सड़क पर एक लड़के को रोटी हाथ
में लेकर आते देख अलग-अलग तरफ खड़ीं वे दोनों उसकी तरफ भागीं। दोनों ही समझ रही थीं
कि भोजन उनके लिए आया है। कम उम्र का वह लड़का उन्हें भागते हुए आते देख घबरा गया
और रोटी उन दोनों में से गाय की तरफ फैंक कर लौट गया। दूसरी तरफ से भागती आ रही
भैंस तीव्र स्वर में रंभाई, “अकेले मत खाना इसमें मेरा भी हिस्सा है।”
गाय ने उत्तर दिया, “यह
तेरे लिए नहीं है... सवेरे की पहली रोटी मुझे ही मिलती है।”
“लेकिन क्यूँ?” भैंस ने उसके
पास पहुँच कर प्रश्न दागा।
“क्योंकि यह बात धर्म कहता
है... मुझे ये लोग माँ की तरह मानते हैं।” गाय जुगाली करते हुए रंभाई।
“अच्छा! लेकिन माँ की तरह दूध तो मेरा भी पीते
हैं, फिर तुम्हें अकेले ही को...” भैंस आश्चर्यचकित थी।
गाय ने बात काटते हुए
दार्शनिक स्वर में प्रत्युत्तर दिया, “मेरा दूध न केवल बेहतर है, बल्कि और भी कई
कारण हैं। यह बातें पुराने ग्रन्थों में लिखी हैं।”
“चलो छोडो इस प्रवचन को, कहीं
और चलते हैं मुझे भूख लगी है...” भूख के कारण भैंस को गाय की बातें उसके सामने
बजती हुई बीन के अलावा कुछ और प्रतीत नहीं हो रहीं थीं।
“हाँ! भूखे भजन न होय गोपाला। पेट तो मेरा भी नहीं भरा। ये लोग भी सड़कों पर घूमती कितनी गायों को भरपेट खिलाएंगे?”
गाय ने भी सहमती भरी।
और वे दोनों वहां से साथ-साथ
चलती हुईं गली के बाहर रखे कचरे के एक बड़े से डिब्बे के पास पहुंची, सफाई के अभाव
में कुछ कचरा उस डिब्बे से बाहर भी गिरा हुआ था|
दोनों एक-दूसरे से कुछ कहे बिना वहां गिरी हुईं प्लास्टिक की थैलियों में मुंह मारने लगीं।
- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी