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सोमवार, 12 मई 2025

पुस्तक समीक्षा | सुकेश का मास्टर स्ट्रोक | सुरेश सौरभ


पुस्तक -मास्टर स्ट्रोक  (साझा लघुकथा संग्रह) 
संपादक- सुकेश साहनी
प्रकाशन- अयन प्रकाशन नई दिल्ली

समीक्षक-सुरेश सौरभ
पता- निर्मल नगर लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7860600355


हिंदी के शीर्ष लघुकथाकार सुकेश साहनी जी, संपादन कला एवं लेखन कला में वैश्विक स्तर पर पहचान बना चुके हैं, उनके संपादन में 2020 में प्रकाशित लघुकथा का साझा संग्रह "मास्टर स्ट्रोक" की लघुकथाओं से मैं गुजर रहा हूं, जिसकी लघुकथाएं रिश्ते नातों व सामाजिक बंधनों विभेदों की गहनता से पड़ताल करती हुई दिखाई पड़ती हैं। बलराम अग्रवाल की लघुकथा  'बिना नाल का घोड़ा' ऐसी लघुकथा है, जो यह दर्शाती है कि आज के भौतिकतावादी युग में इंसान बिल्कुल घोड़ा सरीखा बन चुका है, जो सब कुछ सहता हैं, बहुत कुछ सुनता है, सिर्फ इसलिए कि घर-परिवार और ऑफिस के बंधनों को निभाना उसकी नैसर्गिक विवशता है। प्रियंका गुप्ता की लघुकथा  'भेड़िये' घर में छिपे षड्यंत्रकारियों की ओर संकेत करती है। यह लघुकथा मानवेतर कथानक के माध्यम से अपना संदेश देने कुछ हद सफल रही है, मुझे लगता है कि कई बार बहुत गूढ़ प्रतीकों के माध्यम से संदेश प्रेषित करने वाली लघुकथाएं, आम पाठकों के सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं, वह किसी फैंटैसी कविता सी प्रतीक होती हैं।

धार्मिक उन्माद किसी भी देश और समाज के लिए विनाशकारी होता है, मार्मिक लघुकथा "रंग-बेरंग" में बृजेश कानूनगो ने कपड़ों के प्रतीकों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि जो समाज सांप्रदायिक झगड़ों में उलझा रहता है, वह कभी तरक्की नहीं कर सकता। किसी भी देश व समाज के लिये सांप्रदायिकता की आग अत्यंत विनाशकारी होती है।  
रूप देवगुण की लघुकथा 'दूसरा सच' में लघुकथाकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि थोड़ी सी मदद करने वाले हाथ कभी-कभी घर के पीछे के रास्ते से आकर घर की इज्जत पर हाथ डालने की फितरत में लगे रहते हैं। संध्या तिवारी की लघुकथा 'राजा नंगा है' में यह दिखाया गया है कि पुरुष प्रधान समाज में आज भी स्त्रियां दोयम दर्जे पर हैं, वह अपने रिश्तों को बचाने के लिए, झूठी मर्यादाओं की चादर ओढ़े रहती हैं,  सिर्फ इसलिए कि रिश्तों की महीन डोर दरकने न पाये, टूटने न पाये। 
सुकेश साहनी की लघुकथा 'चिड़िया' नैराश्य जीवन की अंधेरी निशा में आशाओं का दीपदान करती उकृष्ट रचना है। थके, हारे, टूटे आत्महत्या का वरण करने वाले इंसान की सोई चिंतन चेतना को जाग्रत करती हुई, उसे आत्मबोध कराती, आत्मदर्शन कराती, संजीदा रचना है। 
मधुदीप की लघुकथा 'बंद दरवाजा' यह दर्शाती कि पाप करने वाले धर्म का सहारा लेकर हमारे सामने हमेशा पाक-साफ  बने रहते हैं।  महेश दर्पण की लघुकथा 'इस्तेमाल' में स्त्रियों के फ्लर्टपन को दिखाया गया है। योगराज प्रभाकर की लघुकथा 'जमूरे' में लेखक ने फिल्मी व्यवसायिक लेखन की उस सडांध का बरीकी से रेखांकन किया है, जो समाज और साहित्य के लिये घोर चिंतन-मंथन का विषय है।
लघुकथा 'रोटी का टुकड़ा' के कुछ वाक्यांश देखिए यथा-"एक बच्चे को पीटते हुए माँ कहती है, "मर जा, जमादार हो जा.. तू भी भंगी बन जा...तूने रोटी क्यों खाई?" बच्चे ने भोलेपन से कहा "माँ एक टुकड़ा उनके घर का खाकर क्या मैं भंगी हो गया। ......और जो काकू भंगी हमारे घर पर पिछले दस सालों से रोटी खा रहा है तो वह क्यों नहीं 'बामन' हो गया।" भूपिंदर सिंह की यह लघुकथा जातिवाद के दंश पर करारा प्रहार करती। धर्म पूछ कर मारने वाले भी आतंकी और जाति पूछकर मारने वाले भी आतंकी ऐसा प्रबुद्ध वर्ग कहता रहा है। भारत में अभी भी एक धड़ा सामंती सोच धारण किये हुये है, जो संविधान के कनूनों को दरकिनार कर कहीं दलितों को खेत में जिंदा जलाता हैं, कहीं दूल्हे को घोड़ी पर बैठने नहीं देता ,कहीं उसे जूते से पेशाब पिलाता है।  सुदर्शन रत्नाकर की "शुद्ध जात" भी इसी तरह की सामंती व्यवस्था को दर्शाती एक  प्रेरक लघुकथा है। संग्रह में ऐसी कई दलित विमर्श की उकृष्ट लघुकथाएं संकलित हैं। 
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'  जी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं यथा,-"किसी रचनाकार का रचनाकर्म या कोई विशिष्ट रचना पाठक को वशीभूत कर ले, उस रचना के समग्र प्रभाव की अनुगूँज रह-रहकर मानस में उत्ताल तरंगों की तरह उभरती रहें, रचना का अविच्छिन्न प्रवाह सहृदय पाठक को सोचने पर बाध्य कर दे। अनायास ही मुँह से आह! या वाह ! निकल पड़े। तभी समझो कि रचना अपने नाम से याद की जाएगी, यानी रचनाकार को 'रचना' के नाम से याद किया जाएगा। ऐसी रचना ही मास्टर स्ट्रोक हो सकती है। लघुकथा-जगत् में ऐसे लेखकों की एक विशिष्ट शृंखला है, जिनकी लघुकथाएँ पाठक को अभिभूत करके श्रेष्ठ कृति में अपना स्थान बना चुकी हैं। 'मास्टर स्ट्रोक' के दायरे में किसी रचना का आना प्रबुद्ध पाठक-वर्ग की स्वीकृति और श्लाघा का प्रतिफलन है। कुशल सम्पादक की तत्त्वान्वेषी दृष्टि उसी पाठकीय संवेदना को पकड़ती है।"
निश्चित रूप से काम्बोज जी का कथन उचित ही है,  कुछ रचनाएँ होती हैं जो देर तक और दूर तक सफर करके हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं, संपादक सुकेश जी में वह अनूठी प्रतिभा है जो कंकर और हीरे की पारखी पहचान रखती है। 
चित्रा मुद्गल, छवि निगम, मार्टिन जॉन, चंद्रेश कुमार छतलानी,पवन शर्मा, कमल चोपड़ा,  अशोक भाटिया, विष्णु नागर, भगीरथ, मुकेश वर्मा, सतीश राठी, हरि मृदुल, रामकरन, रामकुमार घोटड़ सहित कुल 112 लघुकथाकारों की लघुकथाओं को संग्रह में शामिल किया गया है। संग्रह की लघुकथाएं  सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजते हुए दिखाई पड़ती हैं। चयन भी इस तरह से  ने किया है कि कहीं भी पाठक को ऊब या उलझन महसूस नहीं होगी। पछोर-पछोर कर जैसे गृहणी सार-सार को सहेज कर थोथा उड़ा देती हैं, ऐसे ही संपादक ने सारगर्भित, दूरदर्शी, संवेदनशील, मार्मिक, पठनीय विचारणीय लघुकथाओं का चयन करके लघुकथा विधा को समृद्ध किया है। संपादक इस महनीय कार्य के लिये हार्दिक बधाई के पात्र हैं। 
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- सुरेश सौरभ

सोमवार, 5 मई 2025

आलेख: हिंदी लघुकथा-साहित्य में मधुदीप गुप्ता का योगदान | डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी


परिचय

हिंदी लघुकथा के समकालीन परिदृश्य में ऐसे अनेक रचनाकार हुए हैं जिन्होंने इस अल्परूप को गंभीरता, प्रासंगिकता और कलात्मक ऊँचाई प्रदान की है। उनमें मधुदीप गुप्ता का स्थान विशिष्ट है। न केवल उनकी सौंदर्यबोध से परिपूर्ण गद्य-रचनाएँ पठनीय हैं, बल्कि उन्होंने लघुकथा की सैद्धांतिक खोज और उसके साहित्यिक मानदंडों को भी ठोस आकार दिया।

1. लघुकथा की सजग चेतना

मधुदीप गुप्ता की कृतियाँ सामाजिक यथार्थ से गहरा मेल खाती हैं। उनके पात्र हाशिये पर जीते आम मानव, पितृ-स्नेह, पुत्रमोह, परिवारगत द्वंद्व, आर्थिक विषमताएँ—सभी को सौम्य एवं मार्मिक बनावट में जीते-जी लेते हैं। वे किसी विशेष घटना पर सीधे प्रहार नहीं करते, बल्कि साधारण दृश्यों के भीतर पनपी विषमताओं को प्रतीकों और सूक्ष्म संकेतों से उजागर करते हैं।

2. शैलीगत विशेषता

लघुकथाओं में प्रत्येक शब्द को उन्होंने ‘वज्र’ की तरह निखारा है—बिना अतिशयोक्ति के, पूर्णता में। उनकी अधिकतर लघुकथाएँ अंत में अचानक ‘शॉक एलिमेंट’ नहीं देतीं, बल्कि धीरे-धीरे पाठक के मन में एक अंतर्नाद उत्पन्न कर छोड़ती हैं। एक हल्की-सी व्यंग्यपूर्ण मुस्कान, जो चुपचाप सोचने पर भी मजबूर करती है।

3. संपादकीय एवं आलोचनात्मक योगदान

मधुदीप ने लघुकथा-संग्रहों एवं विशेषांकों का संपादन कर नए लेखकों को मंच दिया। उन्होंने विषयगत, विचारगत और शिल्पगत समीक्षा-लेख लिखकर लघुकथा को ‘साहित्यशास्त्र’ के दायरे में स्थापित किया। उनके लेख भारत के प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, जिनमें विधा की परिभाषा, रूप, और लक्ष्य पर ठोस विमर्श मिलता है। पड़ाव और पड़ताल जैसी महत्वपूर्ण श्रंखला उनके बेहतरीन कार्यों में से एक है।

4. प्रतिनिधि लघुकथाएँ एवं संक्षिप्त परिचय

1. तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त

विषय: कॉफी हाउस की पृष्ठभूमि में ‘मौन स्वीकृति’ पर तीखा व्यंग्य।

स्रोत: मूल संग्रह

2. सन्नाटों का प्रकाशपर्व

विषय: भीड़-एकाकीपन तथा मनोवैज्ञानिक दरारों का प्रतीकात्मक चित्रण।

स्रोत: मूल संग्रह

3. पुत्रमोह

विषय: वृद्ध पिता-पुत्र संबंधों में उपजी अन्ध आस्था और कोमल क्षण।

स्रोत: भारत दर्शन (https://bharatdarshan.co.nz/magazine/articles/1229/putra-moh-laghukatha.html)

4. हिस्से का दूध

विषय: पारिवारिक स्वार्थ एवं मानवता के टकराव की मार्मिक कथा।

स्रोत: भारत दर्शन (https://bharatdarshan.co.nz/hindi-sahitya/1688/hissey-ka-doodh-laghukatha)

5. नियति

विषय: जीवन-निराशा, संघर्षों और नियति की स्वीकार्यता का संवेदनशील अन्वेषण।

स्रोत: यूट्यूब वर्णन (https://www.youtube.com/watch?v=io03qfj78L0)

6. नमिता सिंह

विषय: एक नारी कितनी शक्तिशाली हो सकती है और उसे स्वाभिमानी भी रहना चाहिए, वह इस लघुकथा में बहुत अच्छी तरह दर्शाया गया है।

स्रोत: लघुकथा दुनिया (https://laghukathaduniya.blogspot.com/2019/12/blog-post_13.html)

5. निष्कर्ष

मधुदीप गुप्ता ने हिंदी लघुकथा को ‘हल्की-फुल्की’ पारंपरिक कल्पना से ऊपर उठाकर गंभीर साहित्यिक विमर्श का विषय बनाया। उनकी रचनाएँ यह प्रमाणित करती हैं कि लघुकथा कितने गहरे सामाजिक और वैश्विक प्रश्न उठा सकती है, मनुष्य की आंतरिक पीड़ा और बची-खुची आशाओं को उजागर कर सकती है, और शिल्पगत दृष्टि से पूर्ण परिपक्व हो सकती है।

उनके संपादकीय एवं आलोचनात्मक लेखन ने लघुकथा को नई और व्यापक दृष्टि दी, जिससे यह विधा आज पाठकों और शिक्षाविदों दोनों में समकक्ष सम्मानित हुई है।

संदर्भ

1. भारत दर्शन:

https://bharatdarshan.co.nz/hindi-sahitya/1688/hissey-ka-doodh-laghukatha

2. यूट्यूब: 

https://www.youtube.com/watch?v=io03qfj78L0

3. लघुकथा दुनिया: 

https://laghukathaduniya.blogspot.com/2019/12/blog-post_13.html


- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी, उदयपुर - राजस्थान. 9928544749