हमारे घरों में वर्तमान सामाजिक ताने बाने में हम बड़े बुजुगों का आदर सम्मान बिसराते जा रहे है , लेकिन हमारे बच्चे बड़े ही संवेदनशील है, वे हमें हमारी गलती का एहसास करा ही देते है ! ऐसी ही भावना को रेखांकित करती लघु कथा।
यह ब्लॉग खोजें
बुधवार, 24 अप्रैल 2019
लघुकथा वीडियो: रशियन लेखक निकोले गोगोल की 210वीं जयंती पर साहित्यिक सभा
22 अप्रैल 2019
श्री अशोक वर्मा अपनी लघुकथा पढ़ते हुए
श्री लक्ष्मी शंकर वाजपाई अपनी लघुकथा पढ़ते हुए
श्री अतुल प्रभाकर अपने पिता द्वारा सृजित लघुकथा पढ़ते हुए
मंगलवार, 23 अप्रैल 2019
लघुकथा सुधार | हरीशंकर परसाई
एक जनहित की संस्था में कुछ सदस्यों ने आवाज उठाई, 'संस्था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए।
संस्था के अध्यक्ष ने पूछा कि किन-किन सदस्यों को असंतोष है।
दस सदस्यों ने असंतोष व्यक्त किया।
अध्यक्ष ने कहा, 'हमें सब लोगों का सहयोग चाहिए। सबको संतोष हो, इसी तरह हम काम करना चाहते हैं। आप दस सज्जन क्या सुधार चाहते हैं, कृपा कर बतलावें।'
और उन दस सदस्यों ने आपस में विचार कर जो सुधार सुझाए, वे ये थे -
'संस्था में चार सभापति, तीन उप-सभापति और तीन मंत्री और होने चाहिए...'
दस सदस्यों को संस्था के काम से बड़ा असंतोष था।
- हरिशंकर परसाई
सोमवार, 22 अप्रैल 2019
शकुंतला कपूर स्मृति अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 2019 में द्वितीय स्थान विजेता लघुकथा | लघुकथाकारा: अनघा जोगलेकर
जिंदगी का सफर
"ये क्या हो गया मेरी फूल-सी बच्ची को। मैंने तो अभी इसकी विदाई के सपने सजाना शुरू ही किया था। क्या पता था कि इसे इस तरह हमेशा के लिए विदा...." माँ फूट-फूटकर रो रही थी। पिताजी उन्हें ढांढस बंधा रहे थे।
मुझे ब्लड केंसर हो गया था लेकिन मैंने कीमोथेरेपी करवाने से इंकार कर दिया था। मैं तिल-तिलकर मरते हुए जीना नही चाहती थी। ऐसी स्थिति में मेरे पास मात्र छः महीने का समय बचा था जिसे मैं जी भर कर जी लेना चाहती थी।
माँ जब मेरे कमरे में चाय का कप लेकर पहुँचीं तो उनकी आँखों की लाली देख मैं 'आनंद' फ़िल्म की स्टाइल में बोली, "माँss, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लम्बी नही। मौत तो एक पल है बाबुमौशाय....." और मैं जोर का ठहाका लगाकर हँस पड़ी।।
मेरी नौटंखी देख माँ भी मुस्कुरा दीं लेकिन वे अपनी आँख में आई पानी की लकीर न छुपा सकीं। उन्होंने दो-तीन बार पलकें झपकायीं फिर बोलीं, "आज मौसम बहुत अच्छा है। चल, झील के किनारे चलकर बैठते हैं।" इतना कह उन्होंने मुझे शॉल ओढाई और हम निकल पड़े।
झील किनारे लगे फूलों को देख माँ फिर उदास हो उठीं। बोलीं, "इन फूलों की जिंदगी भी कितनी छोटी होती है न!"
"हाँ माँ, लेकिन इस थोड़े से समय मे भी ये दुनिया को कितना कुछ दे जाते हैं। अपनी खुशबू, अपना पराग, अपने बीज....," इतना कह मैं यकायक माँ की ओर पलटी। मेरी आँखों में चमक थी, "माँ, मेरे जाने के बाद मेरा शरीर मेडिकल कॉलेज को दान कर देना। हो सकता है मेरी देह पर कुछ नए प्रयोग कर वे इस जानलेवा कैंसर का इलाज ढूंढ सकें।"
मेरी बात सुन एक पल को तो माँ कांप गई फिर मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, "इसका इलाज मिले-न-मिले मेरी बच्ची....लेकिन जब वे तेरे दिल को छुयेंगे न.....तो जीवन जीने की कला जरूर सीख जायेंगे।" इतना कह माँ ने अपना सर मेरे कांधे पर टिका दिया। मेरी बांह माँ के आँसुओं से भीगती चली गई।
-0-
©अनघा जोगलेकर
लघुकथा समाचार: लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण
नवभारत टाइम्स | Apr 22, 2019
मुंबई: साहित्यिक संस्था 'खारघर चौपाल' और 'साहित्य सफर' के तत्वावधान में आरके पब्लिकेशंस से प्रकाशित व सेवा सदन प्रसाद एवं डिंपल गौड़ 'अनन्या' के साझा लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम डॉ. सतीश शुक्ला की अध्यक्षता तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (इंदौर) व लेखक रमेश यादव के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ। संचालन व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली ने किया। इस मौके पर मनोहर अभय, अरविंद राही, राम कुमार, गंगा शरण, नगरसेविका हर्षदा उपाध्याय, राजेश श्रीवास्तव, अलका पांडे, अमर उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।
Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/todays-city-brief/articleshow/68980909.cms
मुंबई: साहित्यिक संस्था 'खारघर चौपाल' और 'साहित्य सफर' के तत्वावधान में आरके पब्लिकेशंस से प्रकाशित व सेवा सदन प्रसाद एवं डिंपल गौड़ 'अनन्या' के साझा लघुकथा संग्रह 'शब्द इतिहास लिखेंगे' का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम डॉ. सतीश शुक्ला की अध्यक्षता तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (इंदौर) व लेखक रमेश यादव के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ। संचालन व्यंग्यकार डॉ. अनंत श्रीमाली ने किया। इस मौके पर मनोहर अभय, अरविंद राही, राम कुमार, गंगा शरण, नगरसेविका हर्षदा उपाध्याय, राजेश श्रीवास्तव, अलका पांडे, अमर उपाध्याय आदि उपस्थित रहे।
Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/todays-city-brief/articleshow/68980909.cms
लघुकथा समाचार: अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति सम्मान समारोह 2018-19
कमल कपूर जी की फेसबुक वॉल से
21 अप्रेल रविवार को फ़रीदाबाद के इन्विटेशन सभागार में नारी अभिव्यक्ति मंच पहचान एवं नई दिशाएँ हेल्पलाइन के तत्वावधान में अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति सम्मान समारोह संपन्न हुआ। हमारा परम सौभाग्य कि साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित यशसिद्धा मेरी गुरु दीदी माँ सुश्री चित्रा मुद्गल जी समारोह की मुख्य अतिथि रहीं, लघुकथा पुरोधा डॉ सतीशराज पुष्करणा जी विशिष्ट अतिथि थे और अध्यक्षता पद परम विदुषी डॉ सुदर्शन रत्नाकर जी ने संभाला। सुमधुर मंच संचालन संस्था की महासचिव डॉ इंदुशेखर गुप्ता ने किया तथा सरस्वती वंदना कोकिल कंठी बेबी संस्कृति गौड़ ने की। संयोजक-आयोजक कमल कपूर एवं डॉ अंजु दुआ जैमिनी थे। समारोह में लगभग ४० लधुकधाकारों ने लघुकथा-पाठ किया । २०१८-१९ में आयोजित अखिल भारतीय माँ शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित मंच द्वारा पुरस्कृत किया गया। साथ ही पहचान की वरिष्ठ सदस्या स्व. शोभा कुक्कल स्मृति सम्मान भी प्रदान किये गये। उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिये ये सम्मान बिजनौर की साहित्यकार डॉ नीरज सुधांशु तथा गुरुग्राम की सुधी साहित्यकार डॉ सविता स्याल को प्रदान किये गये। लघुकथा पुरस्कार क्रमश: भोपाल की डॉ विनीता राहुरिकर (प्रथम), गुरुग्राम की अनघा जोगलेकर (द्वितीय),गुरुग्राम की ही सविता इन्द्र गुप्ता (तृतीय) प्रदान किए गए। इनके अतिरिक्त असि श्रेष्ठ एवं श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार क्रम से फ़रीदाबाद की डॉ अंजु दुआ, खटीमा के डॉ जगदीश पंत कुमुद इंदौर के श्री राम मूर्त राही, फ़रीदाबाद की आशमा क़ौल तथा डॉ इंदुशेखर गुप्ता, गुरुग्राम की लाड़ों कटारिया एवं नागपुर से पधारे श्री जय प्रकाश सूर्यवंशी जी को दिये गये।
हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक सरल सौम्य डॉ मुक्ता मदान जी के सम्मानित आगमन ने समारोह की गरिमा को बढ़ा दिया ग़ाज़ियाबाद दिल्ली और गुरुग्राम से पधारे अपने सहृदय साहित्यकार बंधुओं के प्रति साभार कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। समारोह में जहाँ सतीश राज पुष्करणा जी के लघुकथा विषयक सारगर्भित वक्तव्य ने समा बाँधा वहीं सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र था माननीय चित्रा दीदी सौम्य सरल सरस मधुर उदबोधन जिसकी प्रतीक्षा में सुधी श्रोता सधैर्य 4 घंटे बैठे रहे। समारोह डॉ सुदर्शन रत्नाकर जी के सारगर्भित संक्षिप्त अध्यक्षीय वक्त्व्य के साथ समापित हुआ। ध्यात्व्य हो कि डॉ॰ सतीश राज पुष्करणा जी तथा डॉ॰ सुदर्शन रत्नाकर जी प्रतियोगिता के निर्णायक भी थे।
लघुकथा वीडियो | अन्धो मे काना राजा | कवि घनश्याम अग्रवाल
हास्य और व्यंग्य कवि घनश्याम अग्रवाल की चुनाव के सम्बन्ध मे एक लघुकथा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)