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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

वरिष्ठ लघुकथाकार श्री योगराज प्रभाकर की फेसबुक वॉल से

 डॉ० रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित लघुकथा संकलन 'विभाजन त्रासदी की लघुकथाएँ' दिनांक 31 अक्तूबर 2021 को सिरसा में उन्हीं के कर-कमलों द्वारा प्राप्त हुआ। इसमें विभाजन की त्रासदी का हौलनाक चित्रांकन करती 47 लघुकथाकारों की 75 लघुकथाएँ शामिल हैं। 47 की संख्या वर्ष 1947 में हुए विभाजन तथा 75 की संख्या स्वतंत्रता की हीरक जयंती का प्रतिनिधित्त्व करती है। भारत विभाजन के विषय को लेकर यह सर्वप्रथम लघुकथा संकलन है। इसमें एक-से-बढ़कर एक लघुकथाएँ हैं। किंतु मुझे जिस लघुकथा ने बेहद प्रभावित किया है सुश्री पवित्रा अग्रवाल की लघुकथा 'जलन'। इस लघुकथा में पात्र का कोई नाम नहीं, वह किस धर्म है उसका कोई उल्लेख नहीं. वह भारत का है या पकिस्तान का, इसका भी कोई ज़िक्र नहीं. लेकिन मानववादी दृष्टिकोण से लिखी इस लघुकथा में जो संदेश है वह उस साझा दुख को बख़ूबी उभारने में सफल रहा है, जो दोनों तरफ़ के लोगों ने भोगा था. यह होता है लेखकीय कौशल जो एक तीर से कई-कई निशाने लगाने की क्षमता रखता है।

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जलन / पवित्रा अग्रवाल

"दादा आप उन लोगों से इतने खफा क्यों रहते हैं ?"

"बेटा मैंने बँटवारे का दर्द भोगा है। अपनी ज़मीन, जायदाद, जमा हुआ व्यापार सब छोड़कर रातों-रात वहाँ से भागना पड़ा था। रास्ते में माँ, दादा, दादी, बहन, भाई, बुआ, चाचा सभी छूटते गए।"

"कहाँ छूटते गए दादा?"

"मार दिए गए, उठा लिए गए या भीड़ में छूट गए।"

"तब आप कितने बड़े थे दादा?"

"मैं तो बहुत छोटा था, उतना याद भी नहीं रहता पर पूरी उम्र पिता को तिल-तिल कर मरते देखता रहा, माँ को तो तस्वीर में भी नहीं देखा। जब यह सब याद आता है तो दिल जलने लगता है।"

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