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शनिवार, 27 नवंबर 2021

लघुकथा समाचार | साहित्यकारों ने शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में लघुकथा की अनदेखी करने को लेकर उठाए सवाल | magbook.in

पटना में कुछ साहित्यकारों ने लघुकथा की उपेक्षा को लेकर एक अहम सवाला उठाया है. उनका कहना है कि " समकालीन साहित्य की सर्वाधिक पठनीय और संप्रेषणीय विधा  लघुकथा है, तो फिर वह आज बच्चों और युवाओं के लिए  शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से अपेक्षित संख्या में उनके पाठ्यक्रमों में क्यों नहीं शामिल की जा रही है ? इसी के साथ यह सवाल भी प्रासंगिक है कि" शिक्षक संस्थानों से लघुकथा बेदखल क्यों?"

 भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में  फेसबुक के  "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका "  पेज पर ऑनलाइन आयोजित " हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन " का विषय प्रवर्तन करते हुए सम्मेलन के संयोजक  एवं संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !

 लघुकथा की शैक्षणिक प्रासंगिकता" विषय पर  विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि -" हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य है कि किसी भी विधा की किसी भी रचना के चयन में हमेशा साहित्य की राजनीति चलती रही है। ऐसी स्थिति में  निष्पक्षता पूर्वक हमें निर्णय लेना  होगा और लघुकथा की  शैक्षणिक पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी l हां, इतना जरूर है कि पाठ्यक्रमों में लघुकथाओं का हस्तक्षेप हो गया है l यह बात  संतोषजनक और सुखद तो है ही l  अब  जरूरत   है कि  व्यापक स्तर पर देश-विदेश के लघुकथाकारों द्वारा लिखी गई या लिखी  जा रही श्रेष्ठ, सामाजिक, उद्देश्यपूर्ण,  नैतिकपूर्ण और बच्चों तथा युवाओं के सर्वांगीण विकास वाली  लघुकथाओं को  अधिक से अधिक उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए और  ऐसी लघुकथाएं और लघुकथाकार ही  शोध का विषय बनें ! "

लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध लेखिका पूनम कतरियार  ने कहा कि  सबसे अच्छी बात यह है कि  संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर जी जिस मुद्दे को लेकर गोष्ठी आयोजित करते रहे हैं,  वह साहित्यिक विधाओं को व्यापक स्वरूप देने में पूर्ण सक्षम  साबित होती रही है l लघुकथा प्रेमियों के मन में बहुधा यह बात घुमड़ती रही है कि "लघुकथा की क्या है शैक्षणिक प्रासंगिकता ? " लघुकथा अपने दम पर अपना एक मुकाम बना चुकी है। लघुकथा के समीक्षक एवं पुरोधा इसके मापदंड निर्धारित  कर इसे इसके अनुरूप कलेवर दे रहे हैं l  लघुकथा का उच्च स्तर के पाठ्यक्रमों में नहीं होना निराश जरूर  करता है।जब उपन्यास, कहानी, संस्मरण, नाटक,यात्रा-वृतान्त, और रिपोर्ताज़  स्कूल और कॉलेजों में पढ़ाए जाते हैं,  तब फिर  सर्वाधिक चर्चित विधा लघुकथा क्यों नहीं ? मेरे विचार से लघुकथा को भी एक स्वतंत्र विधा के रूप में पाठ्यपुस्तकों में शामिल करना उचित होगा। यह समय की माँग और साहित्य के प्रति हमारी जवाबदेही है कि हम लघुकथा का  संवर्द्धन,संरक्षण  एवं संचयन कर इसे पाठ्यपुस्तकों से लेकर आम-पाठक तक वह गौरवपूर्ण जगह दिलायें जिसकी यह हकदार है।"

लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि विजयानंद  विजय ने कहा कि - " इंटरनेट, सोशल मीडिया समूहों और नयी तकनीकी सुविधाओं ने उस विरासत को खंगालना और उनमें से अनमोल मोतियों को तलाशना हमारे लिए और सुगम कर दिया है।जरूरी है कि इस खजाने से बेहतरीन से बेहतरीन लघुकथाएँ चुनकर पाठ्यक्रमों में शामिल की जाएँ, ताकि नयी पीढ़ी भी इनसे वाकिफ हो सके और इन लघुकथाओं में निहित संदेशों और संकेतों को समझ सके और एक सुदृढ़ समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके।"

विशिष्ट अतिथि डॉ शरद  नारायण खरे ( म.पप्र. ) ने कहा कि-" लघुकथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना इसलिए उचित होगा,क्योंकि लघुकथाएँ जीवन के आसपास होने के कारण हमें जीने की कला सिखाती हैं,तथा हमारे व्यक्तितत्व का विकास करती हैं।लघुकथाओं की विषयवस्तु चूंकि हमारे ही आसपास से ली गई होती है,इसलिए लघुकथाएँ हमारे चिंतन को सकारात्मक दिशा देती हैं।वास्तव में,लघुकथाओं को पाठ्यक्रमों में शामिल करके उनका नैतिक शिक्षा के रूप में प्रयोग किया जाना पूर्णत: विवेकपूर्ण होगा।लघुकथाएँ लघु होते हुए भी बहुत कुछ कह जाती हैं,इसलिए उनको विद्यार्थियों के शिक्षण से जोड़ना पूर्णत: समीचीन होगा।

विषय से संदर्भित चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपूर्व  कुमार (वैशाली ) ने कहा कि-लघुकथा साहित्य की वह विधा है, जो जिस सुगमता से विद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान पा लेने की क्षमता रखती है, उसी सुगमता से विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी। लघुकथा साहित्य की बगिया का गुलाब है। सीबीएसई के कक्षा नवम्  के हिंदी भाषा के  नवीनतम पाठ्यक्रम में लघुकथा लेखन को भी सम्मिलित कर लिया गया है। हिंदी अकादमी, दिल्ली एवं साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा लघुकथा को एक साहित्यिक विधा के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद मैंगलोर विश्वविद्यालय ने लघुकथा की एक पुस्तक ही पाठ्यक्रम में लगा दी है। ऐसा पहली बार हुआ है।कुछ विश्वविद्यालयों में लघुकथा संकलन भी पढ़ाये जा रहे हैं। निकट भविष्य में अन्य विश्वविद्यालय भी इसका अनुसरण करेंगे ही। जरूरत है निष्पक्षतापूर्वक अधिक से अधिक  श्रेष्ठ लघुकथाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की l "

नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा "बदलते समय के दौर को देखते हुए लघु कथाओं को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। इससे बच्चों में लघु कथा के प्रति रुचि जागेगी तथा एक महत्वपूर्ण बात को किस तरह कम शब्दों में कहा जा सकता है यह तरीका भी बच्चे सीखेंगे।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए राज प्रिया रानी ने कहा कि -" पाठ्यक्रम में लघुकथा कि प्रासंगिकता आज एक ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है । पाठ्यक्रमों में लघुकथाओं को शामिल किया जाना चुनौतीपूर्ण एवं एक महत्वपूर्ण कदम है जो निरंतर छात्रों के साथ साथ सर्व शैक्षणिक विकास के लिए एक  सार्थक और सकारात्मक प्रयास होगा  !"

इंदौर के डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल ने अपनी एक लघुकथा का हवाला देते हुए कहा कि सिद्धेश्वर जी, मैं आपकी पीड़ा समझता हूं। आजकल  पाठ्यक्रमों में रचनाओं का चयन करने के लिए भी जोड़-तोड़ चल रही है l पाठ्यक्रम की इस नयी किताब में तुलसी ,सूर, मीरा ,माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान साहित्यकार अपने साथ जोड़ तोड़ से हो रहे हैन। अंशु कुमार, मोनिका सिंह, लवलीन आदि जैसे रचनाकारों की रचनाओं को देखकर, पाठक  और छात्रवृंद आंसू ही तो बहाएँगे ?"

डॉ. पुष्पा जमुआर ने कहा कि - " वस्तुतः लघुकथा फिर से पाठ्यक्रम में शामिल होने हेतु संघर्षरत होने लगी है।आप लोगों का यह सार्थक प्रयास है और इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है  कि वर्तमान शैक्षणिक संस्थान में पाठ्यपुस्तक में शामिल हो ।"  इसके अतिरिक्त  दुर्गेश मोहन,  संतोष मालवीय, निवेदिता, सरकार, सुनील कुमार उपाध्याय, रज्जू सिन्हा, कनक, बिहारी,  राम नारायण यादव आर्य ने भी अपने संक्षिप्त विचार व्यक्त किए l

चर्चा परिचर्चा के बीच एक  दर्जन से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी ताजातरीन लघुकथाओं का पाठ किया l डॉ. शरद नारायण खरे (म.प्र. ) ने " सरहद पर उजाला "/ डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) ने  " रोती हुई किताब "/जवाहरलाल सिंह  (जमशेदपुर) ने  "श्राद्ध कर्म "/डॉ. पुष्पा जमुआर ने " आत्महत्या" / ऋचा वर्मा ने "हिसाब "/मीना कुमारी परिहार ने   /पूनम कतरियार ने (इलाज )/ मधुरेश नारायण ने "काम और आराम "/ राजा रानी ने " गुनाह "/पुष्प रंजन ने -" पापी "/संतोष सुपेकर(उज्जैन ) ने "कैसे कहूं ?"/  शराफत अली खान( बरेली ) ने-" विद्रोह "/ रशीद गौरी (राज ) ने-" समय "/ गजानन पांडे(हैदराबाद) ने "विधि का विधान"/ विजयानन्द विजय ने " ग़ली ", सिद्धेश्वर ने "मान सम्मान"  के अतिरिक्त नरेंद्र कौर छाबड़ा ( महाराष्ट्र) / डॉ. मीना कुमारी परिहार आदि ने भी लघुकथाओं का पाठ किया,  जिसे देश भर के 300 से अधिक लोगों ने स्वागत किया l  लघुकथा के विकास की दिशा में यह एक अभिनव और  ऐतिहासिक प्रयास रहा,  जो लघुकथा को शिक्षण संस्थान  से जोड़ने में  सकारात्मक भूमिका का निर्वाह कर सकेगा !

 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा  और सिद्धेश्वर

Source:

साहित्यकारों ने शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में लघुकथा की अनदेखी करने को लेकर उठाए सवाल

URL:

https://www.magbook.in/ArticleView.aspx?ArtID=191514&ART_TITLE=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%8F-%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2

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