यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 24 नवंबर 2022

लघुकथा में विक्रम-बैताल शैली | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

बैताल पच्चीसी (वेतालपञ्चविंशतिः) की छोटी-कथाओं की तरह ही लघुकथा में भी इस शैली का प्रयोग किया जा सकता है. बैताल पच्चीसी के शिल्प की बातों के अतिरिक्त इस शैली में मेरे अनुसार निम्न बातों पर ध्यान दिया जा सकता है:

  • मूल बैताल पच्चीसी में बैताल द्वारा कहीं छोटी कहानी तो कहीं लघुकथा भी कही गई है, लेकिन इसमें बैताल द्वारा कही गई लघुकथा ही हो (एकांगी स्वरुप हो.) हालांकि इस बात का एक पक्ष यह भी है कि चूँकि बैताल कह रहा है अतः यह अपने आप में एकांगी है और तब उसकी कथा में छूट ली जा सकती है, ठीक उसी प्रकार जैसे फ्लैशबैक तकनीक, डायरी शैली आदि में रचनाकर्म किया जाता है. आगे जो पहली रचना है उसे कुछ ऐसा ही रखा गया है.
  • बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा स्पष्ट हो.
  • बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा को बैताल द्वारा ही अंतिम स्वरुप न देकर उसे इस तरह से आगे बढाना है कि अंत तक आते-आते वह रचना एक प्रश्न का सर्जन कर ले.
  • उपरोक्त बिंदु में कहा गया प्रश्न ही बैताल विक्रम से पूछे और विक्रम उसका उत्तर दे. इस भाग (उत्तर) में जो विशेष बात मुझे समझ में आती है कि लघुकथा का एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ या वास्तविक विषय विक्रम के उत्तर में उजागर हो सकता है.
  • बाकी रचना के प्रारम्भ में विक्रम द्वारा बैताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादना, बैताल द्वारा मौन रहने की शर्त और अंत में फिर उड़ जाना, वो तो हो ही सकता है.

किसी भी शैली में सुधार सतत प्रक्रिया है. लेखक/लेखिकाएं केवल उपरोक्त बिन्दुओं पर ही निर्भर न रहें, स्वयं भी सोचें व प्रयोग करें. निवेदन है. उपरोक्त बिन्दुओं में कमियाँ भी हो सकती हैं. आप सभी की सलाहों का स्वागत है.

यहाँ पहले विक्रम-बेताल शैली की लघुकथा व शैली का थोड़ा सा प्रयोग कर एक अन्य लघुकथा का प्रयास किया है, यह दोनों रचनाएं निम्न हैं:

बातों के पीछे / चंद्रेश कुमार छतलानी

(प्रथम ड्राफ्ट)

बैताल को पकड़ने विक्रम फिर श्मशान में पेड़ पर लटके बैताल के पास गया। उसे उतारकर अपने कंधे पर लादा और ले चला। बैताल ने हँसते हुए एक कथा फिर, विक्रम के मौन रहने की शर्त के साथ, कहनी शुरू की। कथा इस तरह से थी,

एक राजा ने उसके राज्य में सोने के सिक्कों का चलन बंद कर ताम्बे के सिक्के शुरू कर दिए। दोनों धातुओं की मुद्राओं का मूल्य और वज़न बराबर था। राजा और उसके मंत्रियों ने जनता से कहा कि एक तो सोने के सिक्के महंगे पड़ते हैं और इसका संग्रह कर लोग इस चमकती धातु से काला धन इकठ्ठा कर रहे हैं। अतः यह बदल दी गई है। सभी को आदेश दिया जाता है कि दस दिनों के अंदर-अंदर सभी पुरानी मुद्रा को नई से बदलवा लें, उसके बाद जिस किसी के पास भी पुरानी मुद्रा पाई गई उसे दण्ड मिलेगा।

राजा के कुछ विरोधी बहुत धनवान थे और उनके पास बहुत सारे सोने की मुद्राएं जमा की हुईं थी, उन्हें चिंता हो गई क्योंकि अब उनका धन जब बदलवाया जाएगा तो सभी को पता चल जाएगा कि उनके पास बहुत ज़्यादा धन है। राजा के एक मंत्री ने क्या किया कि, किसी को कानोंकान खबर हुए बिना उन विरोधियों से पुराने सिक्के लेकर नए सिक्के दे दिए।

लेकिन यह बात किसी तरह राज्य दरबार में पता चल गई। राजा ने पूरी बात सुनकर मंत्री की तरफ देखा, मंत्री मुस्कुराया, उसे मुस्कुराते देख राजा भी मुस्कुरा दिया और राजा ने मंत्री को सम्मान के साथ इस दोष से मुक्त कर दिया।

यह कथा सुनाकर बैताल ने विक्रम से पूछा कि, "बता विक्रम! मंत्री ने उसके विरोधियों का पूरे का पूरा धन नए में बदल दिया, फिर भी राजा ने उसे क्यों छोड़ा? अगर जानते हुए भी उत्तर नहीं देगा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।"

विक्रम ने उत्तर दिया कि "बैताल! वह मंत्री ताम्बे के सिक्कों के बदले में बराबर भार के सोने के सिक्के लाया। अगर राजा के विरोधी उस सोने को गला कर ताम्बे के सिक्के खरीदते तो बहुत ज्यादा मूल्य के होते और वे पहले से अधिक धनवान हो जाते। मंत्री की बुद्धिमानी राजा और राज्य के खजाने के लिए लाभदायक सिद्ध हुई।"

बैताल हँसते हुए बोला, "सच कहा विक्रम! काले धन की बात केवल डर के लिए फैलाई गई थी लेकिन असली मकसद विरोधियों का स्वर्ण निकालना था जो पूरा हुआ। राजनीति में कहा कुछ और जाता है और उसके पीछे मंतव्य कुछ और होता है। तूने कहा तो बिल्कुल सही, लेकिन तू बोल गया इसलिए मुझे जाना होगा।"

और अगले ही क्षण वह विक्रम के कंधे से उड़ कर श्मशान की तरफ चला गया।

-0-

उपरोक्त रचना पर एक टिप्पणी

उपरोक्त रचना में बेताल जब कथा सुनाता है तो, राजा के दरबार में मंत्री को बंदी बना कर लाया गया, यहाँ से भी प्रारम्भ कर सकते हैं और तब कोई अन्य दरबारी उस पूरी घटना का उल्लेख करे, जो  फिलहाल  दरबार  में लाये जाने के पूर्व में कहा गया है. 

यह तब किया जा सकता है, जब बेताल द्वारा कही जा रही कथा को भीआधुनिक लघुकथा की तरह ही न्यूनतम विवरण के साथ रखा जाना हो.  हालांकि इससे कथा में तो कुछ फर्क नहीं पडेगा, लेकिन लेखन का तरीका कुछ बदल जाएगा. 

-0-

एक अन्य लघुकथा जिसमें इस शैली में ही थोड़ा परिवर्तन (बेताल का प्रश्न पूछना हटा कर कथ्य में थोड़ा बदलाव) किया गया है. रचना इस प्रकार है:

गुलाम अधिनायक / चंद्रेश कुमार छतलानी

उसके हाथ में एक किताब थी, जिसका शीर्षक ‘संविधान’ था और उसके पहले पन्ने पर लिखा था कि वह इस राज्य का राजा है। यह पढने के बावजूद भी वह सालों से चुपचाप चल रहा था। उस पूरे राज्य में बहुत सारे स्वयं को राजा मानने वाले व्यक्ति भी चुपचाप चल रहे थे। किसी पुराने वीर राजा की तरह उन सभी की पीठ पर एक-एक बेताल लदा हुआ था। उस बेताल को उस राज्य के सिंहासन पर बैठने वाले सेवकों ने लादा था। ‘आश्वासन’ नाम के उस बेताल के कारण ही वे सभी चुप रहते। 

वह बेताल वक्त-बेवक्त सभी से कहता था कि, “तुम लोगों को किसी बात की कमी नहीं ‘होगी’, तुम धनवान ‘बनोगे’। तुम्हें जिसने आज़ाद करवाया है वह कहता था – कभी बुरा मत कहो। इसी बात को याद रखो। यदि तुम कुछ बुरा कहोगे तो मैं, तुम्हारा स्वर्णिम भविष्य, उड़ कर चला जाऊँगा।”

बेतालों के इस शोर के बीच जिज्ञासावश उसने पहली बार हाथ में पकड़ी किताब का दूसरा पन्ना पढ़ा। उसमें लिखा था – ‘तुम्हें कहने का अधिकार है’। यह पढ़ते ही उसने आँखें तरेर कर पीछे लटके बेताल को देखा। उसकी आँखों को देखते ही आश्वासन का वह बेताल उड़ गया। उसी समय पता नहीं कहाँ से एक खाकी वर्दीधारी बाज आया और चोंच चबाते हुए उससे बोला, “साधारण व्यक्ति, तुम क्या समझते हो कि इस युग में कोई बेताल तुम्हारे बोलने का इंतज़ार करेगा?”

और बाज उसके मुंह में घुस कर उसके कंठ को काट कर खा गया। फिर एक डकार ले राष्ट्रसेवकों के राजसिंहासन की तरफ उड़ गया।

-0-

आप सभी की राय अपेक्षित है. सादर, 

 - चंद्रेश कुमार छतलानी

मंगलवार, 22 नवंबर 2022

लघुकथा के शिल्प पर एक प्रयोग

कुछ माह पहले लघुकथा के शिल्प पर एक प्रयोग यह भी किया था. सफल-असफल तो पता नहीं, केवल छोटा-मोटा प्रयोग है. आप सभी की सलाहों का स्वागत है.

इस रचना में काफी कालखंडों को भी समेटने की कोशिश की है. अतः थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ी और असफल होने की गुंजाइश भी पूरी है. उसका डर नहीं है. यह तो केवल एक प्रयोग सा है. मेरे अनुसार भी इस लघुकथा पर बहुत सारा काम बाकी है.

(‘गणितीय टेबल शिल्प में बढ़ती लघुकथा’ के प्रयोग का दूसरा ड्राफ्ट)

टेबल के बाद... / चंद्रेश कुमार छतलानी

टू वन जा टू : दो साल की हो गई गुड़िया आज, चलना सीख रही है, माता-पिता बहुत खुश हैं.
टू टू जा फोर : आज चार साल की होकर माता-पिता को रिझा रही है. पढ़ना सीख रही है.
टू थ्री जा सिक्स : छः साल की हुई और स्कूल में फर्स्ट आई है. माता-पिता घमंड से खड़े हैं.
टू फोर जा एट : आठ साल की घर पर उसके दोस्त ही दोस्त हैं. माता-पिता उसके साथ एन्जॉय कर रहे हैं.
टू फाइव जा टेन : दस साल की हो गई, इस बार दोस्तों के साथ बाहर है. माता-पिता घर में अकेले हैं.
टू सिक्स जा ट्वेल्व : माँ की दोस्त बारह साल की हो गई, आज दिन भर फोन पर व्यस्त रही. माता-पिता से बात भी नहीं कर पाई.
टू सेवन जा फोर्टीन : स्कूल के एक दोस्त के साथ आज जन्मदिन मना रही है. रात देर से आई. माता-पिता इंतज़ार करते रहे.
टू एट जा सिक्सटीन : आज कह दिया कि अब उसकी ज़िन्दगी वह उसके हिसाब से ही जियेगी. माता-पिता कुछ दखल नहीं देंगे.
टू नाइन जा एटीन : व्यस्क होकर अपने किसी दोस्त के साथ लिव-इन में चली गई. माता-पिता देखते रह गए.
टू टेन जा ट्वेंटी : जिसके साथ रह रही थी, वह किसी और लड़की के साथ चला गया, माता-पिता की आँखें पत्थर जैसी हो गई हैं, और गुडिया...
वह अब आगे गिनने के लिए नहीं है.
-0-

(इसमें हालांकि //टू वन जा टू// वाली पंक्तियों में 'जा' सही न होते हुए भी अब बोलचाल में आ गया है, इसलिए उपयोग में लिया.)

- चंद्रेश कुमार छतलानी

शनिवार, 19 नवंबर 2022

लघुकथा में साक्षात्कार शैली का एक प्रयोग | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

एक मिश्रित शैली की लघुकथा को साक्षात्कार शैली में भी ढाला जा सकता है. एक उदाहरण का प्रयास किया है. यह एक साक्षात्कार और विवरण शैली की मिश्रित लघुकथा है, जो लघुकथा कलश के अंक 10 में प्रकाशित हुई थी:


प्रश्नशून्य काल/चंद्रेश कुमार छतलानी


"जब आप मुख्यमंत्री थे, तब तो आपने राज्य के विकास के लिए कुछ नहीं किया और अब विकास के यही सवाल आप वर्तमान सरकार से क्यों पूछ रहे हैं?" एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू में सवाल दागा गया।
पूर्व मुख्यमंत्री मुस्कुराने लगे।
यह देख प्रश्नकर्ता का हौसला और बढ़ गया और तेज़ आवाज़ में उसने फिर पूछा, "चुप क्यों हैं सर? बताइए कि आपकी सरकार ने क्या किया था?"
पूर्व मुख्यमंत्री के चेहरे की मुस्कुराहट और गहरी हो गई।
अब तो प्रश्नकर्ता चीख ही उठा, "मेरे सवाल का जवाब नहीं है ना आपके पास, कि आपने राज्य के विकास के लिए कुछ क्यों नहीं किया?"
"क्योंकि जब मैं मुख्यमंत्री था, तब किसी भी मीडिया ने मुझसे प्रश्न नहीं किए।"
उत्तर देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री का चेहरा गंभीर हो गया। एक क्षण की खामोशी के बाद वे फिर बोले,
"काश! आप सरकारों से भी प्रश्न पूछते।"
-0-

इस लघुकथा को हम साक्षात्कार शैली में कुछ इस प्रकार से ढाल सकते हैं:


प्रश्नशून्य काल/चंद्रेश कुमार छतलानी

प्रश्नकर्ता: "जब आप मुख्यमंत्री थे, तब तो आपने राज्य के विकास के लिए कुछ नहीं किया और अब विकास के यही सवाल आप वर्तमान सरकार से क्यों पूछ रहे हैं?"

पूर्व मुख्यमंत्री: ...(खामोश) मुस्कराहट।

प्रश्नकर्ता तेज़ आवाज़ में: "चुप क्यों हैं सर? बताइए कि आपकी सरकार ने क्या किया था?"

पूर्व मुख्यमंत्री: ...(खामोश) गहरी मुस्कराहट।

प्रश्नकर्ता चीखते हुए: "मेरे सवाल का जवाब नहीं है ना आपके पास, कि आपने राज्य के विकास के लिए कुछ क्यों नहीं किया?"

पूर्व मुख्यमंत्री: "क्योंकि जब मैं मुख्यमंत्री था, तब किसी भी मीडिया ने मुझसे प्रश्न नहीं किए।"

एक क्षण की खामोशी।

पूर्व मुख्यमंत्री: "काश! आप सरकारों से भी प्रश्न पूछते।"

खामोशी।
-0-

----

(इसमें कोई सुधार लगे तो कृपया चर्चा ज़रूर करें,)
सादर,

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

बुधवार, 16 नवंबर 2022

लघुकथा विधा में समाचार शैली का नवीन प्रयोग | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

इन दिनों योगराज प्रभाकर जी सर ने लघुकथा कलश के आगामी (11 वें) अंक हेतु रचनाएं मांगी हैं. यह एक विशिष्ट अंक होने वाला है, क्योंकि इसमें उन्होंने नए और अनछुए (कम-छुए) शिल्पों में ढली रचनाएं मांगी हैं. 

मेरे अनुसार यह हम सभी के लिए प्रयोग करने का अवसर होने के साथ-साथ एक चुनौतीपूर्ण कार्य भी है. कई मित्रों के दिमाग में आ सकता है कि चुनौती कैसी? यह तो बहुत आसान कार्य है. जी हाँ! आसान हो भी सकता है लेकिन मैं अपनी बात कहूं तो, लघुकथा कलश के पिछले अंक में मैंने 'समाचार शिल्प' की एक रचना कही थी. मुझे काफी समय लगा तो मेरे जैसे कुछ अन्य लेखक/लेखिकाएं भी होंगे ही. इसी कारण इस लेख का विचार भी आया. 

यहाँ मैं अपनी 'समाचार शिल्प' की एक लघुकथा के सर्जन के बारे में कुछ कहना चाहूंगा. इसके सर्जन के समय सबसे पहले दिमाग में यह आया था कि वह लघुकथा उत्तम नहीं कही जाती जो किसी समाचार सरीखी हो, मतलब उसका कथानक समाचार जैसा हो. लेकिन शिल्प के लिए तो किसी ने मना नहीं किया. यह विचार आते ही इस पर काम शुरू किया. समाचार पत्रों में समाचार बनाना मैंने थोड़ा-बहुत सीखा हुआ था, अतः शिल्प की जानकारी थी ही. फिर आगे बढ़ा तो समस्या आई - कथानक की

आदरणीय सुधीजनों, हम सभी जानते हैं कि, हर कथानक हर विधा के लिए उपयुक्त हो यह संभव नहीं. इसके एक कदम अंदर की तरफ,  मेरे अनुसार, हर कथानक हर शिल्प के लिए उपयुक्त हो, यह भी संभव नहीं. और, यही समस्या मेरे समक्ष थी. जो कथानक दिमाग में आते, उन्हें समाचार शिल्प में ढालने की कोशिश करता तो असफल हो जाता. एक तरीका था मेरे पास कि समाचार पत्र पढ़-पढ़ कर उनमें कोई कथानक ढूंढूं. वह कार्य भी किया, लेकिन जो कथानक मिले, उनमें नवीनता नहीं मिल पाई या फिर यूं भी कह सकते हैं कि मुझे ठीक नहीं लगे.

कई बार किसी काम के लिए महीने बीतते वक्त नहीं लगता है. सो इस बारे में कभी सोचते तो कभी न भी सोचते कुछ महीनों बाद एक कथानक का विचार आया, जो कि 'समाचार शिल्प' में ढाला जा सकता था. (यह लघुकथा अंत में दी गई है.) 

कुछ सोच कर उस पर काम शुरू किया और फिर धीरे-धीरे वह रचना बनती गई. ईश्वर कृपा से योगराज जी सर को ठीक भी लगी और लघुकथा कलश के 10वें अंक में प्रकाशित भी हो गई.

यह लेख का एक भाग था, आगे के भाग में मैं, समाचार शिल्प के बारे में ही कुछ बात रखना चाहूँगा, कि इस तरह के शिल्प में क्या-क्या हो सकता है. यह केवल प्राथमिक जानकारी हेतु ही है, अधिक के लिए आप अधिक अध्ययन कर ही सकते हैं.

समाचार

अपने आसपास से लेकर सूदूर अंतरिक्ष की घटनाओं की जानकारी प्राप्त होने को समाचार कहा जा सकता है. जानकारी प्राप्त करने का सबसे पुराना माध्यम समाचार ही है. लेकिन अनौपचारिक चर्चा या कुशलक्षेम पूछने में समाचार शब्द आए तो भी वह समाचार की श्रेणी में नहीं आता.

समाचार के गुण 

1. नवीनता: जो समाचार एक बार कहीं से प्राप्त हो जाए, वह अन्य किसी बड़े माध्यम से प्राप्त हो तो भी वह पुराना हो जाता है.

2. विशेषता: समाचार नया होने के साथ विशेष भी होना चाहिए. जैसे, मंत्री जी ने चप्पल पहना. यह बात नवीन हो सकती है, लेकिन इसमें क्या विशिष्टता है? यह हम सभी अच्छी तरह समझते ही हैं. हाँ! मंत्री जी बिना चप्पल पहन कर उबड़-खाबड़ रास्तों पर चले. यह बात ज़रूर विशिष्ट हो सकती है.

3. व्यापकता: समाचार के अंग्रेज़ी नाम NEWS के अनुसार ही समाचार का क्षेत्र हमारे आसपास से लेकर सूदूर अंतरिक्ष तक हो सकता है, जैसे पहले यहाँ लिखा भी है.

4. प्रामाणिकता: सत्य और तथ्यों पर आधारित ही कोई घटना समाचार बन सकती है. कोई भी अफवाह या प्रतीकों का इसमें स्थान नहीं होता. यह बात अपने लेखन से पूर्व ज़रूर ध्यान रखें.

5. रूचिपूर्णता: समाचार लेखन इस तरह का होना चाहिए, जो पढने में रुचिकर हो.

6. प्रभावशीलता: जो समाचार जितनी दक्षता से प्रभावशाली होता है, वही बेहतर कहलाता है.

7. स्पष्टता: यह समाचार का विशेष गुण है, लेखन-शैली अलंकारिक/क्लिष्ट आदि न होकर किसी भी प्रबुद्ध पाठक से लेकर कम पढ़े लिखे व्यक्ति तक की समझ में आ जाए, ऐसी हो. भाषा ऐसी हो जिसमें अनावश्यक विशेषण, अप्रचलित शब्दावली आदि का प्रयोग न हो. किसी के नाम से पूर्व श्री, श्रीमान आदि भी नहीं लगते हैं. 

समाचार कैसे लिखे जाएं?

छह ककारों (क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे) का ध्यान रखते हुए, अधिकतर समाचार उल्टी पिरामिड शैली में लिखे जाते हैं. यह इस प्रकार है:

-------------------------------

\  क्लाइमेक्स (इंट्रोडक्शन)  /

  \         बॉडी                /

    \       समापन          /

       \                        /

क्लाइमेक्स (इंट्रोडक्शन) : समाचार का शीर्षक भी कहा जा सकता है. अधिकतर बार इसमें क्या, कौन, कहाँ और कब इन चार ककारों के बारे में 10-20 शब्दों में कहा जाता है. शीर्षक एक से अधिक भी हो सकते हैं. निम्न उदाहरण से समझते हैं, यह एक ही समाचार के मुख्य व उप शीर्षक हैं:

मंत्री जी बिना चप्पल पहले जैसलमेर की तपती रेत पर चले

देश-बचाओ यात्रा का तीसरा दिन गर्म रहा

बॉडी: समाचार की बॉडी में इंट्रोडक्शन की व्याख्या और विश्लेषण किया जाता है.  इसके प्रारम्भ में इंट्रोडक्शन को विस्तृत करते हुए 30-50 शब्द और बाद में महत्व के अनुसार घटते क्रम में सूचनाएं और ब्योरा होता है. यह 'क्यों और कैसे' दो ककारों के आधार पर लिखा जाता है. साथ ही अन्य चार ककारों का भी उचित प्रयोग (खास तौर पर प्रारम्भ में) किया जाता है. बॉडी में समाचार के किसी भाग को हाईलाइट करने के लिए उप-शीर्षक भी दिए जा सकते हैं.

समापन: जो बातें समाचार के इंट्रोडक्शन व बॉडी में छूट गई हैं. उन्हें समापन में स्थान दिया जा सकता है. इसके जरिए पाठक किसी निर्णय या निष्कर्ष तक पहुँच सकें. यह समाचार को पूर्ण करता हुआ, पठनीय व प्रभावशाली होना चाहिए.

'समाचार शिल्प' के साथ मेरी एक लघुकथा निम्न है: चूंकि शोध सम्बन्धी रचना है, अतः इसके प्रभावी होने के बजाय इसके प्रयोग पर ही मेहनत की थी। 

---/--------

हाँ! मैं हारूंगा / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

खड़े होने की हिम्मत न होने के बावजूद जीत की हासिल

भीड़ हारने वाले के पीछे पड़ी

विशेष संवाददाता, नया खेल: शहर की दैनिक रेसलिंग प्रतियोगिता में आज एक रेसलर हार कर भी जीत गया। अखाड़े के मैनेजर ने नया खेल के विशेष संवाददाता को बताया कि आज रिंग में बिगहैण्ड नाम से मशहूर पहलवान से लड़ने के लिए चुनौती की घोषणा के बाद पहले तो कोई भी उससे लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि वह कभी नहीं हारा था। यह देख बिगहैण्ड रिंग में फुर्ती से टहलते हुए मखमली कपड़े की विजय पताका लहराने लगा। उसी वक्त एक दूसरा रेसलर बिगब्रेन चिल्लाता हुआ आया और उसकी चुनौती कबूल ली। रिंग के बाहर बिगब्रेन पर दांव लगने शुरू हुए। एक के दो होने पर भी कुछ ही दर्शकों ने उस पर दांव लगाया। लेकिन कुश्ती प्रारम्भ होते ही बिगब्रेन बिगहैण्ड पर भारी पड़ गया और उसके दांव का दाम बढ़ गया। अगले राउंड में तो बिगब्रेन ने बिगहैण्ड को ऐसा पटका कि वह खड़े होने में भी लड़खड़ाने लगा। अब बिगब्रेन पर एक के चार लगने शुरू हुए और बहुत सारे दर्शकों ने उस पर रुपये लगा दिए। लेकिन तीसरे राउंड के शुरू होते ही बिगहैण्ड ने बिगब्रेन के मुंह पर एक घूँसा मारा और उसी एक घूंसे में बिगब्रेन चित्त हो गया, वह खड़ा तक नहीं हो पाया और हर बार की तरह बिगहैण्ड विजेता घोषित कर दिया गया।

संवाददाता के बात करने के लिए बुलाने के बावजूद बिगहैण्ड अपनी मुट्ठियाँ ताने हाथों को उठाए हुए रिंग से बाहर निकलने को तैयार नहीं था। उधर अखाड़े से बाहर बिगब्रेन ने हार का कारण पूछने पर यही बताया कि वह चित्त हो गया था। संवाददाता कुछ और पूछे इसके पहले ही वह दौड़ कर भाग गया, उसकी जेब से कुछ नोट भी गिर गए, जिन्हें गिरते देख वह उठाने के लिए भी नहीं लौटा। काफी दर्शकों की भीड़ बिगब्रेन को देखती हुई भागती आ रही थी। 

भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी थे जो गिरे हुए नोट को देख कर चिल्ला रहे थे – मेरा नोट-मेरा नोट।

-0-

- चंद्रेश कुमार छतलानी

रविवार, 6 नवंबर 2022

लीला तिवानी की पांच लघुकथाएँ

लीला तिवानी जी इन दिनों अपनी लघुकथाओं के कारण चर्चित हो रही हैं। आपने हिंदी में एम.ए., एम.एड. किया है। कई वर्षों तक हिंदी अध्यापन के पश्चात अब रिटायर्ड हो हिंदी साहित्य सेवा में रत हैं। आपके दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत हो चुके हैं और हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। तिवानी जी की रचनाऍं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। नवभारत टाइम्स के अपना ब्लॉग "रसलीला'' में अब तक 3345 रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आइए पढ़ते हैं लीला तिवानी जी की पांच लघुकथाएँ:


1. काम बोलता है!
"सर, मैं रोहित बोल रहा हूं.''
"सब खैरियत तो है न! इतनी देर रात गए फोन कर रहे हो?''
"सर एक ख़ास बात करनी थी.'' रोहित ने हिचकते हुए कहा.
"बोलो, बोलो.'' बॉस ने उसे आश्वस्त किया.
"सर, मैंने सुना है आप रोहन को तरक्की देने वाले हैं!''
"तो!''
"सर, आप पता नहीं जानते हैं या नहीं, एक तो काम का बहुत ढीला है, दूसरे आपकी बुराई भी बहुत करता है!''
"चलो अच्छा हुआ तुमने बता दिया! मुझे तो पता ही नहीं था! मैं तो उसे डिप्टी चेयरमैन बनाने वाला था! तुम क्या चाहते हो?'' 
"सर, आप अगर मुझे कंसीडर करें तो!...'' आगे वह बोल नहीं पाया.
"अच्छा, सोचता हूं. कल ऑफिस में मिलते हैं.'' बॉस ने फोन रख दिया.''
खुशी के मारे रोहित का मन बल्लियों उछलने लगा! अब पता चलेगा बेटे को, मुझे सिखाता था.
लकदक सूट-बूट चढ़ाए वह ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ रहा था कि चपरासी ने उसे बॉस के बुलावे का संदेश दिया.
अपनी सीट पर रोहित ने ब्रीफकेस रखा, एक बार फिर अपने सूट-बूट पर नजर डाली और चल दिया बॉस का दरवाजा खटखटाने.
"आओ-आओ रोहित, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था. ये लो अपना इनाम!'' बॉस ने एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा. 
"थैंक्यू-थैंक्यू'' कहते हुए रोहित बिना लिफाफा खोलकर देखे ही चल पड़ा.
"ओहो! ये क्या हुआ? रोहन को प्रोमोशन और मुझे डिमोशन!''
उल्टे पांव चलते हुए उसने बॉस का दरवाजा खटखटाया.
"येस, अंदर आओ.'' सुनकर वह अंदर आया.
"सर...'' लिफाफे की ओर इशारा करते हुए वह इतना ही कह पाया!
"मिस्टर रोहित, बॉस की नजर बोलती है, मातहत का काम बोलता है! आप अपनी सीट (औकात) पर जा सकते हैं.'' 
काम की तरह रोहित की नजर भी नीची हो गई थी.
 -०-

2. "सिर काट दो!''
"ममा आज हमारी मैम ने अलग-अलग विषयों पर कल कोई कहानी सुनाने का गृह कार्य दिया है. मुझे लालच का विषय दिया गया है, ममा प्लीज़ कोई कहानी सुना दो न!'' कविश ने निहोरा लिया.
"अरे ये काम तो दादी मां बड़े शौक से कर देंगी, उन्हें ढेरों कहानियां आती हैं.''
लालच पर कहानी! तो सुनो.
"दीनू बहुत ही दीन अवस्था में था. वह गुजारे के लिए हमेशा परेशान रहता था. 
एक दिन उसकी चिंतित अवस्था देखते हुए एक साधु बाबा ने उसे एक थाली दी, जिससे रात को कोई एक चीज मांगकर ढक कर रखना था, सुबह मनचाही चीज मिल जाएगी. पर एक से अधिक चीजें मांग लीं तो सब कुछ गायब हो जाएगा और थाली भी. 
घर आकर उसने खुशी से पत्नी को बताया, वह भी बहुत खुश हुई. उस रात उसने सोने की मोहरें मांगीं, उन्हें सुबह मिल गईं. 
फिर एक रात उसने महल, फिर दासी, फिर नौकर-चाकर सब कुछ एक-एक करके मांग लिया, तो अगले दिन उसे मन चाही चीज़ मिल जाती थी. गरीबी की जगह अब उनकी अमीरी का ठिकाना नहीं था. 
एक रात को दीनू घर नहीं आ पाया. उसकी लालची पत्नी ने थाली से एक से अधिक चीजें मांग लीं और थाली ढककर सो गई. 
अगले दिन सुबह जब दीनू घर आया तो वहां न महल था, न नौकर-चाकर. उसकी पत्नी उसी पहले वाली टूटी-फूटी झोंपड़ी में दुःखी हालत में बैठी थी. सब चीजें भी गायब हो गईं और थाली भी.''
"इसका मतलब लालच रूपी राक्षस का सिर काट देना चाहिए न दादी मां!'' 
अगले दिन कविश ने दादी मां की तरह चटखारे लेकर कक्षा में कहानी सुनाई. उसके कहानी सुनाने के अंदाज़ से सभी बच्चे भी खुश हुए और मैम भी. कहानी खत्म होते ही सभी बच्चे एक साथ बोल उठे- 
"लालच रूपी राक्षस का सिर काट दो!''
-०-

3. दीये रोशन हो उठे! 
“तीन दिवालियां आईं और गईं प्रियतम, तुम न आए. कब आओगे? तुम्हारे बिना दिवाली तो क्या हर दिन सूना-सूना लगता है.” पांचवीं पास बिटानी देवी चिट्ठी लिख रही थी.
“दहेज में मुझे जो भैंस मिली था, जानते हो न कितना दूध देती है! तुम्हारे सामने ही डेयरी का काम शुरु किया था, अब काम परवान चढ़ गया है. अब 16 गायें और 11 भैसें हैं, जिनसे हर दिन 100 से 120 लीटर दूध मिलता है. दूध सारा बिक जाता है, पैसे भी खूब आ रहे हैं, पर उन पैसों का क्या करूं. मेरा खाने-हंडाने वाला तो परदेस बैठा है!” आंखों से आंसू लुढ़ककर प्रियतम के पास पहुंचने वाले थे!
“पप्पू छः का हो लिया मुन्नी पांच की हो ली, दोनों बार-बार पूछते हैं कि पापा कब आएंगे?”
“आज फिर मूंग बने थे. पप्पू तुम पर गया है. दही में मूंग डालकर चटखारे लेकर खाता है. तुम्हारे बिना मूंग क्या कोई भी चीज नहीं भाती!”
“और क्या कहूं! बच्चों के लिए जो कुछ बनता है, हलक के नीचे उतार लेती हूं, अपने लिए अलग से कुछ बनाने का मन ही नहीं करता! बस एक बार तुम आ जाओ, हमारा हर दिन होली होगा, हर रात दिवाली.”
“मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, इसलिए कविताई तो लिख नहीं पाऊंगी, इसी को कविताई भी समझ लेना और मेरे मन की बात भी! आज बस इतना ही.
तुम्हारे आने की आस में,
तुम्हारी बिटानी
दिवाली के एक महीना पहले मोलू को यह खत मिला था, उसका मन भी बिटानी के पास पहुंचने को बेताब था, पर उसने खत का कोई जवाब नहीं दिया.
दीपावली की सांझ को उदास-सी बिटानी दीये जला रही थी. तभी भैंस पगुरा उठी, बच्चे “पापा आ गए, पापा आ गए!” कहकर शोर मचाने लगे.
बिटानी का मन-कमल खिल गया, दीये रोशन हो उठे!
-०-

4. दो बूंद पानी
“कम्मो, कहीं से दो बूंद पानी लादे, प्यास से जान जा रही है.” मां ने बेटी से कहा.
“प्यास को भी हम पर तरस भी नहीं आता, पता है कि पानी नहीं है तो प्यास लगती ही क्यों है?” कम्मो और क्या कह सकती थी. रीते बरतन लेकर पानी की तलाश में चल पड़ी.
जहां-जहां पानी मिलने की आस थी, वह गई. कहीं भी पानी की बूंद तक न दिखाई दी.
“पिछले साल बारिश जो बहुत कम हुई, पानी आए कहां से!” वह खुद से ही बतियाने लगी.
“अरी कम्मो, तू तो खुद से ही बतियाने लग रही है, क्या बात है?” बिम्मो भी रीते बरतन लिए उसके साथ हो ली.
“क्या करें जीजी! अम्मा प्यास के मारे मरी जा रही हैं, यहां पानी के दर्शन ही नहीं हो रहे.”
“ठहर, ये ले पानी!” बिम्मो ने अंटी से पानी की छोटी बोतल निकालकर कम्मो को दे दी, “जा तू अम्मा जी को पानी पिलाकर आ, ये कलसिया मुझे दे दे. पानी मिलेगा तो मैं भर दूंगी.”
बोतल लेकर कम्मो भागी, बिम्मो को धन्यवाद कहने का टेम भी नहीं था. अम्मा की जान का सवाल जो था!
“ले अम्मा, पानी पी ले.”
“जींवदी रह मेरी बच्ची.” गट-गट पानी गटगने के बाद अम्मा के दिल से आशीर्वाद की धारा बह निकली.
“ब‍िन पानी सब सून… गंभीर जल संकट से जूझ रहा गुजरात, तस्‍वीरें करा देंगी एहसास” एक लड़के की साइकिल पर रेडियो बोल रहा था.
“हम तो खुद ही प्यास की मूरत बनी हुई हैं, हमें ही देख लो.” कम्मो भागती जा रही थी.
“माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?” जोर-जोर से भोंपू बोल रहा था.
“हमारी आंखों का पानी भी सूखने लग गया है. पहले तो कभी आंसू से ही खुद को तर कर लेते थे, भले ही वह तरावट खारी होती थी. अब तो तरसते-तरसते ही वह तरावट भी तरसने लग गई है.”
“महाराष्‍ट्र के एक गांव में महिलाएं जान जोखिम में डालकर थोड़े-से पानी के लिए 50 फीट गहरे कुएं में उतरने तक को मजबूर हो जाती हैं.” मुए भोंपू को आज ही सब कुछ बोलना था!
“पिछले बरस ऐसे ही तो गांव से चाची जी के मरने की खबर आई थी!” चाची जी के प्यार को याद कर कम्मो उदास हो गई थी.
”और वो लच्छो, वो तो सादी के दो दिनां बाद ही ससुराल से भाग आई थी. सुबह-सुबह रीती कलसी लेकर पहाड़ पर चढ़ना और फिर दिन चढ़े आधी कलसी लेकर पहाड़ से उतरना क्या आसान था! छोरी का सादी का सौक ही उतर गया.”
“आज तो पानी मिलने की उम्मीद ही नहीं है.” बिम्मो रीते बरतन लेकर दूर से आती हुई दिखी.
“क्या हुआ बिम्मो?”
“वो पाइप ही रिसने लाग गया था, जिससे पानी मिलवे था.” फूटे भाग्य की तरह मुश्किल से बिम्मो के बोल फूटे.
“बिम्मो वो पाइप नहीं, हमारी किस्मत ही रिस रही होगी! चल रीते बरतन लेकर ही घरवालों को मुंह दिखाएंगे. तूने तो जरा-सा पानी भी अम्मा जी के लिए दे दिया!”
“अरे अम्मा जी जैसे लोगन के आसीर्वाद से हम बिन पानी के भी जिंदा हैं! और सुन ये बरतन रीते नहीं हैं. इनमें हमारी आस है, हमारी प्यास है, फिर भी हम नहीं निरास हैं”
“इन बर्तनों में, भाईचारे की भावना, ममता की मिठाई, मेहनत की मलाई, खुशी की खुराक भी तो है! नहीं तो तू अम्मा जी के लिए पानी क्यों देती!”
“चल-चल, अब तो सूखे टिक्कड़ के बिना ही सोना पड़ेगा. सूखे टिक्कड़ भी दो बूंद पानी की जरूरत होती है न!”
-०-
लीला तिवानी
नई दिल्ली

5. श्री गणेश
"बिटिया, सारे घर में ए. सी.लगे हुए हैं, उनको छोड़कर तुम यहां बाहर गर्मी में क्यों बैठी हुई हो?'' इकलौती बिटिया सलोनी को ढूंढते हुए पिता ने उसे देखते ही पूछा.
"पापा, इस दीवार पर माली काका ने सूरज की जो तस्वीर बनाई है, वह मुझे कुछ सोचने का इशारा-सा करती हुई लग रही है, इसलिए जब मुझे कुछ सोचना होता है, मैं यहीं आकर बैठ जाती हूं.''
"इस समय क्या सोच रही हो?''
"पापा, आप शिक्षित व्यक्ति हैं न!''
"हां बिटिया, पर ऐसा क्यों पूछ रही हो?''
"पापा, आपने कल मुझे फ्रेडरिक डगलस की प्रेरक कहानी सुनाई थी, जिसमें फ्रेडरिक डगलस ने कहा था, कि "शिक्षित व्यक्ति में दुनिया बदलने की ताकत होती है.”
"हां बिटिया, यह बात सत्य भी है.''
"तो आप सच्चे शिक्षित व्यक्ति नहीं हैं क्या?''
"तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है!'' पापा का आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक ही था.
"कल आपके पास बिल्डिंग बनवाने के लिए जो व्यक्ति आया था, आप उसे बता रहे थे- ”देखिए, आपकी बिल्डिंग में भी ऐसा ही प्रबंध होगा, जैसा हमारे घर में है. बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए दो प्लांट लगेंगे. उनमें से एक नहाने-कपड़े धोने के लिए होगा, दूसरा पानी पीने और भोजन पकाने के लिए. रसोईघर का सारा पानी आपकी लॉन और सब्जी-भाजी की क्यारियों में जाएगा. इससे एक तो पानी का बिल कम आएगा, दूसरे पर्यावरण की सुरक्षा के साथ देश-सेवा भी हो जाएगी.''
"हां बिटिया, यह तो मैंने कहा था.''
"पापा यह सब तो आप कमाने के लिए कह रहे थे न! कमाने के लिए तो एक अशिक्षित व्यक्ति भी बहुत कुछ करता है, आपने अपने पड़ोसियों को यह सब बताने के लिए कुछ किया?''
"सच कह रही हो बिटिया, यह बात तो मुझे कभी सूझी ही नहीं. चलो अंदर चलते हैं और पड़ोसियों को फोन करके आज ही मीटिंग बुलाते हैं और समाज में बदलाव का काम शुरु करते हैं.''
बदलाव का श्री गणेश हो चुका था.
-०-
लीला तिवानी
नई दिल्ली

मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

लघुकथा अनुवाद | हिंदी से अंग्रेज़ी

Bone of Ravana | Author: Suresh Saurabh | Translator: Aryan Chaudhary


"Uff... oh mother..." As soon as the doctor lifted his leg, he groaned loudly. "Well, how did this happen?" the doctor asked.

"Ravana was falling down. Along with many other people, I also ran to get his bones. Somewhere there was an open drain of the municipality. In that hustle and bustle of the crowd, my foot went into the drain."

The doctor, looking at him with burning eyes, said, "There has been a fracture. Don't go again to pick up Ravana's bones; otherwise your family members will come to collect your bones. Raise your feet now. I want to inject. Then the first raw plaster will be installed, and after three days, the solid one. "

He raised his leg and the doctor injected, which he could not bear and started screaming again, "Uff... oh mother..."

"No, no oh mother... yell out, Oh Ravana, ho Ravana. "The bones of Ravana will do good. "

Now he closed his eyes in great pain. With closed eyes, he could now see the terrible Ravana of wood, which was marching cruelly towards him. Slowly, Ravana was getting into it. He was breaking his knuckles. The pain was increasing...

His doctor was installing raw plaster.

-०-

Translated by - Aryan Chaudhary

Vill.Jhaupur post Londonpur Gola Lakhimpur kheri 

Uttar Pradesh (262802)

Email - aryan612006@gmail.com

मूल हिंदी में यह लघुकथा


-0-


सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन

श्री सतीश राठी की फेसबुक वॉल से

9 अक्टूबर 2022 शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन बहुत अच्छे तरीके से संपन्न हो गया। इस महत्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे। इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्बे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में पथिक ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का लघुकथा समालोचना अंक भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों ,को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। लघुकथा में स्त्री लेखन पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। समाज के विभिन्न वर्गों के महत्वपूर्ण व्यक्ति इस आयोजन में सम्मानित किए गए। सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल ,भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू ,पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय ,वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे ,घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री बृजेश कानूनगो प्रदीप नवीन दिलीप जैन चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया।प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।



विस्तृत परिवेदन

"मानवीय स्तर पर अपील करने वाली रचना स्मृति में बनी रहती है।"भगीरथ 

"जो रचना विचार के स्तर पर, बुद्धि के स्तर पर और मानवीय स्तर पर ज्यादा अपील करती है वहीं रचना आपकी स्मृति में हमेशा बनी रहती है। श्री सुकेश साहनी ने अलग - अलग विषय पर अलग - अलग शिल्प में लघुकथाएं लिखी हैं। जो रचनाकार प्रयोगात्मक लघुकथाएं लिखते हैं वे अलग - अलग शिल्प में लिखते हैं। कमल चोपड़ा की लघुकथाओं का शिल्प करीब करीब एक जैसा रहता है। रचनाकार को यह देखना है कि उसकी रचना पाठक के मन में, बुद्धि में प्रवेश कर रही है या नहीं। किसी भी लघुकथाकार की सभी लघुकथाएं उत्कृष्ट नहीं हो सकती हैं। कुछ लघुकथाएं उत्कृष्ट होगी, कुछ निम्न स्तर की होगी और कुछ अच्छी होगी।"  यह विचार श्री भगीरथ ने *लघुकथा विधा में सौन्दर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प* विषय पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि
'कल्पना का सौन्दर्य देखना हो तो असगर वजाहत की  शाह आलम की रुहें  की लघुकथाएं पढ़नी होगी। किसी भी विधा में शिल्प के अलावा भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। लघुकथाकार संध्या तिवारी की भाषा मुग्ध करती है।'
उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षितिज संस्था ने एक दिवसीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन इंदौर शहर में किया है। इस महत्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे।प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। 
इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्वे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में 'पथिक' ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का 'लघुकथा समालोचना अंक' भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों ,को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि क्षितिज द्वारा आयोजित की गई अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता के निर्णय में सम्मानित 15 लघुकथा कारों को सम्मानित किया गया। प्रतियोगिता की संयोजिका डॉ वसुधा गाडगिल द्वारा निर्णयों की घोषणा करते हुए अतिथियों के हाथों से विजेताओं को मोमेंटो प्रदान करवाने का काम किया।
 'लघुकथा विधा एवं स्त्री लेखन की दृष्टि' विषय पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता शील कौशिक के द्वारा की गई इस सत्र में ज्योति जैन, कांता राय, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल द्वारा चर्चा की गई ।इस सत्र का संचालन अंजना चक्रपाणि मिश्र के द्वारा किया गया।  लघुकथा विधा में सौंदर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प सत्र की अध्यक्षता श्री भगीरथ ने की। इस सत्र में श्री जितेंद्र जीतू एवं पवन शर्मा के व्याख्यान हुए सत्र का संचालन यशोधरा भटनागर के द्वारा किया गया। सांस्कृतिक एवं भौगोलिक मापदंडों से प्रभावित होता लघुकथा का शिल्प। इस विषय पर आयोजित चर्चा सत्र में डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे के द्वारा अध्यक्षता की गई। घनश्याम मैथिल अमृत गोकुल सोनी एवं गरिमा दुबे के द्वारा सत्र में विचार रखे गए। इस सत्र का संचालन अदितिसिंह भदोरिया के द्वारा किया गया।
 सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल ,भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू ,पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय ,वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे ,घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री विकास दवे को साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। राजशेखर व्यास को राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।सर्वश्री बृजेश कानूनगो ,प्रदीप नवीन, दिलीप जैन, चंद्रा सायता, चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रदीप नवीन को गीत गुंजन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉक्टर मुक्ता एवं शील कौशिक को क्षितिज एवं चरणसिंह अमी फाउंडेशन द्वारा कथा सम्मान एवं लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया गया। लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया।  इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। विभिन्न सत्रों में डॉ दीपा व्यास एवं विजय जोशी शीतांशु द्वारा  शोध पत्र पढ़े गए।समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।
शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का यह आयोजन शरद पूर्णिमा के चांद की तरह अमृत रस वर्षा करने वाला रहा।