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मंगलवार, 29 जनवरी 2019

'कलम की कसौटी' लघुकथा प्रतियोगिता

यश पब्लिकेशन्स की फेसबुक वॉल से...
हमें यकीन है कि आप पिछली सूचना के बाद से ही 'कलम की कसौटी' प्रतियोगिता के विस्तृत विवरण की प्रतीक्षा कर रहे होंगे. लीजिये पूरा विवरण हाजिर है. खुद जानिये और अपने लिखने पढ़ने के शौक़ीन दोस्तों तक भी पहुंचाइये.

प्रतियोगिता का नियम/विवरण
1- दिए गए विषय व विधा पर आधारित अपनी रचना निम्न प्रारूप के अनुसार यश पब्लिकेशन को मेंशन करते हुए अपनी वाल पर पोस्ट करें तथा हमारे पेज के इनबॉक्स में भी भेज दें.

प्रारूप उदाहरण 
यश पब्लिकेशन 'कलम की कसौटी' प्रतियोगिता-1
विषय - प्रेम
विधा - लघुकथा
आपकी रचना......

2 - चूंकि, इसबार की विधा लघुकथा है, इसलिए शब्द-सीमा पांच सौ निर्धारित की गयी है. इससे अधिक शब्दों की रचनाओं को प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाएगा.
3 - एक व्यक्ति एक ही रचना भेज सकता है.
4- तीन विजेता चुने जाएंगे. प्रथम विजेता को इस वर्ष यश पब्लिकेशन्स की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक 'लाल अंधेरा' पुरस्कारस्वरूप दी जाएगी. जीत का डिजिटल प्रशस्ति-पत्र सभी विजेताओं को प्रदान किया जाएगा. पेज पर उनका प्रचार भी होगा.
5- प्रतिभागिता करने वाले नए लेखकों को एक अप्रत्यक्ष लाभ यह भी होगा कि जिनकी रचना में दम होगा, वे हमारी नजर में रहेंगे. किताब आदि को लेकर भी उनके लिए संभावनाएं पैदा होंगी.
6- हमारा निर्णायक मंडल आपके सामने है (चित्र में), जिनका निर्णय अंतिम होगा.
7- परिस्थिति अनुसार नियमों में परिवर्तन के लिए यश पब्लिकेशन्स स्वतंत्र होगा, जिसकी सूचना आपको दी जाएगी.
8- फरवरी प्रेम का महीना है, इसलिए हमने प्रतियोगिता का विषय प्रेम रखा है. तो जमाइए कीबोर्ड और प्रेम के सागर को लघुकथा के गागर में भर दीजिये.
एक अंतिम बात और कि हमारी योजना इस प्रतियोगिता को प्रत्येक महीने करने की है, लेकिन ये आपके द्वारा मिले प्रतिसाद पर ही निर्भर करता है. अब आपकी यह प्रतियोगिता आपके हाथ समर्पित. आप जितना उत्साह दिखाएंगे, हम उससे दुगुने उत्साह से इसे आगे बढ़ाएंगे. धन्यवाद.

Source:

सोमवार, 28 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार: 25वीं अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019 (जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित)


जैमिनी अकादमी
द्वारा आयोजित
25 वीं
अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019


प्रथम पुरस्कार : 1100/- रु नगद
द्वितीय पुरस्कार : 551/- रु नगद
तृतीय पुरस्कार : 251 /- रु नगद
तीन सांत्वना पुरस्कार : प्रत्येक को 51/- रु नगद

नियम :-

1.       प्रत्येक लघुकथाकार को अपनी मौलिक कम से कम दो लघुकथा भेजना आवश्यक है ।
2.       प्रतियोगिता में प्रवेश नि:शुल्क है ।
3.       लघुकथा के साथ एक जवाबी लिफाफा डांक टिकट सहित भेजना आवश्यक है ।
4.       अपना पासपोर्ट साईज का फोटों भी भेजें ।
5.       जैमिनी अकादमी का निर्णय अन्तिम व सर्वमान्य होगा ।
6.       उपरोक्त साम्रग्री रजिस्टर डांक या कोरियर से ही भेजें अथवा प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जाऐगा।
7.       अन्तिम तिथि : 31 मार्च 2019

रजिस्टर्ड  डाक / कोरियर भेजने का पता

प्रतियोगिता सम्पादक
अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता - 2019
हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6
हाऊसिंग बोर्ड कालोनी
पानीपत - 132103
हरियाणा

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

लहराता खिलौना - लघुकथा


देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए कहा,
"हमें पब्लिक के पास बार-बार जाना चाहिये, यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे..."

"ओके डैडी और उसमें झंडे का क्या काम होता है?" बेटे ने बन्दूक तानी हुई ही थी।

नेता ने उत्तर दिया, "जैसे आपने यह गन उठा रखी है, वैसे ही हमें झंडा उठाना पड़ता है।"

"डैडी, मुझे भी झंडा खरीद कर दो... नहीं तो मैं आपको गोली से मार दूंगा" बेटे का स्वर पहले की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण था।

नेता चौंका और बेटे को डाँटते हुए कहा, "ये कौन सिखाता है आपको? बन्दूक अच्छी नहीं लगती मेरे बेटे के हाथ में।"
और उसने वहीँ खड़े ड्राईवर को कुछ लाने का इशारा कर अपने बेटे के हाथ से बन्दूक छीनते हुए आगे कहा,
“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”

कहते हुए नेता बिना पीछे देखे सधे हुए क़दमों से अंदर चला गया।


-  डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी 

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो : डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"


मित्रों, लघुकथा वीडियो में आज देखिये-सुनिए वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा रंग।
आम व्यक्ति को लगता है ख़ास बन जाऊं लेकिन ख़ास बनकर कहीं न कहीं फिर से सामान्य व्यक्ति बनने इच्छा रहती ही है। यह छोटी सी रचना कितने ही लोगों के जीवन से जुडी हुई है।
देखिये किस तरह होली पर किसी ने रंग ना लगाया तो, ख़ास होने के अहंकार से भरपूर एक व्यक्ति अपने पर गर्वित होते समय, अचानक स्वयं को आम दुनिया से अलग-थलग पाता है और फिर......



डॉ. अशोक जी भाटिया की लघुकथा "रंग"
courtesy: YouTube

बुधवार, 23 जनवरी 2019

लघुकथा वीडियो : सआदत हसन 'मंटो' कृत लघुकथा "करामात"

प्रसिद्द साहित्यकार राजेंद्र यादव  जी ने एक बार कहा था कि  "चेखव के बाद मंटो ही थे, जिन्होंने अपनी कहानियों या साहित्य के बल पर अपनी जगह बना ली।"
आइये आज सुनते हैं मंटो की मशहूर लघुकथा "करामात"




courtesy : youtube 


शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

लघुकथा समाचार



सआदत हसन मंटो की पुण्‍यतिथि आज
January 18, 2019 | LegendNews

11 मई 1912 को जन्‍मे उर्दू के लेखक सआदत हसन मंटो का इंतकाल 18 जनवरी 1955 को हुआ था. सआदत हसन मंटो अपनी लघुकथाओं - बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए.
Image result for मंटोअपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए.

कहानियों में अश्लीलता के आरोप की वजह से मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्‍तान बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया। इनके कुछ कार्यों का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है.

दक्षिण एशिया में सआदत हसन मंटो और फैज़ अहमद फैज़ सब से ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखक थे.
पिछले सत्तर साल में मंटो की किताबों की मांग लगातार रही है. एक तरह से वह घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया है.

उनके सम्पूर्ण लेखन की किताबों की जिल्दें लगातार छपती रहती हैं, बार-बार छपती हैं और बिक जाती हैं.
यह भी सचाई है कि मंटो और पाबंदियों का चोली-दमन का साथ रहा है. हर बार उन पर अश्लील होने का इल्ज़ाम लगता रहा है और पाबंदियां लगाई जाती हैं.

‘ठंडा ग़ोश्त’, ‘काली सलवार’ और ‘बू’ नाम की कहानियों पर पाबंदिया लगाई गई. उनकी कहानियों को पाबंदियों ने और भी मक़बूल किया. मंटो को बतौर कहानीकार पाबंदियों का फ़ायदा हुआ. मंटो की कहानियों पर पांच बार पाबंदी लगी पर उन्हें कभी दोषी क़रार नहीं दिया गया.

अब एक तरफ नंदिता दास की नई फिल्म ‘मंटो पर पाकिस्तान में पाबंदी लगाई गई है और दूसरी तरफ लाहौर के सांस्कृतिक केंद्र अलहमरा ने ‘मंटो मेला’ पर पाबंदी लगा दी है.

13 जनवरी को लाहौर आर्ट्स कॉउन्सिल-अलहमरा ने अपने फेसबुक पन्ने पर नेशन अख़बार की ख़बर साझा की है जिसके मुताबिक ‘मंटो मेला’ फरवरी के बीच वाले हफ्ते में होने वाला था.

इस पाबंदी का कारण मंटो की कहानियों का ‘बोल्ड नेचर’ सुनने में आया है.

यह भी चर्चा है कि इस पाबंदी का कारण मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर में मजहबी इंतहापसंदों का प्रभाव है. उनका मानना है कि लेखक की कृतियां लचरता फ़ैलाने का कारण है.

लोगों के दवाब के कारण अलहमरा ने इस मेले को पाबन्दी लगाने की बजाए सिर्फ़ आगे बढ़ाने की दलील दी है लेकिन अभी तक किसी तारीख का ऐलान नहीं हुआ.

इस मंटो मेले पर चार नाटक मंडलियों द्वारा नाटक किए जाने थे जिनमें पाकिस्तान का विश्व ख्याति प्राप्त ‘अजोका थिएटर’ है. यह सारी नाटक मंडलियां कई दिनों से मंच अभ्यास कर रही थीं.

नंदिता दास की फ़िल्म पर पाबंदी लगाने के बारे में यही दलील सामने आई है कि बोर्ड को कोई एतराज़ नहीं था पर फ़िल्म में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे का ‘सही चित्रण’ नहीं है. अब फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर मौजूद है और इसे कोई भी देख सकता है.

पाबंदी का विरोध

इस फ़िल्म पर पाबंदी के ख़िलाफ़ लाहौर, पेशावर और मुलतान में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

लाहौर में विरोध प्रदर्शन मंटो मेमोरियल सोसाइटी के प्रधान सईद अहमद और दूसरे बुद्धिजीवियों ने साथ मिलकर किया. उन्होंने बीते सप्ताह में एकअदबी समागम मंटो फ़िल्म के लिए ही किया था.

इस समागम में शिरकत करते हुए इतिहासकार आयशा जलाल ने अहम मुद्दे रखे. आयशा जलाल मशहूर इतिहासकार हैं और उनकी कई किताबें बहुत अहम मानी जाती हैं.

आयशा मंटो की रिश्तेदार भी हैं और उन्होंने मंटो और भारत -पाक बंटवारे के बारे में किताब भी लिखी है. उनसे पूछा गया कि सत्तर साल में क्या बदला है क्योंकि तब भी मंटो पर विवाद था और अब भी है.

फ़िल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने पाकिस्तान में बनाई गई सरमद खूसट की फ़िल्म की भी बात की और कहा कि नंदिता दास की फ़िल्म इतिहास के हिसाब से बेहतर है. उन्होंने कहा कि बेशक फ़िल्म पर पाबंदी लगाई गई है पर यह नेट पर उपलब्ध है तो पाबंदी की कोई तुक नहीं बनती.

आयशा जलाल ने कहा कि बंटवारे की सामाजिक आलोचना इससे अलग मामला है. अगर किसी को आलोचना बर्दाश्त नहीं है तो इसमें मंटो का कोई कसूर नहीं है.

बल्कि यह उनका मामला है या उनकी साहित्य के बारे में समझ का मामला है.

आयशा का कहना है कि अभी का प्रसंग बिलकुल अलग है पर मंटो पर कई बार इल्ज़ाम लगे हैं पर उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा कुछ जुर्माना ही हुआ है.

उस समागम में यह भी बात हुई कि मंटो को नाखुश दिखाया गया है और उसका पाकिस्तान में आने का अनुभव भी अच्छा नहीं था.

आयशा ने कहा कि जो भी हो पर यहां आ जाने के लिए सहमत हो जाने के बावजूद उनको शिकायत थी और उनके वजूद को कभी साफ़ तौर पर माना नहीं गया. एक दिन उनको सब से बढ़िया कहानीकार मान लिया जाता है और अगले दिन उनको कहा जाता है कि फ्लैट खाली करो.

यही सब कुछ नंदिता की फ़िल्म में है पर यह फ़िल्म एक भारतीय फ़िल्मकार ने बनाई है और एतराज़ यह है कि एक भारतीय हमें कैसे बता सकता है कि जो बंदा पाकिस्तान आया वह नाखुश था.

उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया पर पाबंदी लगाने का प्रयास ही हमारी नाकामयाबी की निशानी है. हम जितने नाकामयाब हुए हैं उतने ही फिजुल कानून बनाये जा रहे हैं.

लगता तो यह है कि पिछले सत्तर साल में कुछ नहीं बदला है. अगर अन्याय करने वालों, ज़ुल्म कमाने वालों, कब्ज़े करने वालों और जबर्दस्तियाँ करने वालों, से डर लगता है तो फिर मंटो भी नहीं बदला.

मंटो वैसा ही है और ज़िंदा है. वो बहुत सारी मिट्टी के नीचे दफ़न नहीं है बल्कि हमारे साथ बैठ कर हंस रहा है कि वह बड़ा अफ़सानानिगार है या खुदा.
-एजेंसियां


courtesy:LegendNews
URL:
http://legendnews.in/todays-death-anniversary-of-controversial-urdu-writer-saadat-hasan-manto/