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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी


बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत रेडियो प्ले बैक इंडिया हमें कई कहानियाँ/लघुकथाएं  सुनवाते रहे हैं । लघुकथा "एक गिलास पानी" भी यहाँ  सुन सकते हैं। स्वर दिया है सुश्री पूजा अनिल ने। इसका कुल प्रसारण समय  3 मिनट 44 सेकण्ड है। यह निम्न लिंक पर उपलब्ध है। क्लिक करें और सुनें।

http://radioplaybackindia.blogspot.com/2018/10/Laghukatha-Chandresh-Kumar-Chhatlani.html

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

अमृतसर रेल दुर्घटना विभीषिका पर 5 लघुकथाएं

(1). मेरा जिस्म

एक बड़ी रेल दुर्घटना में वह भी मारा गया था। पटरियों से उठा कर उसकी लाश को एक चादर में समेट दिया गया। पास ही रखे हाथ-पैरों के जोड़े को भी उसी चादर में डाल दिया गया। दो मिनट बाद लाश बोली, "ये मेरे हाथ-पैर नहीं हैं। पैर किसी और के - हाथ किसी और के हैं।
"तो क्या हुआ, तेरे साथ जल जाएंगे। लाश को क्या फर्क पड़ता है?" एक संवेदनहीन आवाज़ आई।
"वो तो ठीक हैलेकिन ये ज़रूर देख लेना कि मेरे हाथ-पैर किसी ऐसे के पास नहीं चले जाएँ, जिसे मेरी जाति से घिन आये और वे जले बगैर रह जाएँ।"
"मुंह चुप कर वरना..." उसके आगे उस आवाज़ को भी पता नहीं था कि क्या कहना है।


(2). ज़रूरत

उस रेल दुर्घटना में बहुत सारे लोग मर चुके थे, लेकिन उसमें ज़रा सी जान अभी भी बची थी। वह पटरियों पर तड़प रहा था कि एक आदमी दिखा। उसे देखकर वह पूरी ताकत लगा कर चिल्लाया, "बचाओ.... बsचाओ...."
आदमी उसके पास आया और पूछा, "तुम ज़िंदा हो?"
वह गहरी-गहरी साँसे लेने लगा।
"अरे! तो फिर मेरे किस काम के?"
कहकर उस आदमी ने अपने साथ आये कैमरामैन को इशारा किया और उसने कैमरा दूसरी तरफ घुमा दिया।

(3), मौका

एक समाज सेवा संस्था के मुखिया ने अपने मातहत को फ़ोन किया, "अभी तैयार हो जाओ, एक रेल दुर्घटना में बहुत लोग मारे गए हैं। वहां जाना है, एक घंटे में हम निकल जाएंगे।"
"लेकिन वह तो बहुत दूर है।" मातहत को भी दुर्घटना की जानकारी थी।
"फ्लाइट बुक करा दी है, अपना बैनर और विजिटिंग कार्ड्स साथ ले लेना।"
"लेकिन इतनी जल्दी और वो भी सिर्फ हम दोनों!" स्वर में आश्चर्य था।
"उफ्फ! कोई छोटा कांड हुआ है क्या? बैनर से हमें पब्लिसिटी मिलेगी और मेला चल रहा था। हमसे पहले जेवरात वगैरह दूसरे अनधिकृत लोग ले गये तो! समय कहाँ है हमारे पास?"

(4). संवेदनशील

मरने के बाद उसे वहां चार रूहें और मिलीं। उसने पूछा, "क्या तुम भी मेरे साथ रेल दुर्घटना में मारे गए थे?"
चारों ने ना कह दिया।
उसने पूछा "फिर कैसे मरे?"
एक ने कहा, "मैनें भीड़ से इसी दुर्घटना के बारे में पूछा कि ईश्वर के कार्यक्रम में लोग मरे हैं। तुम्हारे ईश्वर ने उन्हें क्यूँ नहीं बचाया, तो भीड़ ने जवाब में मुझे ही मार दिया।"
वह चुप रह गया।
दूसरे ने कहा, "मैंने पूछा रेल तो केंद्र सरकार के अंतर्गत है, उन्होंने कुछ क्यूँ नहीं किया? तो लोगों ने मेरी हत्या कर दी।"
वह आश्चर्यचकित था।
तीसरे ने कहा, "मैनें पूछा था राज्य सरकार तो दूसरे राजनीतिक दल की है, उसने ध्यान क्यूँ नहीं रखा? तब पता नहीं किसने मुझे मार दिया?"
उसने चौथे की तरफ देखा। वह चुपचाप सिर झुकाये खड़ा था।
उसने उसे झिंझोड़ कर लगभग चीखते हुए पूछा, “क्या तुम भी मेरे बारे में सोचे बिना ही मर गए?"
वह बिलखते हुए बोला, "नहीं-नहीं! लेकिन इनके झगड़ों के शोर से मेरा दिल बम सा फट गया।"

(5). और कितने

दुर्घटना के कुछ दिनों बाद देर रात वहां पटरियों पर एक आदमी अकेला बैठा सिसक रहा था।
वहीँ से रात का चौकीदार गुजर रहा था, उसे सिसकते देख चौकीदार ने अपनी साइकिल उसकी तरफ घुमाई और उसके पास जाकर सहानुभूतिपूर्वक पूछा, "क्यूँ भाई! कोई अपना था?"
उसने पहले ना में सिर हिलाया और फिर हाँ में।
चौकीदार ने अचंभित नज़रों से उसे देखा और हैरत भरी आवाज़ में पूछा, " भाई, कहना क्या चाह रहे हो?"
वह सिसकते हुए बोला, "थे तो सब मेरे अपने ही... लेकिन मुझे जलता देखने आते थे। मैं भी हर साल जल कर उन्हें ख़ुशी देता था।"
चौकीदार फिर हैरत में पड़ गया, उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "तुम रावण हो? लेकिन तुम्हारे तो एक ही सिर है!"
"कितने ही पुराने कलियुगी रावण इन मौतों का फायदा उठा रहे हैं और इस काण्ड के बाद कितने ही नए कलियुगी रावण पैदा भी हो गए। मेरे बाकी नौ सिर उनके आसपास कहीं रो रहे होंगे।"


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

लघुकथा समाचार

‘कम शब्दों में मानव मन को झकझोर देती है लघुकथा’
Swatva Samachar | October 15, 2018 | पटना 

आज के दौर में साहित्य की सबसे अच्छी विधा लघुकथा है। कम शब्दों में सारगर्भित रचना जो इंसानी मन को झकझोर दे वही लघुकथा है। उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने साहित्यिक संस्था लेख्य-मंजूषा और अमन स्टूडियो के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित लघुकथा कार्यशाला में कही।

लघुकथा की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि बहुत लोग अंग्रेजी के सिनॉप्सिस को लघुकथा समझते हैं, तो कुछ लोग अंग्रेजी की शार्ट स्टोरी को लघुकथा समझते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। दोनों अलग-अलग भाषाएं हैं। लघुकथा अपने आप में एक पूरी विधा है।

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि प्रोफेसर अनिता राकेश ने कहा कि आज के युवा इस क्षेत्र में काफी अच्छा कर रहे हैं। लघुकथा के क्षेत्र में आज शोध के लिए बहुत सारी लिखित सामग्री उपलब्ध हैं।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव कुमार ने कार्यशाला में भाग ले रहे बच्चों को लघुकथा के शिल्प संरचना के पहलुओं से अवगत करवाया। लघुकथा के इतिहास के बारे में जानकारी दी।

लेख्य-मंजूषा की अध्य्क्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने लघुकथा के पितामह सतीशराज पुष्करणा के आलेख को बच्चों के लिए पढ़ा।

इस मौके पर हरियाणा से छपने वाली पुस्तक “लघुकथा कलश” का विमोचन भी किया गया। इस पुस्तक में बिहार के तमाम लघुकथाकारों की लघुकथा प्रकाशित है। मिर्ज़ा ग़ालिब टीचर ट्रेनिंग कॉलेज की छात्राओं ने लघुकथा से संबंधित अपने सवाल किए।

दूसरे-तीसरे सत्र में सभी प्रतिभागियों ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। वहीं अमन स्टूडियो और लेख्य-मंजूषा ने भविष्य में शार्ट फ़िल्म बनाने की बात कही। इस मौके पर भोजपुरी फ़िल्म ‘माई’ के स्क्रिप्ट राइटर  मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन शायर नसीम अख्तर ने किया।

News Source:
https://swatvasamachar.com/bihar-update/patna/kum-sabdo-mein-manav-man-ko-jhakjhor-deti-hai-laghukatha/

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

सत्यव्रत (लघुकथा)

"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी
कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।

लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा दिखाई दिया। घबराहट में उसके दूसरे हाथ से लोटा छूट कर नीचे गिरा और पानी ज़मीन पर बिखर गया। आँखों से भी आंसू निकल कर उस पानी में जा गिरे। उसका हृदय फिर बोला, "इन आंसूओं की क्या कीमत? पानी में पानी गिरा, माँ के आंचल में तो आंसू नहीं गिरे।"

यह सुनते ही उसे कुछ याद आया, उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी और वहां रखी आरती की थाली लेकर दौड़ता हुआ वह बाहर चला गया। बाहर जाकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज़ गति से गाड़ी चलाते हुए ले गया। स्टीयरिंग संभालते उसके हाथ राक्षसों की भाँती ही थे। जैसे-तैसे वह एक जगह पहुंचा और गाडी रोक कर दौड़ते हुए अंदर चला गया। अंदर कुछ कमरों में झाँकने के बाद एक कमरे में उसे एक महिला बैठी दिखाई दी। बदहवास सा वह कमरे में घुसकर उस महिला के पैरों में गिर गया। फिर उसने आरती की थाली में रखा दीपक जला कर महिला की आरती उतारी और कहा, "माँ, घर चलो। आपको भोग लगाना है।"

वह महिला भी स्तब्ध थी, उसने झूठ भरी आवाज़ में कहा "लेकिन बेटे इस वृद्धाश्रम में कोई कमी नहीं।"

"लेकिन वहां तो… आपके बिना वह अनाथ-आश्रम है।" उसने दर्द भरे स्वर में कहा ।

और जैसे ही उसकी माँ ने हाँ में सिर हिला कर उसका हाथ पकड़ा, उसे अपने हाथ पहले की तरह दिखाई देने लगे।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

लघुकथा समाचार

प्रज्ञा साहित्यिक मंच ने की लघुकथा गोष्ठी
Danik Jagran | Rohtak | 08 Oct 2018


प्रज्ञा साहित्यिक मंच और हरियाणा प्रदेश लघुकथा मंच ने सोमवार को शहीद दीपक शर्मा पार्क स्थित सार्वजनिक पुस्तकालय में संयुक्त रूप से लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम में प्रो. श्यामलाल कौशल के काव्य संकलन ए ¨जदगी का लोकार्पण हुआ। इस मौके पर डा. मधुकांत ने बताया कि काव्य संकलन में आम आदमी के जीवन से रूबरू कराती कविताएं हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता हरियाणा स्टडी सेंटर महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय की निदेशिका डा. अंजना गर्ग ने की व मंच संचालन वंदना ने किया। इस मौके पर पवन मित्तल ने लघुकथा कीमत, रामकिशन राठी ने कविता, राजगुरू ने एक बेटी का पिता, विजय ने कल्पना, विजय लक्ष्मी ने अंतरद्वंद्व, डा. मधुकांत ने हिस्से का टूक, डा. अंजना शर्मा ने अनाथ आश्रम, स्नेहा बंसल ने पति परमेश्वर, शाम लाल कौशल ने सभ्य आदमी, स्पनिल ने रक्तदान, डा. रमाकांत ने हीरा, आशा अत्री ने विस्फोट आदि रचनाएं पढ़ी। इसके अतिरिक्त वंदना मलिक, राजल गुप्ता, कविल कौशिक, जेपी गौड़ ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।

News Source:
https://www.jagran.com/haryana/rohtak-pradnya-literary-platform-short-story-geshthi-18514902.html

शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

लघुकथा समाचार

दिल की गहराइयों को छू जाती है सिमर सदोष की लघु कथाएं: जेबी गोयल
साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां का पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का विमोचन
Amar Ujala | Jalandhar  | 06 Oct 2018


साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथाएं दिल को छू जाती हैं। उनकी हर कथा में सामाजिक कुरीति पर जबरदस्त प्रहार किया गया हैं, जो उनकी कल्पना शक्ति की ताकत बयान करता है। यह कहना था लेखक और जालंधर के पूर्व कमिश्नर जंग बहादुर गोयल का। गोयल वरिष्ठ साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह ‘एक मुट्ठी आसमां’ के पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का लोकार्पण कर रहे थे।

साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां को युवा पत्रकार और लेखक दीपक शर्मा चनारथल ने पंजाबी में अनुवाद किया हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब कला परिषद के महासचिव डॉ. लखविंदर सिंह सोहल ने की। पुस्तक रिलीज के दौरान लेखक दीपक चनारथल ने कहा कि सिमर सदोष की लघु कथाएं अपने आप में संपूर्ण है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सिमर ने जितना अहम योगदान दिया है, उतना ही योगदान साहित्य में भी है।

मुख्य मेहमान जंग बहादुर गोयल व डॉ. लखविंदर जोहल ने कहा कि लघु कहानियां साहित्य की सबसे सुंदर विधा है। उन्होंने हिंदी कहानियों को पंजाब के लोगों तक पंजाबी में पहुंचाने का आभार प्रकट किया। साहित्यकार सिमर सदोष ने दीपक चनारथल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उनके लघु कथा संग्रह को पंजाबी में अनुवाद कर उन्होंने पंजाब के लोगों को तोहफा दिया हैं। कार्यक्रम का संचालन भूपेंद्र मालिक ने किया और सभा के प्रधान बलकार सिद्धू ने मेहमानों का आभार प्रकट किया। इस मौके पर मोहन सपरा, अजय शर्मा, प्रेम विज, मनजीत कौर मीत, राकेश शर्मा पाल अजनबी, डॉ. अवतार सिंह, संजीव शारदा, अशोक सिंह मौजूद थे।

News Source:
https://www.amarujala.com/punjab/jalandhar/121538843995-jalandhar-news

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

लघुकथा वीडियो


लघुकथा वीडियो 
लेखक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी | वाचन: राजेंद्र भट्ट 


जानवरीयत- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी / Rajendera Bhatt





गर्व (हीनभावना)- डा. चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendra Bhatt


पश्चाताप- डा. चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendra Bhatt





मृत्युदंड - डा. चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendra Bhatt/ क्यूँ मिला श्री कृष्ण को मृत्युदंड ?






ख़ज़ाना- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendera Bhatt




अदृश्य जीत-डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendra bhatt



शह की सन्तान- डा. चंद्रेश कुमार छतलानी/ Rajendera Bhatt