सम्माननीय प्रबुद्धजन,
जल से सम्बन्धित मुख्य वैश्विक मुद्दे
जल प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह और अनुपचारित सीवेज जल प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता हैं, जो जल निकायों को विषाक्त और उपभोग या कृषि के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं।
जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव, बढ़ते तापमान और पिघलते ग्लेशियरों ने जल चक्रों को बाधित किया है, जिससे सूखा और बाढ़ आ रही है।
जल की स्वच्छता और गुणवत्ता : हर 10 में से 1 इंसान साफ पानी से दूर है। मतलब, करोड़ों लोग रोज़ पानी के लिए लाइन लगाते हैं, जैसे टिकट के लिए लगाते थे। वैश्विक प्रयासों के बावजूद, लगभग 771 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है। यह मुद्दा हाशिए पर पड़े और कम आय वाले समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करता है। पानी में कई तरह की गंध और स्वाद पानी की गुणवत्ता को बताते हैं। जैसे कि, सड़े हुए अंडे या सल्फ़र की गंध या स्वाद हाइड्रोजन सल्फ़ाइड की मौजूदगी का संकेत देता है।
कई विद्वान, शोधकर्ता और वैज्ञानिक यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं कि भारत के जल संसाधनों का प्रबंधन आने वाली पीढ़ियों के लिए कुशलतापूर्वक और स्थायी रूप से किया जाए। इनमें से कुछ पर बात करते हैं,
भारत के जलपुरुष - डॉ. राजेंद्र सिंह:
भारत के जलपुरुष के रूप में जाने जाने वाले मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. राजेंद्र सिंह ने पारंपरिक वर्षा जल संचयन तकनीकों का उपयोग करके राजस्थान में कई नदियों को पुनर्जीवित किया है। उनके जमीनी प्रयासों ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल सुरक्षा बहाल की है और वैश्विक स्तर पर इसी तरह की पहल को प्रेरित किया है।
ग्रेटा थनबर्ग:
ग्रेटा थनबर्ग जैसे समर्पित कार्यकर्ता जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के महत्व पर जोर देते हैं। उनके प्रयासों ने स्थायी जल नीतियों की आवश्यकता को बढ़ाया है।
स्थानीय समुदाय और गैर सरकारी संगठन:
मैट डेमन द्वारा सह-स्थापित water.org जैसे संगठन जल और स्वच्छता परियोजनाओं के लिए माइक्रोफाइनेंसिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे सभी को सुरक्षित जल तक पहुँच पाए।
वैज्ञानिक और नवप्रवर्तक:
जल शोधन तकनीकों में प्रगति, जैसे कि विलवणीकरण और सौर ऊर्जा से चलने वाले filtration, शुष्क क्षेत्रों में जल की कमी को दूर करने में गेम-चेंजर हैं। कई वैज्ञानिक और नवप्रवर्तक इस कार्य में रत हैं।
जल मुद्दों के समाधान
1. सरकारों को सख्ती से जल नीतियों को लागू करना चाहिए जो संरक्षण, समान वितरण और प्रदूषण नियंत्रण को प्राथमिकता दें।
2. वर्षा जल संचयन जैसी स्वदेशी जल प्रबंधन प्रथाओं को कृत्रिम recharge जैसी आधुनिक तकनीकों के साथ मिलाने से भूजल स्तर में वृद्धि हो सकती है।
3. बड़े स्तर पर लोगों को जल संरक्षण, कुशल उपयोग और प्रदूषण की रोकथाम के बारे में शिक्षित करना दीर्घकालिक परिवर्तन का आधार बन सकता है।
4. अंतर्देशीय और अंतराज्यीय जल समझौतों को सशक्त करना और जल निकायों में shared governance को बढ़ावा देना झगड़ों को कम कर सकता है।
5. बांध, नहरें और treatment plants जैसे जल infrastructure का विकास, उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
एक अन्य वास्तविक उदाहरण:
छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में स्थित हरदा गांव में पीने के पानी की समस्या को जल जीवन मिशन के तहत किए गए सफल प्रयासों से उस गांव को “हर घर जल“ गांव के रूप में घोषित कर दिया गया है।
हम क्या करें?
- ज़रूरत के मुताबिक ही पानी का इस्तेमाल करें।
- पानी का रिसाव होने पर उसकी जांच करें और उसे ठीक करें।
- नहाने का वक्त थोड़ा कम करें। दाढ़ी बनाते समय या वॉशबेसिन का प्रयोग करते समय, नल पर भी दिमाग लगाएं।
- कम पानी गरम होने वाले धीमे शॉवर हेड का इस्तेमाल करें।
- हर बार टॉयलेट फ्लश करने में 6 लीटर पानी जाता है। इसका समझदारी से प्रयोग करें। कम फ़्लश या दोहरे फ़्लश वाले शौचालय का इस्तेमाल करें।
- शौचालय में पानी देने के लिए खारे पानी या बरसाती पानी का इस्तेमाल करें।
- पानी की बोतल में बचा पानी फेंकने की बजाय पौधों को सींचने में इस्तेमाल करें।
- सब्ज़ियां और फल धोने के पानी से फूलों और सजावटी पौधों को सींचें।
- पानी के हौज़ को खुला न छोड़ें।
- तालाबों, नदियों, या समुद्र में कूड़ा न फेंकें।
- पुरानी तरकीबें अपनाएं, जैसे राजस्थान के जोहड़ और कुवों की परंपरा।
.... आदि-आदि
मित्रों, पानी की एक-एक बूंद को संजोना सीखें। कुल मिलाकर पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करें।
जल मुद्दों पर साहित्य सृजन
अनेक पुस्तकें और अध्ययन जल संकट की जटिलताओं पर प्रकाश डालते हैं और समाधान प्रस्तुत करते हैं।
चार्ल्स फिशमैन द्वारा सृजित "The Big Thirst" पुस्तक जल की प्रचुरता और कमी के मध्य विरोधाभास की पड़ताल करती है और इस बात पर प्रकाश डालती है कि हम सभी जल के साथ अपने संबंधों पर कैसे पुनर्विचार कर सकता हैं?
"When the Rivers Run Dry" फ्रेड पीयर्स द्वारा लिखी गई है जो, वैश्विक जल संकट पर एक सम्मोहक कथा, नदियों और जल प्रणालियों पर मानवीय क्रियाओं के प्रभाव को प्रदर्शित करती है।
मौड बार्लो ने "Blue Covenant" शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है, जो जल की राजनीति पर एक आवश्यक पुस्तक है। इसमें जल को एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने की वकालत की गई है।
वंदना शिवा द्वारा लिखी गई "Water Wars" पुस्तक जल संसाधनों पर संघर्षों की जांच करती है और टिकाऊ और लोकतांत्रिक प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर देती है।
भारत के जलपुरुष जल पर आधारित कई पुस्तकों के रचियता हैं। इनमें विरासत स्वराज यात्रा, बाढ़ व सुखाड़ जैसी पुस्तकें बहुत कुछ स्पष्ट करती हैं।
जल सम्बंधित लघुकथाएं:
खारा पानी / सुकेश साहनी
दाहिने हाथ में शकुनक-दंड [डिवाइनिंग-राड] थामे, धीरे-धीरे कदम बढ़ाते बूढ़े सगुनिया का मन काम में नहीं लग रहा था।इस जमीन पर कदम रखते ही उसकी अनुभवी आँखों ने उन पौधों को खोज लिया था, जो ज़मीन के नीचे मीठे पानी के स्रोत के संकेतक माने जाते हैं। अब बाकी का काम उसे दिखावे के लिए ही करना था। उसकी नज़र लकड़ी के सिरे पर लटकते धागे के गोले से अधिक वहाँ खड़े उन बच्चों की ओर चली जाती थी, जिनके अस्थिपंजर-से शरीरों पर मोटी-मोटी गतिशील आँखें ही उनके जीवित होने का प्रमाण थीं। कोई बड़ा-बूढ़ा ग्रामवासी वहां दिखाई नहीं दे रहा था। जहाँ तक नज़र जाती थी,मुख्यमंत्री के ब्लैक कमांडो फैले हुए थे। प्रशासन ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए वहां के वृक्षों को कटवा दिया था।
बड़ी-सी छतरी के नीचे बैठे मुख्यमंत्री उत्सुकता से सगुनिया की कार्यवाही को देख रहे थे। गृह सचिव के अलावा अन्य छोटे-बड़े अफसरों की भीड़ वहाँ मौजूद थी।
काम पूरा होते ही सगुनिया मुख्यमंत्री के नज़दीक आकर खड़ा हो गया।
“तुम्हारी जादुई लकड़ी क्या कहती है।” बूढ़े ने बताया।
सचिव ने खुश होकर मुख्यमंत्री को बधाई दी। मुख्यमंत्री अभी भी संतुष्ट नज़र नहीं आ रहे थे। पिछली दफा फार्म हाउस के लिए ज़मीन का चुनाव करते हुए उन्होंने पूरी सावधानी बरती थी, पानी का रासायनिक विश्लेषण भी कराया था। परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार पानी बहुत बढ़िया था, पर फार्म हाउस के बनते-बनते ज़मीन के नीचे का पानी खारा हो गया था। हारकर उनको न्ए सिरे से फार्म हाउस के लिए मीठे पानी वाली ज़मीन की खोज करवानी पड़ रही थी।
“आगे चलकर पानी खारा तो नहीं हो जाएगा?” इस बार मुख्यमंत्री ने बूढ़े से पूछा।
“इसके लिए ज़रूरी है कि आँसुओं की बरसात को रोका जाए।” बूढ़े ने क्षितिज की ओर ताकते हुए धीरे से कहा।
“आँसुओं की बरसात?” सचिव चौंके।
“ऐसा तो कभी नहीं सुना।” मुख्यमंत्री के मुँह से निकला।
“इस बरसात के बारे में जानने के लिए ज़रुरी है कि मुख्यमंत्री जी भी उसी कुँए से पानी पिएँ जिससे कि प्रदेश की जनता पीती है।” कहकर बूढ़े ने शकुनक-दंड अपने कंधे पर रखा और समीपस्थ गाँव की ओर चल दिया।
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- सुकेश साहनी
दशरथ जल / अनिल मकारिया
पीने लायक पानी के स्त्रोत जब गिने-चुने ही बचे तब उन पर वर्चस्व हेतु दुनिया के कई देश व संगठन एक-दूसरे पर हमला करने लगे। इन हमलों की एक बड़ी वजह यह भी थी कि ऐसे युद्धों से प्रायः पानी वाले प्रदेशों में स्थित एक बड़ी आबादी का सफाया हो जाता जिससे सत्ताधीशों द्वारा पानी का विभाजन बची हुई आबादी के बीच करना आसान होता। जिस गाँव के अधिकतर युवा इस तरह के युद्धों में खेत रहे थे, उसी गाँव के जलाशय से पहरा उठवाकर सत्ताधीशों ने पीने का पानी गाँव वालों में बाँटने का आदेश दे दिया ।
लेकिन जब कोई भी अपने हिस्से का पानी लेने नहीं पहुँचा तब एक पत्रकार ने गाँव की विधवा महिला से इस बाबत पूछताछ की,
" गाँववालों के लिए जलाशय के पानी को बाँटने का आदेश आया है ! क्या आपको पीने का 'मीठा' पानी मिला ?" पत्रकार का जोर 'मीठा' शब्द पर अधिक था।
"नहीं !... हमें अब अनायास ही आँखों से मुँह तक पहुँचते खारे पानी को पीने की आदत पड़ चुकी है।" नमकीन पानी का ज्वार-भाटा अब उस महिला के स्वर में साफ दिख रहा था।
"नदी, तालाब के पानी का स्वाद, खारे पानी से तो बेहतर ही होता है। " पत्रकार कुरेदकर खुशी निकालना चाहती थी ।
"मीठे पानी का स्वाद अब अपनों के खून-सा लगने लगा है।" और महिला का गम था कि कम होने का नाम नहीं ले रहा था ।
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- अनिल मकारिया
दो बूँदें जल की / अंशु श्री सक्सेना
आज मानसून ने पहली दस्तक दी है । रमा सूखे कपड़े लेकर कमरे में आयी तो देखा उसकी सात वर्षीया पोती इशी, खिड़की से अपने दोनों हाथ बाहर निकाल कर अपनी नन्ही नन्ही हथेलियों के बीच बारिश की बूँदे सहेजने का प्रयास कर रही है । मैं उसे देख कर हँस पड़ी और बोली “ ये क्या कर रही है लाडो ?”
“ पानी की बूँदे सहेज रही हूँ दादी....मेरी टीचर जी ने बताया है कि हमारी धरती से पीने वाला पानी बहुत तेज़ी से ख़त्म हो रहा है....हमारी नदियाँ, तालाब, कुएँ, सब सूख रहे हैं....तो जब हमें भगवान जी पानी देते हैं तो उसको हमें सहेज कर रख लेना चाहिये....हमारी टीचर जी कहती हैं कि जल की दो बूँदे आपके सोने के झुमके से भी ज़्यादा क़ीमती हैं...सच में दादी ?” इशी ने अपनी बालसुलभ चंचलता में मेरे झुमके हिलाते हुए पूछा।
“ हाँ लाडो “ मैंने हँस कर उत्तर दिया और अपने आँगन और बरामदे मेँ रेन वॉटर हारवेस्टिंग के लिये गड्ढे बनवाने के निर्णय ले लिया ।
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- अंशु श्री सक्सेना
पानी / नीना सिन्हा
“रधवा के माई! ओलावृष्टि और बेमौसम की बरसात से सारी फसल खराब हो गई है। क्यों न शहर चलें? दिहाड़ी मज़दूरी मिल जाएगी। साथी ने रहने की जगह खोज रखी है। बच्चों को भूखा कैसे रखें?”
“ठीके है रधवा के बापू! और कुच्छो नहीं सूझ रहा है?”
दोपहर होते-होते सीमित गृहस्थी समेटकर पास के शहर जा पहुँचे। अंधियारा कमरा एक छोटी सी बस्ती में, धूल और गंदगी से भरा हुआ; एक कोने में सामान जमाया, बेटे को कहा कि खाली डिब्बों में कुछ पानी भर लाए, ताकि कमरा धुल सके।
“माँ! इतने सारे डिब्बों में पानी मैं अकेला कैसे ला सकूँगा?”
“तू चल बेटा! तेरी बहन को पीछे से भेजती हूँ, अभी मेरी मदद कर रही है। झाड़ू लगाकर धोने से ही कमरा रात में सोने योग्य होगा।”
वह नल पर गया, सप्लाई का पानी जा चुका था। पता लगा, आधा किलोमीटर दूरी पर एक चापाकल है।
“बच्चे! अगर जरूरी हो चापाकल से ले आओ, नहीं तो शाम को पानी आता है।”किसी ने सलाह दी।
उसने वापस जाकर माँ को बताया और चल पड़ा। रास्ते में नजर एक वाटर पार्क पर पड़ी; एक फव्वारे से पानी तेजी से ऊपर जाकर वापस गिर रहा था। गिरते पानी में कुछ लोग उछल कूद मचा कर नहा रहे थे। ऐसी जगह सिर्फ टीवी पर देखी थी।
गार्ड से पूछा, “चाचा! क्या यहाँ से पानी ले सकता हूँ?”
“नहीं बच्चे! यह मनोरंजन की जगह है, पानी लेने की नहीं?”
“मुझे आधा किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा। मुझे पानी लेने दीजिए।”
“अंदर जाने की फीस ढाई सौ है, दे सकते हो? यहाँ चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, गलती होते ही मेरी नौकरी चली जाएगी।”
“जब बस्ती के नल में पानी नहीं आ रहा है, तो यहाँ इतना सारा पानी कैसे आ रहा है?”
“बच्चे! ये अमीर लोगों की जगह है? यहाँ पानी जमा करके रखा जाता है।”
“चाचा! क्या भगवान भी अमीर-गरीब का फर्क करके पानी देते हैं? हमारी बस्ती में नल सूखा है और अमीरों के नल से पानी इतनी तेजी से आ रहा है, क्यों?”
तब तक माँ-बहन पीछे से पहुँच गईं और उसे कानों से खींचकर आगे ले गईं।
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- नीना सिन्हा
निष्कर्षतः, जल वैश्विक रूप से एक साझा संसाधन है और वैश्विक जल चुनौतियों का समाधान करने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की आवश्यकता है। व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और वैश्विक संगठनों को इस महत्वपूर्ण संसाधन को स्थायी रूप से संरक्षित, प्रबंधित और साझा करने के लिए एकजुट होना चाहिए। डॉ. राजेंद्र सिंह जैसे व्यक्तियों के प्रयास हमें याद दिलाते हैं कि बदलाव जमीनी स्तर से शुरू होता है और प्रतिबद्धता व नवाचार के साथ, जल-सुरक्षित भविष्य हासिल किया जा सकता है।