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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

पंजाबी लघुकथा "नवीं गल्ल" | कुलविंदर कौशल | नई बात | हिंदी अनुवाद: योगराज प्रभाकर

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर (Yograj Prabhakar) की फेसबुक पोस्ट 

(कुलविंदर कौशल की पंजाबी लघुकथा "नवीं गल्ल" जो वर्ष 2017 में प्रकाशित उनके पंजाबी लघुकथा संग्रह "सूली लटके पल" से ली गई है.) 

नई बात / कुलविंदर कौशल / हिंदी अनुवाद: योगराज प्रभाकर

“बापू, पूरी पंचायत भी आ चुकी है, अब कर दो बँटवारा." बचन सिंह के बड़े बेटे ने रूखे-से स्वर में कहा.
“हाँ हाँ बापू! कर दो बँटवारा, अब हम साथ नहीं रह पाएँगे." छोटे बेटे ने भी उसी लहज़े में कहा.
“सुनो बचन सिंह, ये कोई नई बात तो है नहीं. अगर बच्चों में निभना बंद हो जाए तो उन्हें अलग-अलग कर देना ही बेहतर होता है. तुम सिर्फ़ ये बताओ कि तुम किस बेटे के साथ रहोगे, फिर हम जायदाद का बँटवारा कर देंगे." सरपंच ने बचन सिंह के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.
“अरे सरपंच जी, बापू का क्या है. छह महीने मेरे यहाँ रहेंगे और छह महीने छोटे के यहाँ।"
"लो भाई, बचन सिंह का फ़ैसला तो हो गया, आओ अब करें बँटवारा।" सरपंच ने कुर्सी पर व्यवस्थित होते हुए कहा.
बचन सिंह जो काफ़ी देर से नज़रें झुकाए हुए सबकुछ सुन रहा था, अचानक उठ खड़ा हुआ और गरजते हुए बोला, 
“क्या फ़ैसला हो गया? फ़ैसला तो मैं सुनाता हूँ. इन दोनों लड़कों को निकालो घर से. बारी-बारी ये छह-छह महीने के लिए मेरे पास रहें और बाक़ी छह महीने अपना इंतज़ाम कहीं और करें.घर का मालिक मैं हूँ.... मैं."
दोनों बेटों के साथ-साथ पंचायत वालों के के मुँह खुले-के-खुले रह गए जैसे सचमुच कोई नई बात हो गई हो.
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 इस रचना पर आधारित पंजाबी टेलेफिल्म 



लघुकथा वीडियो: दहशत | लेखिका:अनिता ललित | वाचन:ऋतु कौशिक