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सोमवार, 2 जुलाई 2018

लघुकथा समाचार

साहित्य पढ़ने के साथ लिखा भी जाना चाहिए : कमलेश भारतीय
सृजन सेवा संस्थान ने साहित्यकारों को दिया सृजन सम्मान
Dainik Bhaskar | Jul 02, 2018 | Shriganganagar

सृजन सेवा संस्थान की आेर से रविवार को बीरबल चौक स्थित एक सभागार में आयोजित लेखक से मिलिए कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें वरिष्ठ लघुकथाकार कमलेश भारतीय (हिसार) ने अपना जीवन परिचय दिया और लिखने की रुचि कैसे पैदा हुई इस बारे में जानकारी दी। लघु कथाकारों के मठ बनना ही लघुकथा के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है। जब तक मठ नहीं थे, तब तक लघुकथा बेहतर से बेहतरीन स्थिति में थी। उन्होंने कहा कि जिस तरह विभिन्न प्रकार के वादों और विम शोज ने साहित्य को बांटकर साहित्य का नुकसान किया है, उसी तरह लघुकथाकारों के मठ बन जाने से लघुकथा का वह विकास नहीं हो पाया है, जिसकी वह हकदार थी। भारतीय ने माना कि बेशक पुस्तकों को अब पहले जितने पाठक नहीं मिल पा रहे हैं, लेकिन अच्छे साहित्य के पाठक आज भी हैं। उन्होंने माना कि लेखक दुनिया भर के शोषण पर लिखता है लेकिन जब खुद की पुस्तक छपवाने का समय आता है तो वह प्रकाशक के सामने खुद हाजिर हो जाता है शोषण करवाने के लिए कि भाई ले मेरी पांडुलिपि तू छाप और कमा। मुझे तो दस प्रतियां दे देना। यही काफी है। नए लेखकों को सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि अच्छा लेखक बनना है तो अच्छा साहित्य पढ़ें। उन्होंने कुछ लघुकथाएं, कविताएं और हिंदी साहित्य पर एक आलेख भी पढ़ा। सचिव कृष्ण कुमार आशु ने भारतीय का परिचय दिया। मंच संचालन कार्यक्रम संयोजक संदेश त्यागी ने किया।

भारतीय को शॉल ओढ़ाई, सम्मान प्रतीक तथा पुस्तकें भेंट की 

इस मौके पर कमलेश भारतीय को सृजन साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें समाजसेवी विजय गोयल, साहित्यकार गोविंद शर्मा, मासूम गंगानगरी, लक्ष्मीनारायण सहगल एवं सृजन के अध्यक्ष डॉ. अरुण शहैरिया ताइर ने शॉल ओढ़ाकर, सम्मान प्रतीक तथा पुस्तकें भेंट करके सम्मानित किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एडवोकेट लक्ष्मीनारायण सहगल ने कहा कि पढ़ने से अभिव्यक्ति की धार मजबूत होती है। बात में वजन आता है। वकालत में रहते हुए एक अच्छे पाठक होने का उन्हें बहुत फायदा हुआ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार मासूम गंगानगरी ने माना कि क्षेत्र में बेहतर साहित्यिक माहौल बन रहा है।

News Source:
https://www.bhaskar.com/rajasthan/shriganganagar/news/latest-sriganganagar-news-063003-2102605.html

रविवार, 1 जुलाई 2018

भेड़िया आया था (लघुकथा)

“भेड़िया आया… भेड़िया आया…” पहाड़ी से स्वर गूंजने लगा। सुनते ही चौपाल पर ताश खेल रहे कुछ लोग हँसने लगे। उनमें से एक अपनी हँसी दबाते हुए बोला, “लो! सूरज सिर पर चढ़ा भी नहीं और आज फिर भेड़िया आ गया।“

दूसरा भी अपनी हँसी पर नियंत्रण कर गंभीर होते हुए बोला, “उस लड़के को शायद पहाड़ी पर डर लगता है, इसलिए हमें बुलाने के लिए अटकलें भिड़ाता है।“

तीसरे ने विचारणीय मुद्रा में कहा, “हो सकता है… दिन ही कितने हुए हैं उसे आये हुए। आया था तब कितना डरा हुआ था। माता-पिता को रास्ते में डाकूओं ने मार दिया, हमने पनाह देकर अपनी बकरियां चराने का काम दे दिया… अनजानी जगह में तो आहट से भी डर लगे… है तो बच्चा ही…”

चौथा बात काट कर कुछ गुस्से में बोला, “बच्चा है, इसका मतलब यह नहीं कि रोज़-रोज़ हमें बुला ले… झुण्ड से बिछड़ा एक ही तो भेड़िया है पहाड़ी पर… उस औंधी खोपड़ी के डरने के कारण रोज़ दस-पांच लोगों को भागना पड़ता है, फायदा क्या उसे भेजने का?”

और वह चिल्लाते हुए बोला, “कोई भेड़िया नहीं आया… पहाड़ी पर कोई नहीं जाएगा…”

वहां से गुजरते हर स्त्री-पुरुष ने वह बात सुन ली और पहाड़ी की तरफ किसी ने मुंह नहीं किया।

“भेड़िया आया…” का स्वर उस वक्त तक गूँज रहा था। कुछ समय पश्चात् उस स्वर की तीव्रता कम होने लगी और बाद में बंद हो गयी।

शाम धुंधलाने लगी, वह लड़का लौट कर नहीं आया। आखिरकार गाँव वालों को चिंता हुई, उनमें से कुछ लोग पहाड़ी पर गये। वहां ना तो बकरियां थीं और ना ही वह लड़का। हाँ! किसी भूखे भेड़िये के रोने की धीमी आवाज़ ज़रूर आ रही थी।

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डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी 

सोमवार, 11 जून 2018

लघुकथा समाचार

लघुकथाओं के जरिए पर्यावरण की चिंता को किया अभिव्यक्त
Dainik Bhaskar| Jun 11, 2018 | Indore

शहर की चुनिंदा लेखिकाअों ने अपनी रचनात्मक को नए आयाम देते हुए पर्यावरण की चिंता और सरोकार को अपनी लघुकथाओं के जरिए अभिव्यक्त किया। इन लघुकथाओं में कथ्य तो मार्मिक था ही, पेड़, घोंसला, हवा-पानी और इस तरह पूरी प्रकृति के प्रति एक मातृत्व भाव भी था और साथ ही सकारात्मक संदेश भी था कि हम कैसे अपनी इस हरा-भरी धरा को बचा सकते हैं। वामा साहित्य मंच के "मेरा पर्यावरण : मेरी जिम्मेदारी' के तहत सदस्याओं ने लघुकथाओं का पाठ किया। यह कार्यक्रम विनम्रता से जता गया कि कैसे साहित्य को अपने समय-समाज के सरोकारों से जोड़ा जा सकता है।

कार्यक्रम में डॉ. गरिमा संजय दुबे ने घोसला लघुकथा के जरिए बताया कि किस तरह हम टेक्नोलॉजी के कारण प्रकृति से दूर हो रहे हैं और इसके पास जाने पर नई पीढ़ी कैसे अपने को उन्मुक्त और प्रकृति के साथ पंख लगाकार उड़ने लगती है। ज्योति जैन की लघुकथा नीम का पेड़ यह अभिव्यक्त करती है कि घर में पिता की ख्वाहिश के खिलाफ पुत्र गैराज और बाउंड्री वॉल बनाने के लिए नीम का पेड़ काटना चाहता है लेकिन पुत्र का पुत्र जब उसे फादर्स डे पर पौधा तोहफे में देता है तो वह अपना यह फैसला बदल लेता है। रश्मि वागले ने संकल्प, चारूमित्रा नागर ने हवा का कर्ज, प्रतिभा श्रीवास्तव ने छांव, अंजू निगम ने बालकनी, वसुधा गाडगिल ने इंसानी बस्ती, आशा वडनेरे ने गुलाब और कांटे, मंजू मिश्रा ने सास, बहू और पर्यावरण, वीनिका शर्मा ने प्रायश्चित, रेमी जायसवाल ने नई राह, शोभा प्रजापति ने आशीर्वाद, निरुपमा नागर ने अंतिम निर्णय, दीपा व्यास ने वृक्षपात, विद्यावती पाराशर ने शपथ, पद्मा राजेन्द्र ने चेतावनी, रंजना फतेहपुरकर ने श्रद्धांजलि, भावना दामले ने हम कब सुधरेंगे, बबीता कड़ाकिया ने "मत रूठो मां' शीर्षक से लघुकथा सुनाई।

पर्यावरण के प्रति दायित्वों को ईमानदारी से निभाएं 

पर्यावरणविद् पद्मश्री जनक पलटा ने "पर्यावरण को प्लास्टिक के कैसे बचाएं' विषय पर कहा कि क्या आप जानते हैं कि समूचे विश्व में इतना प्लास्टिक फेंका जाता है कि इससे पृथ्वी के चार घेरे बन सकते हैं। प्लास्टिक को खत्म होने में 500 से हज़ार साल लगते हैं। यह जहर हम सबकी ज़िंदगी के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। प्लास्टिक के विकल्पों को तेजी से अपनाना होगा तब कहीं जाकर हम अपने दायित्वों को ईमानदारी निभा सकेंगे। संचालन स्नेहा काले ने किया। सरस्वती वंदना विद्यावती पाराशर ने प्रस्तुत की। अतिथि परिचय स्मृति आदित्य ने दिया और आभार मालिनी शर्मा ने माना।

News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/latest-indore-news-025003-1931420.html

बुधवार, 6 जून 2018

लघुकथा विधा : तेवर और कलेवर - श्री योगराज प्रभाकर

योगराज प्रभाकर जी, प्रधान संपादक, ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम ने लघुकथा विधा पर एक लेख अपनी वेबसाइट openbooksonline.com पर साझा किया हुआ है। लघुकथा के अनुशासन, शिल्प, नियम एवं संरचना  को समझने के लिए आसान भाषा में लिखा यह एक महत्वपूर्ण लेख है, जिसे  लघुकथाकारों को अवश्य पढ़ना चाहिए। 

यह लेख निम्न लिंक पर उपलब्ध है, पढ़ने के लिए लेख के शीर्षक (निम्नानुसार) पर क्लिक कीजिये:
लघुकथा विधा : तेवर और कलेवर -  श्री योगराज प्रभाकर

शुक्रवार, 1 जून 2018

मेरी याद (लघुकथा)

रोज़ की तरह ही वह बूढा व्यक्ति किताबों की दुकान पर आया, आज के सारे समाचार पत्र खरीदे और वहीँ बाहर बैठ कर उन्हें एक-एक कर पढने लगा, हर समाचार पत्र को पांच-छः मिनट देखता फिर निराशा से रख देता।

आज दुकानदार के बेटे से रहा नहीं गया, उसने जिज्ञासावश उनसे पूछ लिया, "आप ये रोज़ क्या देखते हैं?"

"दो साल हो गए... अख़बार में मेरी फोटो ढूंढ रहा हूँ...." बूढ़े व्यक्ति ने निराशा भरे स्वर में उत्तर दिया।

यह सुनकर दुकानदार के बेटे को हंसी आ गयी, उसने किसी तरह अपनी हंसी को रोका और व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा, "आपकी फोटो अख़बार में कहाँ छपेगी?"

"गुमशुदा की तलाश में..." कहते हुए उस बूढ़े ने अगला समाचार-पत्र उठा लिया।

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- डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी    

रविवार, 6 मई 2018

जानवरीयत (लघुकथा)

वृद्धाश्रम के दरवाज़े से बाहर निकलते ही उसे किसी कमी का अहसास हुआ, उसने दोनों हाथों से अपने चेहरे को टटोला और फिर पीछे पलट कर खोजी आँखों से वृद्धाश्रम के अंदर पड़ताल करने लगा। उसकी यह दशा देख उसकी पत्नी ने माथे पर लकीरें डालते हुए पूछा, “क्या हुआ?”

उसने बुदबुदाते हुए उत्तर दिया, “अंदर कुछ भूल गया…”

पत्नी ने उसे समझाते हुए कहा, “अब उन्हें भूल ही जाओ, उनकी देखभाल भी यहीं बेहतर होगी। हमने फीस देकर अपना फ़र्ज़ तो अदा कर ही दिया है, चलो…” कहते हुए उसकी पत्नी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे कार की तरफ खींचा।

उसने जबरन हाथ छुड़ाया और ठन्डे लेकिन द्रुत स्वर में बोला, “अरे! मोबाइल फोन अंदर भूल गया हूँ।”

“ओह!” पत्नी के चेहरे के भाव बदल गए और उसने चिंतातुर होते हुए कहा,

“जल्दी से लेकर आ जाओ, कहीं इधर-उधर हो गया तो? मैं घंटी करती हूँ, उससे जल्दी मिल जायेगा।”

वह दौड़ता हुआ अंदर चला गया। अंदर जाते ही वह चौंका, उसके पिता, जिन्हें आज ही वृद्धाश्रम में दाखिल करवाया था, बाहर बगीचे में उनके ही घर के पालतू कुत्ते के साथ खेल रहे थे। पिता ने उसे पल भर देखा और फिर कुत्ते की गर्दन को अपने हाथों से सहलाते हुए बोले, “बहुत प्यार करता है मुझे, कार के पीछे भागता हुआ आ गया… जानवर है ना!”

डबडबाई आँखों से अपने पिता को भरपूर देखने का प्रयास करते हुए उसने थरथराते हुए स्वर में उत्तर दिया, “जी पापा, जिसे जिनसे प्यार होता है… वे उनके पास भागते हुए पहुँच ही जाते हैं…”

और उसी समय उसकी पत्नी द्वारा की हुई घंटी के स्वर से मोबाइल फोन बज उठा। वो बात और थी कि आवाज़ उसकी पेंट की जेब से ही आ रही थी।


रविवार, 15 अप्रैल 2018

छुआछूत (लघुकथा)


'अ' पहली बार अपने दोस्त 'ब' के घर गया, वहां देखकर उसने कहा,  "तुम्हारा घर कितना शानदार है - साफ और चमकदार"

"सरकार ने दिया है, पुरखों ने जितना अस्पृश्यता को सहा है, उसके मुकाबले में आरक्षण से मिली नौकरी कुछ भी नहीं है, आओ चाय पीते हैं"

चाय आयी, लेकिन लाने वाले को देखते ही 'ब' खड़ा हो गया, और दूर से चिल्लाया, "चाय वहीँ रखो...और चले जाओ...."

'अ' ने पूछा, "क्या हो गया?"

"अरे! यही घर का शौचालय साफ़ करता है और यही चाय ला रहा था!"

-- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी