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रविवार, 21 अप्रैल 2024

लघुकथा और उज्जैन / सन्तोष सुपेकर

उज्जैन के पिछले 43 वर्षों का लघुकथा का इतिहास 



भगवान महाकाल, कवि कालिदास और गुरु गोरखनाथ का नगर है उज्जैन। यहाँ प्रतिवर्ष भव्य 'कालिदास समारोह' का आयोजन होता है और प्रति बारह वर्ष में सिंहस्थ (कुंभ ) मेला लगता है जिसमें करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। मध्यप्रदेश के गठन के  बाद सबसे पहले विश्वविद्यालय की स्थापना उज्जैन में ही हुई थी।

साहित्य की हर विधा की तरह लघुकथा क्षेत्र में भी उज्जैन में काफी सृजन कार्य  हुए हैं। 1981 में डॉ राजेन्द्र सक्सेना (अब स्वर्गीय) का संग्रह 'महंगाई अदालत में हाजिर हो' प्रकाशित हुआ था। कुछ वर्षों  के बाद 1990 में श्रीराम दवे के सम्पादन में  लघुकथा फोल्डर  'भूख के डर से' प्रकाशित हुआ था। 1996 में डाक्टर शैलेन्द्र पाराशर के सम्पादन में साहित्य मंथन संस्था से लघुकथा संकलन 'सरोकार' का प्रकाशन हुआ था जिसमें 20 रचनाकार शामिल थे। सन् 2000 में स्व. श्री अरविंद नीमा 'जय' की लघुकथाओं का  संग्रह 'गागर में सागर' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे उनके परिवार ने उनके देहावसान के बाद प्रकाशित करवाया था। इसमें उनकी 32 हिंदी और 22 मालवी बोली की लघुकथाएँ शामिल थीं। वर्ष 2002 में डाक्टर प्रभाकर शर्मा और सरस निर्मोही के सम्पादन में 'सागर के मोती' लघुकथा संकलन प्रकाशित हुआ  जिसमें उस समय आयोजित एक लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं की भी रचनाऐं शामिल थीं। 2003 में श्रीराम दवे के सम्पादन में "त्रिवेणी"लघुकथा संकलन प्रकाशित हुआ जिसमें योगेन्द्रनाथ शुक्ल,सुरेश शर्मा(अब स्वर्गीय) और प्रतापसिंह सोढ़ी की लघुकथाएं शामिल थीं। बैंककर्मियों की साहित्यिक संस्था 'प्राची' ने  सन् 2001-2002 के दरम्यान उज्जैन में लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। इसी प्रकार श्री जगदीश तोमर  के निर्देशन में प्रेमचंद सृजन पीठ, उज्जैन ने भी लघुकथा गोष्ठियांँ आयोजित की थीं। बाद के वर्षों में  विभिन्न लघुकथाकारों के संग्रह/संकलन  प्रकाशित हुए जिनका वर्णन निम्नानुसार है--

1. श्रीमती  मीरा जैन का"मीरा जैन की सौ लघुकथाएं" वर्ष 2003 में, 

2. सतीश राठी के सम्पादन में सन्तोष सुपेकर और राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का संयुक्त लघुकथा संकलन 'साथ चलते हुए' वर्ष  2004 में,  इसी वर्ष मृदुल कश्यप का  मात्र  11 लघुकथाओं का संग्रह " माँ के लिए " प्रकाशित हुआ। 

3. सन्तोष सुपेकर का 'हाशिये का आदमी' वर्ष 2007 में,

4. राधेश्याम पाठक 'उत्तम' ( अब स्वर्गीय) का  लघुकथा  संग्रह 'पहचान' वर्ष 2008 में, 

5. इसी वर्ष श्री पाठक का मालवी बोली में लघुकथा संग्रह 'नी तीन में, नी तेरा में', 

6. 2009 में  मोहम्मद आरिफ का 'अर्थ के आँसू' प्रकाशित हुआ। 

7. सन 2009 में  ही राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह 'बात करना बेकार है' 

8. सन्तोष सुपेकर का' बन्द आँखों का समाज' वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ। 

9. 2010 में ही मीरा जैन का  '101 लघुकथाएं',  

10. मोहम्मद आरिफ का ' 'गांधीगिरी' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ। 

11. 2011 में शब्दप्रवाह'  साहित्यिक संस्था द्वारा 198 लघुकथाकारों की रचनाओं से युक्त लघुकथा विशेषांक  संदीप 'सृजन' और कमलेश व्यास 'कमल' के सम्पादन में निकला। 

12. वर्ष  2011 में  ही राजेंद्र नागर 'निरन्तर' का 'खूंटी पर लटका सच' प्रकाशित हुआ ।

13. वर्ष  2012 में प्रेमचंद सृजनपीठ, उज्जैन द्वारा प्रोफेसर बी. एल. आच्छा के सम्पादन में देशभर के 229 लघुकथाकारों का विशाल  242 पृष्ठों का लघुकथा संकलन 'संवाद सृजन' प्रकाशित हुआ। 14. सन् 2012  में ही डाक्टर संदीप नाड़कर्णी के संकलन 'नौ दो ग्यारह' में 11 लघुकथाएं संकलित थी।

15. इसी वर्ष राधेश्याम पाठक 'उत्तम' का संग्रह "पहचान"प्रकाशित हुआ। 

16. वर्ष 2013 में सन्तोष सुपेकर का लघुकथा संग्रह "भ्रम के बाज़ार में"   प्रकाशित हुआ जिसमे 153 लघुकथाएं थी।

17. वर्ष 2013 में ही सन्तोष सुपेकर के सम्पादन में राजेंद्र देवधरे 'दर्पण' और राधेश्याम पाठक 'उत्तम' की  लघुकथाओं का फोल्डर 'शब्द सफर के साथी' प्रकाशित हुआ।

18. इसी वर्ष (2013 में) कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का  संग्रह 'नयन नीर' प्रकाशित हुआ जिसमे उनकी 100 लघुकथाएं शामिल  हैं। उल्लेखनीय है कि 'प्रेरणा' जी दृष्टिबाधित रचनाकार हैं। 

19. 'बंद आँखों का समाज' (संतोष सुपेकर) का मराठी संस्करण 'डोलस पण अन्ध समाज' (अनुवादक श्रीमती आरती कुलकर्णी) भी 2013 में निकला। 

20. 2015 मे कोमल वाधवानी  'प्रेरणाजी' का 104 लघुकथाओं का दूसरा लघुकथा संग्रह 'कदम कदम पर' प्रकाशित हुआ।

21-23. वर्ष 2016 में वाणी दवे का 'अस्थायी चारदीवारी', कोमल वाधवानी 'प्रेरणा' का  'यादों का दस्तावेज', (124 लघुकथाएँ)मीरा जैन का 'सम्यक लघुकथाएं' लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए।

24. वर्ष 2017 में सन्तोष सुपेकर का चौथा लघुकथा संग्रह 'हँसी की चीखें' प्रकाशित हुआ जिसमें 101 लघुकथाएँ संगृहीत हैं।

25. 2018 में डाक्टर वन्दना गुप्ता के संकलन 'बर्फ में दबी आग' में  कुछ लघुकथाएँ सकलित थीं। इसी वर्ष माया बदेका का लघुकथा संग्रह '  माया '  प्रकाशित हुआ। 

26. 2019 में मीरा जैन का 'मानव मीत लघुकथाएं" प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष हिन्दी -

मालवी की प्रख्यात लेखिका माया मालवेंद्र  बधेका  का लघुकथा संग्रह ' माया'  ई बुक  स्वरूप में प्रकाशित हुआ।   इसी वर्ष डॉ.क्षमा सिसोदिया का '  कथा सीपिका'  प्रकाशित हुआ जिसमें 76 लघुकथाएँ थीं l


27-   2020 में सन्तोष सुपेकर का पाँचवा लघुकथा संग्रह "सांतवें पन्ने की खबर"प्रकाशित हुआ जिसमे 112 लघुकथाएं संकलित हैं।

28- 2021 में उज्जैन के सन्तोष सुपेकर और इंदौर के राममूरत 'राही' के सम्पादन में, देश का पहला, अनाथ जीवन पर आधारित लघुकथा संकलन "अनाथ जीवन का दर्द"अपना प्रकाशन भोपाल के सहयोग से प्रकाशित हुआ। डॉ क्षमा सिसोदिया का  '  भीतर कोई बन्द है'  लघुकथा संग्रह भी इस वर्ष प्रकाशित हुआ जिसमें 67 लघुकथाएँ शामिल थींl इसी वर्ष माया बदेका का 'सांवली' भी प्रकाशित हुआ। 

29. 2021 में ही उज्जैन के सन्तोष सुपेकर के सम्पादन ,संयोजन में लघुकथा साक्षात्कार का संकलन "उत्कण्ठा के चलते" एच आई पब्लिकेशन ,उज्जैन से प्रकाशित हुआ जिसमें लघुकथा से जुड़े मध्यप्रदेश के सात लघुकथाकारों /समीक्षकों सर्वश्री सूर्यकान्त नागर,सतीश राठी,डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा,डॉ पुरुषोत्तम दुबे ,कान्ता रॉय,वसुधा गाडगीळ और अंतरा करवड़े के साथ ही तीन अन्य विधाओं से जुड़ी हस्तियों डॉक्टर पिलकेन्द्र अरोरा (व्यंग्य) सन्दीप राशिनकर (चित्रकला)अमेरिका निवासी श्रीमती वर्षा हलबे (शास्त्रीय गायन ,कविता )और लघुकथा के एक सामान्य पाठक श्री संजय जौहरी से भी लघुकथा को लेकर प्रश्न पूछे गए थे।

2021 में डॉक्टर  सन्दीप नाडकर्णी का लघुकथा संग्रह "हम हिंदुस्तानी"प्रकाशित हुआ जिसमें 51 लघुकथाएं हैं। इसी वर्ष श्रीमती कोमल वाधवानी 'प्रेरणा'का चौथा लघुकथा संग्रह 'रास्ते और भी हैं'प्रकाशित हुआ।उज्जैन के शिक्षाविद श्री रामचन्द्र धर्मदासानी का पहला लघुकथा संग्रह '  रैतीली  प्रतिध्वनि' भी 2021 में  प्रकाशित हुआ जिसमे 122 लघुकथाएँ संकलित हैं।

32. 2022 में सन्तोष सुपेकर का छठवाँ लघुकथा संग्रह 'अपकेन्द्रीय बल' एच आई पब्लिकेशन ,उज्जैन से प्रकाशित हुआ जिसमे 154 लघुकथाएँ शामिल हैं।2022 में ही नवोदित लेखिका हर्षिता रीना राजेन्द्र का संकलन "सदा सखी रहो "का उज्जैन में विमोचन हुआ जिसमे कुछ लघुकथाएँ भी सम्मिलित हैं। 2022 में माया मालवेंद्र 

बदेका का 'साँवली'  लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें 25  लघुकथाएँ 'साँवली' शीर्षक से प्रकाशित हैं। इसी वर्ष मीरा जैन का लघुकथा संग्रह'  भोर में भास्कर'  प्रकाशित हुआ जिसमें 101 लघुकथाएँ हैं l


  2022 में ही सन्तोष सुपेकर की दो लघुकथाओं 'तकनीकी ड्रॉ बेक'और 'अंतिम इच्छा'पर बिहार के अभिनेता श्री अनिल पतंग ने शार्ट फिल्म्स बनाईं।इसी वर्ष  श्रीमती कल्पना भट्ट(भोपाल) ने उज्जैन के सन्तोष सुपेकर के चार लघुकथा संग्रहों (बन्द आँखों का समाज,भ्रम के बाज़ार में ,हँसी की चीखें और सातवें पन्ने की खबर )में से 14-14 ,कुल 56 लघुकथाएं चयन कर उन्हें  अंग्रेजी में अनूदित किया जिसे ख्यात लघुकथाकार उदयपुर के डॉक्टर चंद्रेश छतलानी ने संकलित कर 'Selected Laghukathas  of Santosh Supekar' शीर्षक से प्रकाशित करवाया। 2022 के जुलाई माह से उज्जैन के दैनिक जन टाइम्स में सन्तोष सुपेकर के संपादन में साहित्यिक स्तम्भ ' जन साहित्य ' का प्रकाशन आरम्भ हुआ जिसमें प्रति सोमवार, गुरुवार और शनिवार को   देश - विदेश  के   लेखकों की सिर्फ लघुकथा   , सम्पादक की विशेष टिप्पणी के साथ प्रकाशित की जा रही है। जन टाइम्स प्रबंधन द्वारा  इस स्तम्भ में प्रकाशित  राजेंद्र वामन काटधरे( ठाणे, महाराष्ट्र) की लघुकथा '  अंधेरे के खिलाफ'  को  वर्ष की सर्वश्रेष्ठ  लघुकथा का प्रमाण पत्र और नकद राशि भी प्रदान की गई l


  2023 में श्री निराला साहित्य मण्डल, उज्जैन द्वारा डॉ प्रभाकर शर्मा और पंडित 

आनंद चतुर्वेदी के संपादन में लघुकथा संकलन 'अपने लोग'  प्रकाशित हुआ जिसमें 56 से अधिक लघुकथाकारों की रचनाएँ सम्मिलित थीं, इसी वर्ष डॉक्टर क्षमा सिसोदिया का '  बटुआ '  लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमें 130 लघुकथाएँ हैं l2023 में ही कोमल वाधवानी '  प्रेरणा'  का बाल लघुकथा संग्रह '  हिप- हिप - हुर्रे'  प्रकाशित हुआ जिसमें 102 लघुकथाएँ हैं । 2023 में ही केरल के तिरुअनंतपुरम से ' हिन्दी की चुनिंदा लघुकथाएँ' मलयालम भाषा में प्रकाशित हुई जिसमें उज्जैन के सन्तोष सुपेकर सलाहकार सम्पादक थे। 

2024 में सन्तोष सुपेकर का आठवां लघुकथा संग्रह ' प्रस्वेद का स्वर '  प्रकाशित हुआ।  श्रमिक के  चित्र वाले मुखपृष्ठ से सज्जित इस संग्रह में कुल 101 लघुकथाएँ हैं  जिनमें बारह  लघुकथाओं के केन्द्र में श्रमिक हैं। 


इनके अलावा संस्था 'सरल काव्यांजलि, उज्जैन' द्वारा वर्ष  2018  एवम्  2019 में  समय-समय पर लघुकथा कार्यशालाएँ आयोजित की गईं जिसमें  डाक्टर उमेश महादोषी, श्यामसुंदर अग्रवाल, डाक्टर बलराम अग्रवाल, जगदीश राय कुलारियाँ, माधव नागदा, सतीश राठी, बी. एल. आच्छा, रामयतन यादव ,कान्ता रॉय जैसी लघुकथा जगत की ख्यात हस्तियों ने शिरकत की।  सरल काव्यांजलि संस्था ने  2020 के हिन्दी दिवस ,14 सितंबर से देश की लघुकथा से जुड़ी हस्तियों को सम्मानित करने का निश्चय किया। 2020 में सूर्यकान्त नागर,सतीश राठी, कान्ता रॉय , 2021 में योगराज प्रभाकर,डॉक्टर उमेश महादोषी ,राममूरत 'राही'और मृणाल आशुतोष  ( रवि प्रभाकर स्मृति)को 2022 में  श्री बिनोय कुमार दास, डॉ चन्द्रेश छतलानी, अनिल पतंग, कल्पना भट्ट(रवि प्रभाकर स्मृति)  और 2023 में  श्री मधुकांत, जगदीश राय कुलारियाँ, अंतरा करवडे और वीरेंदर वीर मेहता ( रवि प्रभाकर स्मृति)डिजिटल सम्मान प्रदान किये गए।शहर के साहित्यकार  सन्तोष सुपेकर ने अनेक रचनाकारों की लघुकथाओं का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपता रहा है।उन्होंने लघुकथा  और सम्बन्धित आलेखों  को पाठ्यक्रमों में शामिल करने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों को लगातार  पत्र भी लिखे हैं।वर्ष 2022 से इस विषय पर  प्रति माह एक पत्र केंद्रीय शिक्षा मंत्री को लिख रहे हैं। सर्वश्री सतीश राठी, राजेन्द्र नागर 'निरन्तर' और सन्तोष सुपेकर की 20-20 लघुकथाओं का अनुवाद बांग्ला भाषा में   श्री हीरालाल मिश्र ने किया है ।सन्तोष सुपेकर के लघुकथा अवदान पर लघुकथा कलश ,पटियाला ,पंजाब में आलेख भी प्रकाशित हुआ है।श्री सुपेकर की लघुकथाओं पर कनाडा के कुसुम ज्ञवाली और नेपाल की रचना शर्मा ने नेपाली भाषा मे अभिनयात्मक वाचन किया है।दिसम्बर 2021 में सरल काव्यांजलि संस्था उज्जैन  ने नए लघुकथाकारों के लिए कार्यशाला आयोजित की जिसमें डॉक्टर शेलेन्द्रकुमार शर्मा और सन्तोष सुपेकर ने नए लेखकों की समस्याओं ,उत्सुकताओं के उत्तर दिए।

   

     विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में डाक्टर शैलेन्द्र कुमार शर्मा के निदेशन में कुमारी भारती ललवानी द्वारा 2003 में  'लघुकथा परम्परा में सतीश राठी का योगदान' विषय पर एम. फिल. स्तर का शोधकार्य हुआ। इसी प्रकार  'मीरा जैन की लघुकथाओं का अनुशीलन' विषय पर प्रशांत कुशवाहा ने डाक्टर गीता नायक के निदेशन में  विक्रम विश्वविद्यालय में शोध प्रस्तुत किया। यहीं पर डॉक्टर धर्मेंद्र वर्मा ने लघुकथाकार स्व. चन्द्रशेखर दुबे के साहित्य पर शोध किया ।डॉ . सतीश दुबे (अब स्मृति शेष)पर आगर के डॉक्टर पी.एन. फागना ने 2009 में 'मध्यप्रदेश की लघुकथा परम्परा में डॉक्टर सतीश दुबे  का योगदान 'विषय पर  विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में शोध कार्य किया है।  वर्ष 2022 से श्रीमती अनीता मेवाडा ने   डॉ निलिमा वर्मा और डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा के निदेशन में " मालवांचल की लघुकथा  परम्परा और सन्तोष सुपेकर का प्रदेय " पर श्रीमती अनीता मेवाड़ा द्वारा  विक्रम विश्वविद्यालय में शोध कार्य जारी  है।  , 2023 के अक्टूबर में सरल काव्यांजलि की एक लघुकथा गोष्ठी डॉक्टर वन्दना गुप्ता के निवास पर हुई जिसमे   वरिष्ठ लघुकथाकारों  डॉ बलराम अग्रवाल( नई दिल्ली), मृणाल आशुतोष, ( समस्तीपुर, बिहार) और हनुमान प्रसाद मिश्रा ( अयोध्या) ने लघुकथाएँ सुनाइं l डॉक्टर क्षमा सिसोदिया ने उज्जैन के रेडियो दस्तक पर डॉ.बलराम अग्रवाल का लघुकथा  विषयक साक्षात्कार   लिया है l  रेडियो दस्तक, उज्जैन  पर राजेंद्र नागर ' निरंतर' , सन्तोष सुपेकर और आकाशवाणी इंदौर पर सन्तोष सुपेकर ,गिरीश पंड्या ने  अपनी  लघुकथाओं का पाठ भी किया है। 


    लघुकथा जगत के प्रमुख हस्ताक्षर श्री विक्रम सोनी (अब स्वर्गीय) भी उज्जैन से सम्बद्ध रहे हैं। संस्था 'सरल काव्यांजलि' ने वर्ष 2013 में उनके निवास पर जाकर श्री सोनी का सम्मान किया था। उज्जैन के ही डॉक्टर प्रभाकर शर्मा,सरस निर्मोही, ओम  व्यास 'ओम' (दोनो अब स्मृति शेष) मुकेश जोशी,स्वामीनाथ पांडेय, शेलेंद्र पाराशर, भगीरथ बडोले,सन्दीप सृजन,श्रीराम दवे,डॉक्टर क्षमा सिसोदिया, प्रवीण देवलेकर, रमेश  करनावट ,समर कबीर,दिलीप जैन,आशीष 'अश्क,के.एन शर्मा,रमेशचन्द्र शर्मा,पिलकेन्द्र अरोरा, आशीषसिंह जौहरी,आशागंगा शिरढोणकर, गोपालकृष्ण निगम,  गिरीश पंड्या,बृजेन्द्रसिंह तोमर,डाक्टर घनश्यामसिंह,गड़बड़ नागर ,डॉ रामसिंह यादव,रमेश मेहता 'प्रतीक',गफूर स्नेही,डॉक्टर हरिशकुमार सिंह,योगेंद्र माथुर,श्रद्धा गुप्ता , चित्रा जैन, मानसिंह शरद ,  राजेंद्र देवधरे, डॉ राजेश रावल,  दिलीप जैन और झलक निगम ( अब स्वर्गीय) ने भी अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं।  गिरीश पंड्या की लघुकथाएँ  आकाशवाणी पर प्रसारित हुई हैं।इसी प्रकार सतीश राठी और श्याम गोविंद  ने भी उज्जैन में रहकर लघुकथा क्षेत्र में काफी सृजन किया है।उज्जैन जिले की तराना तहसील से डाक्टर इसाक 'अश्क' और श्री सुरेश शर्मा  (अब दोनों स्वर्गीय) के संयुक्त सम्पादन में 'समांतर' पत्रिका का लघुकथा  विशेषांक  2001 में निकला था जिसमे 9 आलेख और प्रतिनिधि लघुकथाकारों की रचनाएँ शामिल थी।


 कनकश्रृंगा नगरी में अभी भी लघुकथा को लेकर अनेक  सम्भावनाएं हैं।

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संपर्क : सन्तोष सुपेकर, 31, सुदामा नगर,उज्जैन

गुरुवार, 24 नवंबर 2022

लघुकथा में विक्रम-बैताल शैली | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

बैताल पच्चीसी (वेतालपञ्चविंशतिः) की छोटी-कथाओं की तरह ही लघुकथा में भी इस शैली का प्रयोग किया जा सकता है. बैताल पच्चीसी के शिल्प की बातों के अतिरिक्त इस शैली में मेरे अनुसार निम्न बातों पर ध्यान दिया जा सकता है:

  • मूल बैताल पच्चीसी में बैताल द्वारा कहीं छोटी कहानी तो कहीं लघुकथा भी कही गई है, लेकिन इसमें बैताल द्वारा कही गई लघुकथा ही हो (एकांगी स्वरुप हो.) हालांकि इस बात का एक पक्ष यह भी है कि चूँकि बैताल कह रहा है अतः यह अपने आप में एकांगी है और तब उसकी कथा में छूट ली जा सकती है, ठीक उसी प्रकार जैसे फ्लैशबैक तकनीक, डायरी शैली आदि में रचनाकर्म किया जाता है. आगे जो पहली रचना है उसे कुछ ऐसा ही रखा गया है.
  • बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा स्पष्ट हो.
  • बैताल द्वारा सुनाई जा रही कथा को बैताल द्वारा ही अंतिम स्वरुप न देकर उसे इस तरह से आगे बढाना है कि अंत तक आते-आते वह रचना एक प्रश्न का सर्जन कर ले.
  • उपरोक्त बिंदु में कहा गया प्रश्न ही बैताल विक्रम से पूछे और विक्रम उसका उत्तर दे. इस भाग (उत्तर) में जो विशेष बात मुझे समझ में आती है कि लघुकथा का एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ या वास्तविक विषय विक्रम के उत्तर में उजागर हो सकता है.
  • बाकी रचना के प्रारम्भ में विक्रम द्वारा बैताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादना, बैताल द्वारा मौन रहने की शर्त और अंत में फिर उड़ जाना, वो तो हो ही सकता है.

किसी भी शैली में सुधार सतत प्रक्रिया है. लेखक/लेखिकाएं केवल उपरोक्त बिन्दुओं पर ही निर्भर न रहें, स्वयं भी सोचें व प्रयोग करें. निवेदन है. उपरोक्त बिन्दुओं में कमियाँ भी हो सकती हैं. आप सभी की सलाहों का स्वागत है.

यहाँ पहले विक्रम-बेताल शैली की लघुकथा व शैली का थोड़ा सा प्रयोग कर एक अन्य लघुकथा का प्रयास किया है, यह दोनों रचनाएं निम्न हैं:

बातों के पीछे / चंद्रेश कुमार छतलानी

(प्रथम ड्राफ्ट)

बैताल को पकड़ने विक्रम फिर श्मशान में पेड़ पर लटके बैताल के पास गया। उसे उतारकर अपने कंधे पर लादा और ले चला। बैताल ने हँसते हुए एक कथा फिर, विक्रम के मौन रहने की शर्त के साथ, कहनी शुरू की। कथा इस तरह से थी,

एक राजा ने उसके राज्य में सोने के सिक्कों का चलन बंद कर ताम्बे के सिक्के शुरू कर दिए। दोनों धातुओं की मुद्राओं का मूल्य और वज़न बराबर था। राजा और उसके मंत्रियों ने जनता से कहा कि एक तो सोने के सिक्के महंगे पड़ते हैं और इसका संग्रह कर लोग इस चमकती धातु से काला धन इकठ्ठा कर रहे हैं। अतः यह बदल दी गई है। सभी को आदेश दिया जाता है कि दस दिनों के अंदर-अंदर सभी पुरानी मुद्रा को नई से बदलवा लें, उसके बाद जिस किसी के पास भी पुरानी मुद्रा पाई गई उसे दण्ड मिलेगा।

राजा के कुछ विरोधी बहुत धनवान थे और उनके पास बहुत सारे सोने की मुद्राएं जमा की हुईं थी, उन्हें चिंता हो गई क्योंकि अब उनका धन जब बदलवाया जाएगा तो सभी को पता चल जाएगा कि उनके पास बहुत ज़्यादा धन है। राजा के एक मंत्री ने क्या किया कि, किसी को कानोंकान खबर हुए बिना उन विरोधियों से पुराने सिक्के लेकर नए सिक्के दे दिए।

लेकिन यह बात किसी तरह राज्य दरबार में पता चल गई। राजा ने पूरी बात सुनकर मंत्री की तरफ देखा, मंत्री मुस्कुराया, उसे मुस्कुराते देख राजा भी मुस्कुरा दिया और राजा ने मंत्री को सम्मान के साथ इस दोष से मुक्त कर दिया।

यह कथा सुनाकर बैताल ने विक्रम से पूछा कि, "बता विक्रम! मंत्री ने उसके विरोधियों का पूरे का पूरा धन नए में बदल दिया, फिर भी राजा ने उसे क्यों छोड़ा? अगर जानते हुए भी उत्तर नहीं देगा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।"

विक्रम ने उत्तर दिया कि "बैताल! वह मंत्री ताम्बे के सिक्कों के बदले में बराबर भार के सोने के सिक्के लाया। अगर राजा के विरोधी उस सोने को गला कर ताम्बे के सिक्के खरीदते तो बहुत ज्यादा मूल्य के होते और वे पहले से अधिक धनवान हो जाते। मंत्री की बुद्धिमानी राजा और राज्य के खजाने के लिए लाभदायक सिद्ध हुई।"

बैताल हँसते हुए बोला, "सच कहा विक्रम! काले धन की बात केवल डर के लिए फैलाई गई थी लेकिन असली मकसद विरोधियों का स्वर्ण निकालना था जो पूरा हुआ। राजनीति में कहा कुछ और जाता है और उसके पीछे मंतव्य कुछ और होता है। तूने कहा तो बिल्कुल सही, लेकिन तू बोल गया इसलिए मुझे जाना होगा।"

और अगले ही क्षण वह विक्रम के कंधे से उड़ कर श्मशान की तरफ चला गया।

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उपरोक्त रचना पर एक टिप्पणी

उपरोक्त रचना में बेताल जब कथा सुनाता है तो, राजा के दरबार में मंत्री को बंदी बना कर लाया गया, यहाँ से भी प्रारम्भ कर सकते हैं और तब कोई अन्य दरबारी उस पूरी घटना का उल्लेख करे, जो  फिलहाल  दरबार  में लाये जाने के पूर्व में कहा गया है. 

यह तब किया जा सकता है, जब बेताल द्वारा कही जा रही कथा को भीआधुनिक लघुकथा की तरह ही न्यूनतम विवरण के साथ रखा जाना हो.  हालांकि इससे कथा में तो कुछ फर्क नहीं पडेगा, लेकिन लेखन का तरीका कुछ बदल जाएगा. 

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एक अन्य लघुकथा जिसमें इस शैली में ही थोड़ा परिवर्तन (बेताल का प्रश्न पूछना हटा कर कथ्य में थोड़ा बदलाव) किया गया है. रचना इस प्रकार है:

गुलाम अधिनायक / चंद्रेश कुमार छतलानी

उसके हाथ में एक किताब थी, जिसका शीर्षक ‘संविधान’ था और उसके पहले पन्ने पर लिखा था कि वह इस राज्य का राजा है। यह पढने के बावजूद भी वह सालों से चुपचाप चल रहा था। उस पूरे राज्य में बहुत सारे स्वयं को राजा मानने वाले व्यक्ति भी चुपचाप चल रहे थे। किसी पुराने वीर राजा की तरह उन सभी की पीठ पर एक-एक बेताल लदा हुआ था। उस बेताल को उस राज्य के सिंहासन पर बैठने वाले सेवकों ने लादा था। ‘आश्वासन’ नाम के उस बेताल के कारण ही वे सभी चुप रहते। 

वह बेताल वक्त-बेवक्त सभी से कहता था कि, “तुम लोगों को किसी बात की कमी नहीं ‘होगी’, तुम धनवान ‘बनोगे’। तुम्हें जिसने आज़ाद करवाया है वह कहता था – कभी बुरा मत कहो। इसी बात को याद रखो। यदि तुम कुछ बुरा कहोगे तो मैं, तुम्हारा स्वर्णिम भविष्य, उड़ कर चला जाऊँगा।”

बेतालों के इस शोर के बीच जिज्ञासावश उसने पहली बार हाथ में पकड़ी किताब का दूसरा पन्ना पढ़ा। उसमें लिखा था – ‘तुम्हें कहने का अधिकार है’। यह पढ़ते ही उसने आँखें तरेर कर पीछे लटके बेताल को देखा। उसकी आँखों को देखते ही आश्वासन का वह बेताल उड़ गया। उसी समय पता नहीं कहाँ से एक खाकी वर्दीधारी बाज आया और चोंच चबाते हुए उससे बोला, “साधारण व्यक्ति, तुम क्या समझते हो कि इस युग में कोई बेताल तुम्हारे बोलने का इंतज़ार करेगा?”

और बाज उसके मुंह में घुस कर उसके कंठ को काट कर खा गया। फिर एक डकार ले राष्ट्रसेवकों के राजसिंहासन की तरफ उड़ गया।

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आप सभी की राय अपेक्षित है. सादर, 

 - चंद्रेश कुमार छतलानी

मंगलवार, 22 नवंबर 2022

लघुकथा के शिल्प पर एक प्रयोग

कुछ माह पहले लघुकथा के शिल्प पर एक प्रयोग यह भी किया था. सफल-असफल तो पता नहीं, केवल छोटा-मोटा प्रयोग है. आप सभी की सलाहों का स्वागत है.

इस रचना में काफी कालखंडों को भी समेटने की कोशिश की है. अतः थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ी और असफल होने की गुंजाइश भी पूरी है. उसका डर नहीं है. यह तो केवल एक प्रयोग सा है. मेरे अनुसार भी इस लघुकथा पर बहुत सारा काम बाकी है.

(‘गणितीय टेबल शिल्प में बढ़ती लघुकथा’ के प्रयोग का दूसरा ड्राफ्ट)

टेबल के बाद... / चंद्रेश कुमार छतलानी

टू वन जा टू : दो साल की हो गई गुड़िया आज, चलना सीख रही है, माता-पिता बहुत खुश हैं.
टू टू जा फोर : आज चार साल की होकर माता-पिता को रिझा रही है. पढ़ना सीख रही है.
टू थ्री जा सिक्स : छः साल की हुई और स्कूल में फर्स्ट आई है. माता-पिता घमंड से खड़े हैं.
टू फोर जा एट : आठ साल की घर पर उसके दोस्त ही दोस्त हैं. माता-पिता उसके साथ एन्जॉय कर रहे हैं.
टू फाइव जा टेन : दस साल की हो गई, इस बार दोस्तों के साथ बाहर है. माता-पिता घर में अकेले हैं.
टू सिक्स जा ट्वेल्व : माँ की दोस्त बारह साल की हो गई, आज दिन भर फोन पर व्यस्त रही. माता-पिता से बात भी नहीं कर पाई.
टू सेवन जा फोर्टीन : स्कूल के एक दोस्त के साथ आज जन्मदिन मना रही है. रात देर से आई. माता-पिता इंतज़ार करते रहे.
टू एट जा सिक्सटीन : आज कह दिया कि अब उसकी ज़िन्दगी वह उसके हिसाब से ही जियेगी. माता-पिता कुछ दखल नहीं देंगे.
टू नाइन जा एटीन : व्यस्क होकर अपने किसी दोस्त के साथ लिव-इन में चली गई. माता-पिता देखते रह गए.
टू टेन जा ट्वेंटी : जिसके साथ रह रही थी, वह किसी और लड़की के साथ चला गया, माता-पिता की आँखें पत्थर जैसी हो गई हैं, और गुडिया...
वह अब आगे गिनने के लिए नहीं है.
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(इसमें हालांकि //टू वन जा टू// वाली पंक्तियों में 'जा' सही न होते हुए भी अब बोलचाल में आ गया है, इसलिए उपयोग में लिया.)

- चंद्रेश कुमार छतलानी

बुधवार, 16 नवंबर 2022

लघुकथा विधा में समाचार शैली का नवीन प्रयोग | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

इन दिनों योगराज प्रभाकर जी सर ने लघुकथा कलश के आगामी (11 वें) अंक हेतु रचनाएं मांगी हैं. यह एक विशिष्ट अंक होने वाला है, क्योंकि इसमें उन्होंने नए और अनछुए (कम-छुए) शिल्पों में ढली रचनाएं मांगी हैं. 

मेरे अनुसार यह हम सभी के लिए प्रयोग करने का अवसर होने के साथ-साथ एक चुनौतीपूर्ण कार्य भी है. कई मित्रों के दिमाग में आ सकता है कि चुनौती कैसी? यह तो बहुत आसान कार्य है. जी हाँ! आसान हो भी सकता है लेकिन मैं अपनी बात कहूं तो, लघुकथा कलश के पिछले अंक में मैंने 'समाचार शिल्प' की एक रचना कही थी. मुझे काफी समय लगा तो मेरे जैसे कुछ अन्य लेखक/लेखिकाएं भी होंगे ही. इसी कारण इस लेख का विचार भी आया. 

यहाँ मैं अपनी 'समाचार शिल्प' की एक लघुकथा के सर्जन के बारे में कुछ कहना चाहूंगा. इसके सर्जन के समय सबसे पहले दिमाग में यह आया था कि वह लघुकथा उत्तम नहीं कही जाती जो किसी समाचार सरीखी हो, मतलब उसका कथानक समाचार जैसा हो. लेकिन शिल्प के लिए तो किसी ने मना नहीं किया. यह विचार आते ही इस पर काम शुरू किया. समाचार पत्रों में समाचार बनाना मैंने थोड़ा-बहुत सीखा हुआ था, अतः शिल्प की जानकारी थी ही. फिर आगे बढ़ा तो समस्या आई - कथानक की

आदरणीय सुधीजनों, हम सभी जानते हैं कि, हर कथानक हर विधा के लिए उपयुक्त हो यह संभव नहीं. इसके एक कदम अंदर की तरफ,  मेरे अनुसार, हर कथानक हर शिल्प के लिए उपयुक्त हो, यह भी संभव नहीं. और, यही समस्या मेरे समक्ष थी. जो कथानक दिमाग में आते, उन्हें समाचार शिल्प में ढालने की कोशिश करता तो असफल हो जाता. एक तरीका था मेरे पास कि समाचार पत्र पढ़-पढ़ कर उनमें कोई कथानक ढूंढूं. वह कार्य भी किया, लेकिन जो कथानक मिले, उनमें नवीनता नहीं मिल पाई या फिर यूं भी कह सकते हैं कि मुझे ठीक नहीं लगे.

कई बार किसी काम के लिए महीने बीतते वक्त नहीं लगता है. सो इस बारे में कभी सोचते तो कभी न भी सोचते कुछ महीनों बाद एक कथानक का विचार आया, जो कि 'समाचार शिल्प' में ढाला जा सकता था. (यह लघुकथा अंत में दी गई है.) 

कुछ सोच कर उस पर काम शुरू किया और फिर धीरे-धीरे वह रचना बनती गई. ईश्वर कृपा से योगराज जी सर को ठीक भी लगी और लघुकथा कलश के 10वें अंक में प्रकाशित भी हो गई.

यह लेख का एक भाग था, आगे के भाग में मैं, समाचार शिल्प के बारे में ही कुछ बात रखना चाहूँगा, कि इस तरह के शिल्प में क्या-क्या हो सकता है. यह केवल प्राथमिक जानकारी हेतु ही है, अधिक के लिए आप अधिक अध्ययन कर ही सकते हैं.

समाचार

अपने आसपास से लेकर सूदूर अंतरिक्ष की घटनाओं की जानकारी प्राप्त होने को समाचार कहा जा सकता है. जानकारी प्राप्त करने का सबसे पुराना माध्यम समाचार ही है. लेकिन अनौपचारिक चर्चा या कुशलक्षेम पूछने में समाचार शब्द आए तो भी वह समाचार की श्रेणी में नहीं आता.

समाचार के गुण 

1. नवीनता: जो समाचार एक बार कहीं से प्राप्त हो जाए, वह अन्य किसी बड़े माध्यम से प्राप्त हो तो भी वह पुराना हो जाता है.

2. विशेषता: समाचार नया होने के साथ विशेष भी होना चाहिए. जैसे, मंत्री जी ने चप्पल पहना. यह बात नवीन हो सकती है, लेकिन इसमें क्या विशिष्टता है? यह हम सभी अच्छी तरह समझते ही हैं. हाँ! मंत्री जी बिना चप्पल पहन कर उबड़-खाबड़ रास्तों पर चले. यह बात ज़रूर विशिष्ट हो सकती है.

3. व्यापकता: समाचार के अंग्रेज़ी नाम NEWS के अनुसार ही समाचार का क्षेत्र हमारे आसपास से लेकर सूदूर अंतरिक्ष तक हो सकता है, जैसे पहले यहाँ लिखा भी है.

4. प्रामाणिकता: सत्य और तथ्यों पर आधारित ही कोई घटना समाचार बन सकती है. कोई भी अफवाह या प्रतीकों का इसमें स्थान नहीं होता. यह बात अपने लेखन से पूर्व ज़रूर ध्यान रखें.

5. रूचिपूर्णता: समाचार लेखन इस तरह का होना चाहिए, जो पढने में रुचिकर हो.

6. प्रभावशीलता: जो समाचार जितनी दक्षता से प्रभावशाली होता है, वही बेहतर कहलाता है.

7. स्पष्टता: यह समाचार का विशेष गुण है, लेखन-शैली अलंकारिक/क्लिष्ट आदि न होकर किसी भी प्रबुद्ध पाठक से लेकर कम पढ़े लिखे व्यक्ति तक की समझ में आ जाए, ऐसी हो. भाषा ऐसी हो जिसमें अनावश्यक विशेषण, अप्रचलित शब्दावली आदि का प्रयोग न हो. किसी के नाम से पूर्व श्री, श्रीमान आदि भी नहीं लगते हैं. 

समाचार कैसे लिखे जाएं?

छह ककारों (क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे) का ध्यान रखते हुए, अधिकतर समाचार उल्टी पिरामिड शैली में लिखे जाते हैं. यह इस प्रकार है:

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\  क्लाइमेक्स (इंट्रोडक्शन)  /

  \         बॉडी                /

    \       समापन          /

       \                        /

क्लाइमेक्स (इंट्रोडक्शन) : समाचार का शीर्षक भी कहा जा सकता है. अधिकतर बार इसमें क्या, कौन, कहाँ और कब इन चार ककारों के बारे में 10-20 शब्दों में कहा जाता है. शीर्षक एक से अधिक भी हो सकते हैं. निम्न उदाहरण से समझते हैं, यह एक ही समाचार के मुख्य व उप शीर्षक हैं:

मंत्री जी बिना चप्पल पहले जैसलमेर की तपती रेत पर चले

देश-बचाओ यात्रा का तीसरा दिन गर्म रहा

बॉडी: समाचार की बॉडी में इंट्रोडक्शन की व्याख्या और विश्लेषण किया जाता है.  इसके प्रारम्भ में इंट्रोडक्शन को विस्तृत करते हुए 30-50 शब्द और बाद में महत्व के अनुसार घटते क्रम में सूचनाएं और ब्योरा होता है. यह 'क्यों और कैसे' दो ककारों के आधार पर लिखा जाता है. साथ ही अन्य चार ककारों का भी उचित प्रयोग (खास तौर पर प्रारम्भ में) किया जाता है. बॉडी में समाचार के किसी भाग को हाईलाइट करने के लिए उप-शीर्षक भी दिए जा सकते हैं.

समापन: जो बातें समाचार के इंट्रोडक्शन व बॉडी में छूट गई हैं. उन्हें समापन में स्थान दिया जा सकता है. इसके जरिए पाठक किसी निर्णय या निष्कर्ष तक पहुँच सकें. यह समाचार को पूर्ण करता हुआ, पठनीय व प्रभावशाली होना चाहिए.

'समाचार शिल्प' के साथ मेरी एक लघुकथा निम्न है: चूंकि शोध सम्बन्धी रचना है, अतः इसके प्रभावी होने के बजाय इसके प्रयोग पर ही मेहनत की थी। 

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हाँ! मैं हारूंगा / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

खड़े होने की हिम्मत न होने के बावजूद जीत की हासिल

भीड़ हारने वाले के पीछे पड़ी

विशेष संवाददाता, नया खेल: शहर की दैनिक रेसलिंग प्रतियोगिता में आज एक रेसलर हार कर भी जीत गया। अखाड़े के मैनेजर ने नया खेल के विशेष संवाददाता को बताया कि आज रिंग में बिगहैण्ड नाम से मशहूर पहलवान से लड़ने के लिए चुनौती की घोषणा के बाद पहले तो कोई भी उससे लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि वह कभी नहीं हारा था। यह देख बिगहैण्ड रिंग में फुर्ती से टहलते हुए मखमली कपड़े की विजय पताका लहराने लगा। उसी वक्त एक दूसरा रेसलर बिगब्रेन चिल्लाता हुआ आया और उसकी चुनौती कबूल ली। रिंग के बाहर बिगब्रेन पर दांव लगने शुरू हुए। एक के दो होने पर भी कुछ ही दर्शकों ने उस पर दांव लगाया। लेकिन कुश्ती प्रारम्भ होते ही बिगब्रेन बिगहैण्ड पर भारी पड़ गया और उसके दांव का दाम बढ़ गया। अगले राउंड में तो बिगब्रेन ने बिगहैण्ड को ऐसा पटका कि वह खड़े होने में भी लड़खड़ाने लगा। अब बिगब्रेन पर एक के चार लगने शुरू हुए और बहुत सारे दर्शकों ने उस पर रुपये लगा दिए। लेकिन तीसरे राउंड के शुरू होते ही बिगहैण्ड ने बिगब्रेन के मुंह पर एक घूँसा मारा और उसी एक घूंसे में बिगब्रेन चित्त हो गया, वह खड़ा तक नहीं हो पाया और हर बार की तरह बिगहैण्ड विजेता घोषित कर दिया गया।

संवाददाता के बात करने के लिए बुलाने के बावजूद बिगहैण्ड अपनी मुट्ठियाँ ताने हाथों को उठाए हुए रिंग से बाहर निकलने को तैयार नहीं था। उधर अखाड़े से बाहर बिगब्रेन ने हार का कारण पूछने पर यही बताया कि वह चित्त हो गया था। संवाददाता कुछ और पूछे इसके पहले ही वह दौड़ कर भाग गया, उसकी जेब से कुछ नोट भी गिर गए, जिन्हें गिरते देख वह उठाने के लिए भी नहीं लौटा। काफी दर्शकों की भीड़ बिगब्रेन को देखती हुई भागती आ रही थी। 

भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी थे जो गिरे हुए नोट को देख कर चिल्ला रहे थे – मेरा नोट-मेरा नोट।

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- चंद्रेश कुमार छतलानी