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शनिवार, 6 अप्रैल 2019
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
लघुकथा: चमगादड़ | प्रेरणा गुप्ता
"अहा ! मजा आ गया। लगता है, आज फिर चमगादड़ घुस आया।" चीख-पुकार मची हुई थी।
वो भी एक ज़माना था, जब वह जानती भी न थी कि ‘डर’ नाम की चिड़िया होती क्या है? अकेले यात्रा करना, अँधेरे में कहीं भी चले जाना। लेकिन विवाह के बाद ससुराल में सबकी डराती हुई आँखों, तेज आवाजों के सामने न जाने कब उसके अन्दर डर की चिड़िया ने बसेरा कर लिया।
एक दिन उसका पति तेज आवाज के साथ आँखें निकालकर उसे डरा-धमका रहा था। तभी घर के बाहर पीपल के पेड़ से एक चमगादड़ उड़ता हुआ कमरे में आ घुसा और चारों ओर चक्कर काटता अपने जलवे दिखाने लगा। उसे सिर पर मँडराता हुआ देख पति की आँखें भयभीत होकर सिकुड़ गईं और वह दहशत से हाय-तौबा मचाने लगा। उसका ये हाल देखकर वह ख़ुशी से बोल पड़ी थी, “वाह! एक इंसान को डराकर अपनी वीरता का प्रदर्शन करने चले थे, एक चमगादड़ भी न भगा पाए!”
फिर उसने चमगादड़ को खदेड़कर ही दम लिया था| मगर चमगादड़ के साथ, उसके अन्दर बसी, ‘डर वाली चिड़िया’ भी भाग निकली थी।
आज फिर चमगादड़ अपने जलवे दिखा रहा था, और वह अपना मुँह ढाँपे, खिलखिलाती हुई मन ही मन उसे धन्यवाद दे रही थी, "हे चमगादड़ तू ऐसे ही आते रहियो और डराने वालों पर अपनी दहशत फैलाते रहियो।"
- प्रेरणा गुप्ता
कानपुर
लघुकथा वीडियो : चूहे | दीपक मशाल |
चूहे आजकल थोड़े निर्भीक हो चले थे। ऐसा तो ना था कि आगे पीछे के 10 मोहल्लों की बिल्लियों ने मांसाहार छोड़ दिया था। कारण था कि चूहे बिल्ली के इस खेल में आजकल बाजी चूहों के हाथ में थी। चूहे इतने चतुर और सक्रिय हो गए थे कि आसानी से बिल्लियों के हाथ ना आते। अब दूध मलाई इतने महंगे हो रखे थे कि इंसानों को ही नसीब ना थे तो बिल्लियों को कहां से मिलते।
नतीजा यह हुआ कि बिल्लियां मरिगिल्ली हो गईं। इन हालात से उबरने के लिए किसी विशेषज्ञ वास्तुशास्त्री किराए पर बिल्लियों ने विंड-चाइम बांध लिए। वैसे बांधा तो घर पर था लेकिन खुद की नज़र में कुछ ज्यादा चतुर बिल्लियाेें ने तुरंत फायदे की खातिर वो विंड-चाइम घंटियां अपने गले में ही बांध लीं।
- दीपक मशाल
गुरुवार, 4 अप्रैल 2019
बुधवार, 3 अप्रैल 2019
बीजेन्द्र जैमिनी के सम्पादन में मां पर लघुकथा संकलन
श्री बीजेन्द्र जैमिनी के सम्पादन में मां पर लघुकथा संकलन उनके ब्लॉग पर निम्न कड़ी पर उपलब्ध है:
https://bijendergemini.blogspot.com/2019/03/blog-post_95.html
इस संकलन के संपादकीय में,
"मां के बिना जन्म सम्भव नहीं है। प्रथम गुरु भी मां है। मां जीवन का सत्य है। जिसकी मां नहीं होती है यानि बचपन में बिछडे जाती है कारण कुछ भी हो सकता है। उसका जीवन संधर्ष से भर होता है।
ऐसे ही जीवन के संधर्ष की लघुकथाओं को पेश किया जा रहा है। अनुभव व संधर्ष सभी के अपने अपने है। इसलिए लघुकथा की विषय वस्तु अलग - अलग होना निश्चित है। भाषा शैली भी अलग अलग होगी। यही स्थिति ही लघुकथा की पहचान होती है। जो लेखक की मौलिक पहचान होती है।"
मंगलवार, 2 अप्रैल 2019
लघुकथा वीडियो | लघुकथा संगोष्ठी । नाथद्वारा-राजस्थान | राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर
4th August 2018, Nathdwara - Rajasthan
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