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गुरुवार, 1 सितंबर 2022

लघुकथा मर्मज्ञ श्री अनिल मकारिया द्वारा लघुकथा संग्रह हाल-ए-वक्त पर एक टिप्पणी

श्रीयुत अनिल मकारिया उन लघुकथाकारों में से हैं जो गहराई में जाकर अपनी स्वयं की रचना का आकलन करने में सक्षम हैं। भाषा और शिल्प पर उनकी बड़ी पकड़ है।

अतएव,जब वे एक पाठक और समीक्षक बन किसी रचना का आकलन करते हैं तो उस रचना के रचनाकार के मोजों से लेकर टोपी तक खुद के पैरों से लेकर सिर तक फिट कर लेते हैं और अपने बाकमाल अंदाज़ में बहुत अच्छी समिक्षीय टिप्पणी से रचनाओं को दर्शा देते हैं।

उपरोक्त बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं प्रतीत होगी,जब आप इस पोस्ट में उनके द्वारा की गई एक लघुकथा 'मुर्दों के सम्प्रदाय' की निम्न समीक्षा पढ़ेंगे।

- चन्द्रेश कुमार छतलानी

-०-

 पढ़ते-पढ़ते लघुकथा संग्रह 'हाल-ए-वक्त' / अनिल मकारिया

'हाल-ए-वक्त' लघुकथा संग्रह में दर्ज बेहतरीन लघुकथाओं में से एक है 'मुर्दों के सम्प्रदाय', यह लघुकथा पिता-पुत्र संवाद में छिपे प्रतीकों द्वारा प्रस्तुत होती है। इस लघुकथा को अगर संवाद-दर-संवाद, चबा-चबाकर पढ़ा जाए तो लेखक के प्रतीक गढ़ने की प्रतिभा एवं क्षमता का नायाब प्रदर्शन पाठक के समक्ष नमूदार होता है। जब पाठक ज़ेहन में यह लघुकथा खुल जाती है, तब इस लघुकथा का शीर्षक 'मुर्दों के संप्रदाय' पाठक को अजीब नहीं बल्कि मौजूं लगने लगता है। यह लघुकथा राजनीति विमर्श संबंधित कथ्य लिए हुए, प्रतीकों के सटीक इस्तेमाल और अलहदा निर्वहन के लिए पहचानी जाएगी। इस लघुकथा को खोलने के लिए हमें इसके संवादों में छुपी हुई प्रतिध्वनियों को सुनना होगा। इस लघुकथा का प्रथम संवाद बेटे द्वारा पिता से पूछा गया प्रश्न है,

//पापा, हम इस दुकान से ही मटन क्यों लेते हैं? हमारे घर के पास वाली दुकान से क्यों नहीं?// मानो कोई मतदान योग्य हुआ नौजवान बेटा अपने अनुभवी पिता से पूछ रहा हो।

प्रतिध्वनि: हम किसी खास पार्टी को ही वोट क्यों देते हैं ? दूसरी पार्टी को क्यों नहीं ?

लघुकथा में पिता का उत्तर आता है,

//क्योंकि हम हिन्दू हैं, हम झटके का माँस खाते हैं और घर के पास वाली दुकान हलाल की है, वहाँ का माँस मुसलमान खाते हैं।// जाती-धर्म की राजनीति से प्रभावित पिता के अनुभव का उत्तर पाठक मन में कुछ यूँ प्रतिध्वनित होता है,

प्रतिध्वनि: हम हिन्दू हैं इसलिए उस खास पार्टी को ही वोट देते हैं क्योंकि वह हिन्दू हित की बात करती है और क्योंकि दूसरी पार्टी मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करती है तो उसे वोट भी मुस्लिम ही करते हैं।

जब बेटा दोनों दुकानों (पार्टीयों) का अंतर पूछता है तो पिता अनमने उत्तर दे ही देते हैं,

//बकरे को काटने के तरीके का अंतर है...//

प्रतिध्वनि: पार्टियों के मतदाता को लुभाने के तरीके एवं आश्वासनों का अंतर है।

बेटा शव को हिन्दूओं द्वारा जलाने और मुसलमान द्वारा दफनाने का उदाहरण देकर समझने की तस्दीक करना चाहता है और यह उदाहरण सुनकर पिता मुस्कुराकर उत्तर देते हैं।

//हाँ बेटे, बिल्कुल वैसे ही।//

प्रतिध्वनि: मज़हब के आधार पर हुए चुनाव में जीते कोई भी, जनाजा तो लोकतंत्र का ही निकलता है।

बाद में बेटे द्वारा यह पूछना की //कैसे पता चलता है कि बकरा हिन्दू है या मुसलमान ?// साफ प्रतिध्वनित करता है,

'कैसे पता चलेगा कि जनता (बकरे) ने वाकई सही नुमाइंदा (कसाई) चुना है ?'

अब पिता किसी खास पार्टी के प्रति अपने प्रेम को ताक में रखकर, एक ऐसी बात अपने बेटे से कहता है जो इस लघुकथा की पंचलाइन भी है और लघुकथा के कथ्य को भी पाठकों के समक्ष स्पष्ट कर देती है।

//बकरा गंवार-सा जानवर... जीते-जी नहीं//

प्रतिध्वनि: जनता बकरे के समान है और पार्टियां कसाइयों की भाँति, मतदान के बाद चाहे जनादेश किसी भी ओर झुका हो, सच तो यह है कि जनता रूपी गंवार बकरा, किसी न किसी पार्टी (कसाई ) के हाथों कटकर (पांच साल के लिए शासक चुनकर) अपनी जान गंवा चुका होता है।

चंद्रेश जी के इस संग्रह में कुछ लघुकथाएँ पाठकों के दिमाग को व्यस्त रखती हैं और नए नजरियों से पढ़ने पर विवश करती हैं। कई पाठकों का कहना है कि लघुकथा को उस अंदाज से प्रस्तुत ही क्यों करना, जिसे समझने के लिए दिमाग को मेहनत करनी पड़े ? 

और मुझे लगता है कि लघुकथा को प्रस्तुत ही इस अंदाज से करना चाहिए कि दिलोदिमाग उसे खोलने में व्यस्त हो जाये क्योंकि यह व्यस्तता ही हमें विचारों के नए आयामों की ओर लेकर जाती है, नए कथ्य-कथानकों की ओर आकर्षित करती है।

इस संग्रह के शुरुआती पन्नों में दर्ज लघुकथाओं में से 'E=MC × शून्य' लघुकथा का कथानक अगर अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है तो 'कटती हुई हवा' का कथानक उतना ही मार्मिक एवं शानदार है। 'वही पुरानी तकनीक' लघुकथा भूख जैसे सार्वभौमिक विषय पर लिखी बेजोड़ कृति है, इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति हृदय विदारक बयान प्रस्तुत करती है। 'पत्ता परिवर्तन' लघुकथा में प्रतीकों का कमजोर प्रस्तुतिकरण हुआ महसूस होता है। 'एक बिखरता टुकड़ा' के संवादों में बेहतरी की गुंजाइश बनी हुई है। 'संस्कार' लघुकथा अगर किसी फिल्म की मानिंद लगती है तो 'भटकना बेहतर' पुराने कथ्य-कथानक की निष्प्रभ प्रस्तुति है। 'गूंगा कुछ तो करता है' लघुकथा सोशल साइट्स पर राजनीतिक टिप्पणियों पर मची घमासान की मुस्कुराती हुई शानदार अभिव्यक्ति है।

(क्रमश:) 

#Anil_Makariya 



लघुकथा संग्रह : हाल-ए-वक्त

लेखक : चंद्रेश कुमार छतलानी

प्रकाशक : हिमांशु पब्लिकेशन्स

मूल्य : ₹ २५०

पृष्ठ : ९०



रविवार, 21 अगस्त 2022

क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2022


दिनांक 9 अक्टूबर 2022 रविवार

श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति टैगोर मार्ग इंदौर

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देश के समस्त लघुकथाकारों को यह सूचना देते हुए  प्रसन्नता है कि , प्रत्येक वर्ष की तरह  इस वर्ष भी क्षितिज संस्था, इंदौर द्वारा श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर में  अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2022 दिनांक 9 अक्टूबर 2022 रविवार के पूरे दिन, सिर्फ एक दिवसीय स्वरूप में आयोजित किया जा रहा है । इसमें देश भर से प्रमुख लघुकथाकार शामिल होंगे और कई सम्मान भी प्रदान किए जाएंगे ।देश के समस्त लघुकथाकारों से निवेदन है कि इसमें उपस्थित होकर अपनी सहभागिता प्रदान करें। 

 पंजीयन शुल्क  प्रतिभागियों के लिए 500/- रुपए रखा गया है। कृपया पंजीयन शुल्क क्षितिज के खाते में जमा करें। खाते का विवरण निम्नानुसार है : 

एकाउंट विवरण --

Name of a/c -- KSHITIJ

Name of Bank -- UCO BANK

A/C No. -- 25300110044292

IFSC -- UCBA0002530

Branch -- ANNAPURNA ROAD, INDORE


पंजीयन हेतु क्षितिज के कोषाध्यक्ष श्री सुरेश रायकवार से संपर्क करें। श्री सुरेश रायकवार का मोबाइल नंबर 8818838007 है।

आयोजन में नाश्ता भोजन आदि की व्यवस्था रहेगी। बाहर के प्रतिभागियों को अपने आने जाने और आवास की व्यवस्था स्वयं करना होगी। इससे संबंधित अन्य सूचनाएं बीच में समय-समय पर प्रेषित कर दी जाएंगी । पूरा विश्वास है कि सदैव की तरह इस बार भी आप इस आयोजन में शामिल होकर आपकी गरिमामय उपस्थिति से गौरवान्वित करेंगे।


भवदीय 

सतीश राठी

अध्यक्ष क्षितिज 

दीपक गिरकर 

सचिव क्षितिज

इंदौर

संपर्क 

94250 67204

 94250 67036

शुक्रवार, 24 जून 2022

रविवार, 22 मई 2022

लघुकथाओं का फिल्मांकन कर रहे श्री अनिल पतंग का साक्षात्कार | साक्षात्कारकर्ता: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

 01 जून 1951 , बेगूसराय - बिहार में जन्में श्री अनिल पतंग एक फिल्मकार, नाटककार, अभिनेता व सम्पादक- हैं, आपने एम.ए. नाट्यशास्त्र, एम.ए. हिन्दी, साहित्यरत्न,विद्यावाचस्पति, डिप.इन टीच., डिप.इन फिल्म, एन.ई.टी. यू.जी.सी. एम.डी. अल्ट. मेडिसीन की शिक्षा प्राप्त की है। आप हिन्दी अधिकारी दूरदर्शन, बिहार सरकार द्वारा अनुशंसित अनेक रंग संस्थाओं एवं साहित्यिक संस्थाओं के सचिव/अध्यक्ष/ अधिकारी एवं सदस्य तथा निदेशक, नाट्य विद्यालय, बेगूसराय जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे हैं।

श्री पतंग ने कई पुस्तकों का लेखन किया है, जैसे, नाटक विधा में -दीवार, प्रजातंत्र, कीमत, जट जटिन, सामा- चकेवा, डोमकछ, एक महर्षि का मूल्य, नागयज्ञ, लोक कथा रूपक, कहानी विधा में - प्रोफेसर सपना बाबू व निबंध संग्रह-रंग संदर्भ। लेखन के अतिरिक्त आपने सम्पादन कार्य भी किए हैं, बिहार के लोकधर्मी नाट्य व रंग अभियान (नाट्य पत्रिका) आपकी संपादित कृतियाँ हैं। श्री पतंग सम्पर्क (दूरदर्शन जालंधर की पत्रिका) में प्रधान सम्पादक के दायित्व का निर्वाह भी कर रहे हैं और अनेक स्मारिकाओं का संपादन किया है। अनिल पतंग जी राजकीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मानों से सम्मानित हुए हैं। इन दिनों श्री अनिल पतंग लघुकथाओं पर लघु फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

आइए उन्हीसे उनकी लघु-फिल्मों के निर्माण के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करें।


चंद्रेश कुमार छतलानी: आदरणीय श्री अनिल पतंग जी, आपको लघुकथाओं पर फिल्मांकन का विचार कैसे आया?

अनिल पतंग: मैं 1991_92 से ही फिल्मों से जुड़ा रहा। प्रकाश झा प्रोडक्शन का धारावाहिक "विद्रोह" जो वीर कुंवर सिंह की जीवन पर आधारित है,में उनके अनुज दयाल सिंह की भूमिका की थी। बाद में उनके फिल्म प्रवाह में काम किया। फिर एक फुल लेंथ हिंदी फीचर फिल्म "जट जटिन" का निर्माण किया। जो लोकप्रिय हुआ और दुनिया के लगभग 55 देशों के फिल्म फेस्टिवल में शामिल किया गया और 70 अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ। इधर लॉकडाउन में शिथिलता के बाद लगभग 700 से अधिक स्वास्थ्य, साहित्य, नाटक और अन्य तरह के लघुफिल्मों के निर्माण में लगा रहा। बाद में कई मित्रों की राय से वैसी लघुकथाएं जो राष्ट्र, समाज और पारिवारिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को दर्शाती हैं, का फिल्मांकन प्रारम्भ किया, जो कम समय में अपना संदेश छोड़ सके।

चंद्रेश कुमार छतलानी: शॉर्ट फ़िल्म हेतु लघुकथा के चयन आप किस आधार पर करते हैं?

अनिल पतंग:  फिलहाल अपने लक्ष्यों के अनुरूप लघुकथाएं, जिसके पात्र और परिस्थिति हमारे अनुकूल हों।

चंद्रेश कुमार छतलानी: आप लघु फ़िल्म बनाने में क्या प्रक्रिया अपनाते हैं?

अनिल पतंग: बेगूसराय या अन्य उपलब्ध कलाकारों द्वारा बेगूसराय में शूट कर मुंबई, गुड़गांव और दिल्ली के स्टूडियो में एडिट होकर यूट्यूब पर डाला जाता है।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  इस कार्य में कैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा?

अनिल पतंग:  आज के कमर्शियल युग में अच्छे कलाकारों का मिलना आसान नहीं है। फिर भी जो साथ चल रहे हैं, धन्यवाद के पात्र हैं। यहां साधन की भी कमी है। फिर भी हमारे कलाकारों और दर्शकों का उत्साह हमारे मनोबल को बढ़ाता है।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  इस कार्य में क्या लघुकथाकारों या सम्पादकों का भी सहयोग लेते हैं?

अनिल पतंग:  लघुकथाकार और संपादक हमारे इस अभियान के रीढ़ हैं। उनके बिना इस मिशन की कल्पना नहीं की जा सकती।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  यूट्यूब पर लघुकथाएं यों तो बहुत देखी जा रही हैं? आपकी लघु फिल्मों ओर व्यूज़ कितने आ जाते हैं?

अनिल पतंग:  यह तो पारदर्शी है, आप यूट्यूब पर देख लें।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  लघुकथा के कौनसे ऐसे तत्व हैं जो फिल्मांकन में उचित रहते हैं और कौनसे तत्व जो लघु फिल्म बनाने में सशक्त नहीं होते?

अनिल पतंग:  कहानियों के सभी तत्व इसमें मौजूद रहते हैं, लेकिन सूक्ष्मता, और पिन पॉइंटेड,जो छक और धक से दर्शकों को लग जाय। समाप्ति उसे स्तब्ध कर दे।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  इससे सम्बंधित भविष्य की कोई योजना?

अनिल पतंग:  71 वर्ष पार कर रहा हूं, आपका सहयोग है, आर्थिक समस्या भी कम नहीं है। मैं लघुकथाकारों और कलाकारों  को फिलहाल कुछ नहीं दे पा रहा हूं। लेकिन आने वाले दिनों में ऐसा नहीं हो, योजना में शामिल है।

चंद्रेश कुमार छतलानी:  लघुकथाकारों को किसी फिल्म के लिए ही लेखन करने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

अनिल पतंग:  लघुकथाकारों से धन्यवाद सहित अनुरोध है कि वे कम और आसान पात्रों, लोकेशन, मजबूत तथ्य और कथ्य की रचनाएँ  भेजें। जो राष्ट्र, समाज और परिवार के लिए उपयोगी हो।

चंद्रेश कुमार छतलानी: धन्यवाद आपका अनिल पतंग जी। 

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श्री अनिल पतंग से निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है:

अनिल पतंग

बाघा (रेलवे कैबिन के पास) 

पो. - सुहृद नगर (बेगूसराय) 

पिनकोड: 851218.

मोबाइल फोन- 7004839500

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अनिल पतंग द्वारा फिल्मांकन की गई चंद्रेश कुमार छतलानी की एक लघुकथा



शुक्रवार, 20 मई 2022

लघुकथा 'मृत्युदंड' । वाचन: प्रियांशु सक्सेना

मेरी एक लघुकथा 'मृत्युदंड' का लखनऊ की प्रतिष्ठित लेखिका श्रीमती प्रियांशु सक्सेना जी द्वारा काफी प्रभावी वाचन।