे में मैंने सब कुछ पता कर लिया है। तभी से तो मैं ,तुमसे बेहद प्यार करने लगा हूँ। तुम्हारी एक अपाहिज बेटी भी है? उसी के इलाज के लिए तुम ये सब कर रही हो।”  रोहित मुस्कुराते हुए बोला।

मैं ठगी सी रोहित को देखती रही। वो अपलक मुझे निहारता रहा।

"जाने से पहले एक बात तुम्हें बताना चाहता हूँ, मुझे अपनी संतान की इच्छा नहीं है। हां, तुम्हारी बेटी का पिता कहलाना मुझे अच्छा लगेगा। अब, आगे  निर्णय तुम्हारे हाथों में है।"

मैं चुपचाप...रोहित को जाते हुए देख रही थी । वह आज मुझे मर्द कम देवता अधिक नजर आ रहा था।
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3)

बाल सखा

“फिर तुम.. इतनी रात को ! देखो, शोर मत मचाओ, सभी सोये हैं..जग जायेंगे । तुम्हे पता है न..समय के साथ सभी को नाचना पड़ता है। 
बच्चे स्कूल जाते हैं, पति काम पर , और मैं...मूरख,  अकेली दिनभर इस कोठी का धान उस कोठी करती रहती हूँ । चाहे घर के पीछे अपना जीवन खपा दो, घर के कामों का कोई मोल नहीं देता !
खैर, छोड़ो इसे। बचपन में तुम्हारे साथ बिताये पल,  मुझे हमेशा सताते रहता है। पर,  मैं तुम्हारी तरह स्वच्छंद उड़ान नहीं भर सकती।
समय के साथ रिश्तों की अहमियत बदल जाती है । अब तो मैं बाल-बच्चेदार वाली हो गयी हूँ और तुम,  वही कुंवारे के कुंवारे!
तुम क्या जानो शादी के बाद क्या सब परिवर्तन होता है ! ओह ! फिर से शोर,  बस भी करो या..र ! पता है मुझे , बिना देखे तुम जाओगे नहीं ! ठीक है, खिड़की के पास आती हूँ,  देखकर तुरंत वापस लौट जाना।"

जैसे ही मैं खिड़की के पास पहुंची,  एकाएक बिजली की कौंध से ... उसका, वही नटखट चेहरा,  साफ़-साफ़ दिख गया । दिल के कोने में दबा प्यार फिर से हिलकोर मारने लगा।

मैं..झट दरवाजा खोल बाहर निकल आई। दरवाजे की चरमराहट से पति जगते ही चिल्लाये,  “ क्या हुआ?  कहाँ जा रही हो ?”   कहते-कहते वो भी मेरे पीछे दरवाजे के पास आ पहुँचे।

सामने टकटकी लगाये, उताहुल खड़ा... मेरा बाल सखा ‘तूफान' और अंदर,  सुरक्षा का ढाल लिए खड़े पति।  अकस्मात,  दहलीज से बाहर निकले मेरे पैर... कमरे में फिर से कैद हो गए।

मेरी नजरें तूफ़ान और टिकी रही। बाहर खड़ा तूफान एकदम शांत हो गया। शायद अब तक वो समझ चुका था कि औरत ख्वाबों में उड़ान भरने से ज्यादा अपने को महफ़ूज रखना अधिक पसंद करती है। 

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4)

गर्भपात

“चाचा ओ चाचा (घोंसला )... सो गये क्या ?” सभी बच्चे (अंडे) एकसाथ चिल्लाये ।

“हाँ..थोड़ी झपकी लग गई। घर का मुखिया हूँ..न..रात को ठीक से सो भी नहीं पाता।”

"सो तो है चाचा ,  आप सर्दी-गर्मी, आंधी-तूफ़ान सभी से हमें बचाते हैं। पर, चाचा बात ही कुछ ऐसी है बहुत घबराहट सी हो रही है।”

“क्या बात है? बताओ तो।”

कल हमने मकान मालिक को बोलते सुना था,  “अगले हफ्ते दीपावली है ...घर के कोने-कोने की सफाई होगी, और रंग-रोगन भी। 
चाचा, अब, हमलोगों का क्या होगा?  यहाँ हम ,सीढी-घर के रोशनदान में कितने बेफिक्र और महफूज रहते आये हैं । आज बहुत  भयभीत हैं दीपावली की सफाई में, हमारी भी सफाई....तय ही समझो।”

“अरे...शुभ-शुभ बोल। चिंता किस बात की मैं हूँ..न!”  
बच्चों को ढाढ़स बांधते हुए चाचा खखसकर बोले।

“धपर...धपर....की आवाज,  लगता है कोई सीढ़ी पर चढ़ रहा है । वो...सामने देखिये...आ गई महिला सफाईकर्मी । चाचा, वो किसी को नहीं बकसेगी । बहुत निर्दयी होकर झाड़ू चलाती है । सोचेगी भी नहीं कि इसमें किसी जोड़े का सपना सजा है ।“   सफाईकर्मी को देखते ही अंडों में हडकंप मच गया ।

”बच्चों, जब तुम्हें पता था, तो.. तुमने अपनी माँ को क्यों नहीं बताया? वो आज तिनका लाने नहीं जाती?”   मौत को सामने खड़ा देख घोंसला खुद को असहाय महसूस करने लगा।

“ हमें माँ की चिंता सताए जा रही है। चाचा, वो यहाँ पहुंचेगी और हमें ढूंढेगी,  हमारी लाश तक का जब कोई ठिकाना उसे नहीं मिलेगा... फिर क्या बीतेगी माँ पर!  बेचारी के सभी संजोये सपने... दीपावली के चकाचौंध में तिनके की तरह बिखर जायेंगे।”

सफाईकर्मी तेजी से हमलोगों के करीब आ पहुंची। उसके हाथ की झाड़ू पर नजर पड़ते ही,  बलि के बकड़े की तरह हमसभी थरथराने लगे और दिल धौकनी की तरह धड़कने लगी। 

वो फुसफुसाई, “बहुत तेज दर्द हुआ था मुझे... जब मेरे घरवालों ने भ्रूण-परीक्षण के बहाने मेरा गर्भपात करवाया था ।

बच्चों, मैं भी स्त्री हूँ... तुम्हारी माँ की पीड़ा अच्छी तरह समझ सकती हूँ।“ 
कहते हुए सफाईकर्मी ने अपनी दिशा बदल ली ।
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