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सोमवार, 30 अगस्त 2021
रविवार, 29 अगस्त 2021
लघुकथा : दरवाजे पर मां | प्रेमचंद
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से- वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी। मैं बरामदे में बैठा था। बच्चे ने दरवाजे से झांका। मैंने मुस्कुराकर पुकारा। वह मेरी गोद में आकर बैठ गया। उसकी शरारतें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था।
एक चिड़िया फुदकती हुई आई और सामने के सहन में बैठ गई। बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी तरफ लपका। चिड़िया जरा भी न डरी। बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा। चिड़िया उड़ गई, निराश बच्चा रोने लगा। मगर अंदर के दरवाजे की तरफ ताका भी नहीं। दरवाजा खुला हुआ था।
गरम हलवे की मीठी पुकार आई। बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा। खोंचेवाला सामने से गुजरा। बच्चे ने मेरी तरफ याचना की आंखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आंखें रोष में परिवर्तित होती गईं। यहां तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आंख से ओझल हो गया तो रोष ने पुरजोर फरियाद की सूरत अख्तियार की।
मगर मैं बाजार की चीजें बच्चों को नहीं खाने देता। बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया। मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया। कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी मां की अदालत में अपील करने की जरूरत समझी या नहीं। आमतौर पर बच्चे ऐसे हालातों में मां से अपील करते हैं। शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तवी कर दी हो। उसने दरवाजे की तरफ रुख न किया। दरवाजा खुला हुआ था।
मैंने आंसू पोंछने के ख्याल से अपना फाउंटेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियां इस नई समस्या को हल करने में लग गईं। एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बंद हो गया। पट की आवाज बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाजे की तरफ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउंटेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था।
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शनिवार, 28 अगस्त 2021
लघुकथा समाचार | प्रमुख विधा के रूप में उभरी है लघुकथा: डॉ. कच्छावा
22 अगस्त 2021
प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से आज 'आखर पोथी' का आयोजन किया गया। इसमे डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा की राजस्थानी भाषा में लिखी गई पुस्तक 'अटकळÓ का विमोचन किया गया। पुस्तक के लेखक डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि 'अटकळ'राजस्थानी में मेरा दूसरा लघुकथा संग्रह है। इससे पहले 2006 में लघुकथा ठूंठ प्रकाशित हुआ था। लघुकथा इस दौर में प्रमुख विधा के रूप में सामने आई है। यह पाठक के ऊपर विशेष प्रभाव डालती है। मैं जब अपने आसपास घटित घटनाओं, विसंगतियों और संवेदनहीनता को अनुभव करता हूं तो लघुकथा लिखने की प्रक्रिया शुरू होती है। राजस्थानी लघुकथा में राजस्थानी शब्दों की चाशनी इनका स्वाद बढ़ाती है। लघुकथा समाज को संदेश देती है तो व्यंग्य भी करती है। लघुकथा का काम भटकते हुए लोगों को रास्ता दिखाने का है। संवेदनहीन होते समाज को संवेदनशील बनाना, मनुष्यता के मूल्यों की स्थापना लघु कथाओं का मूल स्वभाव है।
आशीष पुरोहित ने प्रस्तावना पढ़ते हुए बताया कि इस पुस्तक में लघु कथाओं का संग्रह है। वर्तमान में लघु कथाएं लोकप्रिय विधा के रूप में उभर रही हैं। भागदौड़ की जिंदगी के चलते लोगों के पास समय कम है और यह कथाएं गागर में सागर भरते हुए समाज को सकारात्मक संदेश देती है। यह लघुकथाएं लोगों को आकर्षित करती हैं। इनकी खासियत यह है कि कुछ कथाएं तो सात आठ 8 लाइनों में ही पूरी हो जाती है तो कई कथाएं एक पेज में है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा किए इस पुस्तक में माटी की महक और भाषा की चहक है। लेखक ने अपने कथा शिल्प और लेखन से जीवन और परिवेश का सुंदर चितराम उकेरा है।<br />पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार डॉ.करूणा दशोरा ने कहा कि डॉ. कच्छावा ने इस पुस्तक को अपने गुरु भंवरसिंह सामौर और सुजानगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. कन्हैयालाल डूंगरवाल को समर्पित की है। राजस्थानी के माने हुए साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने अपने समय की अनूठी लघुकथाएं बताते हुए कहा है कि इसमें प्रतीकों से पूरी बात कही जाती है। ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्रीसीमेंट और आईटीसी राजपूताना का आभार जताते हुए कहा कि आखर पोथी का आयोजन युवा लेखकों के लेखन को पाठकों के सामने लाने के लिए किया जाता है। राजस्थानी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए यह आयोजन किया गया है।
Source:
https://www.patrika.com/special-news/short-story-has-emerged-as-a-major-genre-dr-kachhawa-7024046/
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
अविरामवाणी : सुश्री आभा सिंह जी के लघुकथा संग्रह 'माटी कहे' पर उमेश महादोषी जी द्वारा चर्चा
अविरामवाणी पर कार्यक्रम 'समकालीन लघुकथा स्वर्ण जयंती पुस्तक चर्चा' में सुश्री आभा सिंह जी के लघुकथा संग्रह 'माटी कहे' पर उमेश महादोषी जी द्वारा चर्चा।
बुधवार, 25 अगस्त 2021
पड़ाव और पड़ताल अंक 1 से 31 अब निःशुल्क ई-बुक्स के रूप में
लघुकथा विधा पर आधारित दिशा प्रकाशन के श्री मधुदीप द्वारा पड़ाव और पड़ताल शीर्षक से लघुकथा विधा पर एक श्रृंखला आरम्भ की है. इस श्रृंखला के अंक 1 से 31 तक आपने ऑनलाइन व निःशुल्क रखे हैं. ऑनलाइन करने में सहायत़ा डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने दी. ये अंक निम्न लिंकों पर उपलब्ध हैं:
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/1.html
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/2.html
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/3.html
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/4.html
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/5_0415153276.html
https://booksdisha.blogspot.com/2021/07/6.html
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