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सोमवार, 7 अप्रैल 2025

आलेख: लघुकथा का कविता में रूपांतरण (एक सृजनात्मक अन्वेषण) | डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी

"कविता वह दर्पण है, जिसमें लघुकथा की आत्मा को नए अंदाज़ में देखा जा सकता है।"

लघुकथा, साहित्य की वह सूक्ष्म कला है जो एक पल, एक संवाद, या एक अनुभव को इतनी सघनता से पिरोती है कि पाठक के मन में गूँजती रह जाती है। परंतु जब इसी लघुकथा को कविता के रूप में ढाला जाता है, तो यह एक नया जन्म लेती है-शब्दों का संगीत, भावों का नृत्य, और छंदों की लयबद्धता के साथ। यह रूपांतरण केवल शैली का परिवर्तन नहीं, बल्कि कथा के मर्म को हृदय तक पहुँचाने का एक काव्यमय तरीका है।

लघुकथा और कविता: साहित्यिक उड़ान के दो पंख

लघुकथा और कविता, दोनों ही मानवीय भावनाओं के सशक्त माध्यम हैं, पर उनकी अभिव्यक्ति का ढंग भिन्न है:

लघुकथा: लघुकथा को एक वृक्ष मानें तो जड़ें घटना में, तने कथा में, और फल संदेश व चिंतन में कह सकते हैं। 

कविता: कविता सागर की तरह है, जिसकी लहरें भावों की, गहराई अर्थ की, और मोती शब्दों के माने जा सकते हैं।

जब ये दोनों मिलते हैं, तो एक ऐसी सृजनात्मक ऊर्जा जन्म लेती है जो पाठक को सोचने, महसूस करने और रचनात्मकता के नए आयामों से रूबरू कराती है। गद्य से पद्य में रूपांतरण गद्य में निहित उन अनकहे भावों को दर्शा सकता है, जो कि गद्य में दर्शाना लगभग असंभव सा प्रतीत होता है।

पांच चरणों में लघुकथा का काव्यमय जन्म

1. भावों की खोज: कथा की आत्मा को पकड़ें

लघुकथा के मूल भाव एवं विषय, जैसे विसंगति, प्रेम, विषाद, सत्य, निराशा या आशा को पहचानें। ये भाव कविता की नींव होंगे।

2. शब्द:

कविता के लिए ऐसे शब्द चुनें जो भाव को दृश्य और संवेदना में बदल दें।

3. लय और संगीत:

छंद और तुकबंदी से कविता को स्मरणीय बनाएँ। मुक्त छंद या तालबद्ध रचना चुन सकते हैं।

4. संक्षिप्तता:

लघुकथा की सारगर्भिता बनाए रखते हुए, कविता को सघन और प्रभावशाली बनाएँ।

5. पुनर्लेखन:

रचना को जोर से पढ़ें, लय की त्रुटियाँ सुधारें, और भावों की संवेदनशीलता और संप्रेषणीयता बढ़ाएँ।

उदाहरण: यहाँ हम एक लघुकथा का उदाहरण लेकर चर्चा करते हैं,

लघुकथा: मैं जानवर

कई दिनों के बाद अपने पिता के कहने पर वह अपने पिता और माता के साथ नाश्ता करने खाने की मेज पर उनके साथ बैठा था। नाश्ता खत्म होने ही वाला था कि पिता ने उसकी तरफ देखा और आदेश भरे स्वर में कहा, 

"सुनो रोहन, आज मेरी गाड़ी तुम्हें चलानी है।", कहते हुए वह जग में भरे जूस को गिलास में डालने लगे। लेकिन पिता का गिलास पूरा भरता उससे पहले ही उसने अंडे का आखिरी टुकड़ा अपने मुंह में डाला और खड़ा होकर चबाता हुआ वॉशबेसिन की तरफ चल पड़ा।

उसकी माँ भी उसके पीछे-पीछे चली गयी और उसके पास जाकर उसका हाथ पकड़ कर बोली, "डैडी ने कुछ कहा था..."

"हूँ..." उसने अपने होठों को मिलाकर उन्हें खींचते हुए कहा।

"तो उनके लिए वक्त है कि नहीं तेरे पास?" माँ की आँखों में क्रोध उतर आया

और उसके जेहन में कुछ वर्षों पुराना स्वर गूँज उठा, 

"रोहन को समझाओ, मुझे दोस्तों के साथ पार्टी में जाना है और यह साथ खेलने की ज़िद कर रहा है, बेकार का टाइम वेस्ट..."

पुरानी बात याद आते ही उसके चेहरे पर सख्ती आ गयी और वॉशबेसिन का नल खोल कर उसने बहुत सारा पानी अपने चेहरे पर डाल दिया, कुछ पानी उसके कपड़ों पर भी गिर गया।

यह देखकर माँ का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, वह चिल्ला कर बोली,"ये क्या जानवरों वाली हरकत है?"

उसने वहीँ लटके तौलिये से अपना मुंह पोंछा और माँ की तरफ लाल आँखों से देखते हुए बोला,

"बचपन से तुम्हारा नहीं जानवरों ही का दूध पिया है मम्मा फिर जानवर ही तो बनूँगा और क्या?"

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कविता में रूपांतरण:

भावों की खोज:

कथा में अवहेलना, क्षोभ, कटाक्ष का भाव है। बचपन में की गई उपेक्षा और अब वही उपेक्षा को लौटाने की पीड़ा मुख्य भाव है।

शब्द:

संवादों को छोटे-छोटे, प्रभावी अंशों में ढाला जाए।

चित्रात्मक शब्दों का प्रयोग हो सकता है ("आँखों में उसकी आग समाई", "गुस्से में माँ चिल्लाई")।

लय और संगीत:

मुक्तछंद में आंतरिक प्रवाह के साथ। कथात्मकता बनी रहे, इसके लिए छोटे वाक्यों में भाव व्यक्त किए जा सकते हैं।

संक्षिप्तता:

मूल कथा की आत्मा को बरकरार रखते हुए, कम शब्दों में पूरी रचना कविता में कही जाए।

कविता : मैं जानवर

जूस पीते पिता ने कहा,

"आज गाड़ी तुम चलाना।"

अनसुना कर बेटा उठा,

उसे तो था अंडा चबाना।


माँ ने रोका हाथ पकड़कर,

"डैडी की बात सुनो कभी,

क्या उनके लिए वक्त नहीं है,

बस अपनी धुन में रहते सभी!"


बेटे की यादों में चित्र उभरे,

गूँज उठा सोच में एक पुराना स्वर,

"रोहन को समझाओ ज़रा,

है पार्टी ज़रूरी, रुकूं कैसे मैं घर!"


याद आई बातें, बदला था चेहरा,

नल से पानी उसने तेज़ बहाया,

कुछ गिरा कपड़ों पर उसके,

देख माँ का गुस्सा बढ़ आया।


"क्या यह जानवरों की हरकत?!"

गुस्से में थी माँ चिल्लाई,

बेटे ने तौलिया उठाकर देखा,

आँखों में उसकी आग समाई।


"बचपन से माँ, तुम्हारा नहीं, 

जानवरों का दूध है पिया,

तो जानवर ही बनूँगा ना,

और क्या - और क्या?"

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निष्कर्ष:

लघुकथा का काव्य में रूपांतरण, दो विधाओं का मिलन है- एक ओर लघुकथा की मितभाषिता, दूसरी ओर कविता का संगीत। यह प्रक्रिया पाठक को न सिर्फ कथा के सार से जोड़ती है, बल्कि उसे शब्दों के नृत्य में भी डुबो देती है। जैसे एक ही फूल को अलग-अलग कोण से देखने पर नए रंग दिखते हैं, वैसे ही लघुकथा का काव्य रूप हमें जीवन के सत्यों को देखने की एक नई दृष्टि देता है।

यह रूपांतरण केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि भावों का पुनर्जन्म है। जब लघुकथा कविता बनती है, तो वह पाठक के मन में अमिट छाप छोड़ सकती है, एक ऐसी छाप जो सोचने पर मजबूर करती है, और महसूस करने को प्रेरित।

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चंद्रेश कुमार छ्तलानी 
9928544749
उदयपुर, राजस्थान

प्रेरणा: 
शेख शहज़ाद उस्मानी जी द्वारा लघुकथा का काव्य रूपांतरण।

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