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शनिवार, 28 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: पापिन। लेखिका: डिम्पल गौड़ । वाचन: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी



सड़क किनारे रोज ही दिख जाती थी वह। फ़टे पुराने मैले कुचैले कपड़े। बुशर्ट और घाघरा। हाँ! बस यही तो पहनावा था उसका।
उलझे केश जिनमें बरसों से कभी कंघी न हुई।

उसके विचित्र हाव-भाव पागल घोषित करने के लिए काफी थे। कभी जोरों से हँसने लगती, कभी सिर पकड़ कर रोने लगती।
लोगों के मुँह से उसके बारे में यही सुनने को मिलता -"पगली है पगली! जाने कहाँ से आ गई यहाँ।" उसका खाने का तरीका भी होता एकदम जानवरों सरीखा!

कई बार मन में विचार आता इसे महिला सरंक्षण केंद्र पहुँचा दूँ। पति को उसके बारे में कहती। अक्सर यही जवाब मिलता "क्या यार ! एक तुम ही हो समाज सेविका यहाँ ! पुलिस वाले, समाज- सेवक सब उसे देख किस तरह इग्नोर करते हैं ! दुनिया में ऐसे हज़ारों मिल जाएँगे। आख़िर किसे-किसे सही जगह पहुँचाओगी तुम! " ये सब सुनकर बस चुप सी लगा जाती।

कई दिन बीत गए थे। अब पगली नज़र न आती। मन ही मन सोचती-चलो किसी भले मानस उसे महिला सरंक्षण केंद्र पहुँचा दिया होगा।

आज शाम चौराहे पर कुछ लोग इकठ्ठा थे। मुझे भी उत्सुकता हुई ! क्योंकि मैं भी ठहरी भीड़ का हिस्सा!

अचानक सामने कूड़े के ढेर के समीप ही वह पगली नज़र आई ! उसे देख हतप्रभ थी ! दिमाग सुन्न हो गया था।

संज्ञा शून्य खड़ी थी कि मेरे करीब खड़े महाशय की आवाज़ कानों से टकराई- "जाने किसका पाप लिए घूम रही है पापिन ! "

- डिम्पल गौड़, अहमदाबाद

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020

अंतरराष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता अपडेट





✍️शब्दों की कोई सीमा नहीं है।
👌एक लघुकथाकार कितनी भी रचनाएं प्रेषित कर सकता है
🤗२४ फरवरी से ४ मार्च तक लगातार भाग लेने वाले प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार।
🙌सभी प्रतिभागियों को रचना प्रेषित करने पर पार्टीसिपेट करने का सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
👍रचनाओं को लिंक पर जाकर ही प्रेषित करना है ताकि रचना प्रतियोगिता में शामिल हो सके।
🤝विषय: सामाजिक, सांसारिक, पर्यावरण, देशभक्ति, प्रेरणादायक, शिक्षाप्रद आदि विषयों पर लिख सकते हैं।
✍️भाग लेने के लिए लिंक पर आपका स्वागत है
http://sm-s.in/v8TidJc