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शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

शोध आलेख आमंत्रण । लघुकथाओं का वृहद संसार

सम्माननीय,

साहित्यकार,समीक्षक, आचार्य एवं शोधार्थियों,

हम सहर्ष सूचित करना चाहते हैं कि  ‘लघुकथाओं का वृहद संसार’ नामक समीक्षात्मक पुस्तक ISBN  नंबर के साथ प्रकाशित होने जा रही है। आप भी अपना शोध आलेख 10/12/2021 तक MS Word फ़ाइल में मंगल, UNICODE, या कृतिदेव 10 में टाइप करके 

email ID- neetatrivedi2010@gmail.com

पर भेज सकते हैं। 

उप विषय

1. लघुकथा साहित्य: स्वरूप एवं महत्त्व

2. लघुकथा साहित्य: परंपरा एवं विकास

3. हिंदी कथा साहित्य में लघुकथा का स्थान

4. लघुकथा साहित्य और महिला लघुकथाकार

5. हिंदी लघुकथा साहित्य में राजस्थान के कथाकारों की भूमिका

6. समकालीन लघुकथाओं में आए परिवर्तन की पहचान

7. इक्कीसवीं सदी और लघुकथा साहित्य

8. प्रमुख लघुकथा पत्रिकाएँ

9. लघुकथा साहित्य में विमर्श के स्वर 

10. लघुकथा और प्रवासी साहित्य

11. लघुकथा साहित्य एवं युवा लेखन

12. लघुकथा साहित्य का साहित्य की अन्य विधाओं से अन्तर्सम्बन्ध 

13. लघुकथा साहित्य की भाषा और शिल्प

14. लघुकथा साहित्य में शैल्पिक नवाचार

15. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का लघुकथा साहित्य पर बढ़ता प्रभाव

16. लघुकथा: सामाजिक सरोकार

17. लघुकथा: मानवीय मूल्य

18. लघुकथा: ग्राम्य एवं शहरी संस्कृति

19. लघुकथा: पारिवारिक जीवन

20. लघुकथा: सांस्कृतिक संक्रमण

21. लघुकथा: नारी जीवन

22. लघुकथा: दर्शन एवं जीवन

23. लघुकथा: नैतिक विचार दृष्टि

24. लघुकथा: राजनीतिक दृष्टि 

25. लघुकथा: हास्य एवं व्यंग्य

26. लघुकथा: बाल मनोविज्ञान

27. लघुकथा: साम्प्रदायिक समस्याएँ

28. लघुकथा: जादुई यथार्थवाद

29. हिंदी के लघुकथाकार एवं उनकी विशाल कथादृष्टि

30. प्रमुख लघुकथाकारों की रचनाओं की आलोचनात्मक समीक्षा

31. हिंदी के प्रमुख लघुकथा संग्रह और समीक्षात्मक दृष्टि

32 . विषय से संबंधित अन्य उप-विषयों पर भी शोध पत्र/आलेख स्वीकृत हैं। 


नियम एवं शर्तें

1. शोध आलेख 1500 से 2500 शब्दों तक हो।

2. शोध आलेख भेजने से पूर्व भाषागत एवं व्याकरणिक अशुद्धियों को भली-भांति जाँच लें।

3. लेख के अंत में संदर्भ सूची(लेखक/संपादक,शीर्षक,प्रकाशन वर्ष,पृष्ठ संख्या आदि) होना अनिवार्य है।

4. लेख के अंत में अपना नाम,पद,पता,मोबाइल/व्हाट्सऐप नंबर अवश्य दें।

5. शोध आलेख केवल हिंदी में मंगल, UNICODE या KrutiDev 10 फ़ॉण्ट  में दें।

6. पीडीएफ, हाथ से लिखा आलेख मान्य नहीं है।

7. लेख प्रकाशन हेतु मात्र 500/- रू. राशि देनी होगी।


अधिक जानकारी हेतु

संपर्क

संपादक

डॉ. नीता त्रिवेदी

सहायक आचार्य

हिंदी विभाग

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय,

उदयपुर (राजस्थान) 

मो. नं.- 9950960999

Email ID-neetatrivedi2010@gmail.com

सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

मेरी नजर में | लघुकथा संग्रह ‘फिर वही पहली रात’ | संग्रह लेखक: कीर्तिशेष श्री विजय ‘विभोर’ | समीक्षक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

"साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण प्रदान करना भी है।" अपने इन शब्दों द्वारा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन क्या कहना चाह रहे हैं यह तो स्पष्ट है, साथ ही इस वाक्य पर थोड़े से मनन के पश्चात् समझ में आता है कि यह पंक्ति एक भाव यह भी रखती है कि साहित्य का कार्य छोटी से बड़ी किसी भी समस्या के ताले की चाबी बनना हो न हो वर्तमान युग के अनुसार एक ऐसा वातावरण तैयार करना है ही, जो हमारे मन-मस्तिष्क के द्वार खटखटाने में सक्षम हो। चूँकि लघुकथा सीमित शब्दों में अपने पाठकों को दीर्घ सन्देश देने में भी सक्षम है, अतः ऐसे वातावरण का निर्माण करने में लघुकथा का दायित्व अन्य गद्य विधाओं से अधिक स्वतः ही हो जाता है।

उपरोक्त कथन को मूर्तिमंत करते लघुकथा के कर्म, चरित्र और मूल वस्तु से परिचय कराता, सुरुचिपूर्ण, सकारात्मक, सार्थक और प्रेरणास्पद लेखन का एक उदाहरण है श्री विजय ‘विभोर’ का लघुकथा संग्रह 'फिर वही पहली रात'। मानवीय चेतना के शुद्ध रूप के दर्शन करने को प्रोत्साहित करती श्री विभोर की लघुकथाएं स्पष्ट सन्देश प्रदान करने में समर्थ हैं। मौजूदा समय का मूलभूत अनिवार्य मंथन भी इन रचनाओं में सहज भावों के माध्यम से परिलक्षित होता है। उदाहरणस्वरूप पति-पत्नी के सम्बन्ध विच्छेद की बढ़ती घटनाओं कम करने का प्रयास करती लघुकथा ‘आदत’, मानवीय प्रेम का सन्देश देती 'कनागत, ‘मजबूरी’, आदि रचनाओं में चेतना जागरण, नैतिक मूल्य, मानवता, नारी-स्वातंत्र्य, सामाजिक दशा, कर्तव्य परायणता और मानवीय उदात्तता जैसे बहुआयामी और समसामयिक विषयों पर लेखक ने बड़ी प्रवीणता-कुशलता से सृजन किया है।

लेखन ऐसा होना चाहिए जो न सिर्फ काल की वर्तमानता को दर्शाये बल्कि आने वाली शताब्दी तक की चुनौतियों पर खरा उतरने वाला हो। आदमीयत की गायब होती परिपूर्णता को शब्दों से उभार सके तथा सच व झूठ के टुकड़ों में बंटे हुए मनुष्य को आत्मिक चेतना तक का अनुभव करवा सके। अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि कुम्भनदास को एक बार अकबर ने फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया था, कुम्भनदास ने उस आमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा कि "सन्तन को कहा सीकरी सों काम।" सच्चे साहित्यकार संत की तरह होते हैं। ज़्यादातर इतिहासकारों ने शासकों की अयोग्यता को भी जय-जयकार में बदला है लेकिन अधिकतर साहित्यकारों ने नहीं। इस संग्रह की ‘जीवन जीर्णोद्धार’, ‘अन्नदाता’, ‘फैसले’, ‘बदलाव’ जैसी रचनाएँ साहित्यकार के इस धर्म का पालन करती हैं। लेखन सम्बन्धी विसंगतियां उठाती इस संग्रह की 'कुल्हड़ में हुल्लड़' भी एक विचारणीय रचना है।

पुरातन साहित्य में दर्शाया गया है कि वाराणसी के निवासी शौच करने भी 'उस पार' जाते थे। गंगा में नहाते समय अपने कपडे घाट पर निचोड़ते थे, नदी में नहीं। पौराणिक युगीन साहित्य में यह भी कहा गया कि “नमामी गंगे तव पाद पंकजं सुरासुरैर्वदित दिव्यरूपम्। भुक्ति चमुक्ति च ददासि नित्यं भावनसारेण सदानराणाय् ।।“ ऐसे विचार पढ़ने पर यह सोच स्वतः ही जन्म लेती है कि साहित्यकारों के कहे पर यदि देश चलता तो शायद गंगा कभी प्रदूषित होती ही नहीं और विस्तृत सोचें तो केवल जल प्रदूषण ही नहीं, कितनी ही और विडंबनाओं से बचा जा सकता था। प्रस्तुत संग्रह में भी 'बस ख्याल रखना', 'मेला', ‘निजात’, ‘प्रश्न’ जैसी रचनाएं साहित्यकारों की स्थिति दर्शा रही हैं, जो एक महत्वपूर्ण विषय है।

लघुकथा के बारे में एक मत है कि यह तुरत-फुरत पढ़ सकने वाली विधा है। लेकिन जिसका सृजन विपुल समय लेता है, उसे अल्प समय में पढ़ने के बाद पाठकगण हृदयंगम कर अपना महती समय चिंतन में खर्च न करें तो मेरे अनुसार हो सकता है कि वह रचना प्रभावी शिल्प की हो, लेकिन उद्देश्य पूर्णता की दृष्टि से अप्रभावी ही है। ‘फिर वही पहली रात’ की रचनाएं इस दृष्टि से निराश नहीं करतीं, वरन कुछ रचनाएँ ऐसी भी हैं जो नव-विचार उत्पन्न करती हैं। अधिकतर लघुकथाओं के कथानक समसामयिक हैं, सहज ग्राह्य एवं ओजस्वी भाषा शैली है। शीर्षक से लेकर अंतिम पंक्ति तक में लेखक का अटूट परिश्रम झलकता है।

समग्रतः, प्रभावशाली मानवीय संवेदनाओं, उन्नत चिन्तन, आवश्यक सारभूत विषयों को आत्मसात करती जीवंत लघुकथाओं से परिपूर्ण विजय 'विभोर' जी की विवेकी, गूढ़ और प्रबुद्ध सोच का प्रतिफल यह संग्रह पठनीय-संग्रहणीय सिद्ध होगा। बहुत-बहुत बधाइयां व मंगल कामनाएं।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

सोमवार, 27 सितंबर 2021

लघुकथा समाचार: लघुकथा समकालीन समय की संवेदना के साथ करती है - नरहरी पटेल

 


लघुकथा में संवेदना , रिश्ते , साहित्य को समझना आवश्यक है।  लघुकथाकार लघुकथा के माध्यम से समकालीन समय की संवेदना के साथ बातचीत करती है। " उपरोक्त विचार नगर की साहित्यिक संस्था 'क्षितिज' द्वारा आयोजित तृतीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में श्री नरहरि पटेल के द्वारा व्यक्त किए गए।श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में आयोजित कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि , " साहित्य जगत में और अलक्ष्य कलमों को रेखांकित किया जाना आवश्यक है। जिस तरह  संयुक्त परिवार में दादा- दादी एवं अन्य वरिष्ठ सदस्यों के साथ नाती- पोते भी रहते हैं लेकिन नाती पोतियों की धमाल सबसे ज्यादा आकर्षित करती है , उसी तरह इन दिनों साहित्य जगत लघुकथा की लोकप्रियता इस धमाल के स्तर की ही है। साहित्य में लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है ,इसमें  साक्षात्कार विशेषां क जैसा उपक्रम निकलना चाहिए ।अनुवाद विधा से लघुकथा को समृद्ध किया जा सकता है। महर्षि अरविंद , महर्षि दयानंद सरस्वती के अवदान को अनुवाद में रेखांकित किया जाना आवश्यक है। " 

आयोजन में डॉ. कमल चोपड़ा दिल्ली , डॉ रामकुमार घोटड, चूरू , राजस्थान को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान , डॉ पुरुषोत्तम दुबे को लघुकथा समालोचना सम्मान , डॉ योगेंद्र नाथ शुक्ला , ज्योति जैन को लघुकथा समग्र सम्मान , दिव्या राकेश शर्मा गुरुग्राम , अंजू निगम देहरादून को लघुकथा नवलेखन सम्मान प्रदान किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन के साथ हुआ।  सरस्वती वंदना विनीता द्वारा शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई ।  संस्था अध्यक्ष श्री सतीश राठी के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । सम्मान समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरहरी पटेल ने अध्यक्षीय उद्बोधन में , साहित्य मनीषी श्यामसुंदर दास , सुमनजी , सतीश दुबेजी का पुण्यस्मरण भी किया ।


इस प्रसंग पर साहित्यिक अवदान हेतु श्री नरहरि पटेल को क्षितिज मालव गौरव सम्मान , श्री शरद पगारे एवं श्री सत्यनारायण व्यास को क्षितिज समग्र जीवन साहित्यिक अवदान सम्मान , डॉ विकास दवे को साहित्य गौरव सम्मान , डॉ अर्पण जैन को भाषा सारथी सम्मान प्रदान किए गए। श्री राज नारायण बोहरे , नंदकिशोर बर्वे , चरण सिंह अमी ,अंतरा करवड़े डॉ वसुधा गाडगिल को भी विशिष्ट सम्मानों से सम्मानित किया गया । इसी श्रृंखला में क्षितिज की अनुवाद उपक्रम संस्था ,भाषा सखी द्वारा श्री सतीश राठी , श्री अश्विनी कुमार दुबे , श्री दीपक गिरकर , श्री राम मूरत राही को भी सम्मान प्रदान किए गए।

  इसके पश्चात क्षितिज संस्था के द्वारा प्रकाशित संवादात्मक लघुकथा अंक एवं विभिन्न विधाओं में लिखी गई कुछ पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। सत्र का यशस्वी संचालन हिंदी सेवी ,अंतरा करवड़े ने किया। सत्र का कृतज्ञता ज्ञापन श्री सतीश राठी ने किया।

सम्मान सत्र के पश्चात लघुकथा पर केंद्रित तीन सत्रों का आयोजन किया गया ,जिसमें द्वितीय सत्र " लघुकथाओं के परिप्रेक्ष्य में भाषा साहित्य और आधुनिक तकनीक की भूमिका " पर परिचर्चा का आयोजन किया गया । इसमें वरिष्ठ साहित्यकार श्री राज नारायण बोहरे अध्यक्ष थे। कांता राय ( भोपाल ),अंतरा करवड़े( इंदौर) चर्चाकार थी। मॉडरेटर डॉक्टर वसुधा गाडगिल थी। इस चर्चा में लघुकथा के माध्यम से देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा  को अंतरराष्ट्रीय  फलक तक पहुंचाने पर विचार व्यक्त किए गए।

तृतीय सत्र " आपदा कालीन साहित्य सृजन का दूरगामी प्रभाव " विषय पर था जिसमें अध्यक्ष चूरु राजस्थान से पधारे डॉ. राम कुमार घोटड थे , मूर्धन्य साहित्यकार श्री संतोष सुपेकर उज्जैन नंदकिशोर बर्वे श्रीमती सीमा व्यास इंदौर से थे। इस सत्र में आपदाकालीन साहित्य सर्जना और आगामी पीढ़ी पर प्रभाव को लेकर विचाराभिव्यक्ति की गई। सत्र का संचालन अदिति सिंह भदोरिया ने किया।

चौथे सत्र में विभिन्न विषयों पर केंद्रित चयनित लघुकथाओं का वाचन किया गया । इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा ने किया । समूचे आयोजन का आभार  सचिव श्री दीपक गिरकर ने किया। सम्मेलन में संतोष सुपेकर , राममूरत राही , उमेश कुमार नीमा ,दिलीप जैन , ज्योति जैन का उल्लेखनीय सहयोग रहा। इस तरह अत्यंत गरिमामय आयोजन में लघुकथा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक तक ले जाने , पोषित- पल्लवित करने के लिए मूर्धन्य लघुकथाकारो द्वारा विचार- मंथन , साधक- बाधक चर्चा कर लघुकथा विधा को समृद्ध करने का सार्थक आयोजन संपन्न हुआ ।

बुधवार, 15 सितंबर 2021

अविरामवाणी । समकालीन लघुकथा स्वर्ण जयंती पुस्तक चर्चा

श्री उमेश महदोषी की फेसबुक वॉल से

अविरामवाणी पर कार्यक्रम 'समकालीन लघुकथा स्वर्ण जयंती पुस्तक चर्चा' में- सुश्री प्रेरणा गुप्ता जी के लघुकथा संग्रह 'सूरज डूबने से पहले' पर ज्योत्स्ना कपिल द्वारा चर्चा।

      'अविरामवाणी' के यूट्यूब चैनल का सामान्य लिंक यह है- https://m.youtube.com/channel/UCS6jNm7DyGvN5u638mwfv1Q)