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सोमवार, 12 जून 2023

हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, सिरसा द्वारा अखिल भारतीय सम्मानों हेतु हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता

हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन, सिरसा (हरियाणा)

द्वारा संचालित

हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, सिरसा की ओर से अखिल भारतीय स्तर पर निम्नलिखित सम्मानों के लिए हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता के आयोजन हेतु प्रविष्टयां आमंत्रित हैं-

1. प्रथम - सुगनचंद मुक्तेश स्मृति लघुकथा सम्मान (नगद पुरस्कार राशि-3100₹, प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र व माला)
2. द्वितीय - पूरन मुद्गल स्मृति लघुकथा सम्मान (नगद पुरस्कार राशि-2100₹, प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र व माला)
3. तृतीय - डॉ सुरेंद्र वर्मा स्मृति लघुकथा सम्मान /श्रीमती रक्षा शर्मा 'कमल' स्मृति लघुकथा सम्मान ( प्रत्येक को नगद पुरस्कार राशि-1100₹, प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र व माला)
* उपरोक्त सभी को पुरस्कार राशि श्री योगराज प्रभाकर संपादक 'लघुकथा कलश' के सौजन्य से प्रदान की जाएगी।
4. उपरोक्त के अतिरिक्त दस लघुकथाओं को प्रोत्साहन पुरस्कार दिए जाएंगे जिसमें प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र व माला होगी।
* उपरोक्त सम्मान/ पुरस्कार 10 सितंबर, 2023 को सिरसा में आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में प्रदान किए जाएंगे।

* प्रतियोगिता में सम्मिलित होने हेतु सामान्य नियमावली:-

1. केवल एक लघुकथा जो विधा के मापदंडों के अनुकूल हो, भेजी जानी है।
2. लघुकथा मौलिक, अप्रकाशित (पत्र-पत्रिका या सोशल मीडिया पर न हो) और अप्रसारित हो।
3. लघुकथा के विषय धर्म ,जाति, संप्रदाय, राजनीति आदि पर कटाक्ष अथवा व्यंग्य करने वाले न हों।
4. लघुकथा केवल मुख्य ईमेल बॉडी में पेस्ट करें अथवा वर्ड फाईल में अटैच करें। पीडीएफ, हाथ से लिखकर इमेज के रूप में या अन्य किसी स्वरूप में भेजी गई लघुकथाएं मान्य नहीं की जाएंगी।
5. लघुकथा निम्न ईमेल पर केवल यूनिकोड/ मंगल फोंट में दिनांक 15 जुलाई, 2023 तक अवश्य भेज दें-
sheelshakti80@gmail.com
6. लघुकथा प्रतियोगिता के परिणाम संस्था के मुख्य संयोजक तथा संयोजक द्वारा घोषित किए जाएंगे।
7.निर्णायकों का निर्णय अंतिम व सर्वमान्य होगा।
8. संस्था के सदस्य इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
9. सम्मानित एवं पुरस्कृत लघुकथाओं को संस्था द्वारा प्रकाशित पुस्तक में सम्मिलित किया जाएगा।

मुख्य संयोजक : प्रोफेसर रूप देवगुण
संयोजक : डॉ. शील कौशिक

मंगलवार, 23 मई 2023

क्षितिज वैश्विक लघुकथा प्रतियोगिता 2023

*क्षितिज वैश्विक लघुकथा प्रतियोगिता2023*


क्षितिज  संस्था, इंदौर द्वारा दिनांक 29 अक्टूबर 2023 को इंदौर में  अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन2023 आयोजित किया जा रहा है । इस अवसर पर विश्व लघुकथा प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है। लघुकथा प्रतियोगिता में प्रथम सात विजेता लघुकथाकारों  को 

1डॉ सतीश दुबे स्मृति लघुकथा सम्मान ।

2डॉ श्याम सुंदर व्यास स्मृति लघुकथा सम्मान।

3 सुरेश शर्मा स्मृति लघुकथा सम्मान ।

4 विक्रम सोनी स्मृति लघुकथा सम्मान ।

5 पारस दासोत स्मृति लघुकथा सम्मान। 

6 निरंजन जमीदार स्मृति लघुकथा  सम्मान।

7 चंद्रशेखर दुबे स्मृति लघुकथा सम्मान । 

प्रदान किए जाएंगे।


 यह पुरस्कार/ सम्मान 29 अक्टूबर 2023 को इंदौर में होने वाले आयोजन में प्रदान किए जाएंगे । 


लघुकथा प्रतियोगिता में सम्मिलित होने हेतु सामान्य नियमावली:-

1 - सिर्फ एक लघुकथा जो विधा के मापदंडों के अनुकूल हो, भेजी जाना है।

2 -  लघुकथा का स्वरूप बना रहना चाहिए ।लघुकथा की शब्द सीमा नहीं रखी गई है।

3 - प्रतियोगिता में लघुकथा की भाषा , व्याकरण, वर्तनी, शिल्प ,नवीन विषयों को अतिरिक्त 3  अंक प्रदान किए जाएंगे।

4 - लघुकथा मौलिक ,  अप्रकाशित और अप्रसारित हो । ऐसा एक घोषणा पत्र साथ में संलग्न किया जाए।

5- लघुकथा प्रिंट मीडिया , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाज माध्यम, व्हाट्सएप , इत्यादि पर प्रकाशित पाए जाने की  स्थिति में  निरस्त कर प्रतियोगिता से बाहर कर दी जायेगी।

6 - लघुकथा के विषय मानवतावादी , प्रेरक, समाज के लिए मार्गदर्शक हों । धर्म ,जाति, संप्रदाय आदि पर कटाक्ष अथवा व्यंग्य करने वाली लघुकथाओं को प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

7- प्रयोग के बहाने से लघुकथा के मूल शिल्प से छेड़छाड़ वाली लघुकथाएं प्रतियोगिता में शामिल नहीं हो सकेंगी।

8 लघुकथा केवल मुख्य ईमेल बॉडी में पेस्ट करें अथवा वर्ड फाईल में अटैच करें। पीडीएफ, हाथ से लिखकर इमेज के रुप में या अन्य किसी स्वरुप में भेजी गई लघुकथाएं मान्य नहीं की जाएंगी।

9 - निम्न ईमेल पते के अलावा किसी भी अन्य माध्यम से भेजी गई लघुकथाएं मान्य नहीं होंगी। 

10 लघुकथा प्रतियोगिता के परिणाम संस्था अध्यक्ष द्वारा घोषित किए जाएंगे।

 11-प्रतियोगिता के निर्णय निर्णायकों के होंगे जो  सर्वमान्य होंगे। उन पर किसी भी प्रकार का विवाद मान्य नहीं होगा।  किसी भी प्रकार के न्यायिक हस्तक्षेप की स्थिति  में न्याय क्षेत्र इंदौर रहेगा।

12-क्षितिज संस्था के सदस्य इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। उनके संदर्भ में एक अलग योजना हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित की जा रही है।

13-पुरस्कृत एवं चयनित लघुकथाओं का प्रकाशन क्षितिज पत्रिका के वार्षिक अंक में किया जाएगा, जिसका लोकार्पण 29 अक्टूबर 2023 को होगा।


14 *प्रविष्टि हेतु दिनांक 30/06/2023 तक लघुकथा निम्न पते पर भेजें।* 


kshitijlaghukatha@gmail.com


भवदीय

अंतरा करवड़े

संयोजक

सोमवार, 22 मई 2023

समीक्षा : हाल-ए-वक्त | कमल कपूर

समय की नब्ज़ को पहचानती कृति…हाल-ए-वक्त


   डॉ चंद्रेश कुमार जी को मैं सुविज्ञ लघुकथा-पुरोधाओं  की क़तार में आगे-आगे खड़ा पाती हूँ सदा। मेरा यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि सही मायने में लघुकथा कैसे लिखी जाती है… यह चंद्रेश जी से सीखा जा सकता है। बानगी के तौर पर उनका नव लघुकथा-संग्रह ‘ हाल-ए-वक़्त ‘ सामने है ।सौम्य एवं शीर्षकानुकूल नयनाभिराम आवरण-पृष्ठ से सुसज्जित पुस्तक के मात्र 90 पृष्ठों पर क़रीने से टंकी एक कम 80 लघुकथाएँ…समय की नब्ज़ को कसकर थामे हुए हैं । समाज के विविध क्षेत्रों से कथानक उठाकर सुलेख ने , सलीक़े से ये कथाएँ बुनी हैं…कुछ इस तरह कि हर कथा का अंदाज़ निराला है और मिज़ाज जुदा और पंच मारक भी तथा प्रहारक भी ।



 सर्वप्रथम सुलेखक ने 'लेखकीय वक्तव्य' के अंतर्गत समय की महत्ता पर प्रकाश डाला है। रहीम जी के एक अनमोल दोहे का दृष्टांत देते हुए  समझाया है कि  समय लाभ सम लाभ नाहिं, समय चूक नाहिं चूक।

कृति के शीर्षक से संग्रह में कोई कथा नहीं है। वस्तुतः संग्रह की प्रत्येक कथा ‘ हाल-ए-वक़्त ‘  ही तो कह रही है…सरल, सहज एवं सरस भाषा-शैली में। दरअसल प्रस्तुत कृति एक समाज-यात्रा है, जो ‘देशबंदी' से शुभारंभित होकर ‘कोई तो मरा है‘ पर समाप्त होती है। बीच में 77 मोड़ हैं, जो बहुत-बहुत कुछ समझाते और सिखाते हैं । इनमें व्यवस्था के प्रति चिंता भी है और चिंतन भी। किसान द्वारा क्षुब्ध होकर की गई खेतीबंदी कैसे देशबंदी का रूप ले लेती है…स्वयं पढ़ें । ’कोई तो मरा है‘ माँसाहारी-वर्ग पर वार करती है तो ‘ माँ के सौदागर ‘  गौहत्या के वास्तविक कारणों की अजब किंतु सच्ची कहानी बयां करती है।’ मार्गदर्शक ‘ स्वार्थी नेताओं की अवसरवादिता पर कटाक्ष करती है और ‘ मेरी याद ‘ … अति मार्मिक… अपनी गुमशुदगी की खबर खोजते हताश-निराश वृद्ध की व्यथा कथा सुनाती सी। ‘बच्चा नहीं‘ कथा अनकही में बहुत कुछ कह जाती है सिर्फ़ इतना कहकर,” उसका बच्चा किन्नर हुआ है…।”



   ‘ सोयी हुई सृष्टि ‘ सुलेखक के यथार्थ में कल्पना रस घोलने का सुंदर प्रयास है…इसे पढ़कर चंद्रेश जी की कलम को नमन करने को जी चाहता है । ईलाज, धर्म-प्रदूषण, गरीब सोच,एक बिखरता टुकड़ा , कटती हुई हवा ,अन्नदाता एवं इतिहास गवाह है भी अति सराहनीय सुपठनीय कथाएँ हैं किन्तु ‘अस्वीकृत मृत्यु‘ को मैं कृति की सर्वश्रेष्ठ लघुकथा कहूँगी , जो बलात्कार को तीनों लोकों का जघन्यता गुनाह ठहराती है..; इतना कि इसके गुनाहगार को नर्क भी स्वीकार नहीं करता और कीड़े-मकौड़े तक भी उसके पास नहीं फटकते । इस लघुकथा के तो पोस्टर बनने चाहिए और पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल करना चाहिए ।


   कुल मिलाकर ‘हाल-ए-वक्त ‘ एक सुंदर-संग्रहणीय संग्रह है, जो शोधार्थियों के लिए भी अति उपयोगी सिद्ध होगा ।

अंततः  सुलेखक को मन-प्राण से बधाई तथा उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये अतिशय मंगल कामनाएँ ।इति!


- कमल कपूर 

अध्यक्ष: नारी अभिव्यक्ति मंच ‘ पहचान ‘

2144/9

फ़रीदाबाद 121006

हरियाणा

रविवार, 21 मई 2023

इस दुनिया में तीसरी दुनिया | किन्नर विमर्श की लघुकथाओं का संकलन

श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित-

"इस दुनिया में तीसरी दुनिया"

संपादक- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर', सुरेश सौरभ 

(किन्नर विमर्श की लघुकथाओं का संकलन)

संपादकीय से-

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

प्रस्तुत लघुकथा-संकलन "इस दुनिया में तीसरी दुनिया" हमारे अपने समाज की ही एक उपेक्षित गाथा है। सदियों के दंश झेल कर यह गाथा चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है कि मेरा दोष क्या? और हम जब दोष और दोषी की खोज में निकलते हैं तो हमें अपने मध्य के लोग ही मिलते हैं। किन्नर विमर्श पर केन्द्रित इस लघुकथा-संकलन के माध्यम से हमारा प्रयास समस्याओं को इंगित करना और उनके प्रभावी निराकरण पर रहा है। समय में परिवर्तन आया तो पुरानी मान्यताएँ धराशायी होने लगीं। जिन विषयों को उपेक्षित समझा जाता था या जिन विषयों पर चर्चा करने से लोग मुँह चुराते थे, अब उन विषयों पर मुखर संवाद होने लगा है। यही कारण है कि "इस दुनिया में तीसरी दुनिया" के माध्यम से किन्नर विमर्श कर पाना सहज हो सका। क्या आप सोच सकते हैं कि जिस घर में आप पैदा हुए हैं, उस घर से आप को धक्का मार कर निकाल दिया जाये, उस घर की सम्पत्ति में आपकी हिस्सेदारी न हो। जिस समाज में आप पले-बढ़े हैं, वह समाज आपको अनेक तीखे संबोधनों के साथ आपका तिरस्कार करे। आप अपने माँ-बाप और परिवार से मिलने की मिन्नतें करें और आपको सिर्फ़ दुत्कार ही मिले। प्रतिभा और अनेक योग्यताओं के बावजूद अकारण आपको धरती पर बोझ बता कर किसी अन्य दुनिया में फेंक दिया जाये, जहाँ सिर्फ़ दंश और दंश ही हो, तो कैसे जी पायेंगे आप? बस कुछ पलों के लिए सोच कर देखिए। नर-नारी के साथ किन्नर भी इसी दुनिया का हिस्सा हैं। उनकी दुनिया हमारी दुनिया से पृथक नहीं।


सुरेश सौरभ

सुखद यह है कि कुछ किन्नर अपनी पहचान बनाये रखते हुए, कार्यपालिका, विधायिका में अपनी उपस्थिति मज़बूती से दर्ज़ करा रहे हैं। रूढ़िवादी कुप्रथाएँ कम हो रहीं हैं। जन्म से ही उन्हें त्यागने एवं भेदभाव करने के मामले कम हो रहे हैं। सच्चाई यह भी है कि समाज का नज़रिया भी उनके प्रति बदल रहा है। साहित्य में वे विमर्श का हिस्सा बन चुके हैं, उनका विमर्श उन तक पहुँचाना, उनमें परिवर्तन लाने का सुफल करना, यह सिर्फ़ हमारी ही ज़िम्मेदारी नहीं, उनके लिए संघर्ष करने वाले कुछ संघटनों की भी ज़िम्मेदारी है। नया सवेरा उन्हें बाँहें पसारे बुला रहा है, अपने आलिंगन में अकोरना चाह रहा है, जहाँ प्रेम के, घनीभूत घन उन पर घनघोर घरघरा कर बरसने को अधीर हैं। 


■ सम्मिलित सम्मानित लघुकथाकार-

अंजू खरबंदा

अंजू निगम

अनिता रश्मि

अभय कुमार भारती

डॉ. इन्दु गुप्ता

ऋता शेखर ‘मधु’

कल्पना भट्ट

डॉ. कुसुम जोशी

गरिमा सक्सेना

गीता शुक्ला ‘गीत’

गुलज़ार हुसैन

गोविन्द शर्मा

डॉ. क्षमा सिसोदिया

डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी

चित्रगुप्त

डॉ. जया आनंद

जिज्ञासा सिंह

ज्योति जैन

ज्योति शंकर पण्डा ‘हयात’

दुर्गा वनवासी

निशा भास्कर

डॉ. नीना छिब्बर

नीना मंदिलवार

पम्मी सिंह ‘तृप्ति’

पवन मित्तल

प्रियंका श्रीवास्तव ‘शुभ्र’

प्रेरणा गुप्ता

डॉ. पुष्प कुमार राय

डॉ. पूनम आनंद 

भगवती प्रसाद द्विवेदी 

भारती नरेश पाराशर

डॉ. भावना तिवारी

मंजुला एम. दूसी

डॉ. मंजु गुप्ता

मंजू सक्सेना

मधु जैन

माधवी चौधरी

मिन्नी मिश्रा

मीरा जैन

मुकेश कुमार मृदुल

यशोधरा भटनागर

योगराज प्रभाकर

डॉ. रंजना शर्मा

डॉ. रंजना जायसवाल

डॉ. रघुनन्दन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’

रतन चंद ‘रत्नेश’

रमेश चंद्र शर्मा

रश्मि अग्रवाल

राजेन्द्र पुरोहित

राजेन्द्र वर्मा

डॉ. राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’

राम मूरत ‘राही’

राहुल शिवाय

रेखा शाह आरबी

डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’

डॉ. लवलेश दत्त

वंदनागोपाल शर्मा ‘शैली’

डॉ. वर्षा चौबे

विजयानंद विजय

विभा रानी श्रीवास्तव

विनोद सागर

विरेंदर ‘वीर’ मेहता

शांता अशोक गीते

शुचि ‘भवि’

डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’

शोभना श्याम

संतोष श्रीवास्तव

सन्तोष सुपेकर

सत्या शर्मा ‘कीर्ति’

सरोज बाला सोनी

सारिका भूषण

सावित्री शर्मा ‘सवि’

सीमा वर्मा

सुधा आदेश

सुधा दुबे

सुनीता मिश्रा

सुरेश सौरभ

हरभगवान चावला

शनिवार, 28 जनवरी 2023

लघुकथा वीडियो: जानवरीयत | लेखन: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी । वाचन: geetaconnectingwithin


 


लघुकथा: जानवरीयत |  डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

वृद्धाश्रम के दरवाज़े से बाहर निकलते ही उसे किसी कमी का अहसास हुआ, उसने दोनों हाथों से अपने चेहरे को टटोला और फिर पीछे पलट कर खोजी आँखों से वृद्धाश्रम के अंदर पड़ताल करने लगा। उसकी यह दशा देख उसकी पत्नी ने माथे पर लकीरें डालते हुए पूछा, "क्या हुआ?"

उसने बुदबुदाते हुए उत्तर दिया, "अंदर कुछ भूल गया..."

 पत्नी ने उसे समझाते हुए कहा, "अब उन्हें भूल ही जाओ, उनकी देखभाल भी यहीं बेहतर होगी। हमने फीस देकर अपना फ़र्ज़ तो अदा कर ही दिया है, चलो..." कहते हुए उसकी पत्नी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे कार की तरफ खींचा।

 उसने जबरन हाथ छुड़ाया और ठन्डे लेकिन द्रुत स्वर में बोला, "अरे! मोबाइल फोन अंदर भूल गया हूँ।"

 "ओह!" पत्नी के चेहरे के भाव बदल गए और उसने चिंतातुर होते हुए कहा, "जल्दी से लेकर आ जाओ, कहीं इधर-उधर हो गया तो? मैं घंटी करती हूँ, उससे जल्दी मिल जायेगा।"

वह दौड़ता हुआ अंदर चला गया। अंदर जाते ही वह चौंका, उसके पिता, जिन्हें आज ही वृद्धाश्रम में दाखिल करवाया था, बाहर बगीचे में उनके ही घर के पालतू कुत्ते के साथ खेल रहे थे। पिता ने उसे पल भर देखा और फिर कुत्ते की गर्दन को अपने हाथों से सहलाते हुए बोले, "बहुत प्यार करता है मुझे, कार के पीछे भागता हुआ आ गया... जानवर है ना!"

 डबडबाई आँखों से अपने पिता को भरपूर देखने का प्रयास करते हुए उसने थरथराते हुए स्वर में उत्तर दिया, “जी पापा, जिसे जिनसे प्यार होता है... वे उनके पास भागते हुए पहुँच ही जाते हैं...”

 और उसी समय उसकी पत्नी द्वारा की हुई घंटी के स्वर से मोबाइल फोन बज उठा। वो बात और थी कि आवाज़ उसकी पेंट की जेब से ही आ रही थी।

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शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

लघुकथा अनुवाद | हिंदी से मैथिली | अनुवादकर्ता: डॉ. मिन्नी मिश्रा | लघुकथा: लहराता खिलौना

डॉ. मिन्नी मिश्रा एक सशक्त लघुकथाकारा हैं. न केवल लघुकथा लेखन बल्कि समीक्षा व अनुवाद पर भी उनकी अच्छी पकड है. वे एक ब्लॉग मिन्नी की कलम से का भी संचालन करती हैं. पटना निवासी श्रीमती मिश्रा को कई श्रेष्ठ पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त हैं. उन्होंने मेरी एक हिंदी लघुकथा 'लहराता खिलौना' का मैथिली भाषा में अनुवाद किया है, यह निम्न है:


 लहराइत खेलौना (अनुवाद: मिन्नी मिश्रा / मैथिली)

देश के संविधान दिवसक उत्सव समाप्त केलाक बाद एकटा नेता अपन घरक अंदर पैर रखने हे छलाह कि हुनकर सात- आठ वर्षक बच्चा हुनका पर खेलौना वाला बंदुक तानि देलक, आ कहलक , "डैडी, हमरा किछु पूछबाक अछि।"

नेता अपन चिर परिचित अंदाज में मुस्की मारैत कहलथि ,"पूछ बेटा।"

"इ रिपब्लिक- डे कि होइत छैक?" बेटा प्रश्न दगलक।

सुनैत देरी संविधान दिवसक उत्सव में किछु अभद्र लोग दुआरे लगेल गेल नारा के दर्द नेता के ठोरक मुस्की के भेद देलक ,नेता गंहीर सांस भरैत कहलथि,
"हमरा पब्लिक के लऽग में बेर- बेर जेबाक चाही , इ हमरा याद दियेबाक दिन होइत अछि रि- पब्लिक-डे..."

"ओके डैडी ,ओहिमें झंडा केऽ कोन काज पड़ैत छैक?" बेटा बंदूक तनने रहल।

नेता जवाब देलथि ,"जेना अहाँ इ बंदूक उठा कऽ रखने छी,ओहिना हमरा सभके इ झंडा उठा कऽ राखय पड़ैत अछि ।"

"डैडी, हमरो झंडा खरिदि कऽ दियऽ... नहि तऽ हम अहाँके गोली सं मारि देब।" बेटा के स्वर पहिने के अपेक्षा अधिक तिखगर छलैन्ह।

नेता चौंकलथि आ बेटा के बिगरैत कहलन्हि,"इ के सिखबैत अछि अहांके?" हमर बेटा के हाथ में बंदूक नीक नहि लगैत अछि।आ' ओतय ठाढ़ ड्राइवर के किछु आनय के इशारा करैत,ओ बेटा के हाथ सं बंदूक छिनैत आगु बजलाह,
"आब अहाँ गन सं नहि खेलाएब।झंडा मंगवेलौहें ओकरे सं खेलाउ।"एतबा बजैत बिना पाछां तकैत नेता सधल चालि सं अंदर चलि गेलाह।

अनुवादक- डॉ. मिन्नी मिश्रा, पटना
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मूल लघुकथा

लहराता खिलौना / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए कहा,
"हमें पब्लिक के पास बार-बार जाना चाहिये, यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे..."

"ओके डैडी और उसमें झंडे का क्या काम होता है?" बेटे ने बन्दूक तानी हुई ही थी।

नेता ने उत्तर दिया, "जैसे आपने यह गन उठा रखी है, वैसे ही हमें झंडा उठाना पड़ता है।"

"डैडी, मुझे भी झंडा खरीद कर दो... नहीं तो मैं आपको गोली से मार दूंगा" बेटे का स्वर पहले की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण था।

नेता चौंका और बेटे को डाँटते हुए कहा, "ये कौन सिखाता है आपको? बन्दूक अच्छी नहीं लगती मेरे बेटे के हाथ में।" 
और उसने वहीँ खड़े ड्राईवर को कुछ लाने का इशारा कर अपने बेटे के हाथ से बन्दूक छीनते हुए आगे कहा,
“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”

कहते हुए नेता बिना पीछे देखे सधे हुए क़दमों से अंदर चला गया।
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