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मंगलवार, 22 मार्च 2022

बीजेन्द्र जैमिनी जी द्वारा संपादित इनसे मिलिए (ई-साक्षात्कार संकलन) के अंतर्गत मेरा साक्षात्कार

 प्रश्न न.1 -  लघुकथा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व कौन सा है ?

उत्तर - मेरे अनुसार यों तो लघुकथा में कोई ऐसा तत्व नहीं हैं जिसका महत्व कम हो क्योंकि जब कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कहनी है तो शीर्षक से लेकर अंत तक सभी शब्दों, शिल्प आदि पर पूरा ध्यान देना होता ही है। मैं अपने लेखन में सबसे अधिक विषय (विशेष तौर पर जो समकालीन यथार्थ पर आधारित हो) के अध्ययन को समय देता हूँ फिर कथानक और उसके प्रस्तुतिकरण के निर्धारण में।


प्रश्न न.2 -  समकालीन लघुकथा साहित्य में कोई पांच नाम बताओं?  जिनकी भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है?

उत्तर - हालांकि पांच से अधिक नाम जेहन में आ रहे हैं, फिर भी प्रश्न की सीमा न लांघते हुए मैं सर्वश्री योगराज प्रभाकर, अशोक भाटिया, बलराम अग्रवाल, मधुदीप गुप्ता व उमेश महादोषी के नाम लेना चाहूंगा। वस्तुतः आप (बीजेंद्र जैमिनी) सहित कई अन्य वरिष्ठ व कई नवोदित भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।


प्रश्न न.3 - लघुकथा की समीक्षा के कौन - कौन से मापदंड होने चाहिए ?

उत्तर - मेरे अनुसार निम्न तत्वों पर एक लघुकथा समीक्षक को ध्यान देना आवश्यक है:-

रचना का उद्देश्य, विषय, लाघवता व पल विशेष, कथानक, शिल्प, शैली, शीर्षक, पात्र, भाषा एवं संप्रेषण, संदेश / सामाजिक महत्व, न्यूनतम अतिशयोक्ति व सांकेतिकता। इनके अतिरिक्त मेरा यह भी मानना है कि कोई लघुकथा अपने पाठकों को कितना प्रभावित कर सकती है इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए।


प्रश्न न.4 - लघुकथा साहित्य में सोशल मीडिया के कौन-कौन से प्लेटफॉर्म बहुत महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर - पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया ने लघुकथा को स्थापित करने में सहायता की है। फेसबुक, व्हाट्सएप्प, यूट्यूब, फोरम व ब्लोग्स द्वारा फिलवक्त लघुकथा पर काफी कार्य किया जा रहा है। आने वाले समय में अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यथा इन्स्टाग्राम,  पिनट्रेस्ट, लिंक्डइन, ट्वीटर आदि पर अच्छे कार्य होने की उम्मीद है।


प्रश्न न.5 - आज के साहित्यिक परिवेश में लघुकथा की क्या स्थिति है ?

उत्तर - फिलहाल लघुकथाएं मात्रात्मक दृष्टि से एक अच्छी संख्या में कही जा रही हैं, हालांकि गुणात्मकता पर विचार करें तो उनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है। संपादकों व प्रकाशकों को भी पुस्तकों, संग्रहों, संकलनों आदि में कहीं न कहीं समझौता करना ही पड़ता है। इसके अतिरिक्त रचनाओं में समसामयिक विषयों की भी कमी प्रतीत होती है। ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण, राजनीतिक पतन, साइबर क्राइम, दिव्यांग जैसे वर्ग की समस्याएं, पुरातन लोक संगीत / वास्तुकला आदि के सरंक्षण सहित कई विषय ऐसे हैं जिन पर कलम बहुत अधिक नहीं चली है। कहीं-कहीं लघुकथा की समीक्षा में निष्पक्षता की आवश्यकता भी महसूस होती है।


प्रश्न न.6 - लघुकथा की वर्तमान स्थिति से क्या आप सतुष्ट हैं ?

उत्तर - यह एक अच्छी बात है कि लघुकथा अब अधिकतर साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। इससे प्रबुद्ध पाठकों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। गुणात्मकता के अतिरिक्त प्रकाशित रचनाओं में कभी-कभी प्रूफ रीडिंग, सम्पादन व कुछ निष्पक्षता की आवश्यकता ज़रूर प्रतीत होती है। मैं उन सभी लघुकथाकारों की हृदय से प्रशंसा करना चाहूँगा, जिन्होंने इस विधा को स्थापित करने में अपना समय और धन दोनों को बिना सोचे खर्च किया है। आप सभी के परिश्रम से जो स्थान इस विधा को प्राप्त हुआ है उससे मुझ सहित अन्य लघुकथाकारों को काफी संतुष्टि मिलना स्वाभाविक ही है। हालांकि, मुझे अपने लेखन से स्वयं को संतुष्टि मिल पाए, ऐसा समय अभी नहीं आया।


प्रश्न न.7 - आप किस प्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं?  बतायें किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं?

उत्तर - मैं यों तो विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ, लेकिन हिन्दी व अन्य भाषाओं और साहित्य में रूचि प्रारम्भ से ही रही। पढ़ने के नाम पर मैं जो कुछ भी मिले पढ़ लेता था। शिक्षा समाप्ति के बाद देश-विदेश के विभिन्न संस्थानों के लिए सॉफ्टवेयर व वेबसाइट निर्माण किए और कुछ समय पश्चात् शिक्षण व शोध के क्षेत्र में आ गया। फिलहाल मैं कम्प्यूटर विज्ञान के छात्रों का ही मार्गदर्शक बन पाया हूँ। नवीन विषयों तथा भिन्न शिल्प को लेकर लेखन करना मुझे पसंद है।


प्रश्न न.8 - आप के लेखन में आपके परिवार की भूमिका क्या है?

उत्तर - परिवार से मुझे सदैव प्रोत्साहन ही मिला है। वस्तुतः जो समय मुझे परिवार को देना चाहिए, उसी में से कुछ वक्त निकाल कर मैं साहित्य सृजन कर पाता हूँ, लेकिन कभी शिकायत नहीं मिली। परिवार के सदस्यों को मैं समय-समय पर लेखन कार्य में प्रवृत्त करने का प्रयास भी करता हूँ और उनसे प्रेरणा भी प्राप्त करता हूँ।


प्रश्न न.9 - आप की आजीविका में आपके लेखन की क्या स्थिति है ?

उत्तर - अभी इस बारे में सोचा नहीं। हालांकि साहित्यिक पुस्तक बिक्री, प्रतियोगिताओं, शोध-कार्य आदि से कुछ आय हुई भी है लेकिन अधिकतर बार उसे अन्य पुस्तकें खरीदने में ही खर्च किया है।


प्रश्न न.10 - आपकी दृष्टि में लघुकथा का भविष्य कैसा होगा ?

उत्तर - जिस तरह से लघुकथा विधा उन्नति कर रही है, यह प्रतीत होता है कि गद्य विधा में जल्दी ही लघुकथा का ही युग होगा। इस हेतु उचित सृजन महती कार्य है। मेरा मानना है कि किसी लेखक को लघुकथा को सिद्ध करना है तो सबसे पहले उसके विषय व कथानक को आत्मसात कर उसमें निहित पात्रों को स्वयं जीना होता है। वे बातें भी दिमाग में होनी चाहिए जो हम रचना में तो नहीं लिख रहे हैं लेकिन रचना को प्रभावित कर रही हैं। इसीसे लेखन में जीवन्तता आती है। इस प्रकार का लेखन पर्याप्त समय लेता है और इसके विपरीत जल्दबाजी में विधा और साहित्य दोनों को हानि होती है। हालांकि समय स्वयं अच्छी रचनाओं को अपने साथ भविष्य की ओर बढाता है तथा अन्य को पीछे छोड़ देता है। लेकिन यह भी सत्य है कि इन दिनों कई रचनाएं ऐसी भी कही जा रही हैं, जो विधा की उन्नति के समय को बढ़ा रही हैं। लघुकथा पर शोध व नवीन प्रयोग भी आवश्यकता से कम हो रहे हैं। लघुकथा में नए मुहावरे भी गढ़े जा सकते हैं। बहरहाल, इन सबके बावजूद भी मैं विधा के अच्छे भविष्य के प्रति आश्वस्त हूँ क्योंकि वर्तमान अधिक बिगड़ा हुआ नहीं है बल्कि अपेक्षाकृत बेहतर है।


प्रश्न न.11 - लघुकथा साहित्य से आपको क्या प्राप्त हुआ है ?

उत्तर - कहीं पढ़ा था कि, “Literature is a bridge from disappointment to hope.” यह बात लेखन पर भी लागू होती है। लघुकथा में लेखकीय प्रवेश वर्जित है, इस बात का अपनी तरफ से जितना रख सकता हूँ, ध्यान रखते हुए, कई बार अपनी बात जुबानी न कहने की स्थिति में उसे लघुकथा के रूप में ढाल देता हूँ, उससे मानसिक शांति तो प्राप्त होती ही है और साथ ही अपनी बात इस प्रकार कह देने का अवसर भी मिलता है। कई विषयों को पढ़ कर समझने की प्रवृत्ति को एक नई दिशा भी मिली तथा सोच का दायरा भी विस्तृत हुआ। साथ ही शोध हेतु यह एक और विषय भी मिला। इनके अतिरिक्त मुझे गुरुओं का जो मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, वरिष्ठ लघुकथाकारों का जो आशीर्वाद मिला और समकालीन व मेरे लेखन प्रारम्भ करने के बाद आए लघुकथाकारों का जो स्नेह प्राप्त हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असंभव है।

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