नववर्ष , विक्रम संवत शायद इसीलिए भी मनाया जाता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, क्योंकि कहा जाता कि जडें ही एक पेड़ की संरक्षक होती हैं, इंसान के जीवन का संरक्षक कौन होते हैं ? आज इस नववर्ष पर इस कहानी के साथ सुनिये - समझिये उनका महत्व।
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लघुकथा समाचार: साझा लघुकथा संग्रह 'कथांजलि' का विमोचन
नवभारत टाइम्स | Updated:Mar 23, 2019, 06:30AM IST
एनबीटी, लखनऊ : काव्या साहित्यिक संस्था की ओर से साझा काव्य संग्रह 'काव्या' और साझा लघु कथा संग्रह 'कथांजलि' का शुक्रवार को विमोचन हुआ। निशातगंज स्थित कैफी आजमी अकादमी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान काव्य गोष्ठी भी हुई। निवेदिता श्रीवास्तव और विजय राज श्रीवास्तव के संयोजन में हुए आयोजन की अध्यक्षता मिथिलेश दीक्षित ने की। इस मौके पर कोलकाता से आई निशा कोठारी, अलका प्रमोद, मंजुल मंजर, दीप्ति भारती, मीतू मिश्रा, कविता गुप्ता, भूपेन्द्र दीक्षित, मुकेश कुमार मिश्र ने अपनी रचनाएं सुनाईं। इस मौके पर मुख्य अतिथि अमिता दुबे और विशिष्ट अतिथि ओम नीरव, चंद्रशेखर वर्मा, शिव मंगल सिंह, विजयराज श्रीवास्तव मौजूद रहे।
Source:
https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/other-news/released-kaavi-and-kathanjali/articleshow/68528478.cms
एनबीटी, लखनऊ : काव्या साहित्यिक संस्था की ओर से साझा काव्य संग्रह 'काव्या' और साझा लघु कथा संग्रह 'कथांजलि' का शुक्रवार को विमोचन हुआ। निशातगंज स्थित कैफी आजमी अकादमी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान काव्य गोष्ठी भी हुई। निवेदिता श्रीवास्तव और विजय राज श्रीवास्तव के संयोजन में हुए आयोजन की अध्यक्षता मिथिलेश दीक्षित ने की। इस मौके पर कोलकाता से आई निशा कोठारी, अलका प्रमोद, मंजुल मंजर, दीप्ति भारती, मीतू मिश्रा, कविता गुप्ता, भूपेन्द्र दीक्षित, मुकेश कुमार मिश्र ने अपनी रचनाएं सुनाईं। इस मौके पर मुख्य अतिथि अमिता दुबे और विशिष्ट अतिथि ओम नीरव, चंद्रशेखर वर्मा, शिव मंगल सिंह, विजयराज श्रीवास्तव मौजूद रहे।
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https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/other-news/released-kaavi-and-kathanjali/articleshow/68528478.cms
शनिवार, 23 मार्च 2019
पहली महिला लघुकथा-लेखिका
हरियाणा - 'आधुनिक हिंदी लघुकथा' के प्रतिष्ठित केंद्रों में एक है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पहली महिला लघुकथा-लेखिका भी हरियाणा से ही रही हैं। जी हां, यहां हरियाणा के फतेहाबाद में 12नवम्बर 1913 को जन्मी लेखिका श्रीमती इंद्रा स्वप्न की बात की जा रही है। इन्होंने सत्तर के दशक में दर्जनों बढ़िया लघुकथाएं लिखी थीं। इनमें अनेक तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई। ग्रामीण परिवेश की आम गृहिणी होते हुए इन्होंने बाईस उपन्यास, तीन कहानी- संग्रह तथा चालीस से अधिक बालसाहित्य की कृतियों की भी रचना की थी।
इनका पहला लघुकथा-संग्रह इनकी मृत्यु के बीस वर्ष के पश्चात वर्ष 2017 में, जानेमाने साहित्यकार डॉ मधुकांत के साथ संयुक्त रूप में "101 प्रतिनिधि लघुकथाएं" शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इसमें इंद्रा जी की पचास लघुकथाएं शामिल हैं।
पाठकों के संदर्भ के लिए यहां, इनकी एक लघुकथा प्रस्तुत की जा रही है।
_____________
_लघुकथा _
शिक्षा
*इंद्रा स्वप्न
"देखो बेटा, सिगरेट पीना बहुत बुरा है..अच्छे बच्चे ऐसी गंदी वस्तुओं को हाथ नहीं लगाते।" हरीश ने अपने भतीजे बब्बू को समझातेे हुए कहा, " मैंने तुम्हें कभी सिगरेट पीते देखा तो अच्छा नहीं होगा।"
"समझ गया चाचाजी, सचमुच गंदे मनुष्य ही सिगरेट पीते हैं।" कहते बब्बू चला गया।
दूसरे दिन हरीश सिगरेट पीने अपने कमरे में पहुंचा, मेज पर सिगरेट की डिब्बी नहीं थी। एक कागज का टुकड़ा पड़ा था, जिसपर लिखा था "चाचाजी, सिगरेट गंदे मनुष्य पीते हैं अच्छे नहीं..इसलिए आपकी सिगरेट की डिब्बी सिगरेटों सहित कूड़ेदान में फेंक दी है।"
______________
आधुनिक हिंदी लघुकथा शोधपीठ, नई दिल्ली के सौजन्य से प्रस्तुत। संपर्क : अनिल शूर आज़ाद - 9871357136
Source: https://www.facebook.com/photo.php?fbid=519966321742670&set=a.167832916956014&type=3&theater
शुक्रवार, 22 मार्च 2019
पुस्तक समीक्षा: आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार एवं विश्लेषण | रूप देवगुण | समीक्षाकार: दिलबागसिंह विर्क
लघुकथा विधा पर विचार करती महत्वपूर्ण कृति
पुस्तक - आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार एवं विश्लेषण
लेखक - रूप देवगुण
प्रकाशन - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ - 216
कीमत - 450 / - ( सजिल्द )
लघुकथा विधा के रूप में कब शुरू हुई, प्रथम लघुकथा कौन-सी है, लघुकथा का विकास क्रम क्या है और इसके प्रमुख तत्व कौन से हैं, यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं । अलग-अलग विद्वानों के मत अलग-अलग हैं, लेकिन इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के प्रयास जारी हैं । रूप देवगुण जी की कृति " आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार एवं विश्लेषण " इसी दिशा में किया गया महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जिसे पढ़कर इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने में शोधार्थियों को काफ़ी मदद मिलेगी ।
इस कृति में रूप देवगुण ने पत्रात्मक साक्षात्कार को आधार बनाया है । इसके लिए उन्होंने 61 लघुकथाकारों का साक्षात्कार पत्रों के माध्यम से लिया है, जिनमें एक तरफ वे स्थापित लघुकथाकार हैं, जो वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जैसे - मधुदीप, मधुकांत, डॉ. बलराम अग्रवाल, डॉ. शील कौशिक, डॉ. रामनिवास मानव, डॉ. प्रद्युम्न भल्ला, सुरेश जांगिड, अमृतलाल मदान, घमंडीलाल अग्रवाल, श्याम सखा श्याम, नरेंद्र गौड़ आदि तो दूसरी तरफ हरीश सेठी जैसे कुछ नई पीढ़ी के लघुकथाकार भी हैं । लघुकथाकारों से उनकी प्रथम लघुकथा, प्रथम प्रकाशित लघुकथा, लघुकथा संकलनों में हिस्सेदारी, एकल लघुकथा संग्रह, लघुकथा और लघुकथा-संग्रह पर मिले पुरस्कार, सम्मान, लघुकथाओं के मंचन, लघुकथाकारों के साक्षात्कारों या अपने साक्षात्कार, शोध, पत्रिकाओं के प्रकाशन, अनुवाद, आलेख के प्रकाशन आदि से संबंधित प्रश्न पूछे गए हैं । इन प्रश्नों के उत्तर को उन्होंने आधार सामग्री के रूप में लेते हुए इनके विश्लेष्ण से लघुकथा के क्षेत्र में योगदान देने वाले लघुकथाकारों, पत्रिकाओं और संस्थाओं संबंधी प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध करवाई है।
लघुकथा के प्रारम्भ के बारे में वे लिखते हैं कि इसका वास्तविक प्रारम्भ आठवें दशक से माना जाता है लेकिन उनका मानना है कि इससे पूर्व में प्रेमचन्द और जयशंकर प्रसाद की कहानियों का शोध करके इनमें लघुकथा के तत्वों को देखा जाना चाहिए । इस प्रकार वे लघुकथा का प्रारम्भ चौथे-पांचवें दशक से देखते हुए शोधार्थियों को इस विषय पर शोध करने को कहते हैं।
लघुकथा के स्वरूप के बारे में भी वे अपना मत रखते हैं -
" आधुनिक हिंदी लघुकथा में लघुता, एक घटना, कसाव, मारक व प्रभावशाली अंत का होना अनिवार्य है तथा ऐसी लघुकथा में कालदोष भी नहीं होना चाहिए । आधुनिक हिंदी लघुकथा में भाषा-शैली का भी अलग स्वरूप है । आज की लघुकथा के विषय भी समाज, परिवार तथा समसामयिक वातावरण के खोजे जाते हैं । इसके पात्र केवल मनुष्य होते हैं, पशु-पक्षी, वृक्ष आदि ।"
संक्षेप में, यह लघुकथा से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण कृति हैं जिसमें न सिर्फ लघुकथाकारों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं, अपितु लघुकथा के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न आयोजनों का भी पता चलता है । लघुकथा को शोध का विषय बनाने वालों के लिए तो यह कृति विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होगी ।
- दिलबागसिंह विर्क
Source:
http://dsvirk.blogspot.com/2017/07/blog-post.html
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