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शनिवार, 6 नवंबर 2021

लघुकथा संग्रह: कितना-कुछ अनकहा | लेखिका: कनक हरलालका | समीक्षा: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी




"जब व्यक्ति व समाज की विसंगतियों से भरी कोई समस्या हृदय पर आघात कर उसका समाधान खोजने के लिए विवश कर देती है तो कलम स्वतः ही अपने उद्गार प्रकट करने के लिए विवश हो उठती है।"

- कनक हरलालका (अपने लघुकथा संग्रह के लेखकीय वक्तव्य में)

कनक हरलालका जी न केवल एक समर्थ लघुकथाकारा हैं बल्कि एक अच्छी कवयित्री भी हैं। दो विधाओं में महारथ हासिल करने से पहले किसी भी व्यक्ति को  शब्दों का धनी होना होता ही है, जो प्रतिभा श्रीमती हरलालका में विद्यमान है।

लघुकथा विधा में यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लघुकथा विसंगतियों की कोख से जन्म लेती हैं। अपने प्रथम लघुकथा संग्रह में हरलालका कहती हैं कि, "विसंगतियाँ मुझे हमेशा से व्यथित करती रही हैं, इसीलिए मैंने विभिन्न विषयों को अपनी लघुकथाओं का माध्यम बनाया है। धरती के प्राय: सभी रंगो को मैंने इन लघुकथाओं में उतारने की कोशिश की है।"

आज का साहित्यकार नैतिक, राजनैतिक दर्शन के मूल्यों को दर्शाने से पिंड छुड़ाता दिखाई नहीं देता वरन इन्हें दर्शा कर अपनी रचनाओं के सौन्दर्य में वृद्धि करता है। इस संग्रह में भी इसी तरह की सत्तासी लघुकथाएं संग्रहित हैं। पहली लघुकथा 'प्यास' से लेकर अंतिम लघुकथा 'भेड़िया आया' कुछ न कुछ प्रभाव ज़रूर छोड़ जाती है। किसी रचना की भाषा तो किसी का शिल्प, कथ्य, विषय, संवेदना और/या शीर्षक प्रभावोत्पादक हैं। लघुकथाओं में मानव सम्बन्धी मूल्यों की वृद्धि का भाव यदि विद्यमान हो तो न केवल रचना उत्तम बल्कि कालजयी बनने का सामर्थ्य भी रखती हैं। इस संग्रह की 'गांधी को किसने मारा' भी एक ऐसी रचना है जो गांधी जी के आदर्श और मूल्यों के ह्वास को दर्शा रही है। 'इनसोर' लघुकथा का शीर्षक कलात्मक और उत्सुकता पैदा करने वाला है। इसी प्रकार 'वयसन्धि', 'कठपुतलियाँ', 'दरकन', 'पुनर्जीवी', 'असूर्यम्पश्या', आदि लघुकथाओं के शीर्षक भी उत्तम हैं।

मज़दूरों के इन्श्योरेंस पर आधारित लघुकथा 'इनसोर' की यह पंक्ति झकझोर देती है कि //"साहब... भूख से मरने पर भी इनसोर का रुपिया मिलेगा क्या...?"// लघुकथा 'सगाई की अंगूठी' का अनकहा आकर्षित करता है। 'वयसन्धि' की भाषा और यह पंक्ति कि // गरीबों की लड़कियां  बचपन से सीधे बड़ी हो जाती हैं// प्रभावित करती है। जहाँ “भीड़” की पंचलाइन उद्वेलित करती है वहीं 'अनुदान' का विषय और उसका निर्वाह काफी बढ़िया है। 'दरकन' लघुकथा का सौन्दर्य इस बात में है कि हर पंक्ति में नायिका विद्यमान होकर भी कहीं नहीं है। पुराने विषय की होकर भी इस रचना का शिल्प महत्वपूर्ण है। 'जंगली', 'उन्होंने कहा था', 'भेड़िया आया' व 'एकलव्य' भी प्रभावित करती रचनाएं हैं। कहीं-कहीं उपदेशात्मकता ज़रूर प्रतीत हुई, जिसे कम किया जा सकता था।

नैतिक, सामजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि मानवीय मूल्यों के संक्रमण को दर्शाती इस संग्रह की अधिकतर रचनाएं पैनी हैं, परिपक्व हैं और अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के कहने में समर्थ हैं। समग्रतः यह संग्रह न केवल पठनीय बल्कि संग्रहणीय भी है।

-०-


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

chandresh.chhatlani@gmail.com

9928544749


लघुकथा संग्रह: कितना-कुछ अनकहा

लेखिका: कनक हरलालका

प्रकाशन : दिशा प्रकाशन, दिल्ली

मूल्य : ₹३००

पृष्ठ : १२०

गुरुवार, 4 नवंबर 2021

Five key elements of a Short-Story, can also be applied on Hindi Laghukatha

What makes the authors such remarkable short story writers? They are true masters at combining the five key elements that go into every great short story: character, setting, conflict, plot and theme.

A character is a person, or sometimes even an animal, who takes part in the action of a short story or other literary work.

The setting of a short story is the time and place in which it happens. Authors often use descriptions of landscape, scenery, buildings, seasons or weather to provide a strong sense of setting.

A plot is a series of events and character actions that relate to the central conflict.

The conflict is a struggle between two people or things in a short story. The main character is usually on one side of the central conflict.

On the other side, the main character may struggle against another important character, against the forces of nature, against society, or even against something inside himself or herself (feelings, emotions, illness).

The theme is the central idea or belief in a short story.


Source:

https://users.aber.ac.uk/jpm/ellsa/ellsa_elements.html

बुधवार, 3 नवंबर 2021

फेसबुक समूह साहित्य संवेद में लघुकथा प्रतियोगिता

 श्री मृणाल आशुतोष द्वारा प्रसारित।

नमस्कार साथियो,

शुभ संध्या!!!

आपका अपना समूह साहित्य संवेद साहित्यिक आयोजन के प्रति सतत कटिबद्ध  है। अगली कड़ी में लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन 26-27 नवम्बर 2021 को सुनिश्चित हुआ है। प्रतियोगिता का फलक विस्तृत हुआ है और प्रतिष्ठित पत्रिका किस्सा-कोताह भी इसमें सहभागी बनी है।

प्रतियोगिता को बेहतर बनाने हेतु कुछ नियम निर्धारित किए हैं। सभी रचनाकारों से अनुरोध है कि प्रतियोगिता को सफल बनाने के लिए दिये गये नियमों का पालन करें। प्रतिभागियों से नवीन व ज्वलंत विषयों पर लेखनी चलाने की अपेक्षा रहेगी।

प्रतियोगिता के नियम इस प्रकार हैं:

1. रचना मौलिक, स्वरचित और पूर्णतः अप्रकाशित (न केवल पत्र-पत्रिका वरन फेसबुक, व्हाट्सएप, वेबसाइट और ब्लॉग आदि  पर भी प्रकाशित न हो) होनी चाहिए।

2. एक प्रतिभागी एक और केवल एक ही रचना प्रतियोगिता में भेज सकते हैं।

3.प्रतियोगिता में भेजी हुई रचना प्रतियोगिता के परिणाम आने तक कहीं और न भेजें और न ही पोस्ट करें। अन्यथा यह पुरस्कार की दौड़ से बाहर मानी जायेगी।

4. भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें। रचना भेजने से पहले अशुद्धियों को ठीक कर लें। पोस्ट करने के बाद संपादित (एडिट) करना अमान्य होगा।

5. प्रतिभागी रचना निर्धारित तिथि(26-27 नवम्बर 2021) को साहित्य संवेद समूह में कर सकते हैं या अपने वाल पर।

अगर अपने वाल पर पोस्ट करते हैं तो पोस्ट करने के पश्चात लघुकथा, लघुकथा का लिंक, पूरा पता मोबाइल नंबर के साथ sahitya.samved@gmail.com पर मेल भी कर दें।

6. कृपया रचना के शीर्ष में #साहित्य_संवेद_किस्सा_कोताह_लघुकथा_प्रतियोगिता अवश्य अंकित करें। रचना के अंत में ई मेल आईडी अवश्य अंकित करें।

 एडमिनगण भी पुरस्कार के इतर इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकते हैं।

प्रतियोगिता के प्रथम और द्वितीय विजेता को भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति'+मधुदीप संपादित पड़ाव और पड़ताल का कोई एक खण्ड+ संतोष सुपेकर सम्पादित 'उत्कंठा के चलते'

तृतीय पुरस्कार विजेता को भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति'+मधुदीप संपादित पड़ाव और पड़ताल का कोई एक खण्ड दिए जाएंगे।

इसके अतिरिक्त दो प्रोत्साहन पुरस्कार भी दिए जाएंगे जिन्हें भवभूति मिश्र रचित लघुकथा संग्रह 'बची-खुची सम्पत्ति' प्रदान किया जाएगा।

प्रथम तीन विजेता रचनाओं का प्रकाशन किस्सा कोताह पत्रिका में किया जाएगा और प्रथम पांच विजेताओ को डिजिटल सर्टिफिकेट प्रदान किये जायेंगे

इस प्रतियोगिता हेतु किसी भी सुझाव का हार्दिक स्वागत है। निस्संकोच अभिव्यक्त करें।

◆समय सीमा: भारतीय समयानुसार बुधवार 26/11/21 प्रातः 7 बजे से गुरुवार 27/11/21 सायं 11 बजे तक।

(आप सब तो प्रतियोगिता में शामिल होंगे ही, साथ में अपने लघुकथाकार मित्रों को भी शामिल होने के लिये प्रेरित करें।)

◆◆मित्रगण से इस पोस्ट को कॉपी/शेयर कर अपने वाल पर स्थान देने का आग्रह है  ताकि अधिकाधिक लघुकथाकार इस आयोजन में सहभागी बन सकें।

◆◆◆अनेक मित्र टैग होने से रह गए हैं। कृपया सभी साहित्यप्रेमी अपने आपको इस पोस्ट में टैग समझें।

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर की फेसबुक वॉल से

 डॉ० रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित लघुकथा संकलन 'विभाजन त्रासदी की लघुकथाएँ' दिनांक 31 अक्तूबर 2021 को सिरसा में उन्हीं के कर-कमलों द्वारा प्राप्त हुआ। इसमें विभाजन की त्रासदी का हौलनाक चित्रांकन करती 47 लघुकथाकारों की 75 लघुकथाएँ शामिल हैं। 47 की संख्या वर्ष 1947 में हुए विभाजन तथा 75 की संख्या स्वतंत्रता की हीरक जयंती का प्रतिनिधित्त्व करती है। भारत विभाजन के विषय को लेकर यह सर्वप्रथम लघुकथा संकलन है। इसमें एक-से-बढ़कर एक लघुकथाएँ हैं। किंतु मुझे जिस लघुकथा ने बेहद प्रभावित किया है सुश्री पवित्रा अग्रवाल की लघुकथा 'जलन'। इस लघुकथा में पात्र का कोई नाम नहीं, वह किस धर्म है उसका कोई उल्लेख नहीं. वह भारत का है या पकिस्तान का, इसका भी कोई ज़िक्र नहीं. लेकिन मानववादी दृष्टिकोण से लिखी इस लघुकथा में जो संदेश है वह उस साझा दुख को बख़ूबी उभारने में सफल रहा है, जो दोनों तरफ़ के लोगों ने भोगा था. यह होता है लेखकीय कौशल जो एक तीर से कई-कई निशाने लगाने की क्षमता रखता है।

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जलन / पवित्रा अग्रवाल

"दादा आप उन लोगों से इतने खफा क्यों रहते हैं ?"

"बेटा मैंने बँटवारे का दर्द भोगा है। अपनी ज़मीन, जायदाद, जमा हुआ व्यापार सब छोड़कर रातों-रात वहाँ से भागना पड़ा था। रास्ते में माँ, दादा, दादी, बहन, भाई, बुआ, चाचा सभी छूटते गए।"

"कहाँ छूटते गए दादा?"

"मार दिए गए, उठा लिए गए या भीड़ में छूट गए।"

"तब आप कितने बड़े थे दादा?"

"मैं तो बहुत छोटा था, उतना याद भी नहीं रहता पर पूरी उम्र पिता को तिल-तिल कर मरते देखता रहा, माँ को तो तस्वीर में भी नहीं देखा। जब यह सब याद आता है तो दिल जलने लगता है।"

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रविवार, 31 अक्टूबर 2021

ई-पुस्तक | मेरी कमज़ोर लघुकथा (लघुकथाकारों द्वारा आत्म-आलोचना) | शोध कार्य


विश्व भाषा अकादमी  (रजि),भारत की राजस्थान इकाई द्वारा लघुकथाओं पर शोध कार्य के तहत एक अनूठे ई-लघुकथा संग्रह का प्रकाशन किया गया है। इस संग्रह में विभिन्न लघुकथाकारों की 55 कमज़ोर लघुकथाओं का संकलन किया गया है। लघुकथाओं के साथ ही उन लघुकथाओं पर लघुकथाकारों का यह वक्तव्य भी संकलित है कि उनकी रचना कमज़ोर क्यों है? इस कार्य का मुख्य उद्देश्य यह ज्ञात करना था कि लघुकथा लेखन में ऐसी कौनसी कमियाँ हैं जो रह जाएं तो रचना को प्रकाशन हेतु नहीं भेजना चाहिए। जहां तक ज्ञात है, इस प्रकार का कोई कार्य हिन्दी साहित्य में आज से पूर्व नहीं किया गया है। रचनाकारों को आत्म-आलोचना के लिए प्रेरित करता यह संग्रह निम्न लिंक पर निःशुल्क पढ़ा व डाउनलोड जा सकता है:


https://vbaraj.blogspot.com/2021/10/blog-post.html


इस संग्रह में लघुकथाओं और उन पर लेखकीय वक्तव्य सहित शामिल है रावी का दुर्लभ साक्षात्कार मुकेश शर्मा (विश्व भाषा अकादमी के राष्ट्रीय चेयरमैन) द्वारा, डॉ. अशोक भाटिया का लेख व डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की विवेचना।

विश्वास है कि यह संग्रह न केवल एक विशिष्ट कार्य  बनेगा बल्कि कई शोधकार्यों में भी सहायक होगा। इस शोधपरक संग्रह पर आपकी राय अपेक्षित है।

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श्री मुकेश शर्मा, राष्ट्रीय चेयरमैन, विभाअ

डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी, सम्पादक