मेरी लघुकथा लेखन प्रक्रिया- चंद्रेश छतलानी
आज हम आप का परिचय एक ऐसे साहित्यकार से करवा रहे है जो लघुकथा के क्षेत्र में अपनी अनोखी रचना प्रक्रिया के लिए जाने जाते हैं. आप की लघुकथाएँ अपनेआप में पूर्ण तथा सम्पूर्ण लघुकथा के मापदंड को पूरा करने की कोशिश करती हैं. हम ने आप से जानना चाहा की आप अपनी लघुकथा की रचना किस तरह करते है ? ताकि नए रचनाकार आप की रचना प्रक्रिया से अपनी रचना प्रक्रिया की तुलना कर के अपने लेखन में सुधार ला सके.
लघुकथा के क्षेत्र में अपना पाँव अंगद की तरह ज़माने वाले रचनाकार का नाम है आदरणीय चंद्रेश कुमार छ्तलानी जी. आइए जाने आप की रचना प्रक्रिया---
ओमप्रकाश क्षत्रिय- चंद्रेश जी ! आप की रचना प्रक्रिया किस की देन है ? या यूँ कहे कि आप किस का अनुसरण कर रहे हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- आदरणीय सर ! हालाँकि मुझे नहीं पता कि मैं किस हद तक सही हूँ . लेकिन आदरणीय गुरूजी (योगराज जी प्रभाकर) से जो सीखने का यत्न किया है, और उन के द्वारा कही गई बातों को आत्मसात कर के और उन की रचनाएँ पढ़ कर जो कुछ सीखा समझा हूँ, उस का ही अनुसरण कर रहा हूँ.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा लिखने के लिए आप सब से पहले क्या-क्या करते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले तो विषय का चयन करता हूँ . वो कोई चित्र अथवा दिया हुआ विषय भी हो सकता है. कभीकभी विषय का चुनाव स्वयं के अनुभव द्वारा या फिर विचारप्रक्रिया द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता हूँ.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- विषय प्राप्त करने के बाद आप किस प्रक्रिया का पालन करते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी - सब से पहले विषय पर विषय सामग्री का अध्ययनमनन करता हूँ. कहीं से भी पढता अवश्य हूँ . जहाँ भी कुछ मिल सके- किसी पुस्तक में, इन्टरनेट पर, समाचार पत्रों में, धार्मिक ग्रन्थों में या पहले से सृजित उस विषय की रचनाओं आदि को खोजता हूँ. इस में समय तो अधिक लगता है . लेकिन लाभ यह होता है कि विषय के साथ-साथ कोई न कोई संदेश मिल जाता है.
इस में से जो अच्छा लगता है उसे अपनी रचना में देने का दिल करता है उसे मन में उतर लेता हूँ. यह जो कुछ अच्छा होता है उसे संदेश के रूप में अथवा विसंगति के रूप में जो कुछ मिलता है, जिस के बारे में लगता है कि उसे उभारा जाए तो उसे अपनी रचना में ढाल कर उभार लेता हूँ.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- मान लीजिए कि इतना करने के बाद भी लिखने को कुछ नहीं मिल पा रहा है तब आप क्या करते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- जब तक कुछ सूझता नहीं है, तब तक पढता और मनन करता रहता हूँ. जबतक कि कुछ लिखने के लिए कुछ विसंगति या सन्देश नहीं मिल जाता.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद ?
चंद्रेश कुमार छतलानी - इस विसंगति या संदेश के निश्चय के बाद मेरे लिये लिखना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है . तब कथानक पर सोचता हूँ . कथानक कैसे लिखा जाए ? उस के लिए स्वयं का अनुभव, कोई प्रेरणा, अन्य रचनाकारों की रचनाएं, नया-पुराना साहित्य, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, आदि से कोई न कोई प्रेरणा प्राप्त करता हूँ. कई बार अंतरमन से भी कुछ सूझ जाता है . उस के आधार पर पंचलाइन बना कर कथानक पर कार्य करता हूँ .
ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस प्रक्रिया में हर बार सफल हो जाते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- ऐसा नहीं होता है, कई बार इस प्रक्रिया का उल्टा भी हो जाता है . कोई कथानक अच्छा लगता है तो पहले कथानक लिख लेता हूँ और पंचलाइन बाद में सोचता हूँ . तब पंचलाइन कथानक के आधार पर होती है .
ओमप्रकाश क्षत्रिय- आप अपनी लघुकथा में पात्र के चयन के लिए क्या करते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- पहले कथानक को देखता हूँ. उस के आधार पर पात्रों के नाम और संख्या का चयन करता हूँ. पात्र कम से कम हों अथवा न हों . इस बात का विशेष ध्यान रखता हूँ.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा के शब्द संख्या और कसावट के बारे में कुछ बताइए ?
चंद्रेश कुमार छतलानी - मैं यह प्रयास करता हूँ कि लघुकथा 300 शब्दों से कम की हो. हालाँकि प्रथम बार में जो कुछ भी कहना चाहता हूँ उसे उसी रूप में लिख लेता हूँ. वो अधिक बड़ा और कम कसावट वाला भाग होता है, लेकिन वही मेरी लघुकथा का आधार बन जाता है . कभीकभी थोड़े से परिवर्तन के द्वारा ही वो कथानकलघुकथा के रूप में ठीक लगने लगता है. कभीकभी उस में बहुत ज्यादा बदलाव करना पड़ता है.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- लघुकथा को लिखने का कोई तरीका हैं जिस का आप अनुसरण करते हैं ?
चंद्रेश कुमार छतलानी - लघुकथा सीधी ही लिखता हूँ. हाँ , दो अनुच्छेदों के बीच में एक खाली पंक्ति अवश्य छोड़ देता हूँ, ताकि पाठकों को पढने में आसानी हो. यह मेरा अपना तरीका है. इस के अलावा जहाँ संवाद आते हैं वहां हर संवाद को उध्दरण चिन्हों के मध्य रखा देता हूँ . साथ ही प्रत्येक संवाद की समाप्ति के बाद एक खाली पंक्ति छोड़ देता हूँ. यह मेरा अपना तरीका हैं.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- इस के बाद आप लघुकथा पर क्या काम करते हैं ताकि वह कसावट प्राप्त कर सके ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के बाद लघुकथा को अंत में दो-चार बार पढ़ कर उस में कसावट लाने का प्रयत्न करता हूँ. मेरा यह प्रयास रहता है कि लघुकथा 300 शब्दों में पूरी हो जाए. (हालाँकि हर बार सफलता नहीं मिलती) . इस के लिए कभी किसी शब्दों/वाक्यों को हटाना पड़ता हैं . कभी उन्हें बदल देता हूँ . दो-चार शब्दों/वाक्यों के स्थान पर एक ही शब्द/वाक्य लाने का प्रयास करता हूँ.
कथानक पूरा होने के बाद उसे बार-बार पढ़ कर उस में से लेखन/टाइपिंग/वर्तनी/व्याकरण की अशुद्धियाँ निकालने का प्रयत्न करता हूँ. उसी समय में शीर्षक भी सोचता रहता हूँ . कोशिश करता हूँ कि शीर्षक के शब्द पंचलाइन में न हों और जो लघुकथा कहने का प्रयास कर रहा हूँ, उसका मूल अर्थ दो-चार शब्दों में आ जाए . मुझे शीर्षक का चयन सबसे अधिक कठिन लगता है.
ओमप्रकाश क्षत्रिय- अंत में कुछ कहना चाहेंगे ?
चंद्रेश कुमार छतलानी- इस के पश्चात प्रयास यह करता हूँ कि कुछ दिनों तक रचना को रोज़ थोड़ा समय दूं, कई बार समय की कमी से रचना के प्रकाशन करने में जल्दबाजी कर लेता हूँ, लेकिन अधिकतर 4 से 7 दिनों के बाद ही भेजता हूँ. इससे बहुत लाभ होता है.
यह मेरा अपना तरीका हैं. मैं सभी लघुकथाकारों से यह कहना चाहता हूँ कि वे अपनी लघुकथा को पर्याप्त समय दे, उस पर चिंतन-मनन करे. उन्हें जब लगे कि यह अव पूरी तरह सही हो गई हैं तकब इसे पोस्ट करे.