कुशल लघुकथाकार नेतराम भारती जी द्वारा यह प्रश्न किया गया कि लघुकथा में क्षण की पकड़ महत्वपूर्ण है अथवा शब्द संख्या?
इसका उत्तर मेरे अनुसार,
एक लघुकथा के उदाहरण से बात करना चाहूंगा, भाई जी (चूंकि बात केवल क्षण और शब्द सीमा की है, इसलिए शीर्षक हटा रहा हूँ।)
आज उसके बेटे का जन्मदिन था। वह मुस्कुराती हुई आई, मोबाइल उठाकर कॉल किया।
सुनाई दिया , "यह नंबर अब सेवा में नहीं है।"
बेटा दो साल पहले एक दुर्घटना में जा चुका था।
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अब इस रचना को कोई यूं कह दे,
घड़ी में रात के बारह बजे। वह इस वक्त का इंतजार कर ही रही थी। आज उसके बेटे का जन्मदिन था। उसने मुस्कुराते हुए मोबाइल उठाकर कॉल किया और साथ में अपने पति को झिंझोड़ कर उठाया। सुनाई दिया , "यह नंबर अब सेवा में नहीं है।"
उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ। उसने मोबाइल स्पीकर पर किया और पति की तरफ देखा।
पति ने फोन पर नाम देखकर उसकी तरफ कातर दृष्टि से देखा।
पति के देखते ही सहसा उसे याद आया,
बेटा दो साल पहले एक दुर्घटना में जा चुका था।
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यदि मै अपनी बात कहूं, दूसरी रचना अधिक दृश्यात्मक है: पति-पत्नी, रात के 12 बजे का समय, स्पीकर ऑन करना, इमोशनल रिएक्शन। और पहली में, माँ के अकेलेपन, उसकी आशा और विडंबना को पाठक स्वयं महसूस करता है, बिना अतिरिक्त विवरण के।
मेरे अनुसार पहली वाली में भावनात्मक प्रभाव व्यक्तिगत है और दूसरी में दो लोगों में विभाजित। पति का पात्र, रात बारह बजे की बात आदि ना भी हों तो भी रचना में हम माँ का बेटे से प्रेम संप्रेषित कर पा रहे हैं और अधिक संक्षिप्तता के साथ। पति का जिक्र आते ही प्रबुद्ध पाठक रचना को कुछ हद तक वैसे समझ जाते हैं।
अतः ऐसी लघुकथा में तो दोनों बातों का सही मेल अच्छी रचना के लिए ज़रूरी होना चाहिए।
लेकिन, साथ ही ऐसी रचनाएं भी हो सकती हैं, जिन्हें हम लम्बा खींच लें और फिर भी अपने संक्षिप्त रूप जितना ही प्रभावित कर सकें।
मुझे लगता है यह रचनाकार के कौशल पर अधिक निर्भर करता है। यहां पर यह भी ध्यान देना जरूरी है कि कई वरिष्ठ लघुकथाकार दोनों पर ही ध्यान नहीं देने को कहते हैं। उनके लिए क्षण की पकड़ या कोई पंच लाइन हो ना हो फर्क नहीं पड़ता तथा शब्द सीमा भी बढ़ाई जाए तो भी फर्क नहीं। हालांकि नैसर्गिक संक्षिप्तता और प्रभावशीलता के तो सभी समर्थक हैं ही।
क्षण की पकड़ आत्मा है लघुकथा की, शब्द सीमा उसका ढांचा। ढांचा महत्वपूर्ण है, पर आत्मा के बिना वह केवल खाली खोल है और आत्मा बिना ढांचे के अदृश्य।
साथ ही हमें यह तो याद रखना चाहिए ही कि, लघुकथा का मूल उद्देश्य एक क्षण, स्थिति या अनुभव को तीव्रता और प्रभाव के साथ प्रस्तुत करना होता है। जो पाठक को झकझोर दे, ना झकझोरे लेकिन सोचने को प्रेरित तो करे ही।
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डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी