यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

लघुकथा : मैदान से वितान की ओर


Image may contain: Balram Agarwal, outdoor
वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भगीरथ द्वारा चुनी हुई 100 हिन्दी लघुकथाओं को वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ॰ बलराम अग्रवाल ने धारावाहिक के रूप में अपने ब्लॉग जनागाथा पर 21 पोस्ट्स में संग्रहित किया है, ये महत्वपूर्ण पोस्ट्स निम्नानुसार हैं:


सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

लघुकथा वीडियो: -- लघुकथा - मित्रता | हरिशंकर परसाई

लघुकथा वीडियो की श्रंखला में प्रस्तुत है  हरिशंकर परसाई जी की लघुकथा - मित्रता। 

दो विरोधी जब किसी तीसरे के विरोध में उतर आते हैं तो आपस में मित्र बन जाते हैं। सामान्य कार्यालय कर्मचारियों से लेकर देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों की स्थिति इस एक मिनट से भी कम समय की लघुकथा में परसाई जी ने कह दी है। आइये शिखा त्रिपाठी जी के स्वर में सुनें इसे।



रविवार, 3 फ़रवरी 2019

लघुकथा समाचार : लघुकथा हेतु यूट्यूब चैनल Vibhorविभोर

Image may contain: 1 person, closeup
श्री विजय विभोर द्वारा एक यूट्यूब चैनल प्रारम्भ किया गया है, जिसके एक विशेष कार्यक्रम "मेरी पहली लघुकथा" के माध्यम से हम हमारी पहली लघुकथा भेज सकते हैं। ईमेल - vibhorvijayji@gmail.com उनकी फेसबुक वाल से: क्या आप लिखना शुरू करना चाहते हैं? तो आपका अपना यूट्यूब चैनल "Vibhorविभोर" आपको मौका दे रहा है। "मेरी पहली लघुकथा" के माध्यम से- भेजिए अपनी पहली लघुकथा और "दिल की बात दिलों तक" में कहानी (हाँ आपकी यह रचना अप्रकाशित, अप्रचारित होनी चाहिए। पहले से लिख रहे रचनाकारों के लिए यह शर्त अनिवार्य नहीं है) सीधे e-mail - vibhorvijayji@gmail.com पर। हम आपकी ईमानदारी पर आँख मूँदकर विश्वास करते हैं। इसलिए आप उचित रचना ही भेजें। चयनित रचनाओं को हम आपके अपने चैनल पर प्रसारित करेंगे। आपकी रचना पर आपका ही अधिकार रहेगा, हम तो मात्र दर्शकों/श्रोताओं तक आपकी रचना को पहुचाने का काम करेंगे। चयनित व प्रसारित रचना का समय आने पर चैनल की तरफ से आपको ससम्मान प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा। तो देर किस बात की है? भेजिए अपनी लघुकथाएं/कहानियाँ और अपने साथियों को भी सूचित करें। अपनी रचना भेजें तो शीर्षक में यह जरूर लिखें कि आप रचना को "बोलती लघुकथाएं" के लिए है या "दिल की बात दिलों तक" के लिए है। हाँ अपनी तक आपने अपने इस चैनल "Vibhorविभोर" को सब्स्क्राइब नहीं किया है तो सब्स्क्राइब जरूर कर लें। Email - vibhorvijayji@gmail.com - विजय 'विभोर'

लघुकथा संग्रह "श्रंखला" की समीक्षा - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

मारक क्षमता से युक्त लघुकथाओं का  गुल्दस्ता

पुस्तक- श्रंखला (लघुकथा संग्रह)
कथाकार- तेजवीर सिंह 'तेज'

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पृष्ठसंख्या-176
मूल्य -रुपये 300/-
प्रकाशक- देवशीला पब्लिकेशन 
पटियाला (पंजाब) 98769 30229

समीक्षा 

मारक क्षमता लघुकथा की पहचान है । यह जितनी छोटी हो कर अपना तीक्ष्ण भाव छोड़ती है उतनी उम्दा होती है। ततैया के डंकसी चुभने वाली लघुकथाएं स्मृति में गहरे उतर जाती है । ऐसी लघु कथाएं की कालजई होती है।

लघुकथा की लघुता इसकी दूसरी विशेषता है। यह कम समय में पढ़ी जाती है। मगर लिखने में चिंतन-मनन और अधिक समय लेती है । भागम-भाग भरी जिंदगी में सभी के पास समय की कमी है इसलिए हर कोई कहानी-उपन्यास को पढ़ना छोड़ कर लघुकथा की ओर आकर्षित हो रहा है। इसी वजह से आधुनिक समय में इस का बोलबाला हैं ।

इसी से आकर्षित होकर के कई नए-पुराने कथाकारों ने लघुकथा को अपने लेखन में सहज रुप से अपनाया है। इन्हीं नए कथाकारों में से तेजवीर सिंह 'तेज' एक नए कथाकार है जो इसकी मारक क्षमता के कारण इस ओर आकर्षित हुए । इन्होंने लघुकथा-लेखन को जुनून की तरह अपने जीवन में अपनाया है । इसी एकमात्र विधा में अपना लेखन करने लगे हैं। इसी साधना के फल स्वरुप इन का प्रथम लघुकथा संग्रह शृंखला आपके सम्मुख प्रस्तुत है।

शृंखला बिटिया की स्मृति को समर्पित इस संग्रह की अधिकांश कथाएं जीवन में घटित-घटना, उसमें घुली पीड़ा, संवेदना, विसंगतियों और विद्रूपताओं को अपने लेखन का विषय बनाया है । इनकी अधिकांश लघुकथाएं संवाद शैली में लिखी गई है जो बहुत ही सरल सहज और मारक क्षमता युक्त हैं।

संग्रहित श्रंखला लघुकथा की अधिकांश लघुकथाएं की भाषा सरल और सहज है । आम बोलचाल की भाषा में अभिव्यक्त लघुकथाएं अंत में मारक बन पड़ी है ।वाक्य छोटे हैं । भाषा-प्रवाहमय है । अंत में उद्देश्य और समाहित होता चला गया है।

संवाद शैली में लिखी गई लघुकथाएं बहुत ही शानदार बनी है । इन में कथाओं का सहज प्रवेश हुआ है । संवाद से लघुकथाओं में की मारक क्षमता पैदा हुई है ।

इस संग्रह में 140 लघुकथाएं संग्रहित की गई है । इनमें से मन की बात , सबसे बड़ा दुख, ईद का तोहफा, एमबीए बहू, दर्द की गठरी, दरारे, गुदगुदी, लालकिला, अंगारे, गॉडफादर, इंसानी फितरत, बोझ, बस्ता, भयंकर भूल, नासूर, वापसी, हिंदी के अखबार, पलायन, खुशियों की चाबी, वेलेंटाइन डे, आदि लघुकथाएं बहुत उम्दा बनी है।

सबसे बड़ा दुख -लघुकथा की नायिका को अपना वैधव्य से अपने ससुर का पुत्र-शोक कहीं बड़ा दृष्टिगोचर होता है। इस अन्तर्द्वन्द्व को वह गहरे तक महसूस करती है । वही दर्द की गठरी -एक छोटी व मारक क्षमता युक्त लघुकथा है। यह एक वृद्धा की वेदना को बखूबी उजागर करती है।

मन की बात- की नायिका पलायनवादी वृति को छोड़कर त्याग की और अग्रसर होती है, नायिका की कथा है । यह इसे मार्मिक ढंग से व्यक्त करने में सक्षम है ।अंगारे- लघुकथा धार्मिक उन्माद का विरोध को मार्मिक ढंग से उजागर करने में सफल रही है।

खुशियों की चाबी- में टूटते परिवार को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया गया है । वहीं भयंकर भूल- में नायिका के हृदय की पीड़ा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है ।
कुल मिलाकर अधिकांश मार्मिक, हृदयग्राही और संवेदना से युक्त बढ़िया बन पड़ी है। कुछ लघुकथाएं कहानी के अधिक समीप प्रतीत होती है । मगर उनमें कथातत्व विद्यमान है।
संग्रह साफ-सुथरे ढंग से अच्छे कागज और साजसज्जा से युक्त प्रकाशित हुआ है। 176 पृष्ठ का मूल्य ₹ 300 है। जो वाजिब हैं ।
लघुकथा के क्षेत्र में इस संग्रह का दिल खोल कर स्वागत किया जाएगा ऐसी आशा की जा सकती है।

-
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' ,
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़
जिला -नीमच (मध्यप्रदेश)
पिनकोड- 458226
9424079675

लघुकथा समाचार: सरल काव्यांजलि की इंदौर में गोष्ठी आयोजित




उज्जैन 2 फरवरी 2019 

संस्था सरल काव्यांजलि द्वारा एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन इंदौर में किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार श्री पुरुषोत्तम दुबे ने की।

अतिथि उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे थे। कार्यक्रम में सतीश राठी द्वारा परिवर्तन एवं ठोकर नाम की लघुकथाएं प्रस्तुत की गईं। राम मूरत राही ने भूमि एवं तरक्की लघुकथाएं, संतोष सुपेकर द्वारा लघुकथा नया नारा,दीपक गिरकर ने तफ्तीश जारी ह नामक लघुकथा प्रस्तुत किया।

अशोक शर्मा भारती ने कविता आकलन एवं मार्मिक कविता बसंत प्रस्तुत की। अश्विनी कुमार दुबे ने अपनी व्यंग्य रचना शैतान के दिलचस्प कारनामे प्रस्तुत की। संचालन सतीश राठी ने किया। आभार संतोष सुपेकर ने माना।

News Source:
http://avnews.in/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0-%E0%A4%AE/

लघुकथा - सच्चाई का हलवा

वह दुनिया का सबसे बड़ा बावर्ची था, ऐसा कोई पकवान नहीं था, जो उसने न बनाया हो। आज भी पूरी दुनिया को सच के असली मीठे स्वाद का अनुभव हो, इसलिये वह दो विशेष व्यंजन सच और झूठ के हलवे को बनाने जा रहा था। उसे विश्वास था कि दुनिया इन दोनों व्यंजनों को खाते ही समझ जायेगी कि अच्छा क्या है और बुरा क्या। 

उसने दो पतीले लिये, एक में ‘सच’ को डाला दूसरे में ‘झूठ’ को। सच के पतीले में खूब शक्कर डाली और झूठ के पतीले में बहुत सारा कडुवा ज़हर सरीखा द्रव्य। दोनों में बराबर मात्रा में घी डाल कर पूरी तरह भून दिया। 

व्यंजन बनाते समय वह बहुत खुश था। वह एक ऐसी दुनिया चाहता था, जिसमें झूठ में छिपी कडुवाहट का सभी को अहसास हो और सच की मिठास से भी सभी परिचित रहें। उसने दोनों पकवानों को एक जैसी थाली में सजा कर चखा।

और उसे पता चल गया कि सच फिर भी कडुवा ही था और झूठ मीठा... हमेशा की तरह।
- ० -


- डॉ॰ चंद्रेश कुमार छतलानी

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

सुरेन्द्र कुमार जी अरोड़ा की दो लघुकथाएं

जेहाद 

" अमां ठोक इसे ! "
" ट्रिगर दबा और धायं की साईलेंसरी आवाज के साथ एक जवान जिंदगी लाश में बदल  गयी ! वादी  में एक हल्की सी चीख गूंजी और फिर किसी भुतहे सन्नाटे की तरह  सब कुछ शांत हो गया ।
उस चीख ने न जाने कैसा दर्द पैदा किया कि गोली चलने वाला दरिंदा बोल उठा , "अल्लाह की खिदमत में कहीं इसे गलत तो नहीं पेश कर दिया । "
" भाई मियां अब सोचो मत ! गलत या सही , कर दिया तो कर दिया । वैसे यकीन करो इसे ठोककर कोई गलती नहीं हुई है । साला काफिरों की फ़ौज के लिए लड़ता था । इसलिए काफिर ही था । इसे सजा मिलनी जरूरी थी । इसकी मौत की खबर जब पूरी घाटी में फैलेगी तो  इसका खानदान  तो क्या घाटी में रहने वाले हर बाशिंदे की  कई पुश्ते कभी ये सोचेंगी भी नहीं कि अल्लाह की फ़ौज के खिलाफ लड़ने का मतलब है अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी और जब कोई शख्स अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी  करता है तो  उसका सिर्फ एक ही हश्र होता है - जिबह । इस काफिर की रूह शुक्र मनाएगी  कि इसे हमारे खंजर  ने जिबह नहीं किया , राइफल से निकली गोली के एक  झटके  से ही इसके पाप धुल गए और यह खुदा की सल्तनत में फरियादी की तरह जा बैठा  । " झाड़ियों में छिपे  दूसरे दरिंदें  ने भी अपनी ए । के । 47 को संभालते हुए मुस्तैदी से कहा , " ओये ! वो देख जीता - जागता गुलाब । जवान शोरबा । हुस्न का चलता - फिरता टोकरा । इतना करारापन देखा है कहीं ?  "
 " ठोक दूँ  इसे भी । उसी काफिर की बहन लगती है ।" पहला पूरे जुनून में था ।
" पागल हो गया है क्या । ये झटके का माल नहीं है । ऐसा करते हैं पहले इसका जायका लेते हैं । फिर आगे की सोचेंगें । " दूसरे  ने अपने होठों को जबान से तर करते हुए दरिंदगी से सराबोर अपनी  रूह का एक और नमूना पेश किया  ।
" तो क्या इसका लोथड़ा कच्चा चबायेगा ? "  पहला कुछ समझ नहीं पाया ।
" अमां इतने दिन हो गए फातिमा को छोड़े हुए । तुझे  भी तो घर से बेदखल हुए  दो महीने हो गए हैं  ।  हम भी तो इंसान हैं यार । जिस्मानी  भूख हमें भी  लगती है । जवानी  हर तरह का जोर मरती है । आज ये माल दिखा है , पहले मैं इसे फातिमा बनाता हुँ फिर तू इसे कुछ भी समझ लियो । " दूसरा वहशीपन की नई मिसाल कायम करने पर उतर आया ।
" नहीं यार ! ये ठीक नहीं है । तू कहे तो मैं इसे ठोक देता हुँ , पर ये करना ठीक नहीं है ! इसने हमारा क्या बिगाड़ा है ?  " पहले का जमीर शायद  बाकी था पर दूसरे ने उसकी बात पर कोई गौर नहीं किया और आती हुई उस बाला पर भेड़िये की तरह टूट पड़ा । अभी उसने अपनी दरिंदगी को अंजाम देना शुरू ही किया था कि पलक झपकते ही जय माँ काली के उद्घोष के साथ  पांच जवानो की टुकड़ी की राइफलों से निकली गोलियों ने  दोनों दरिंदों की दरिंदगी को   लाशों में तब्दील कर दिया   ।   

-0-


किशोरी मंच
     
" मानसी चल जल्दी से खाना खा ले , मुझे ढेरों काम हैं  ।"
" जल्दी न करो माँ ! पहले मुझे साबुन ला कर दो ।"
" साबुन का क्या करेगी  ,उसके साथ रोटी खाएगी क्या  ? "
"  गुस्सा मत करो माँ , सुबह से घर  से बाहर थी ,  हाथों  ने न जाने कितनी चीजों को छुआ  है , बहुत गंदे हो गए हैं  । हो सकता है बहुत सी खतरनाक  बीमारिओं के  कीटाणु  भी इनसे चिपक गए होंगें , अगर ऐसे ही  खाना खा लिया तो वे सारे कीटाणु  मेरे पेट में जाकर मुझे बीमार कर सकते हैं ।"
" बड़ी समझदार हो गयी है , जा मिटटी से हाथ धो ले , साबुन हो तो दूँ । इतनी महंगाई में बच्चों का पेट पालें या साबुन से उनके चेहरे चमकाएं ।"
" माँ घर में साबुन का होना उतना ही जरूरी है जितना कि रसोई में आटा । मिटटी से हाथ धोने का मतलब है कि बीमारियों के कीटाणुओं में और भी ज्यादाबढ़ोतरी और उसके साथ बिमारिओं को न्योता ।"
" तो बता क्या करूँ ,घर में साबुन नहीं है  ।"
" नहीं है तो मैं खुद जा कर ले आती हूँ ।"
" क्या सचमुच  तू दूकान पर जा कर साबुन की टिकिया लाएगी  ? आज तक तो बगल की दूकान से बिस्कुट  ले कर  आने  में भी आनाकानी करती थी कि गली के गंदे लड़के , आती - जाती  लड़कियों को तंग करते हैं ।।"
" हाँ माँ ।पता भी है आज हमारे स्कूल में एक अनोखा कार्यक्रम रखा गया था  जो अब से पहले कभी नहीं रखा गया  । इस कार्क्रम ने तो हम सब लड़किओं की सोच को ही बदल कर रख दिया ।"
" बेटा ऐसा क्या था उस कार्यक्रम में जो उसके लिए  तू इतना चहक  रही है ।"
" माँ उस कार्यक्रम का नाम था किशोरी मंच ।इसका आयोजन हमारे देश की   केंद्रीय सरकार के अंतर्गत चलने वाले सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारिओं ने करवाया था । इसमें हमारे स्कूल की बड़ी मैडम के साथ - साथ हमारी क्लास की मैडम ने भी बड़ी अच्छी बातें बताईं । हमें ऐसी - ऐसी बातें बताईं और ट्रेनिंग दी कि मन कर रहा था   कि यह कार्यक्रम तो कभी खत्म ही न हो ।"
" स्कूल वालों ने ऐसा क्या सिखाया  कि आज तू वो काम करने की बातें कर रही है जो तू पहले मेरे कहने पर भी नहीं करती थी ।"
" माँ ! पहली बात तो यह कि एक बहुत ही  बुद्धिमान मैडम आयीं थी जिन्होंने बड़े अच्छे ढंग से यह बताया कि हम अपनी रोज मर्रा की  जिंदगी में अगर हम सफाई से रहना सीख लें तो  बहुत सी बिमारिओं से आसानी से  बच सकते हैं । इन छोटी - छोटी बिमारिओं के कारण जहाँ एक तरफ बीमार व्यक्ति के कार्य करने की ताकत में कमीं आती है वहीं दूसरी ओर घर और देश की कमाने की ताकत भी कम हो जाती है । हमारा फ़र्ज़ है की हम स्वयं को स्वस्थ रखें । हर व्यक्ति के स्वस्थ रहने से घर और देश दोनों अपने - अपने काम अपनी पूरी ताकत से करते हैं जिससे दोनों  की माली हालत में सुधार होताहै और खुशहाली आती है । इसलिए अब मैं अपनी और घर की साफ़ - सफाई का पूरा ध्यान रखूंगी ।"
" वाह ! मेरी बेटी तो एक ही दिन में इतनी बड़ी हो गयी । दूसरी बात  क्या बताई किशोरी मंच में ?'
"  माँ वह तो मैं भूल ही गयी । एक और मैडम भी आई थी । उन्होंने हम लड़किओं को बताया कि हमें किसी भी  हाल में खराब नियत वाले लड़कों से डरना नहीं है , अगर कोई खराब नियत से किसी लड़की के साथ बदसलूकी करे तो उसको सही सबक सिखाने में देर नहीं करनी है । इस काम के लिए उन्होंने वो तरीके भी बताये कि कैसे खुद की रक्षा करें और जरूरत पड़ने पर उन पर  वार से पीछे भी न हटें । अब जब भी जरूरत होगी मैं अपनी सुरक्षा बिना किसी से डरकर  खुद ही  करूंगी ।"
" चलो मेरी सिरदर्दी खत्म हुई । अब तू खुद ही  अपनी हर तरह की सफाई का भी ध्यान तो रखेगी  ही साथ ही मजबूत भी बनेगी ।"
" हाँ माँ अब हम लड़कियों को दिल्ली की  निर्भया की तरह बदमाशों से लड़ते हुए असमय काल  का ग्रास नहीं बनना है बल्कि रोहतक की आरती और पूजा की तरह बदमाशों की पिटाई करके उन्हें जेल के सीखचों के पीछे भेजना है ।"
" वाह ! आज तो मेरी बेटी का  रूप ही बदला हुआ है ।"
" इतना ही नहीं माँ , सर ने सरकार की तरफ से हमें उपहार स्वरूप यह सौ रूपये भी दिलवाये  । यह रूपये मैं कभी खर्च नहीं करूंगी । हमेशा संभालकर रखूंगी । यह मुझे हमेशा याद दिलवाते रहेंगें कि हमेशा सफाई का ध्यान रखना है और शरीर से ही नहीं दिमाग से भी  मजबूत बनना  है ।"
“  ठीक   है मेरी शेर  बच्ची अब साबुन की टिकिया तो ले आ । “
“ अभी लाई माँ ।” 
-0-

-
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन  साहिबाबाद  - 201005 ( ऊ । प्र । ) 
मोबाईल : 9911127277