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रविवार, 31 अक्तूबर 2021

ई-पुस्तक | मेरी कमज़ोर लघुकथा (लघुकथाकारों द्वारा आत्म-आलोचना) | शोध कार्य


विश्व भाषा अकादमी  (रजि),भारत की राजस्थान इकाई द्वारा लघुकथाओं पर शोध कार्य के तहत एक अनूठे ई-लघुकथा संग्रह का प्रकाशन किया गया है। इस संग्रह में विभिन्न लघुकथाकारों की 55 कमज़ोर लघुकथाओं का संकलन किया गया है। लघुकथाओं के साथ ही उन लघुकथाओं पर लघुकथाकारों का यह वक्तव्य भी संकलित है कि उनकी रचना कमज़ोर क्यों है? इस कार्य का मुख्य उद्देश्य यह ज्ञात करना था कि लघुकथा लेखन में ऐसी कौनसी कमियाँ हैं जो रह जाएं तो रचना को प्रकाशन हेतु नहीं भेजना चाहिए। जहां तक ज्ञात है, इस प्रकार का कोई कार्य हिन्दी साहित्य में आज से पूर्व नहीं किया गया है। रचनाकारों को आत्म-आलोचना के लिए प्रेरित करता यह संग्रह निम्न लिंक पर निःशुल्क पढ़ा व डाउनलोड जा सकता है:


https://vbaraj.blogspot.com/2021/10/blog-post.html


इस संग्रह में लघुकथाओं और उन पर लेखकीय वक्तव्य सहित शामिल है रावी का दुर्लभ साक्षात्कार मुकेश शर्मा (विश्व भाषा अकादमी के राष्ट्रीय चेयरमैन) द्वारा, डॉ. अशोक भाटिया का लेख व डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की विवेचना।

विश्वास है कि यह संग्रह न केवल एक विशिष्ट कार्य  बनेगा बल्कि कई शोधकार्यों में भी सहायक होगा। इस शोधपरक संग्रह पर आपकी राय अपेक्षित है।

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श्री मुकेश शर्मा, राष्ट्रीय चेयरमैन, विभाअ

डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी, सम्पादक




बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

मेरी लघुकथा "शक्तिहीन" sahityarachana.com में


Source:

https://www.sahityarachana.com/2021/10/laghukatha-shaktiheen-dr-chandresh-kumar-chhatlani.html


शक्तिहीन डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

वह मीठे पानी की नदी थी। अपने रास्ते पर प्रवाहित होकर दूसरी नदियों की तरह ही वह भी समुद्र से जा मिलती थी। एक बार उस नदी की एक मछली भी पानी के साथ-साथ बहते हुए समुद्र में पहुँच गई। वहां जाकर वह परेशान हो गई, समुद्र की एक दूसरी मछली ने उसे देखा तो वह उसके पास गई और पूछा, “क्या बात है, परेशान सी क्यों लग रही हो?

नदी की मछली ने उत्तर दिया, “हाँ! मैं परेशान हूँ क्योंकि यह पानी कितना खारा है, मैं इसमें कैसे जियूंगी?”

समुद्र की मछली ने हँसते हुए कहा, “पानी का स्वाद तो ऐसा ही होता है।”

“नहीं-नहीं!” नदी की मछली ने बात काटते हुए उत्तर दिया, “पानी तो मीठा भी होता है।“

“पानी और मीठा! कहाँ पर?” समुद्र की मछली आश्चर्यचकित थी।

“वहाँ, उस तरफ। वहीं से मैं आई हूँ।“ कहते हुए नदी की मछली ने नदी की दिशा की ओर इशारा किया।

“अच्छा! चलो चल कर देखते हैं।“ समुद्र की मछली ने उत्सुकता से कहा।

“हाँ-हाँ चलो, मैं वहीं ज़िंदा रह पाऊंगी, लेकिन क्या तुम मुझे वहां तक ले चलोगी?“

“हाँ ज़रूर, लेकिन तुम क्यों नहीं तैर पा रही?”

नदी की मछली ने समुद्र की मछली को थामते हुए उत्तर दिया,

“क्योंकि नदी की धारा के साथ बहते-बहते मुझमें अब विपरीत धारा में तैरने की शक्ति नहीं बची।“ 

-0-

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

रविवार, 10 अक्तूबर 2021

कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता परिणाम । फेसबुक समूह साहित्य संवेद

श्री मृणाल आशुतोष की फेसबुक वॉल से

 नमस्कार साथियो!

कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता परिणाम के साथ आप सबके समक्ष उपस्थित हूँ।

सर्वप्रथम परिणाम हुए अतिशय विलम्ब के लिये क्षमायाचित हूँ। दूबे सर आज होते तो मेरी डाँट लगाते हुए कहते कि 'सब काम मे तोरा लेटे भ जाय छ(सब काम में आपको देर ही हो जाती है।)। कारण जो भी रहे हों, जिम्मेदारी केवल और केवल मेरी है। प्रतियोगिता में सहभागी आप सभी लघुकथाकारों एवं मुख्य निर्णायक लघुकथा मर्मज्ञ श्री भगीरथ का हम आयोजन समिति के सदस्य हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। निर्णय में आयोजन समिति के सदस्यों(कुमार गौरव, दिव्या राकेश शर्मा, पूजा अग्निहोत्री और मृणाल आशुतोष।) ने भी अपना अंशदान दिया है।

जिन लघुकथाकारों की रचना विजेता हुई हैं, उन्हें हार्दिक बधाई। आपकी लेखनी यूँ ही निरन्तर बेहतर करती रहे।

जिन लघुकथाकारों की रचना प्रथम दस में स्थान नहीं बना सकीं, वह भी अच्छी थीं। आप सभी और बेहतर करने का प्रयास करें। हार्दिक शुभकामनाएं।

विजेता इस प्रकार हैं:

प्रथम पुरस्कार:छटपटाहट-संगीता चौरसिया [1100₹+कुसुमाकर दुबे रचित 'मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य से तत्व तक'(सम्पादक:शोभना श्याम एवं मृणाल आशुतोष)+ कमल कपूर रचित लघुकथा संग्रह 'आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'अस्मि']

द्वितीय पुरस्कार-कायजा -उपमा शर्मा[500₹+'मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य_से_तत्व_तक+कमल कपूर रचित 'आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'आखिरी साँस तक']

तृतीय पुरस्कार:'कान्हा एक यशोदा अनेक' -प्रतिभा द्विवेदी['मृगतृष्णा'+ #सेतु_कथ्य_से_तत्व_तक+आँगन-आँगन हरसिंगार' एवं उपन्यास 'आखिरी साँस तक']

प्रोत्साहन पुरस्कार(आप सभी को मृगतृष्णा' प्रदान की जाएगी।)

'मूक हुई वाचाल'-लक्ष्मी मित्तल

'मैं हूं ना'-तेजवीर सिंह

'मुहब्बत कभी नहीं मरती' -पदम गोधा

 'पुश्तैनी पेशा'-निर्मल कुमार दे 

'पीर' -अंजू खरबंदा

'अक्स' - कनक हरलालका

'अंधेर नगरी'- मनन सिंह।

एक बार पुनः आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

निर्णायक श्री परिहार ने विजेता रचनाओं(प्रथम सात) पर टिप्पणी भी दी है जिससे हम सभी सीख सकते हैं।

अंतिम तीन रचनाओं पर हमने भी टिप्पणी देने का प्रयास किया है।

◆1 छटपटाहट- संगीता चौरसिया कोरोना पीरियड के दर्द को बयां करती अनुभवजन्य भावनात्मक कथा जो पाठक को विचलित करने की सामर्थ्य रखती है. सुमन का कोरोना पीड़ित पति गोविन्द अस्पताल में वेंटीलेटर पर था  वह पति से मिलना चाहती थी  लेकिन अस्पताल और घरवालों ने मना कर दिया. दर्द,भय और अकेलेपन ने  गोविन्द को तोड़ दिया. सुमन को मिलाने गाड़ी अस्पताल न जाकर सीधे श्मशान ले गई.  

◆2 कायजा –उपमा शर्मा   सरकार विकास देती है और लोग रोटी मांग रहे है इस अंतर्द्वंद्व को दर्शाया गया है. स्थितियों का विरोधाभास ही व्यंग्य करता है. कथा का आरम्भ उत्कर्ष और अंत अच्छा बन पड़ा है. वार्तालाप कथा को आगे बढ़ाते-बढ़ाते अंत तक ले जाते हैं संवाद शैली की कथा के अंत के संवाद व्यंग्य को उभारने में सक्षम है. 

◆3.कान्हा एक यशोदा अनेक -प्रतिभा द्विवेदी. नया विषय कथा का आरम्भ और उत्कर्ष अंत अच्छा है. सिस्टर के रोकते रोकते दादाजी प्रसूति कक्ष में चले गए और अपने पोते के लिए आधे चम्मच दूध की भीख मांगने लगे. पहले गाँव की चंदो ने फिर बहुत सी नव प्रसूता ने दूध देने की हामी भरी.   

◆मूक हुई वाचाल- लक्ष्मी मित्तल  सामान्य विषय [बस में पुरुष का स्त्री से चिपकना] का ट्रीटमेंट अच्छा है. दृश्यात्मक विश्लेष्णात्मक विवरण ध्यान खींचता है और कथा का अंत भी सटीक है स्त्री प्रतिकार कर उसे सबक सिखा देती है. 

◆मैं हूँ ना- – तेजवीर सिंह    

  दादा पोते के संवाद से बुनी प्रेरणादायक कथा. पोते के पिता की कोरोना से मृत्यु जैसी विषम और चुनौती पूर्ण परिस्थितियां एक दस वर्ष के बालक को भी स्ट्रोंग बना देती है. पोता दादा को हिम्मत देता है ‘आप दुकान खोलो मैं आपके साथ हूँ आपके मार्गदर्शन में मैं सब कर लूँगा.’ 

◆मुहब्बत कभी नहीं मरती- पदम गोधा. 

इंसानियत और मुहब्बत का जज्बा दंगों के बाद भी बना रहता है तभी तो थोड़े दिनों बाद जीवन सामान्य होने लगता है. जीवन मूल्यों को रेखांकित करतीलघुकथा. कुछ पञ्च वाक्य भी ध्यान देने योग्य है.   नाम लेते ही व्यक्ति जाति धर्म में बदल जाता है फिर वह इन्सान नहीं रहता.  ‘साहब इंसानियत को कौन मार सका है  इसी दंगाग्रस्त बस्ती में फिर से मंदिर में घंटे बजेगे और  मस्जिद में अजान ! गुरुद्वारे में गुरुवाणी सुनाई देगी ! नफ़रत ही हारती है साहब मुहब्बत कभी भी नहीं मरती !"  


◆पुश्तैनी पेशा- निर्मल कुमार दे  एक तार्किक कथा जो जातिवादी व्यक्ति की मानसिकता को उजागर करती है. जाति न बताने पर पुश्तैनी धंधा पूछता है लेकिन उसके जबाब भी इतने सटीक की वह आखिर चुप हो जाता है. लेकिन जाति का कीड़ा उसके मस्तिष्क में फिर भी कुलबलाता है।

◆पीर: कथ्य का चयन शानदार है। पहाड़ पर हम सभी आनंद उठाने जाते हैं पर पहाड़ के दर्द को नहीं महसूस कर पाते। हमारी मस्ती उसके दुख का कारण बन रही है। लापरवाही मस्ती से अधिक उपयुक्त होगा।

अब हम हमारे आने से खुश नहीं होते।प्रकृति के प्रति सजगता को आकृष्ट करती अच्छी रचना है।

◆अक्स: कथ्य का चयन अच्छा है। शिल्प भी प्रभावित करती है। अंतिम पंक्ति काफी कुछ कह कर रही है।

◆अंधेर नगरी-शीर्षक शानदार है और उसी अनुरूप कथा  का निर्वहन भी हुआ है। वर्तमान स्थिति पर करारा कटाक्ष करने में लेखक ने सफलता प्राप्त की है।

आप सभी विजेताओं से निवेदन है कि अपना पूरा पता पिन कोड के साथ और मोबाईल नम्बर मुझे मैसेंजर पर भेज दें।

संगीता चौरसिया जी और उपमा शर्मा जी

अपना बैंक डिटेल भी मुझे भेजें ताकि पुरस्कृत राशि भेजी जा सके।

■■प्रतियोगिता के अंतराल में ही कमल कपूर जी का कॉल आया कि मृणाल ' कुसुमाकर दुबे स्मृति लघुकथा प्रतियोगिता' जो आप सब कर रहे हो, उसके लिए मेरी पुस्तक भी आप रख सकते हैं। स्तरीय पुस्तक हों तो भला कौन आयोजक मना करेगा। हमने अपने साथियों से विचार कर इसे पुरस्कार में शामिल कर लिया। इससे पुरस्कार की महत्ता और बढ़ गयी। आप का हार्दिक आभार।

सधन्यवाद,

शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

शोध आलेख आमंत्रण । लघुकथाओं का वृहद संसार

सम्माननीय,

साहित्यकार,समीक्षक, आचार्य एवं शोधार्थियों,

हम सहर्ष सूचित करना चाहते हैं कि  ‘लघुकथाओं का वृहद संसार’ नामक समीक्षात्मक पुस्तक ISBN  नंबर के साथ प्रकाशित होने जा रही है। आप भी अपना शोध आलेख 10/12/2021 तक MS Word फ़ाइल में मंगल, UNICODE, या कृतिदेव 10 में टाइप करके 

email ID- neetatrivedi2010@gmail.com

पर भेज सकते हैं। 

उप विषय

1. लघुकथा साहित्य: स्वरूप एवं महत्त्व

2. लघुकथा साहित्य: परंपरा एवं विकास

3. हिंदी कथा साहित्य में लघुकथा का स्थान

4. लघुकथा साहित्य और महिला लघुकथाकार

5. हिंदी लघुकथा साहित्य में राजस्थान के कथाकारों की भूमिका

6. समकालीन लघुकथाओं में आए परिवर्तन की पहचान

7. इक्कीसवीं सदी और लघुकथा साहित्य

8. प्रमुख लघुकथा पत्रिकाएँ

9. लघुकथा साहित्य में विमर्श के स्वर 

10. लघुकथा और प्रवासी साहित्य

11. लघुकथा साहित्य एवं युवा लेखन

12. लघुकथा साहित्य का साहित्य की अन्य विधाओं से अन्तर्सम्बन्ध 

13. लघुकथा साहित्य की भाषा और शिल्प

14. लघुकथा साहित्य में शैल्पिक नवाचार

15. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का लघुकथा साहित्य पर बढ़ता प्रभाव

16. लघुकथा: सामाजिक सरोकार

17. लघुकथा: मानवीय मूल्य

18. लघुकथा: ग्राम्य एवं शहरी संस्कृति

19. लघुकथा: पारिवारिक जीवन

20. लघुकथा: सांस्कृतिक संक्रमण

21. लघुकथा: नारी जीवन

22. लघुकथा: दर्शन एवं जीवन

23. लघुकथा: नैतिक विचार दृष्टि

24. लघुकथा: राजनीतिक दृष्टि 

25. लघुकथा: हास्य एवं व्यंग्य

26. लघुकथा: बाल मनोविज्ञान

27. लघुकथा: साम्प्रदायिक समस्याएँ

28. लघुकथा: जादुई यथार्थवाद

29. हिंदी के लघुकथाकार एवं उनकी विशाल कथादृष्टि

30. प्रमुख लघुकथाकारों की रचनाओं की आलोचनात्मक समीक्षा

31. हिंदी के प्रमुख लघुकथा संग्रह और समीक्षात्मक दृष्टि

32 . विषय से संबंधित अन्य उप-विषयों पर भी शोध पत्र/आलेख स्वीकृत हैं। 


नियम एवं शर्तें

1. शोध आलेख 1500 से 2500 शब्दों तक हो।

2. शोध आलेख भेजने से पूर्व भाषागत एवं व्याकरणिक अशुद्धियों को भली-भांति जाँच लें।

3. लेख के अंत में संदर्भ सूची(लेखक/संपादक,शीर्षक,प्रकाशन वर्ष,पृष्ठ संख्या आदि) होना अनिवार्य है।

4. लेख के अंत में अपना नाम,पद,पता,मोबाइल/व्हाट्सऐप नंबर अवश्य दें।

5. शोध आलेख केवल हिंदी में मंगल, UNICODE या KrutiDev 10 फ़ॉण्ट  में दें।

6. पीडीएफ, हाथ से लिखा आलेख मान्य नहीं है।

7. लेख प्रकाशन हेतु मात्र 500/- रू. राशि देनी होगी।


अधिक जानकारी हेतु

संपर्क

संपादक

डॉ. नीता त्रिवेदी

सहायक आचार्य

हिंदी विभाग

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय,

उदयपुर (राजस्थान) 

मो. नं.- 9950960999

Email ID-neetatrivedi2010@gmail.com

सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

मेरी नजर में | लघुकथा संग्रह ‘फिर वही पहली रात’ | संग्रह लेखक: कीर्तिशेष श्री विजय ‘विभोर’ | समीक्षक: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

"साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण प्रदान करना भी है।" अपने इन शब्दों द्वारा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन क्या कहना चाह रहे हैं यह तो स्पष्ट है, साथ ही इस वाक्य पर थोड़े से मनन के पश्चात् समझ में आता है कि यह पंक्ति एक भाव यह भी रखती है कि साहित्य का कार्य छोटी से बड़ी किसी भी समस्या के ताले की चाबी बनना हो न हो वर्तमान युग के अनुसार एक ऐसा वातावरण तैयार करना है ही, जो हमारे मन-मस्तिष्क के द्वार खटखटाने में सक्षम हो। चूँकि लघुकथा सीमित शब्दों में अपने पाठकों को दीर्घ सन्देश देने में भी सक्षम है, अतः ऐसे वातावरण का निर्माण करने में लघुकथा का दायित्व अन्य गद्य विधाओं से अधिक स्वतः ही हो जाता है।

उपरोक्त कथन को मूर्तिमंत करते लघुकथा के कर्म, चरित्र और मूल वस्तु से परिचय कराता, सुरुचिपूर्ण, सकारात्मक, सार्थक और प्रेरणास्पद लेखन का एक उदाहरण है श्री विजय ‘विभोर’ का लघुकथा संग्रह 'फिर वही पहली रात'। मानवीय चेतना के शुद्ध रूप के दर्शन करने को प्रोत्साहित करती श्री विभोर की लघुकथाएं स्पष्ट सन्देश प्रदान करने में समर्थ हैं। मौजूदा समय का मूलभूत अनिवार्य मंथन भी इन रचनाओं में सहज भावों के माध्यम से परिलक्षित होता है। उदाहरणस्वरूप पति-पत्नी के सम्बन्ध विच्छेद की बढ़ती घटनाओं कम करने का प्रयास करती लघुकथा ‘आदत’, मानवीय प्रेम का सन्देश देती 'कनागत, ‘मजबूरी’, आदि रचनाओं में चेतना जागरण, नैतिक मूल्य, मानवता, नारी-स्वातंत्र्य, सामाजिक दशा, कर्तव्य परायणता और मानवीय उदात्तता जैसे बहुआयामी और समसामयिक विषयों पर लेखक ने बड़ी प्रवीणता-कुशलता से सृजन किया है।

लेखन ऐसा होना चाहिए जो न सिर्फ काल की वर्तमानता को दर्शाये बल्कि आने वाली शताब्दी तक की चुनौतियों पर खरा उतरने वाला हो। आदमीयत की गायब होती परिपूर्णता को शब्दों से उभार सके तथा सच व झूठ के टुकड़ों में बंटे हुए मनुष्य को आत्मिक चेतना तक का अनुभव करवा सके। अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि कुम्भनदास को एक बार अकबर ने फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया था, कुम्भनदास ने उस आमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा कि "सन्तन को कहा सीकरी सों काम।" सच्चे साहित्यकार संत की तरह होते हैं। ज़्यादातर इतिहासकारों ने शासकों की अयोग्यता को भी जय-जयकार में बदला है लेकिन अधिकतर साहित्यकारों ने नहीं। इस संग्रह की ‘जीवन जीर्णोद्धार’, ‘अन्नदाता’, ‘फैसले’, ‘बदलाव’ जैसी रचनाएँ साहित्यकार के इस धर्म का पालन करती हैं। लेखन सम्बन्धी विसंगतियां उठाती इस संग्रह की 'कुल्हड़ में हुल्लड़' भी एक विचारणीय रचना है।

पुरातन साहित्य में दर्शाया गया है कि वाराणसी के निवासी शौच करने भी 'उस पार' जाते थे। गंगा में नहाते समय अपने कपडे घाट पर निचोड़ते थे, नदी में नहीं। पौराणिक युगीन साहित्य में यह भी कहा गया कि “नमामी गंगे तव पाद पंकजं सुरासुरैर्वदित दिव्यरूपम्। भुक्ति चमुक्ति च ददासि नित्यं भावनसारेण सदानराणाय् ।।“ ऐसे विचार पढ़ने पर यह सोच स्वतः ही जन्म लेती है कि साहित्यकारों के कहे पर यदि देश चलता तो शायद गंगा कभी प्रदूषित होती ही नहीं और विस्तृत सोचें तो केवल जल प्रदूषण ही नहीं, कितनी ही और विडंबनाओं से बचा जा सकता था। प्रस्तुत संग्रह में भी 'बस ख्याल रखना', 'मेला', ‘निजात’, ‘प्रश्न’ जैसी रचनाएं साहित्यकारों की स्थिति दर्शा रही हैं, जो एक महत्वपूर्ण विषय है।

लघुकथा के बारे में एक मत है कि यह तुरत-फुरत पढ़ सकने वाली विधा है। लेकिन जिसका सृजन विपुल समय लेता है, उसे अल्प समय में पढ़ने के बाद पाठकगण हृदयंगम कर अपना महती समय चिंतन में खर्च न करें तो मेरे अनुसार हो सकता है कि वह रचना प्रभावी शिल्प की हो, लेकिन उद्देश्य पूर्णता की दृष्टि से अप्रभावी ही है। ‘फिर वही पहली रात’ की रचनाएं इस दृष्टि से निराश नहीं करतीं, वरन कुछ रचनाएँ ऐसी भी हैं जो नव-विचार उत्पन्न करती हैं। अधिकतर लघुकथाओं के कथानक समसामयिक हैं, सहज ग्राह्य एवं ओजस्वी भाषा शैली है। शीर्षक से लेकर अंतिम पंक्ति तक में लेखक का अटूट परिश्रम झलकता है।

समग्रतः, प्रभावशाली मानवीय संवेदनाओं, उन्नत चिन्तन, आवश्यक सारभूत विषयों को आत्मसात करती जीवंत लघुकथाओं से परिपूर्ण विजय 'विभोर' जी की विवेकी, गूढ़ और प्रबुद्ध सोच का प्रतिफल यह संग्रह पठनीय-संग्रहणीय सिद्ध होगा। बहुत-बहुत बधाइयां व मंगल कामनाएं।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी