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शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

लघुकथा अनुवाद | हिंदी से मैथिली | अनुवादकर्ता: डॉ. मिन्नी मिश्रा | लघुकथा: लहराता खिलौना

डॉ. मिन्नी मिश्रा एक सशक्त लघुकथाकारा हैं. न केवल लघुकथा लेखन बल्कि समीक्षा व अनुवाद पर भी उनकी अच्छी पकड है. वे एक ब्लॉग मिन्नी की कलम से का भी संचालन करती हैं. पटना निवासी श्रीमती मिश्रा को कई श्रेष्ठ पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त हैं. उन्होंने मेरी एक हिंदी लघुकथा 'लहराता खिलौना' का मैथिली भाषा में अनुवाद किया है, यह निम्न है:


 लहराइत खेलौना (अनुवाद: मिन्नी मिश्रा / मैथिली)

देश के संविधान दिवसक उत्सव समाप्त केलाक बाद एकटा नेता अपन घरक अंदर पैर रखने हे छलाह कि हुनकर सात- आठ वर्षक बच्चा हुनका पर खेलौना वाला बंदुक तानि देलक, आ कहलक , "डैडी, हमरा किछु पूछबाक अछि।"

नेता अपन चिर परिचित अंदाज में मुस्की मारैत कहलथि ,"पूछ बेटा।"

"इ रिपब्लिक- डे कि होइत छैक?" बेटा प्रश्न दगलक।

सुनैत देरी संविधान दिवसक उत्सव में किछु अभद्र लोग दुआरे लगेल गेल नारा के दर्द नेता के ठोरक मुस्की के भेद देलक ,नेता गंहीर सांस भरैत कहलथि,
"हमरा पब्लिक के लऽग में बेर- बेर जेबाक चाही , इ हमरा याद दियेबाक दिन होइत अछि रि- पब्लिक-डे..."

"ओके डैडी ,ओहिमें झंडा केऽ कोन काज पड़ैत छैक?" बेटा बंदूक तनने रहल।

नेता जवाब देलथि ,"जेना अहाँ इ बंदूक उठा कऽ रखने छी,ओहिना हमरा सभके इ झंडा उठा कऽ राखय पड़ैत अछि ।"

"डैडी, हमरो झंडा खरिदि कऽ दियऽ... नहि तऽ हम अहाँके गोली सं मारि देब।" बेटा के स्वर पहिने के अपेक्षा अधिक तिखगर छलैन्ह।

नेता चौंकलथि आ बेटा के बिगरैत कहलन्हि,"इ के सिखबैत अछि अहांके?" हमर बेटा के हाथ में बंदूक नीक नहि लगैत अछि।आ' ओतय ठाढ़ ड्राइवर के किछु आनय के इशारा करैत,ओ बेटा के हाथ सं बंदूक छिनैत आगु बजलाह,
"आब अहाँ गन सं नहि खेलाएब।झंडा मंगवेलौहें ओकरे सं खेलाउ।"एतबा बजैत बिना पाछां तकैत नेता सधल चालि सं अंदर चलि गेलाह।

अनुवादक- डॉ. मिन्नी मिश्रा, पटना
-०- 

मूल लघुकथा

लहराता खिलौना / डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए कहा,
"हमें पब्लिक के पास बार-बार जाना चाहिये, यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे..."

"ओके डैडी और उसमें झंडे का क्या काम होता है?" बेटे ने बन्दूक तानी हुई ही थी।

नेता ने उत्तर दिया, "जैसे आपने यह गन उठा रखी है, वैसे ही हमें झंडा उठाना पड़ता है।"

"डैडी, मुझे भी झंडा खरीद कर दो... नहीं तो मैं आपको गोली से मार दूंगा" बेटे का स्वर पहले की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण था।

नेता चौंका और बेटे को डाँटते हुए कहा, "ये कौन सिखाता है आपको? बन्दूक अच्छी नहीं लगती मेरे बेटे के हाथ में।" 
और उसने वहीँ खड़े ड्राईवर को कुछ लाने का इशारा कर अपने बेटे के हाथ से बन्दूक छीनते हुए आगे कहा,
“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”

कहते हुए नेता बिना पीछे देखे सधे हुए क़दमों से अंदर चला गया।
-०-

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

लघुकथा अनुवाद | हिंदी से अंग्रेज़ी

Bone of Ravana | Author: Suresh Saurabh | Translator: Aryan Chaudhary


"Uff... oh mother..." As soon as the doctor lifted his leg, he groaned loudly. "Well, how did this happen?" the doctor asked.

"Ravana was falling down. Along with many other people, I also ran to get his bones. Somewhere there was an open drain of the municipality. In that hustle and bustle of the crowd, my foot went into the drain."

The doctor, looking at him with burning eyes, said, "There has been a fracture. Don't go again to pick up Ravana's bones; otherwise your family members will come to collect your bones. Raise your feet now. I want to inject. Then the first raw plaster will be installed, and after three days, the solid one. "

He raised his leg and the doctor injected, which he could not bear and started screaming again, "Uff... oh mother..."

"No, no oh mother... yell out, Oh Ravana, ho Ravana. "The bones of Ravana will do good. "

Now he closed his eyes in great pain. With closed eyes, he could now see the terrible Ravana of wood, which was marching cruelly towards him. Slowly, Ravana was getting into it. He was breaking his knuckles. The pain was increasing...

His doctor was installing raw plaster.

-०-

Translated by - Aryan Chaudhary

Vill.Jhaupur post Londonpur Gola Lakhimpur kheri 

Uttar Pradesh (262802)

Email - aryan612006@gmail.com

मूल हिंदी में यह लघुकथा


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मंगलवार, 30 नवंबर 2021

लघुकथा अनुवाद: हिन्दी से उड़िया | अनुवादक: श्री शिवाशीष | लघुकथा: एक गिलास पानी | मूल लेखक: चंद्रेश कुमार छतलानी

मूल लघुकथा हिन्दी में पढने के लिए क्लिक करिए: एक गिलास पानी

(अनुवाद में भाषा के अनुसार अल्प परिवर्तन किए गए हैं.)

Translation By:

Shibashis Padhee
Hemgir, Sundargarh
Odhisha

ଗୋଟିଏ ଗ୍ଲାସ ପାଣି 

ଆଜି ବ୍ୟାଙ୍କ ରେ ଲମ୍ବା ଧାଡି ଲାଗିଛି !KYC ଫାର୍ମ ଦାଖଲ ର ଶେଷ ତାରିଖ ନିକଟ କୁ ଆସି ଗଲାଣି !କ୍ଲାର୍କ ଦୀନେଶ ବାବୁ ଯେ କି  ଫର୍ମ ତଦାରଖ କରୁଛନ୍ତି ଭାରି ବିରକ୍ତି ହୋଇ ଗଲେଣି !ଲୋକଙ୍କ ଭିଡ ଧୀରେ ଧୀରେ ବଢୁଛି !ସମସ୍ତେ ତରତର ରେ କେହି ଟିକିଏ ଅପେକ୍ଷା କରିବା ସ୍ଥିତି ରେ ନାହାନ୍ତି !ଠେଲା ପେଲା ଅବସ୍ଥା ରେ କାଉଣ୍ଟର ପଟେ ମାଡି ଯାଉଛନ୍ତି !
ଦୀନେଶ ବାବୁ  ବି ଭାରି ରାଗିକି ଜଣକୁ କହୁଥାନ୍ତି 
""ଏ କଣ ଲେଖି ଛନ୍ତି ମାଡାମ ପୁରା ଭୁଲ ହୋଇଗଲା ଯଦି ନିଜେ ନ ଜାଣୁଛନ୍ତି କାହାକୁ ପଚାରିବା କଥା ଯାଆନ୍ତୁ ନୂଆ ଫର୍ମ ଲେଖିକି ଆଣିବେ 
ଯେ ଯାହା ପାରିଲା ଧରି କି ଆସିଲା ଫ୍ରି ମିଳୁଛି ତ ଯଦି ଗୋଟାକୁ ଦଶ ଟଙ୍କା ପଡନ୍ତା ତା ହେଲେ ଜଣା ପଡନ୍ତା ""

ବହୁ ସମୟ ଧରି ଏ ସବୁ ଲକ୍ଷ୍ୟ କରୁଥିବା ବୃଦ୍ଧ ଜଣେ ଲାଇନ ରୁ ବାହାରି ପାଖରେ ଥିବା ଫିଲଟର ରୁ ଗୋଟିଏ ଗ୍ଲାସ ପାଣି ନେଇ କାଉଣ୍ଟର ପାର୍ଶ୍ଵ ରୁ ତାଙ୍କ ପାଖକୁ ବଢ଼ାଇ ଦେଲେ !

କ୍ଲାର୍କ ଜଣକ ପାଣି ଗ୍ଲାସ ଦେଖି ପଚାରିଲେ 
""କଣ ହେଲା ""
""ନାଇଁ ଆପଣ ବହୁ ସମୟ ହେଲା କଥା କହି କହି ଥକି ଯାଇଥିବେ ତଣ୍ଟି ଶୁଖି ଆସିବନି ପାଣି ଟିକେ ପି ଦିଅନ୍ତୁ ଭଲ ଲାଗିବ ""ବୁଝେଇଲା ଭଳି କହିଲେ ବୃଦ୍ଧ ଜଣକ !

ଅନ୍ୟ ଗ୍ରହ ରୁ ଆସିଥିବା ଲୋକ ଭଳିଆ କିଛି ସମୟ ଅନାଇ ରହି ପାଣି ପିଇ ଦୀନେଶ ବାବୁ କହିଲେ 
""ମୁଁ ସବୁବେଳେ ଅପ୍ରିୟ ସତ କହେ ତ ଏଥିପାଇଁ ସମସ୍ତେ ମତେ ରାଗନ୍ତି ଏଠି ପିଅନ ବି ମତେ ପାଣି ପଚାରୁନି ""

ଅଳ୍ପ ହସି ବୃଦ୍ଧ ଜଣକ ପୁଣି ଯାଇ ନିଜ ଜାଗା ରେ ଠିଆ ହୋଇ ଯାଇଥିଲେ !ଦୀନେଶ ବାବୁ  ପାଣି ପିଇ ନିଜ କାମ ଆରମ୍ବ କରି ଦେଇଥିଲେ କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କ ବ୍ୟବହାର ବଦଳି ଯାଇଥିଲା ସେ ନ ରାଗି କି ଲୋକ ଙ୍କୁ ବୁଝାଇ କହୁଥିଲେ !

ସନ୍ଧ୍ୟା ରେ ବୃଦ୍ଧ ଜଣକ ଙ୍କ ପାଖକୁ ଏକ ଫୋନ ଆସିଲା ଆର ପଟେ ଥିଲେ ସେହି ବ୍ୟାଙ୍କ କ୍ଲାର୍କ ଦୀନେଶ ବାବୁ, ସେ କହୁଥିଲେ ""ସାର ଆପଣ ଙ୍କ ଫର୍ମ ରୁ ନମ୍ବର ନେଇଛି ଓ ଧନ୍ୟବାଦ ଦେବା ପାଇଁ ଫୋନ କରିଛି ଆଜି ଅପଣଂକ ଗୁରୁ ମନ୍ତ୍ର ମୋର ବହୁ କାମ ରେ ଆସିଛି !
ବୃଦ୍ଧ ଚମକି କହିଲେ କି ଗୁରୁ ମନ୍ତ୍ର?? 

ଦୀନେଶ ବାବୁ କହୁଥିଲେ, ମୁଁ ଘର କୁ ଆସିଲା ବେଳେ ଘରେ ଜୋରସୋର ରେ  ଶାଶୁ ବହୁ ଙ୍କ ଝଗଡା ଚାଲି ଥିଲା ମୁଁ ଆପଣ ଙ୍କ ମନ୍ତ୍ର ପ୍ରୟୋଗ କରି ମା କୁ ଗ୍ଲାସେ ଓ ପତ୍ନୀ ଙ୍କୁ ଗ୍ଲାସେ ଲେଖାଏଁ ପାଣି ଦେଇ କହିଲି ତଣ୍ଟି ଶୁଖି ଯାଇ ଥିବ ଏଣୁ ପାଣି ଟିକିଏ ପି ଦେଇ ଟିକିଏ ବିଶ୍ରାମ ନିଅ ପରେ ଲଢ଼ିବ !
ଯାଦୁ ପରି ଲଢ଼ିବା ବନ୍ଦ କରି ଦେଲେ ସେମାନେ """

ବୃଦ୍ଧ ହସି ହସି କହୁଥିଲେ ରାଗ ର ସାମ୍ନା ଯଦି ରାଗ ସହ ହୁଏ ସେତେବେଳେ ରାଗ ବହୁ ଗୁଣିତ ହୁଏ  ଆସେ କିନ୍ତୁ ରାଗ ର ସାମ୍ନା ଯଦି ନମ୍ରତା, ବିନୟତା  ସହ ହୂଏ ତେବେ ରାଗ କୁ ପରିବର୍ତନ କରି ଦିଏ !

ମୃଦୁ ହସି ସମ୍ମତି ଦେଉଥିଲେ ଦୀନେଶ ବାବୁ !!!
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सोमवार, 29 नवंबर 2021

लघुकथा अनुवाद: हिन्दी से उड़िया | अनुवादक: श्री शिवाशीष | लघुकथा: शक्तिहीन | मूल लेखक: चंद्रेश कुमार छतलानी

हिन्दी में पढने लिए क्लिक कीजिए: शक्तिहीन (लघुकथा) : हिन्दी

अनुवाद में भाषा के अनुसार अल्प परिवर्तन किए गए हैं.

Translation By:

Shibashis Padhee
Hemgir, Sundargarh
Odhisha

ଶକ୍ତିହୀନ

ମୂଳଲେଖା -Chandresh Kumar Chhatlani
ଅନୁସୃଜନ -ଶିବାଶିଷ ପାଢ଼ୀ
ଅନୁକୂଳ ସ୍ରୋତରେ ପହଁରି ପହଁରି ଦିନେ ସମୁଦ୍ରରେ ପହଞ୍ଚି ଯାଇଥିଲା ମଧୁର ଜଳର ମାଛଟିଏ ! ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହେଉଥିଲା ସେ ! ଭାବୁଥିଲା
ଏ ପାଣି ଏତେ ଲୁଣି କାହିଁକି?
ଏଇଠି କେମିତି ବଞ୍ଚିବି ମୁଁ?
ବ୍ୟସ୍ତ ବିବ୍ରତ ହୋଇ ଏପଟ ସେପଟ ହେଉଥିବା ବେଳେ ପାଖକୁ ଆସିଥିଲା ଲୁଣିଜଳ ମାଛ ଟିଏ !
ପଚାରିଥିଲା --କଣ ହେଲା?
ଭାଇ,ଏ ପାଣି ଏତେ ଲୁଣି କାହିଁକି ମୁଁ ତ ଏଇଠି ବଂଚି ପାରିବି ନାହିଁ ? ପଚାରିଥିଲା ଏ ମାଛ
ହାଁ ଲୁଣି ମାନେ? ପାଣି ତ ଏମିତି ହିଁ ଥାଏ --ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହୋଇ କହିଥିଲା ସେ ସମୁଦ୍ର ମାଛ !
ନାଁ ନାଁ ପାଣି ତ ମଧୁର ବି ଥାଏ --ପୁଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଏ ମାଛ
କେଉଁଠି ପାଣି ମଧୁର ଥାଏ? ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହୋଇ ପାଖକୁ ଆସିଯାଉଥିଲା ଲୁଣିମାଛ କହିଥିଲା ଚାଲ ତ ଯିବା !ମୋତେ ଦେଖେଇବୁ...
ହଁ ହଁ... ଚାଲ --କହି ମୁହାଁଣ ଦିଗକୁ ପହଁରିବାର ଚେଷ୍ଟା କରୁଥିଲା ମଧୁରଜଳ ମାଛ !ହେଲେ କେବଳ ହଲୁଥିଲା ଡେଣା !ଜମା ଆଗକୁ ଯାଇପାରୁ ନଥିଲା ସେ !
ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ହେଉଥିଲା ସମୁଦ୍ର ମାଛ - ପଚାରିଲା
--କଣ ହେଲା ଭାଇ
ନିସ୍ତେଜ ହୋଇ ଯାଉଥିଲା ମଧୁରଜଳ ମାଛ ! ବହୁତ କଷ୍ଟରେ କହିଥିଲା --ଭାଇ ଦୀର୍ଘଦିନ ଧରି ସ୍ରୋତ ଅନୁକୂଳ ସ୍ରୋତରେ ପହଁରି ପହଁରି ମୋର ଅଭ୍ୟାସ ଖରାପ ହୋଇଯାଇଛି ! ସାମାନ୍ୟ ପ୍ରତିକୂଳ ସ୍ରୋତରେ ପହଁରି ପାରୁନାହିଁ ମୁଁ !
କିଛି ବୁଝୁ ନଥିଲା ସମୁଦ୍ର ମାଛ କେବଳ ତାଟକା ହୋଇ ଚାହିଁ ରହିଥିଲା ସେ!!!!!!!!!!!!!

सोमवार, 30 अगस्त 2021

आज कृष्ण जन्माष्टमी पर एक लघुकथा 'मृत्युदंड' का नेपाली अनुवाद पहिलोपोस्ट पर | लेखक (हिन्दी): डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

 मृत्युदण्ड [लघुकथा सन्दर्भ : कृष्ण जन्माष्टमी]

हजारौं वर्षसम्म नरकको यातना भोगेपछिमात्रै भीष्म र द्रोणाचार्यलाई मुक्ति मिल्यो। छट्पटिँदै दुवै जना नरकको ढोकाबाट बाहिर निस्किनासाथ अगाडि देखे - उभिइरहेका कृष्ण। अचम्म मान्दै भीष्मले सोधे – कन्हैया, तपाईँ यहाँ?


मुसुक्क मुस्काउँदै कृष्णले दुवैलाई ढोगे र भने, 'पितामह- गुरुवर म तपाईँहरु दुवैका लागि आएको हुँ। तपाईँहरुको पापको सजाय पूरा भयो।'


कृष्णको यस्तो भनाईले द्रोणाचार्य विचलित स्वरमा बोले, 'यति धेरै वर्षदेखि हामीले पाप गरेको सुन्दै आयौं। तर यति धेरै अवधि यातना सहनु पर्नेगरी त्यस्तो के पाप गर्‍यौं कन्हैया? के आफ्नो राजाको रक्षा गर्नु पनि… '


'होइन गुरुवर।'


कृष्णले उनलाई बोल्दा बोल्दै रोके।


'केही अरु पापका अतिरिक्त तपाईँ दुवैले एउटा महापाप गर्नुभएको थियो।'


कृष्णले यसो भनिरहँदा भीष्म र द्रोणाचार्य दुवै आश्चर्य भावमा देखिए।


कृष्णले उनीहरुको भाव बुझेरै भने, 'जब त्यत्रो सभामा द्रोपदीको बस्त्र हरण भइरहेको थियो, तपाईँहरु दुवै अग्रज मौन रहनु भयो। उनको शीलको रक्षा गर्नुको साटो चुपो लागेर त्यो अपराध कर्मलाई स्वीकार्नु महापाप थियो।'


सुमधुर शैलीमा कृष्णले बताएपछि भीष्मले टाउको हल्लाउँदै उनका अभिव्यक्तिलाई सहर्ष स्वीकारे। तर, द्रोणाचार्यसँग अझै प्रश्न थियो। उनले सोधे – 'हामीलाई त हाम्रो पापको सजाय मिल्यो। तर हामी दुवैको तपाईँले झुक्याएर हत्या गराउनु भयो। तर तपाईँलाई चाहिँ त्यो अपराधमा ईश्वरले कुनै सजाय दिएनन्। यस्तो किन भयो?'


प्रश्न गम्भीर थियो। कृष्णको अनुहार एकाएक परिवर्तन भयो। त्यो परिवर्तनमा पीडा झल्किन्थ्यो। उनले लामो सास फेरे। आँखा बन्द गरे। उनीहरुको अनुहार हेर्न सकेनन्, अनि फर्किए। पीडा र बेदनासहित उनको बोली फुट्यो।


'तपाईँहरुले जस्तो अपराध गर्नु भएको थियो, अहिले धर्तीमा त्यस्तो अपराध धेरैले गरिरहेका छन्। तर, कुनै पनि बस्त्रहीन द्रोपदीलाई बस्त्र दिन जान म सक्दिनँ।'


कृष्ण द्रोणाचार्य र भीष्मतिर फर्किए। भने, 'गुरुवर-पितामह, के यो दण्ड पर्याप्त छैन? आज पनि तपाईँहरु जस्ता धेरै धर्तीमा जीवित हुनुहुन्छ तर त्यहाँ कृष्ण त मरिसकेको छ नि…'


Source:

https://pahilopost.com/content/20210830112241.html

हिन्दी में मूलकथा 

हज़ारों वर्षों की नारकीय यातनाएं भोगने के बाद भीष्म और द्रोणाचार्य को मुक्ति मिली। दोनों कराहते हुए नर्क के दरवाज़े से बाहर आये ही थे कि सामने कृष्ण को खड़ा देख चौंक उठे, भीष्म ने पूछा, "कन्हैया! पुत्र, तुम यहाँ?"

कृष्ण ने मुस्कुरा कर दोनों के पैर छुए और कहा, "पितामह-गुरुवर आप दोनों को लेने आया हूँ, आप दोनों के पाप का दंड पूर्ण हुआ।"

यह सुनकर द्रोणाचार्य ने विचलित स्वर में कहा, "इतने वर्षों से सुनते आ रहे हैं कि पाप किया, लेकिन ऐसा क्या पाप किया कन्हैया, जो इतनी यातनाओं को सहना पड़ा? क्या अपने राजा की रक्षा करना भी..."

"नहीं गुरुवर।" कृष्ण ने बात काटते हुए कहा, "कुछ अन्य पापों के अतिरिक्त आप दोनों ने एक महापाप किया था। जब भरी सभा में द्रोपदी का वस्त्रहरण हो रहा था, तब आप दोनों अग्रज चुप रहे। स्त्री के शील की रक्षा करने के बजाय चुप रह कर इस कृत्य को स्वीकारना ही महापाप हुआ।"

भीष्म ने सहमति में सिर हिला दिया, लेकिन द्रोणाचार्य ने एक प्रश्न और किया, "हमें तो हमारे पाप का दंड मिल गया, लेकिन हम दोनों की हत्या तुमने छल से करवाई और ईश्वर ने तुम्हें कोई दंड नहीं दिया, ऐसा क्यों?"

सुनते ही कृष्ण के चेहरे पर दर्द आ गया और उन्होंने गहरी सांस भरते हुए अपनी आँखें बंद कर उन दोनों की तरफ अपनी पीठ कर ली फिर भर्राये स्वर में कहा, "जो धर्म की हानि आपने की थी, अब वह धरती पर बहुत व्यक्ति कर रहे हैं, लेकिन किसी वस्त्रहीन द्रोपदी को... वस्त्र देने मैं नहीं जा सकता।"

कृष्ण फिर मुड़े और कहा, "गुरुवर-पितामह, क्या यह दंड पर्याप्त नहीं है कि आप दोनों आज भी बहुत सारे व्यक्तियों में जीवित हैं, लेकिन उनमें कृष्ण मर गया..."

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

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बुधवार, 11 दिसंबर 2019

'मेरी चुनिंदा लघुकथाएं' का ब्रजभाषा में अनुवाद | लेखक: मधुदीप गुप्ता | अनुवादक: रजनीश दीक्षित

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री मधुदीप गुप्ता  के लघुकथा संग्रह मेरी चुनिंदा लघुकथाएं का श्री रजनीश दीक्षित द्वारा ब्रजभाषा में अनुवाद किया गया है। इस महत्वपूर्ण कार्य का दस्तावेज निम्न है :

Hello

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा की एक लघुकथा और उसका अंग्रेजी अनुवाद

फोटो सेसन / मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

सांसद साहब सुबह-सुबह पूरे दलबल के साथ शहर की मुख्य सड़क पर आ चुके थे। उनके आते ही सड़क पर सरकारी गार्डन का कूड़ा करकट बिखेरा गया। सांसद जी ने एक लम्बा सा झाडू चलाना प्रारम्भ किया तो उनके देखा-देखी उनके चेले चपाटों ने भी स्वच्छता अभियान में चार चाँद लगा दिये।

तभी पीछे से आवाज आई - ‘हो गया सर हो गया’... और कैमरे शांत हो गये।

सांसद जी ने अपने निजी सहायक को कुछ इशारा किया और चमचमाती विदेशी कार से फुर्र हो गये।

और इस फोटो सेसन में सहभागी सभी मीडिया कर्मी अपना-अपना लिफाफा लेकर न्यूज रुम, प्रिंट रुम की तरफ दौड़ पड़े।
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ग्राम रिहावली, डाक तारौली, 
फतेहाबाद, आगरा, 283111,उ.प्र.

अंग्रेजी अनुवाद (English Translation)

Photo Session / Mukesh Kumar Rishi Verma
Translation By: Dr. Chandresh Kumar Chhatlani

In the early morning, MP sahab had arrived at the main road of the city with gathering of people. As soon as he arrived, the garbage of the Government Garden is scattered on that road. The MP Saheb started sweeping with a long broom. After seeing this, his disciples have also put four moons in the cleanliness campaign.

Then a voice came from behind - 'Done Sir, it is done.' ... and all the cameras went quiet.

The MP Saheb made a few gestures to his personal secretary and gone in the gleaming foreign car.

And all the media workers participating in this photo session took their envelopes and ran towards the news desk room, print room.
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- 3 PA 46, Prabhat Nagar
Sector-5, Hiran Magari
UDAIPUR - 313 002

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

लघुकथा समाचार

दिल की गहराइयों को छू जाती है सिमर सदोष की लघु कथाएं: जेबी गोयल
साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां का पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का विमोचन
Amar Ujala | Jalandhar  | 06 Oct 2018


साहित्यकार सिमर सदोष की लघुकथाएं दिल को छू जाती हैं। उनकी हर कथा में सामाजिक कुरीति पर जबरदस्त प्रहार किया गया हैं, जो उनकी कल्पना शक्ति की ताकत बयान करता है। यह कहना था लेखक और जालंधर के पूर्व कमिश्नर जंग बहादुर गोयल का। गोयल वरिष्ठ साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह ‘एक मुट्ठी आसमां’ के पंजाबी अनुवाद ‘आटे दा दीवा’ का लोकार्पण कर रहे थे।

साहित्यकार सिमर सदोष के लघु कथा संग्रह एक मुट्ठी आसमां को युवा पत्रकार और लेखक दीपक शर्मा चनारथल ने पंजाबी में अनुवाद किया हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंजाब कला परिषद के महासचिव डॉ. लखविंदर सिंह सोहल ने की। पुस्तक रिलीज के दौरान लेखक दीपक चनारथल ने कहा कि सिमर सदोष की लघु कथाएं अपने आप में संपूर्ण है। पत्रकारिता के क्षेत्र में सिमर ने जितना अहम योगदान दिया है, उतना ही योगदान साहित्य में भी है।

मुख्य मेहमान जंग बहादुर गोयल व डॉ. लखविंदर जोहल ने कहा कि लघु कहानियां साहित्य की सबसे सुंदर विधा है। उन्होंने हिंदी कहानियों को पंजाब के लोगों तक पंजाबी में पहुंचाने का आभार प्रकट किया। साहित्यकार सिमर सदोष ने दीपक चनारथल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उनके लघु कथा संग्रह को पंजाबी में अनुवाद कर उन्होंने पंजाब के लोगों को तोहफा दिया हैं। कार्यक्रम का संचालन भूपेंद्र मालिक ने किया और सभा के प्रधान बलकार सिद्धू ने मेहमानों का आभार प्रकट किया। इस मौके पर मोहन सपरा, अजय शर्मा, प्रेम विज, मनजीत कौर मीत, राकेश शर्मा पाल अजनबी, डॉ. अवतार सिंह, संजीव शारदा, अशोक सिंह मौजूद थे।

News Source:
https://www.amarujala.com/punjab/jalandhar/121538843995-jalandhar-news