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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की ' की समीक्षा कांति शुक्ला 'उर्मि ' द्वारा

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की '
लेखक - घनश्याम मैथिली 'अमृत'
मूल्य - 300 /-रुपये
पृष्ठ - 102
प्रकाशक - अपना प्रकाशन, भोपाल 462023 (मध्यप्रदेश )
समीक्षक - कांति शुक्ला 'उर्मि ' 
एम.आई.जी .35 बी -सेक्टर अयोध्या नगर भोपाल 462041 मोबाइल 99930 40726

संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश देती लघुकथाएं 

साहित्य में मानव जीवन के समस्त पहलुओं की विवृत्ति होती है और यही संबंध
सूत्र परिस्थितियों को जोड़ कर रखता है | साहित्य किसी भी विधा के रूप में हो हमारे जीवन की आलोचना करता है हमारा जीवन स्वाभाविक एवं स्वतंत्र होकर इसी के माध्यम से संस्कार ग्रहण करता हुआ अपनी मूकता को भाषा प्राप्त करता है भावनिष्ठ वस्तुनिष्ठ व्यक्तिक भावनाओं को नैतिक रूप देकर अंतर के अनुभूत सत्य को सूक्ष्म पर्यवेक्षण द्वारा प्रकट कर स्थायित्व प्रदान करता है।

साहित्य में गद्य की अन्य विधाओं यथा कहानी उपन्यास , लेख ,आदि के अतिरिक्त लघुकथा लेखन भी एक सशक्त विधा के रूप में भली-भांति स्थापित हो चुकी है और आज लघुकथाओं की लोकप्रियता शिखर पर है समय अभाव के चलते कम समय में सार्थक संदेश देती लघुकथाओं के असंख्य पाठकों की गहन रुचि के कारण लघुकथा की विधा साहित्य में आज अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज किए हैं लघुकथा से आशय मात्र इसके लघु कलेवर से नहीं वरन लघु में विराट के यथार्थ और कल्पना बोध को आत्मसात कर क्षण विशेष की सशक्त अभिव्यक्ति का प्रभावोत्पादक प्रखर प्रस्तुतीकरण है,जिसमें शिल्पगत वैविध्य है,प्रयोगधर्मी स्वरूप है, कथ्य और प्रसंगों की उत्कटता का सहज और प्रभावी संप्रेषण है विषय वस्तु का विस्तार ना करते हुए संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश व्याख्यायित करने का कठिन दायित्व है ।

आज आवश्यकता और अस्तित्व से जुड़ी इन लोकप्रिय लघुकथाओं के मनीषी कथाकार अपनी संपूर्ण प्रतिभा से आलोक विकिरण करते हुए सक्रिय हैं।

इन विद्वान लघुकथाकारों ने अमिधा की शक्ति को पहचाना है । व्यंजना और लक्षणा से नवीन आख्यान निर्मित किये हैं और लिखी जा रही लघुकथाएं जनसम्बद्धता ,प्रतिबद्धता, और पक्षधरता की कसौटी पर खरी उतर रही हैं ।अपने प्रभावी गतिशील कथ्य और सौंदर्य बोध द्वारा विशेष सराही जा रही हैं जिनके लेखकों की अपनी- अपनी शैलीगत विशेषताएं हैं इसी कड़ी में बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कवि समीक्षक, कथाकार श्री घनश्याम मैथिल 'अमृत 'का लघु कथा संग्रह'.... एक लोहार की 'का प्रकाशन हर्ष का विषय है उक्त कथा संग्रह में विविध वर्णी लघुकथाएं संग्रहीत हैं यह लघुकथाएं समाज की बिडंवनाओं का दर्पण है ।कथ्य ,भाव बोध ,विचार और दृष्टि मनुष्य और उसकी व्यवस्था की सार्वभौमिक सच्चाई को प्रकट करती उसकी हर योजना भाव संवेदना आचरण ,व्यवहार ,चरित्र भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता और सामाजिक यथार्थ की पृष्ठभूमि में मानव प्रकृति आर्थिक उपलब्धि अभाव विचलन और विस्मय के बहुमुखी यथार्थ को अनेक स्तर पर व्यक्त कर रही हैं ।इन लघुकथाओं के आइडियाज आसपास के परिवेश अनुसार लिए गए हैं जिनमें सामाजिक संवेदना चेतना और जागरूकता है लघुकथा कागजी घोड़े सरकारी विभागों की तथाकथित सच्चाई बयान करती है तो जिंदगी की शुरुआत पुलिस की हठधर्मी और संवेदनहीनता को व्यक्त करती है ।अपना और पराया दर्द में मनुष्य की कथनी और करनी का अंतर स्पष्टतया परिलक्षित होता है तो विकलांग कौन अदम्य साहस और जिजीविषा की सशक्त कथा है ।संग्रह की अधिकांश कथाएं भ्रष्टाचार स्वार्थपरता ,सामाजिक पारिवारिक विसंगतियों और विकृतियों को केंद्र में लेकर रची गई हैं ।क्योंकि कथाकार देश और समाज के प्रति प्रतिबद्ध है पक्षधर है सहज और अवसरानुकूल कथा के पात्रों द्वारा कहे संवाद शीघ्र विस्मृत नहीं होते ,अर्थपूर्ण कथाओं में अनुभव और यथार्थ की अभिव्यक्ति के विशेष क्षण पाठकों को बांधने की क्षमता रखते हैं कथाओं के निर्दोष ब्योरे सरलता और सहजता से सामने आते हैं और सोचने को बाध्य करते हैं ,यह बहुआयामी विमर्श के परिदृश्य अपने मन्तव्य को रोचक और प्रभावी ढंग से स्पष्ट कर देते हैं । सँग्रह की सभी कथाएं प्रवाहमान और संप्रेषनीय हैं ,जिनकी अंतर्वस्तु और संरचना में कुछ अनछुए प्रसंग है कथाओं में व्यंजित कलापूर्ण लेखन कौशल में यथार्थ और समय की अनुगूंज है जो लघुकथा के कथ्य, शिल्पगत सौंदर्य -बोध को जीवंत करने में समर्थ हैं ।

समग्रतः भाव, विचार ,सार्थक वस्तुस्थिति और तत्क्षण बोधगम्यता से प्रभासित ये लघुकथाएं पाठकों को निश्चित रूप से प्रभावित करेंगी और सुधी पाठकों को मानवीय मूल्यवत्ता की प्रवाहिनी बनकर, इस स्वार्थ संकुल और स्व केंद्रित हो रहे संसार में मानवीय विस्तार करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। इसी गहन आश्वस्ति के साथ मैँ अपने हृदय की समस्त मंगलकामनाएं अर्पित करते हुए श्री घनश्याम मैथिल "अमृत" के सुखी स्वस्थ और यशस्वी जीवन की कामना करती हूं । 
इति शुभम