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बुधवार, 16 मार्च 2022

समीक्षा | लघुकथा-संग्रह " ब्रीफ़केस" | लेखक: नेतराम भारती | हिन्दी दैनिक समाचार- पत्र "इंदौर समाचार" में प्रकाशित | समीक्षाकार: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी





पुस्तक: ब्रीफ़केस (लघुकथा- संग्रह )

लघुकथाकार : नेतराम भारती

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, दिल्ली

पृष्ठ :160

मूल्य : 315/-


समकालीन संवेदनाओं के ओजपूर्ण कथन

- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी 


नेल्सन मंडेला ने कहा था कि, "यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं जो वो समझता है तो बात उसके दिमाग में जाती है, लेकिन यदि आप उससे उसकी अपनी भाषा में बात करते हैं तो बात सीधे उसके दिल तक जाती है।" साहित्य भी इसी प्रकार के दृष्टिकोण से निर्मित किया जाता है और साहित्य की एक विधा - लघुकथा चूँकि न्यूनतम शब्दों में अपने पाठकों को दीर्घ सन्देश दे पाती है। अतः ऐसा वातावरण, जो मानवीय संवेदनाओं और समकालीन विसंगतियों को दिल तक उतार पाए, का निर्माण करने में लघुकथा का दायित्व अन्य गद्य विधाओं से अधिक स्वतः ही हो जाता है।

हिन्दी शिक्षक, गद्य व पद्य दोनों ही की विभिन्न विधाओं में समान रूप से सक्रिय युवा लेखक श्री नेतराम भारती के लघुकथा संग्रह 'ब्रीफ़केस' में भी सामयिक भाषा व समकालीन विषय, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक यथार्थ की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं, की एक सौ एक रचनाएं संगृहीत हैं। लघुकथा लघु और कथा की मर्यादाओं के साथ-साथ जिस क्षण विशेष की बात कर रही होती है, वह, पूरी रचना में हाथों से फिसलना नहीं चाहिए अन्यथा लघुकथा के भटक जाने का खतरा होता है। नेतराम भारती की लघुकथाएं इन दृष्टिकोणों से आश्वस्त करती हैं, इनके अतिरिक्त उनकी कलम किसी नोटों से भरे ब्रीफ़केस से ऊपर उठी दिखाई देती है। इस संग्रह की ‘ब्रीफ़केस’ लघुकथा इसी विचार पर केन्द्रित है। जमील मज़हरी का एक शे'र है,

 "जलाने वाले जलाते ही हैं चराग़ आख़िर, 

ये क्या कहा कि हवा तेज़ है ज़माने की।" 

इस संग्रह की एक अन्य लघुकथा 'रसीदी टिकट' भी भोगवादिता और भाववादिता के अंतर को दर्शाती एक ऐसी रचना है जो चरागों को रोशन करने का पैगाम दे रही है। लघुकथा 'सदमा' के मध्य की यह पंक्ति //वे ही अगर जीवित होती तो, पिताजी के जाने का इतना दुःख नहीं होता।//, न केवल उत्सुकता बढ़ाती है बल्कि रचना का अंत आते-आते यह पञ्चलाइन भी बन जाती है। संस्कृत में एक श्लोक है - "भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता।" अर्थात भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं। रचना 'नये पिता' भारतवर्ष की इसी संस्कृति को उद्घाटित कर रही है। 'फ़रिश्ता' की बात करें तो यह नारी सशक्तिकरण की उन रचनाओं में से एक है जिनका विषय समकालीन व उत्कृष्ट है। 'इडियट को थैंक्स' मित्रता का सन्देश दे रही है और 'आख़िरी पतंग' पिता-पुत्र के प्रेम का। 'पत्नी ने कहा था' का अंत मार्मिक है और निष्ठपूर्ण आचरण का द्योतक है। 'बुज़ुर्ग का चुंबन' प्रवासी भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती एक रचना है, जिन्होंने अपने स्वदेश को देखा भी नहीं है। 'शब्दहीन अभिव्यक्ति' में कुत्तों के एक युगल के मध्य प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति है। 'मैडम सिल्विया' में संवादों की लम्बाई रचना को थोडा उबाऊ ज़रूर कर रही है, परन्तु रचना का शीर्षक व प्रारम्भ उत्सुकता बढ़ाने वाला है। 'कान और मुँह' एक अनछुए विषय पर कही गई रचना है। 'बेड नंबर 118' मेडिक्लेम इंश्योरेंस के प्रति हस्पताल के लालच से परिचय करवाती है तो 'ऑनलाइन - ऑफलाइन' आभासी और भौतिक रिश्तों में अंतर को दर्शाती है। 'एक सत्य यह भी' एक पूर्ण रचना है, इसका शिल्प और अधिक उत्तम होने की सम्भावना है। 'संवेदना की वेदना' वास्तविक वेदना पर हावी टीवी सीरियल की स्क्रिप्टिड वेदना को बहुत अच्छे तरीके से दर्शा रही है। 'सफ़ेद कोठी' अपने संघर्ष के दिनों को न भूलने की सलाह देती हुई है। 'मुहिम' पद से हटाने की रणनीति बताती है। 'क्रॉकरी या जीवन' अपने जीवन काल में स्वअर्जित वस्तुओं के उपभोग का सन्देश दे रही है तो 'यूज एंड थ्रो' लिव-इन-रिलेशनशिप के कटु सत्य को दर्शा रही है। 'गाँधारी काश! तू मना कर देती' एक बेहतरीन शीर्षक की बेमेल विवाह से मना करने की राह दिखाती रचना है। 'अफ़सोस' मृत्यु के समय मनुष्य का अन्तिम वेदोक्त का कर्तव्य अर्थात्

 "वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तंशरीरम्। ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतंस्मर।।" 

को याद दिला रही है। 'औज़ार...' लघुकथा सत्य को कहने का साहस और 'टायर-पंचर' परेशानी में मदद करने का सन्देश दे रही है।

लेखक की कई रचनाओं में किसी न किसी पात्र का नाम 'दिवाकर' है। पढ़ने-लिखने और प्रश्न करने वाले व्यक्ति की बुद्धि के बारे में कहा गया है कि "दिवाकरकिरणैः नलिनी, दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥" अर्थात वह बुद्धि ऐसे बढ़ती है जैसे कि 'दिवाकर' की किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ। इस पुस्तक रुपी रचनाकर्म में भी समाज में सनातन नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने हेतु जिस निष्ठा और समर्पण से सन्देश दीप्तिमान किया गया है वह प्रज्ञा संवृद्धि करता है। अधिकतर रचनाएं सौहार्दपूर्ण सकारात्मक दृष्टिकोण से कही गई हैं। शिल्प उत्तम है और जिस बात की भूरी-भूरी सराहना की जानी चाहिए वह है श्री भारती द्वारा विषय की गूढ़ अध्ययनशीलता और उस अध्ययन को कलमबद्ध करने की क्षमता। कहीं-कहीं जैसे,'शब्दहीन अभिव्यक्ति' में 'भाई सहाब' आदि को छोड़कर वर्तनी की त्रुटियाँ नहीं हैं। भाषा आम बोलचाल की है। कुछ रचनाओं के शीर्षक उत्तम होने की संभावना रखते हैं। समग्रतः, प्रबुद्ध सोच के पश्चात समकालीन मानवीय संवेदनाओं, चिन्तन हेतु आवश्यक विषयों से ओतप्रोत लघुकथाओं का यह संग्रह पठनीय व संग्रहणीय है।


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

अध्यक्ष, राजस्थान इकाई, विश्व भाषा अकादमी

ब्लॉगर, लघुकथा दुनिया ब्लॉग

सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान)

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