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बुधवार, 1 सितंबर 2021
मंगलवार, 31 अगस्त 2021
‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ । अविराम वाणी । वाचन: श्री उमेश महदोषी
‘अविरामवाणी’ पर ‘स्वर्ण जयंती लघुकथाएँ’ की तेईसवीं प्रस्तुति
वरिष्ठ लघुकथाकार स्मृतिशेष डॉ.सतीश राज पुष्करणा जी की लघुकथा ‘बदलते समय के साथ’ और स्मृतिशेष श्री रवि प्रभाकर जी की लघुकथा ‘प्रिज्म’। लघुकथाओं का पाठ श्री उमेश महादोषी जी द्वारा किया गया है।
सोमवार, 30 अगस्त 2021
आज कृष्ण जन्माष्टमी पर एक लघुकथा 'मृत्युदंड' का नेपाली अनुवाद पहिलोपोस्ट पर | लेखक (हिन्दी): डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
मृत्युदण्ड [लघुकथा सन्दर्भ : कृष्ण जन्माष्टमी]
हजारौं वर्षसम्म नरकको यातना भोगेपछिमात्रै भीष्म र द्रोणाचार्यलाई मुक्ति मिल्यो। छट्पटिँदै दुवै जना नरकको ढोकाबाट बाहिर निस्किनासाथ अगाडि देखे - उभिइरहेका कृष्ण। अचम्म मान्दै भीष्मले सोधे – कन्हैया, तपाईँ यहाँ?
मुसुक्क मुस्काउँदै कृष्णले दुवैलाई ढोगे र भने, 'पितामह- गुरुवर म तपाईँहरु दुवैका लागि आएको हुँ। तपाईँहरुको पापको सजाय पूरा भयो।'
कृष्णको यस्तो भनाईले द्रोणाचार्य विचलित स्वरमा बोले, 'यति धेरै वर्षदेखि हामीले पाप गरेको सुन्दै आयौं। तर यति धेरै अवधि यातना सहनु पर्नेगरी त्यस्तो के पाप गर्यौं कन्हैया? के आफ्नो राजाको रक्षा गर्नु पनि… '
'होइन गुरुवर।'
कृष्णले उनलाई बोल्दा बोल्दै रोके।
'केही अरु पापका अतिरिक्त तपाईँ दुवैले एउटा महापाप गर्नुभएको थियो।'
कृष्णले यसो भनिरहँदा भीष्म र द्रोणाचार्य दुवै आश्चर्य भावमा देखिए।
कृष्णले उनीहरुको भाव बुझेरै भने, 'जब त्यत्रो सभामा द्रोपदीको बस्त्र हरण भइरहेको थियो, तपाईँहरु दुवै अग्रज मौन रहनु भयो। उनको शीलको रक्षा गर्नुको साटो चुपो लागेर त्यो अपराध कर्मलाई स्वीकार्नु महापाप थियो।'
सुमधुर शैलीमा कृष्णले बताएपछि भीष्मले टाउको हल्लाउँदै उनका अभिव्यक्तिलाई सहर्ष स्वीकारे। तर, द्रोणाचार्यसँग अझै प्रश्न थियो। उनले सोधे – 'हामीलाई त हाम्रो पापको सजाय मिल्यो। तर हामी दुवैको तपाईँले झुक्याएर हत्या गराउनु भयो। तर तपाईँलाई चाहिँ त्यो अपराधमा ईश्वरले कुनै सजाय दिएनन्। यस्तो किन भयो?'
प्रश्न गम्भीर थियो। कृष्णको अनुहार एकाएक परिवर्तन भयो। त्यो परिवर्तनमा पीडा झल्किन्थ्यो। उनले लामो सास फेरे। आँखा बन्द गरे। उनीहरुको अनुहार हेर्न सकेनन्, अनि फर्किए। पीडा र बेदनासहित उनको बोली फुट्यो।
'तपाईँहरुले जस्तो अपराध गर्नु भएको थियो, अहिले धर्तीमा त्यस्तो अपराध धेरैले गरिरहेका छन्। तर, कुनै पनि बस्त्रहीन द्रोपदीलाई बस्त्र दिन जान म सक्दिनँ।'
कृष्ण द्रोणाचार्य र भीष्मतिर फर्किए। भने, 'गुरुवर-पितामह, के यो दण्ड पर्याप्त छैन? आज पनि तपाईँहरु जस्ता धेरै धर्तीमा जीवित हुनुहुन्छ तर त्यहाँ कृष्ण त मरिसकेको छ नि…'
Source:
https://pahilopost.com/content/20210830112241.html
हिन्दी में मूलकथा
हज़ारों वर्षों की नारकीय यातनाएं भोगने के बाद भीष्म और द्रोणाचार्य को मुक्ति मिली। दोनों कराहते हुए नर्क के दरवाज़े से बाहर आये ही थे कि सामने कृष्ण को खड़ा देख चौंक उठे, भीष्म ने पूछा, "कन्हैया! पुत्र, तुम यहाँ?"
कृष्ण ने मुस्कुरा कर दोनों के पैर छुए और कहा, "पितामह-गुरुवर आप दोनों को लेने आया हूँ, आप दोनों के पाप का दंड पूर्ण हुआ।"
यह सुनकर द्रोणाचार्य ने विचलित स्वर में कहा, "इतने वर्षों से सुनते आ रहे हैं कि पाप किया, लेकिन ऐसा क्या पाप किया कन्हैया, जो इतनी यातनाओं को सहना पड़ा? क्या अपने राजा की रक्षा करना भी..."
"नहीं गुरुवर।" कृष्ण ने बात काटते हुए कहा, "कुछ अन्य पापों के अतिरिक्त आप दोनों ने एक महापाप किया था। जब भरी सभा में द्रोपदी का वस्त्रहरण हो रहा था, तब आप दोनों अग्रज चुप रहे। स्त्री के शील की रक्षा करने के बजाय चुप रह कर इस कृत्य को स्वीकारना ही महापाप हुआ।"
भीष्म ने सहमति में सिर हिला दिया, लेकिन द्रोणाचार्य ने एक प्रश्न और किया, "हमें तो हमारे पाप का दंड मिल गया, लेकिन हम दोनों की हत्या तुमने छल से करवाई और ईश्वर ने तुम्हें कोई दंड नहीं दिया, ऐसा क्यों?"
सुनते ही कृष्ण के चेहरे पर दर्द आ गया और उन्होंने गहरी सांस भरते हुए अपनी आँखें बंद कर उन दोनों की तरफ अपनी पीठ कर ली फिर भर्राये स्वर में कहा, "जो धर्म की हानि आपने की थी, अब वह धरती पर बहुत व्यक्ति कर रहे हैं, लेकिन किसी वस्त्रहीन द्रोपदी को... वस्त्र देने मैं नहीं जा सकता।"
कृष्ण फिर मुड़े और कहा, "गुरुवर-पितामह, क्या यह दंड पर्याप्त नहीं है कि आप दोनों आज भी बहुत सारे व्यक्तियों में जीवित हैं, लेकिन उनमें कृष्ण मर गया..."
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
रविवार, 29 अगस्त 2021
लघुकथा : दरवाजे पर मां | प्रेमचंद
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से- वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी। मैं बरामदे में बैठा था। बच्चे ने दरवाजे से झांका। मैंने मुस्कुराकर पुकारा। वह मेरी गोद में आकर बैठ गया। उसकी शरारतें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था।
एक चिड़िया फुदकती हुई आई और सामने के सहन में बैठ गई। बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी तरफ लपका। चिड़िया जरा भी न डरी। बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा। चिड़िया उड़ गई, निराश बच्चा रोने लगा। मगर अंदर के दरवाजे की तरफ ताका भी नहीं। दरवाजा खुला हुआ था।
गरम हलवे की मीठी पुकार आई। बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा। खोंचेवाला सामने से गुजरा। बच्चे ने मेरी तरफ याचना की आंखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आंखें रोष में परिवर्तित होती गईं। यहां तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आंख से ओझल हो गया तो रोष ने पुरजोर फरियाद की सूरत अख्तियार की।
मगर मैं बाजार की चीजें बच्चों को नहीं खाने देता। बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया। मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया। कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी मां की अदालत में अपील करने की जरूरत समझी या नहीं। आमतौर पर बच्चे ऐसे हालातों में मां से अपील करते हैं। शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तवी कर दी हो। उसने दरवाजे की तरफ रुख न किया। दरवाजा खुला हुआ था।
मैंने आंसू पोंछने के ख्याल से अपना फाउंटेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियां इस नई समस्या को हल करने में लग गईं। एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बंद हो गया। पट की आवाज बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाजे की तरफ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउंटेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था।
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शनिवार, 28 अगस्त 2021
लघुकथा समाचार | प्रमुख विधा के रूप में उभरी है लघुकथा: डॉ. कच्छावा
22 अगस्त 2021
प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से आज 'आखर पोथी' का आयोजन किया गया। इसमे डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा की राजस्थानी भाषा में लिखी गई पुस्तक 'अटकळÓ का विमोचन किया गया। पुस्तक के लेखक डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि 'अटकळ'राजस्थानी में मेरा दूसरा लघुकथा संग्रह है। इससे पहले 2006 में लघुकथा ठूंठ प्रकाशित हुआ था। लघुकथा इस दौर में प्रमुख विधा के रूप में सामने आई है। यह पाठक के ऊपर विशेष प्रभाव डालती है। मैं जब अपने आसपास घटित घटनाओं, विसंगतियों और संवेदनहीनता को अनुभव करता हूं तो लघुकथा लिखने की प्रक्रिया शुरू होती है। राजस्थानी लघुकथा में राजस्थानी शब्दों की चाशनी इनका स्वाद बढ़ाती है। लघुकथा समाज को संदेश देती है तो व्यंग्य भी करती है। लघुकथा का काम भटकते हुए लोगों को रास्ता दिखाने का है। संवेदनहीन होते समाज को संवेदनशील बनाना, मनुष्यता के मूल्यों की स्थापना लघु कथाओं का मूल स्वभाव है।
आशीष पुरोहित ने प्रस्तावना पढ़ते हुए बताया कि इस पुस्तक में लघु कथाओं का संग्रह है। वर्तमान में लघु कथाएं लोकप्रिय विधा के रूप में उभर रही हैं। भागदौड़ की जिंदगी के चलते लोगों के पास समय कम है और यह कथाएं गागर में सागर भरते हुए समाज को सकारात्मक संदेश देती है। यह लघुकथाएं लोगों को आकर्षित करती हैं। इनकी खासियत यह है कि कुछ कथाएं तो सात आठ 8 लाइनों में ही पूरी हो जाती है तो कई कथाएं एक पेज में है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा किए इस पुस्तक में माटी की महक और भाषा की चहक है। लेखक ने अपने कथा शिल्प और लेखन से जीवन और परिवेश का सुंदर चितराम उकेरा है।<br />पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार डॉ.करूणा दशोरा ने कहा कि डॉ. कच्छावा ने इस पुस्तक को अपने गुरु भंवरसिंह सामौर और सुजानगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. कन्हैयालाल डूंगरवाल को समर्पित की है। राजस्थानी के माने हुए साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने अपने समय की अनूठी लघुकथाएं बताते हुए कहा है कि इसमें प्रतीकों से पूरी बात कही जाती है। ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्रीसीमेंट और आईटीसी राजपूताना का आभार जताते हुए कहा कि आखर पोथी का आयोजन युवा लेखकों के लेखन को पाठकों के सामने लाने के लिए किया जाता है। राजस्थानी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए यह आयोजन किया गया है।
Source:
https://www.patrika.com/special-news/short-story-has-emerged-as-a-major-genre-dr-kachhawa-7024046/